खुशमिजाज बुलबुल का मेरे घर आना - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

बुधवार, 1 जून 2011

खुशमिजाज बुलबुल का मेरे घर आना

जेठ की तन झुलसा देने वाली दुपहरी में लू की थपेड़ों से बेखबर मेरे द्वार पर मनीप्लांट पर हक़ जमाकर उसके झुरमुट में अपना घरौंदा बनाकर बैठी है-खुशदिल बोली और खुशमिजाज स्वामिनी बुलबुल पिछले चार वर्ष से लगातार हमारे घर के द्वारे आकर कर्मणेवादिकारस्ते मा फलेषु कदाचन का मर्म समझाती आ रही हैअपने बच्चों को प्राकृतिक खतरे आंधी-पानी के अलावा  बिल्लियों, छिपकलियों, चूहों, साँपों, कौओं और दूसरे शिकारी पक्षियों से बचाकर अपनी अगली पीढ़ी को जीवित रखने के लिए प्राणों की भी परवाह न करते ये पक्षी अभिभावक होने का पूर्ण  दायित्व निर्वहन तो करते हैं, लेकिन बदले में वे मनुष्यों से तरह अपने बच्चों से कोई अपेक्षा नहीं रखते फलतः उपेक्षा जैसी भयावह स्थिति से भी दो-चार होने से बचे रहते हैं
जिस तरह गर्मियों में किसी प्रिय चिर प्रतीक्षित मेहमान के आने की ख़ुशी घर में सबको रहती है उसी तरह इन नवागत मेहमानों का भी हम सभी घर के सदस्य स्वागत करने से नहीं चूकते हैं बुलबुल के घोंसला बनाने से लेकर अंडे देने, उन्हें सेने और फिर बच्चों के अण्डों से बाहर निकलने की प्रक्रिया के बाद किस तरह बुलबुल चोंच में भोजन दबाकर लाकर उन्हें खिलाती  है, वह देखते ही बनता है। सारी गतिविधि देखकर ऐसा लगता है जैसे वे अपने घर के ही सदस्‍य  हैंमुझे भी सुकून मिलता है मैं पानी की घोर किल्लत के  बावजूद गमलों में पेड़-पौधे उगाकर प्रकृति से जुडी रहने के लिए प्रयासरत  रहती हूँ बुलबुल की व्ही ट्वीट व्हिरी-व्हिरी जैसी सुमधुर धुन और  बच्चों की चीं-चीं से मेरा प्रयास सार्थक हो उठता है। 
गर्मियों की तपन भरी दुपहरी में हम बड़ों को घर में दुबककर दरवाजे-खिड़की बंद करके पंखे, कूलर की हवा में भी चैन नहीं मिलता। ऐसे में घर में गर्मी से बेपरवाह छोटे बच्चों की घींगा मस्ती और बुलबुल का दूर से अपने बच्चों को भोजन लाकर बिना रुके, थके खिलाते जाना बहुत सोचने पर मजबूर करता  है लगता जैसे हमसे ज्यादा सहनशीलता इन बच्चों और इन परिदों में  हैं अण्डों से निकले बुलबुल के बच्चों को ५-6 दिन हो चुके हैं बस और ३-४ दिन बाद सभी अपना घोंसला छोड़ चुके होंगें और जब ये घोंसला छोड़ते हैं तो फिर उसमें दुबारा नहीं बैठते क्रम से जो बच्चा पहले बाहर की दुनिया में आता है, वह उसी क्रम से घोंसला छोड़ता है।  पिछली बार जब एक एक बच्चा घोंसले से बाहर निकल गया था तो मैंने बहुत कोशिश की उसे वापस घोंसले में रखने की लेकिन वह बाहर ही बैठा रहा और फिर दूसरे दिन सुबह उड़ गया। अपने हाथों से मैंने कई बार उन्हें नीचे से घोंसले में रखा, कुछ लोगों ने मना किया कि नहीं पकड़ना चाहिए लेकिन मुझे उनकी यह धारणा बिलकुल गलत लगी। उन्हें इससे कोई हानि नहीं पहुंची, वे बहुत स्वस्थ थे छोटे में बुलबुल के बच्चे बिलकुल गौरैया जैसे लगते हैं(आप भी देखिये तस्वीर)
सच कहूँ बुलबुल का घरोंदा मुझे अपना सा लगता है, इन्हें देख बार-बार सोचती हूँ काश इनके जैसा आपसी ताल-मेल यदि हम सभी मनुष्य भी बिठा पाते, तो आज न जाने कितने ही घर बिखरते न दिखते! आपने भी यदि कभी इन्हें गौर से देखा होगा तो निश्चित ही आपके मन में ऐसे ही न जाने कितने ही नेक ख़यालात होंगें, है न!  शेष फिर कभी....और अब मैं भी उड़ चली १५ दिन के लिए अपने गाँव आप मेरे मोबाइल से खिंची कुछ तस्वीरों में देखिये, ये प्रकृति हमको कितना कुछ सिखाती है!.
..... कविता रावत