प्रेम नगर की हसीन वादियों में - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 18 जुलाई 2016

प्रेम नगर की हसीन वादियों में

बच्चों ने स्कूल की किताब में ताजमहल के बारे में क्या पढ़ा कि इस बार गर्मियों की छुट्टियों में उसे देखने की जिद्द पकड़ ली। गर्मी के तीखे तेवर देखकर घर से बाहर निकलने का मन नहीं कर रहा था, इसलिए आजकल-आजकल करते-करते जब बच्चों की छुट्टियां खत्म होने को आयी तो वे बहुत गुस्सियाने लगे, हड़काने लगे, तो हमने भी सोचा चलो इसी बहाने हम भी ताजमहल के दीदार कर लेंगे, क्योंकि अभी तक हमने भी ताजमहल को स्कूल की किताब और इंटरनेट में ही देखा-पढ़ा था।  आॅफिस से चार दिन की छुट्टी लेकर हम आगरा के साथ ही मथुरा और फिर दिल्ली घूमने का कार्यक्रम निर्धारित कर सबसे पहले आगरा पहुंचे। आगरा पहुंचकर एक होटल में सामान रखकर सुबह-सुबह जब हम ताजमहल पहुंचे तो एक पल तो यकीन नहीं हुआ कि जिस ताजमहल को हमने स्कूल की किताब और इंटरनेट में देखा-पढ़ा और लोगों की जुबानी सुना है, वह सचमुच हमारी आंखों के सामने है। ताजमहल देखना वास्तव में किसी सुनहरे सपने का साकार होने जैसा लगा। 
ताजमहल के आस-पास फोटो खींचते-खांचते, घूमते-घामते कब तीन घंटे बीत गए, इसका तब अहसास हुआ जब बच्चों ने भोजन करने का प्रस्ताव रखा। ताजमहल से बाहर निकलकर वहीं पास के एक होटल में हल्का-फुल्का नाश्ता करने के बाद हम भारत के सबसे महत्वपूर्ण किला देखने पहुंचे। आगरा के लालकिले की भव्यता देखकर यह सहज रूप में समझ आया कि विलासितापूर्ण सुरक्षित जीवन जीने के लिए ही अधिकाशं राजा-महाराजा इस तरह के अभेद किलों का निर्माण कराते रहे होंगे।
आगरा का लालकिला देखने के बाद हमने सीधे होटल की राह पकड़ी और दोपहर में थोड़ा आराम के करने के बाद बस द्वारा योगीश्वर आनन्दकंद भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा पहुंचे। मथुरा बस अड्डे से एक आॅटो वाले के माध्यम से होटल पहुंचे और वहां सामान रखकर जल्दी से हाथ मुंह धोकर उसी आॅटोरिक्शा से रात्रि आठ बजे के लगभग गोकुलधाम पहुंचे। वहीं ऑटो वाले ने हमें एक पंडित जी मिलवाया जिनसे हमें गोकुल के बारे में बहुत सी बातों की जानकारी मिली। एक ख़ास बात तो उन्होंने हमें बताया कि आज भी गोकुलवासियों की लड़कियां गोकुल से बाहर नहीं ब्याही जाती है, उनका ब्याह गोकुल में ही होता है और इसी तरह वहां की कोई गाय गोकुल से बाहर नहीं भेजी जाती है, सुनकर थोड़ा अचरज हुआ कि आज के समय में भी यह सब कैसे संभव होता होगा। लगभग आधे-पौने घंटे बाद भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम जी दर्शन कर हम वापस होटल लौट आये।
मथुरा नगरी को को यूं ही “तीन लोक से मथुरा न्यारी, यामें जन्में कृष्णमुरारी“ नहीं कहा जाता है। यहाँ आसपास भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के अनगिनत मंदिर है, जिन्हें देखने के लिए एक सप्ताह का समय भी कम है। इसलिए हमने समयाभाव के कारण मुख्य-मुख्य मंदिर देखने का कार्यक्रम निर्धारित किया और सुबह-सुबह श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर दर्शन को निकल पड़े। यह मंदिर भले ही अत्यन्त प्राचीन है लेकिन इसकी सुन्दरता अनुपम है। इसके बाद द्वारकाधीश मंदिर सहित और कई मंदिरों के चलते-चलते दर्शन करते हुए हम सीधे वृन्दावन स्थित वास्तुकला के माध्यम जगद्गुरु कृपालुजी महाराज द्वारा बनवाये गये दिव्य प्रेम को साकार करते प्रेम मंदिर पहुंचे। यहाँ एक ओर जहाँ राधा-कृष्ण की मनोहर झांकियां, गोवर्धन लीला, कालिया नाग दमन लीला, उद्यान में झूलन लीला की झांकियां देखकर मन अभिभूत हुआ वहीं दूसरी ओर मंदिर के भीतरी दीवारों पर राधाकृष्ण और कृपालु महाराज की विविध झांकियों के अंकन के साथ अधिकांश स्तम्भों पर गोपियों की सजीव जान पड़ती मूर्तियां देखकर सुखद अनुभूति हुई। 
प्रेम मंदिर से निकलकर हम गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के लिए निकले। वृन्दावन स्थित गोवर्धन पर्वत के बारे में बहुत पढ़ा-सुना था, इसलिए इसका करीब से सुखद अनुभव प्राप्ति हेतु मन पुलकिल हो उठा। गोवर्धन पर्वत की 21 किलोमीटर की परिक्रमा बहुत से श्रद्धालु जन  पैदल चलकर पूरी करते हैं, जिसमें बहुत समय लगता है, समयाभाव के कारण भले ही हमने परिक्रमा आॅटोरिक्शा से पूरी की, लेकिन ऐसा करने पर भी मन को असीम शांति मिली।   
रात्रि वृन्दावन से वापस मथुरा लौटकर सुबह-सुबह हमने अपने अगले पड़ाव दिल्ली के लिए बस द्वारा कूच किया। गर्मी की अधिकता और समयभाव के कारण हमने दिल्ली भ्रमण का स्थगित किया। वैसे भी दिल्ली मेरी ससुराल है, जहाँ अक्सर आना-जाना और घूमना-फिरना लगा ही रहता है। इसलिए दिल्ली छोड़ बस में बैठे-ठाले दिल्ली पहुंचने तक ब्रजभूमि की यादों में मन डूबता-उतरता रहा। भले ही भौगोलिक संरचना में यद्यपि ब्रज नाम का कोई प्रदेश या स्थल नहीं है तथापि ब्रज का अपना विशिष्ट अस्तित्व है। इसकी अपनी विशेष संस्कृति है। अपनी भाषा है, अपना अनुपम साहित्य है। इसी आधार पर कदाचित समय-समय पर यहां के रहवासियों की मांग ब्रज प्रदेश के निर्माण हेतु उठाई जाती रही है। प्राचीन ब्रज में 12 वन, 24 उपवन तथा 5 पर्वतों का समावेश बताया गया है। इस विषय में सूरदास जी ने भी- ’चौरासी ब्रज कोस निरंतर खेलत है वन मोहन’ कहते हुए ब्रजधाम का विस्तार चौरासी कोस बताया है। हालांकि ब्रज से संबंधित भूमि तथा संस्कृति का विस्तार मथुरा को केन्द्र मानकर आगरा, ग्वालियर, भरतपुर, अलीगढ़, एटा, गुड़गांव, मेरठ आदि जिलों तक जहां-जहां ब्रजभाषा बोली व समझी जाती है, माना जाता है। यह भी माना जाता है कि महाप्रभु बल्लभाचार्य, श्री चैतन्य महाप्रभु आदि ने संपूर्ण ब्रज चौरासी कोस की यात्राएं की थी। इस तरह ब्रज के गौरव का इतिहास बहुत प्राचीन है।  स्कंद पुराण में भी भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र श्री ब्रजनाभ ने महाराज परीक्षत के सहयोग से श्रीकृष्ण लीला स्थलियों का प्राकट्य करने, अनेक मंदिरों, कुण्ड, बावड़ियों आदि का निर्माण कराने का उल्लेख होना बताया जाता है। 
ब्रज के महात्म्य को कहां तक कहा जाय? सभी संप्रदायों के आचार्यों ने ब्रज की महिमा का गुणगान किया है। इसकी समता का कोई अन्य भूखण्ड नहीं है। यहां स्वयं परमात्मा परमेश्वर नर रूप धारण कर “नन्द-नन्दन“ के रूप में निराकार से साकार हो गये हैं। ब्रज को ऐसी ही विचित्र महिमा है कि यहाँ जितने भी स्थान हैं वे प्रायः सभी श्रीकृष्ण की लीला स्थली हैं। इन सभी में भगवदीय पुनीत भाव व्याप्त है। यहां ब्रजराज कहलाए जाने वाले सर्वेश्वर प्रभु को गोप-ग्वालों और गोपिकाओं के साथ मनोहारी अदभुत लीलाएं करते देखकर स्वयं ब्रह्मा जी को भी शंका उत्पन्न हुई थी कि यह कैसा भगवत् अवतार बताया जा रहा है। लेकिन अंत में वे भी हार मानकर कहते हैं- अहो भाग्यम्! अहो भाग्यम्!! नन्दगोप ब्रजो कसाम।“ कहा जाता है इसी ब्रज भूमि पर चरण रखते ही ब्रह्मज्ञानी उद्धव का सब ज्ञान लुप्त हो गया तो उन्हें कहना पड़ा-
“ब्रज समुद्र मथुरा कमल, वृंदावन मकरन्द। 
ब्रज-बनिता से पुष्प हैं, मधुकर गोकुल चन्द।“ 
ब्रज को भुलाना आसान नहीं है,स्वयं ब्रज छोड़कर द्वारिका पहुंचकर द्वारिकाधीश बनने वाले भगवान श्रीकृष्ण ब्रज से आए अपने मित्र उद्धव से कुशलक्षेम पूछते समय भावविभोर होकर अश्रु ढुलकाते कहते हैं-
’उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं, 
वृंदावन गोकुल की स्मृति, सघन तृनन की छाही। 
हंस सुता की सुन्दर कगरी अरु कुंजन की छाही, 
वे सुरभि वे बच्छ दोहिनी खरिक दुहावन जाही। 
ग्वाल बाल सब करत कुलाहल 
नाचत गहि गहि बाही, 
जबही सुरति आवति वा सुख की 
जिय में उमगत तन माही।“ 


22 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बढिया दर्शनीय यात्रा, शुभकामनाएँ।

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

अविस्मरणीय यात्रा वृतान्त।

Surya ने कहा…

वाह ताज के साथ वाह वृन्दावन बोलिए........
प्रेम की नगरी हैं दोनों ....
बहुत सुन्दर सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट लगा दी है।
सबचनार्थ।

Kailash Sharma ने कहा…

वाह...बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ...

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति नेल्सन मंडेला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर

Yogi Saraswat ने कहा…

कविता जी , सुन्दर यात्रा वृतांत लिखा आपने ! गोकुल के विषय में विचित्र जानकारी मिली लेकिन मैंने ऐसा पहले कभी नहीं सुना हालाँकि मैं भी ब्रज से ही हूँ ! दूसरी बात -आपने शायद प्रेम मंदिर दिन के समय ही देखा , एक बार शाम का समय भी गुजारिये वहां ! पक्का है आपको अद्भुत लगेगा ! आप चाहें तो ये लिंक देख सकते हैं
http://yogi-saraswat.blogspot.in/2014/11/blog-post_14.html

कविता रावत ने कहा…

गोकुल के बारे में वही के ट्रस्ट के एक पड़ित जी ने हमें बताया, हमें भी सुनकर अजीब तो लगा, तभी तो मैंने उसका उल्लेख यहाँ किया है, एक बात जो मैंने नहीं बताने चाही वह यह कि जिस ऑटो से हम गए थे उसी ने पड़ित जी से मिलवाकर कहा कि ये गोकुल के बारे सबकुछ बताते हुए दर्शन करा देंगे, चूँकि और जगह भी कई पंडित ठग देते हैं इसलिए हमने उसे नहीं कहा तो वह बोला कि कुछ नहीं दक्षिणा में १००-२०० जो बने दे देना, हमने भी सोचा ठीक है इसलिए उनके साथ चल दिए रास्ते में उन्होंने यह सब बताया, मंदिर में पंडित से उन्होंने पहले तो पूजा करवा ली और कहा दान में कम से कम २००० रूपये की रसीद काटो, बहुत ही अजीब लगा यह सब , १३०० की रसीद काटी और तभी मंदिर का पर्दा खोला पुजारी जी ने तब दर्शन हुए. उसके बाद १०० रूपये बगल में और २०० बलराम जी मंदिर में और तत्पश्चात २५० रुपये पंडित जी को दिए .. ..और भी बहुत सी बातें जो लिखना उचित नहीं लगता, घटित हुए ,, कुल मिलाकर ऑटो से लेकर अधिकांश पुजारी भी पैसे को ही देखते हैं यह देख कष्टप्रद लगा. अपनी मर्जी से श्रद्धा से कोई भी कुछ भी देता है चढ़ाता है तो वह बात अलग है ..खैर ..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कई बार आगरा और मथुरा जाना हुआ है और आज एक बार फिर आपके साथ वो सभी जगह हो आया ... बहुत सुंदरता से आपने अपने केमरे में ताज की ख़ूबसूरती को उतारा है ... कृष्ण की नगरी के दर्शन भी बख़ूबी हो गए ...

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बढिया यात्रा वृतान्त. आप लोग फ़तेहपुर सीकरी नहीं गये क्या?

कविता रावत ने कहा…

आगरा से दूर था समय काम होने से नहीं जा पाने का अफ़सोस है, लेकिन जब भी समय मिलेगा जाउंगी जरूर बहुत सुना है, इसलिए मन में उत्सुकता है

Rashmi B ने कहा…

पुरानी यादें ताज़ा हो गईं ..

Hindikunj ने कहा…

वाह ! अति सुन्दर वर्णन !
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कविता जी, गोकुल के बारें में यह बात मुझे पता नहीं थी। सुंदर वर्णन।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…


ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का रोचक विवरण ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बढिया यात्रा वृतान्त.

Asha Joglekar ने कहा…

सुंदर यात्रा वर्णन। ताज महल के साथ साथ कृष्ण की मथुरा भी।

Barun Sakhajee Shrivastav ने कहा…

Jeevant yatra vrut... badhai apko..

Satish Saxena ने कहा…

बहुत बढ़िया वर्णन किया प्रेम नगरी का ..... बधाई !

Rachel Cavanna ने कहा…

I read your full blog and it was very informative, and helped me a lot. I always look for blog like this on the internet with which I can enhance my skills, day trip to agra

रमता जोगी ने कहा…

बहुत सुन्दर।