मनभावन वर्षा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 8 अगस्त 2010

मनभावन वर्षा

मुरझाये पौधे भी खिल उठते
जब उमड़- घुमड़ बरसे पानी,
आह! इन काली घटाओं की दिखती
हरदम अजब- गजब की मनमानी।
देख बरसते बादलों को ऊपर
मलिन पौधे प्रफुल्लित हो जाते हैं,
ज्यों बरसाये बादल बूंद- बूंद
त्यों नित ये अद्भुत छटा बिखेरते हैं।
अजब- गजब के रंग बिखरे
इस बर्षा से चहुंदिशि फैले हरियाली,
जब उमड़- घुमड़ बरसे बदरा
तब मनमोहक दिखती हरदम डाली!
आह! काले बादलों वाली बर्षा
तू भी क्या- क्या गुल खिलाती है,
हरदम बूंद-बूंद बरस-बरसकर
मलिन पौधों को दर्पण सा चमकाती है।
ये घनघोर काली घटाएं तो
बार- बार बरसाये बरसा की बौछारे
बरसकर भर देते मन उमंग तब
जब घर ऊपर घिर- घिर आते सारे।
धन्य - धन्य! वे घर सारे
जिनके ऊपर बरसे ऊपर का पानी,
धन्य- धन्य हैं वे जीव धरा पर
जिनको फल मिलता नित मनमानी।
कैसे कहें, कहां-कहां, कब-कब
बरस पड़ता यह काले बादलों का पानी!
धन्य हे ‘मनभावन वर्षा’ तू!
तेरी अपार अभेद अरू अमिट कहानी।

                                                      ........कविता रावत