घर में किलकारी की ख़ुशी - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

घर में किलकारी की ख़ुशी


हम सभी जानते हैं कि हर दिन उजालों का मेला नहीं होता।  दुर्दिन हर आदमी को इस संसार की यथार्थता का ज्ञान देर सवेर करा ही देते हैं। मैं समझती हूँ इससे हमारी दुःख की अग्नि का मैल ही कटता है जिससे हम परिस्थितियों के अनुकूल चलने की कला सीखने में सक्षम हो पाते हैं. शीतल छाया का वास्तविक आनंद उसी को प्राप्त होता है, जो धूप की गर्मी सह चुकता है। विवाह के कई बरस बाद घर में गूंजती किलकारी की ख़ुशी का मायना उस हर माँ की आँखों में कोई भी सहज रूप से देख सकता है, जिसने उसे अपने ही घर परिवार और नाते रिश्‍तेदारों से मिले तानों के कडुवे घूँट पीते हुए दिन काटते देखा हो। उनका दुःख समझा हो।
      मैं यह बात अच्‍छी तरह समझ सकती हूं कि किसी भी दम्‍पति के भाग्‍य में जब मां-बाप बनना लिखा होता है तभी होता है। लेकिन आज के पढ़े-लिखे सभ्‍य समझे जाने वाले समाज में मां-बाप की लाडली समझी जाने वाली बेटी बहू बनती है, तो अगले एक-दो साल में मां न बनने पर उसे अपने घर-परिवार और परिचितों में तमाम तरह के ताने सुनने पड़ते हैं। उसे जिस अनावश्‍यक कोप का भाजन बनना पड़ता है, वह किसी त्रासदी से कम नहीं है।  अपने सबसे करीबी लोगों को कई अवसरों पर समझाना कुछ कठिन अवश्‍य होता है, लेकिन मैं बेटी-बहू के प्रति ऐसा नजरिया रखने वाले लोगों के सुख-दुख में शरीक होकर उनके नजरिए को बदलने का भरसक प्रयास करती रहती हूं। इस प्रयास में कभी कभी अप्रिय संवाद के दौर से भी गुजरना पड़ता है। बावजूद इसके जब कभी मैं इसका सकारात्‍मक प्रभाव खुद अपनी आंखों से देखती हूं तो मुझे वह मेरी बड़ी उपलब्धि दिखती है।
     12 बरस बाद इस 12 जुलाई का दिन मेरे लिए एक विशेष खुशी का पैगाम लेकर आया। इस दिन मेरी छोटी बहन की गोद में एक हंसता-खेलता बच्‍चा आया और उसके चेहरे पर न कटने वाले असहनीय पीड़ादायक लम्‍बे क्षणों के गुजरने के बाद खुशी की लहर। असहनीय पीड़ादायक इसलिए कह रही हूं क्‍योंकि मैं स्‍वयं भी 10 बरस के लम्‍बी अवधि के बाद ही मां बनने का गौरव हासिल कर पाई थी। डॉक्‍टर ने ऑपरेशन के बाद जब बच्‍चे की खुशखबरी दी तो अस्‍पताल में डेरा डाले घर के सभी लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सच कहूं तो मुझे भी मासी बनने की कुछ ज्‍यादा ही खुशी है। अपनी इस खुशी को मैं आप सबके साथ भी बांट रही हूं।


कविता रावत