तीन लोक से मथुरा न्यारी यामें जन्में कृष्णमुरारी - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 24 अगस्त 2016

तीन लोक से मथुरा न्यारी यामें जन्में कृष्णमुरारी

मथुरा प्राचीनकाल से एक प्रसिद्ध नगर के साथ ही आर्यों का पुण्यतम नगर है, जो दीर्घकाल से प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केन्द्र रहा है। भारतीय धर्म, कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मथुरा चौसठ कलासम्पन्न तथा भगवद्गीता के गायक  योगीश्वर आनन्दकन्द भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस भूमि में भगवान श्रीकृष्ण ईश्वर के पूर्णावतार के रूप में अवतरित हुए, जिन्होंने कुलक्षय की आशंका से महाभारत के युद्ध में अर्जुन के व्यामोह को भंग कर ’हृदयदौर्बल्यं व्यक्त्वोतिष्ठ परतंप’ का उपदेश दिया। इसके साथ ही उन्होंने ज्ञान, कर्म और भक्ति का समन्वय कर भागवत-धर्म का प्रवर्तन किया, जिसके कारण वे जगद्गुरु रूप में प्रतिष्ठित हुए।   
 मथुरा प्राचीन काल में भारत के प्रबल-प्रतापी यदुवंशियों के ‘शूरसेन’ नामक गणराज्य की राजधानी थी, जो तत्कालीन राजनीति का एक प्रमुख केन्द्र थी। मनुस्मृति, वृहत्संहिता महाभारत, ब्रह्मपुराण, वाराहपुराण, अग्निपुराण, हरवंशपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि अनेक प्रमुख ग्रन्थों में इसका मथुरा, मधुपुरी, महुरा, मधुपुर नाम से उल्लेख मिलता है तथा प्राचीन अभिलेखों में ‘मथुरा’ तथा ‘मथुला’ भी देखने में मिलता है।  भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में से इसे भी मोक्षदायिका माना जाता है, इसके बारे में जनश्रुति है- तीन लोक से मथुरा न्यारी यामें जन्में कृष्णमुरारी।

मथुरा को पहले मधुपुरी भी कहा जाता था। कहते हैं, इसे मधु नामक दैत्य ने बसाया था। कालांतर में यह शूरसेन राज्य की राजधानी बनी और उसी वंशानुक्रम में उग्रसेन के आधिपत्य में आयी। राजा उग्रसेन का कंस नामक क्रूर पुत्र था, जिससे मगध के घोर आततायी राजा जरासंध की अस्ति-नस्ति नामक दो कन्याएं ब्याही थी। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया था और स्वयं स्वेच्छाधारी राजा के रूप में मथुरा के सिंहासन पर आरूढ़ हो गया। उसी क्रूर अत्याचारी कंस ने अपनी चचेरी बहिन देवकी तथा उसके पति वसुदेव को एक आकाशवाणी के कारण स्वयं को निर्भय रखने के विचार से जेल में डाल दिया था। कंस तथा उसके क्रूर शासन को समाप्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी के गर्भ से कारागृह में जन्म लिया और अद्भुत लीलाओं के क्रमों का विकास करते हुए अपने मामा कंस का वध करके ब्रजवासियों के कष्टों को दूर किया। उन्होंने अपने माता-पिता तथा नाना उग्रसेन को कारागृह से मुक्त करके उन्हें पुनः सिंहासन पर बिठाया।  अपने जामाता कंस के मारे जाने पर जरासंध श्रीकृष्ण से बार-बार युद्ध करता रहा, लेकिन वह अंत में श्रीकृष्ण की कूटनीति के जाल में फंसकर भीम द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुआ। 
जिस प्रकार राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं, उसी प्रकार वृन्दावन के बिना मथुरा अधूरी है। भले ही मथुरा भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है, लेकिन उनकी दिव्य लीलाओं के नाम के लिए वृन्दावन प्रसिद्ध है। वृन्दावन ब्रज का हृदय है, जहां श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलायें की हैं। इस पावन भूमि को पृथ्वी का अति उत्तम तथा परम गुप्त भाग कहा गया है। पदम् पुराण में इसे भगवान का साक्षात् शरीर, पूर्ण ब्रह्म से संपर्क का स्थान तथा सुख का आश्रय बताया गया है। इसी कारण यह अनादि काल से भक्तजनों का श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी दयानन्द के गुरु स्वामी विराजानन्द, कवि रसखान आदि महान आत्माओं ने इसके वैभव को सजाया-निखारा है। यहां आनन्दकंद युगल किशोर श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा की अद्भुद नित्य विहार लीला होती रहती है।
वृन्दावन की प्राकृतिक छटा दर्शनीय है। यमुना इसको तीन ओर से घेरे हुए है। यहां सघन कुंजों में भांति-भांति के पुष्पों से शोभित लताएं और ऊंचे-ऊंचे घने वृक्ष मन में उल्लास भरते हैं। बसंत ऋतु के आगमन की छटा और सावन-भादों की हरियाली आंखो को जो शीतलता प्रदान करती है, वह श्रीराधा-माधव के प्रतिबिम्बों के दर्शनों का ही प्रतिफल है।  
वृन्दावन का कण-कण रसमय है। यहां प्रेम-भक्ति का ही साम्राज्य है। इसे गोलोक धाम से अधिक बढ़कर माना गया है। यही कारण है कि हजारों धर्म-परायण लोग यहां अपने-अपने कामों से अवकाश प्राप्त कर अपने शेष जीवन को बिताने के लिए निवास स्थान बनाकर यहां रहते हैं, जहां वे नित्य प्रति रास लीलाओं, साधु-संगतों, हरिनाम-संकीर्तन, भागवत आदि ग्रन्थों के होने वाले पाठों में सम्मिलित होकर धर्म-लाभ करते हैं।
                                     श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!