अहसास की पाती - KAVITA RAWAT
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शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

अहसास की पाती



30 नवम्बर को मेरी शादी की 14वीं सालगिरह है. इस अवसर पर हम विशेष धूमधाम तो नहीं, परन्तु हाँ बच्चों के साथ यही भोपाल में केरवा डैम (पिकनिक स्थल) या फिर बड़े तालाब के किनारे घूमने जरुर जाते हैं. इस बार सोचा कि चलो ब्लॉग परिवार के साथ ही इस सालगिरह को मनाकर देखा जाय, नया अनुभव होगा. इस अवसर पर मैं अपनी एक छोटी रचना जो मैंने अभी मार्च माह में जब मैं ऑफिस ट्रेनिंग से एक सप्ताह के लिये मसूरी गयी थी तब घर पर मेरे पति को छोटे-छोटे दोनों बच्चों को सँभालने का जिम्मा आ पड़ा. फिर क्या! रोज फ़ोन पर अपने और बच्चों की बात होती रहती थी, उनकी इसी मनोदशा को भान कर मैंने उनके ही शब्दों को कुछ इस तरह पिरो दिया ...........

तू नहीं है पास
कैसे बताऊँ तुझे
मन है बहुत उदास
बिखरा-बिखरा सा यह घर लगता
सिमटा-सिमटा सा आकाश
तू नहीं .........

बेटी तो रो-रोकर कह रही है
माँ कि बहुत याद आ रही है
पर बेटा तो बहुत मस्त है
मैं भी मसूरी जाऊंगा
एक ही रट लगाये रहता है
बच्चे तो बच्चे पल भी भूले-याद करे
उन्हें कहाँ मुझसा अन्तरंग अहसास
तू नहीं ...........

थकाहारा जब मैं पहुँचता घर
मैं चिंतित पर बच्चे बेखबर
घर कुछ खाली-खाली सा लगता है
हर घडी दिल तुझे पास बुलाता है
हरपल होता इस दूरी का अहसास
तू नहीं ...............

अब देर नहीं जल्दी से घर आ जाओ
हाल मेरा सुनकर अपना भी सुनाओ
अपने घर में ही होता है सुखद अहसास
तू नहीं .............

अब बच्चों के वास्ते .................


एक दिन जब मेरा छोटा बेटा जब वह ३ साल का था तो वह घर कि दीवार और फर्श पर चाक से रंग रहा था तो मेरी बेटी यह देख मेरा हाथ पकड़कर मुझे उसकी यह करतूत देखकर कहने लगी. देखो मम्मी ! भैया ने कितनी गोदागादी कर दी है, आप इसे भी मेरे साथ स्कूल क्यों नहीं भेजती? बड़ा हो गया है यह! स्कूल जायेगा तो ये ये गोदागादी सब भूल जायेगा! इसे अवसर पर मैं एक छोटी कविता लिखी. आज इस अवसर पर प्रस्तुत कर रही हूँ. आशा है आप लोगों को भी अच्छी लगे.............

ABCD सिखला दो .........

मम्मी देखो! पापा देखो!
भैया मेरा बड़ा हुआ
देखो जरा दीवार तो देखो
इसने कितना गोद दिया
जाकर बाज़ार से इसके लिए
स्लेट-बत्ती ला दो
पकड़कर हाथ इसका
ABCD सिखला दो
रात को जल्दी सुलाकर इसे
सुबह जगाना न जाना भूल
मेरे संग-संग मेरा भैया भी
अब जायेगा स्कूल

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