मजदूर : सबके करीब सबसे दूर - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 1 मई 2019

मजदूर : सबके करीब सबसे दूर


मजदूर!
सबके करीब
सबसे दूर
कितने मजबूर!

कभी बन कर
कोल्हू के बैल
घूमते रहे गोल-गोल
ख्वाबों में रही
हरी-भरी घास
बंधी रही आस
होते रहे चूर-चूर
सबके करीब
सबसे दूर
मजदूर!

कभी सूरज ने
झुलसाया तन-मन
जला डाला निवाला
लू के थपेड़ों में चपेट
भूख-प्यास ने मार डाला
समझ न पाए
क्यों जमाना
इतना क्रूर!
सबके करीब
सबसे दूर
मजदूर!

कभी कहर बना आसमाँ
बहा ले गया वजूद सारा
डूबते-उतराते निकला दम
पाया नहीं कोई किनारा
निरीह, वेबस आँखों में
उमड़ती रही बाढ़
फिर भी पेट की आग
बुझाने से रहे बहुत दूर
सबके करीब
सबसे दूर
मजदूर!

कभी कोई बवंडर
उजाड़ कर घरौंदा
पल भर में मिटा गया हस्ती!
तिनका तिनका पैरों तले रौंदा
सोचते ही रह गए
क्यों! हर कोई हम पर ही
करके जोर आजमाइश अपनी
दिखाता है इतना ग़रूर!
सबके करीब
सबसे दूर
मजदूर!