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ब्रज के महात्म्य को कहां तक कहा जाय? सभी संप्रदायों के आचार्यों ने ब्रज की महिमा का गुणगान किया है। इसकी समता का कोई अन्य भूखण्ड नहीं है। यहां स्वयं परमात्मा परमेश्वर नर रूप धारण कर “नन्द-नन्दन“ के रूप में निराकार से साकार हो गये हैं। ब्रज को ऐसी ही विचित्र महिमा है कि यहाँ जितने भी स्थान हैं वे प्रायः सभी श्रीकृष्ण की लीला स्थली हैं। इन सभी में भगवदीय पुनीत भाव व्याप्त है। यहां ब्रजराज कहलाए जाने वाले सर्वेश्वर प्रभु को गोप-ग्वालों और गोपिकाओं के साथ मनोहारी अदभुत लीलाएं करते देखकर स्वयं ब्रह्मा जी को भी शंका उत्पन्न हुई थी कि यह कैसा भगवत् अवतार बताया जा रहा है। लेकिन अंत में वे भी हार मानकर कहते हैं- अहो भाग्यम्! अहो भाग्यम्!! नन्दगोप ब्रजो कसाम।“ कहा जाता है इसी ब्रज भूमि पर चरण रखते ही ब्रह्मज्ञानी उद्धव का सब ज्ञान लुप्त हो गया तो उन्हें कहना पड़ा-
“ब्रज समुद्र मथुरा कमल, वृंदावन मकरन्द।
ब्रज-बनिता से पुष्प हैं, मधुकर गोकुल चन्द।“
ब्रज को भुलाना आसान नहीं है,स्वयं ब्रज छोड़कर द्वारिका पहुंचकर द्वारिकाधीश बनने वाले भगवान श्रीकृष्ण ब्रज से आए अपने मित्र उद्धव से कुशलक्षेम पूछते समय भावविभोर होकर अश्रु ढुलकाते कहते हैं-
’उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं,
वृंदावन गोकुल की स्मृति, सघन तृनन की छाही।
हंस सुता की सुन्दर कगरी अरु कुंजन की छाही,
वे सुरभि वे बच्छ दोहिनी खरिक दुहावन जाही।
ग्वाल बाल सब करत कुलाहल
नाचत गहि गहि बाही,
जबही सुरति आवति वा सुख की
जिय में उमगत तन माही।“
22 टिप्पणियां:
बढिया दर्शनीय यात्रा, शुभकामनाएँ।
अविस्मरणीय यात्रा वृतान्त।
वाह ताज के साथ वाह वृन्दावन बोलिए........
प्रेम की नगरी हैं दोनों ....
बहुत सुन्दर सुन्दर
कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट लगा दी है।
सबचनार्थ।
वाह...बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ...
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति नेल्सन मंडेला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
बहुत सुन्दर
कविता जी , सुन्दर यात्रा वृतांत लिखा आपने ! गोकुल के विषय में विचित्र जानकारी मिली लेकिन मैंने ऐसा पहले कभी नहीं सुना हालाँकि मैं भी ब्रज से ही हूँ ! दूसरी बात -आपने शायद प्रेम मंदिर दिन के समय ही देखा , एक बार शाम का समय भी गुजारिये वहां ! पक्का है आपको अद्भुत लगेगा ! आप चाहें तो ये लिंक देख सकते हैं
http://yogi-saraswat.blogspot.in/2014/11/blog-post_14.html
गोकुल के बारे में वही के ट्रस्ट के एक पड़ित जी ने हमें बताया, हमें भी सुनकर अजीब तो लगा, तभी तो मैंने उसका उल्लेख यहाँ किया है, एक बात जो मैंने नहीं बताने चाही वह यह कि जिस ऑटो से हम गए थे उसी ने पड़ित जी से मिलवाकर कहा कि ये गोकुल के बारे सबकुछ बताते हुए दर्शन करा देंगे, चूँकि और जगह भी कई पंडित ठग देते हैं इसलिए हमने उसे नहीं कहा तो वह बोला कि कुछ नहीं दक्षिणा में १००-२०० जो बने दे देना, हमने भी सोचा ठीक है इसलिए उनके साथ चल दिए रास्ते में उन्होंने यह सब बताया, मंदिर में पंडित से उन्होंने पहले तो पूजा करवा ली और कहा दान में कम से कम २००० रूपये की रसीद काटो, बहुत ही अजीब लगा यह सब , १३०० की रसीद काटी और तभी मंदिर का पर्दा खोला पुजारी जी ने तब दर्शन हुए. उसके बाद १०० रूपये बगल में और २०० बलराम जी मंदिर में और तत्पश्चात २५० रुपये पंडित जी को दिए .. ..और भी बहुत सी बातें जो लिखना उचित नहीं लगता, घटित हुए ,, कुल मिलाकर ऑटो से लेकर अधिकांश पुजारी भी पैसे को ही देखते हैं यह देख कष्टप्रद लगा. अपनी मर्जी से श्रद्धा से कोई भी कुछ भी देता है चढ़ाता है तो वह बात अलग है ..खैर ..
कई बार आगरा और मथुरा जाना हुआ है और आज एक बार फिर आपके साथ वो सभी जगह हो आया ... बहुत सुंदरता से आपने अपने केमरे में ताज की ख़ूबसूरती को उतारा है ... कृष्ण की नगरी के दर्शन भी बख़ूबी हो गए ...
बढिया यात्रा वृतान्त. आप लोग फ़तेहपुर सीकरी नहीं गये क्या?
आगरा से दूर था समय काम होने से नहीं जा पाने का अफ़सोस है, लेकिन जब भी समय मिलेगा जाउंगी जरूर बहुत सुना है, इसलिए मन में उत्सुकता है
पुरानी यादें ताज़ा हो गईं ..
वाह ! अति सुन्दर वर्णन !
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
कविता जी, गोकुल के बारें में यह बात मुझे पता नहीं थी। सुंदर वर्णन।
ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का रोचक विवरण ।
बढिया यात्रा वृतान्त.
सुंदर यात्रा वर्णन। ताज महल के साथ साथ कृष्ण की मथुरा भी।
Jeevant yatra vrut... badhai apko..
बहुत बढ़िया वर्णन किया प्रेम नगरी का ..... बधाई !
I read your full blog and it was very informative, and helped me a lot. I always look for blog like this on the internet with which I can enhance my skills, day trip to agra
बहुत सुन्दर।
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