लगता पतझड़ सा यह जीवन - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 8 नवंबर 2009

लगता पतझड़ सा यह जीवन

आम्रकुन्जों के झुरमुट से
बह रही मंद-मंद पवन
पर उदास मन बैठी मैं
दिखता हरतरफ सूनापन
आम्रकुंजों की देख हरीतिमा तब
कहता मुझसे मेरा पतझड़ मन
छिपा ले हरे -भरे पत्तों में तू भी
अपनी अदृश्य पीड़ा सघन
हरे -भरे पत्तों के बीच बैठी कोयल
क्यों मधुर गीत सुनाती है!
मेरे सूने मन खंडहर में आकर
क्यों सोए अरमान जगाती है

पतझड़ मन से झर- झर झरती पत्ती
लगती जीवन डाली सूनी खाली
हरतरफ आवाज झनकती झींगुरों की
जीवन डाल पर बुनती मकड़ी जाली

यूँ ही बीत रहे जीवन के पल-पल
कभी लगता वीरान यह अंतर्मन
आता वसंत कब पता न चलता
लगता पतझड़ सा यह जीवन


        मन के घोर निराशा के क्षण में जब चाह तमन्नाओं की निरंतर धारा प्रवाहित होने लगती है, तब कहाँ कुछ भी अच्छा लगता है! ये सुन्दर प्रकृति भी वीरान, सुनसान लगने लगाती है. अवसाद भरा मन सबसे दूर भागता है और अपने ही दुःख में डूबा इंसान खुद से बातें करता, खुद को समझाता रहता है, जिससे वह सारी दुनिया से कटकर रह जाता है. वह मन में ऐसी धारणा बिठा लेता है कि यही दुनिया तो उसके दुःख का कारण है!
        ऐसे ही अवसाद के क्षणों में रची मेरी यह रचना भले ही वर्तमान परिदृश्य में अप्रासंगिक हो चली हो, लेकिन यह मुझे उन क्षणों की याद दिलाकर मुझमे ऊर्जा का संचार करती है और मैं डटकर आज विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने में अपने को सक्षम पाती हूँ. आज मैं यह कदापि नहीं चाहती हूँ कि किसी इंसान पर उसका दुःख हावी हो और वह उसी में डूबकर अपने आप को इस संसार से अलग-थलग समझने की भूल कर अपना संसार बर्बाद कर दे. आज इसी वजह से मैं जब कभी, जहाँ कहीं भी किसी भी इंसान को इस दशा में देखती हूँ तो मैं उसे इससे उबारने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहती हूँ, ताकि वह भी जीवन को सच्चे अर्थ में लेकर जीवन जीने का आशय समझ सके............ कविता रावत 

17 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

bahut acchee kavita .ek sandesh detee .Jeevan me aisaa kuch bhee nahee jisaka manav saamana nahee kar sakata .par aashavadee bane rahanaa bahut jarooree hai .are paanee pathar ko kat rasta bana leta hai hum to insaan hai . mujhe to lagata hai pratikool paristhitiyo me hame jyada seekhane ko milata hai . badhai

मनोज कुमार ने कहा…

वेदना, करुणा और दुःखानुभूति का अच्छा चित्रण। भाषा की सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग भावावेग की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वाभाविक परिणति दीखती है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अपनी मनोदशा ही सबकुछ महसूस करती है,
जैसे जब व्यक्ति प्यार में डूबा होता है तो सारी दुनिया हसीं लगती है,
एकांत भी मुखर हो जाता है

श्यामल सुमन ने कहा…

बेहतर ढ़ंग से आपने अपने मन की बात कही।

दे गया संकेत पतझड़ आगमन ऋतुराज का
तब भ्रमर के संग सुमन को झूमना अच्छा लगा।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Unknown ने कहा…

जीवन के ज्वलंत झंझावातों से जूझते हुए अपने ज़मीर की जानदार और शानदार अभिव्यक्ति के लिए ऐसी कविता को जन्म दे कर आपने नि:संदेह हिन्दी साहित्य में श्रीवृद्धि की है

मैं आपका अभिनन्दन करता हूँ ।

M VERMA ने कहा…

व्यक्त जब अव्यक्त होता है तो पीडा होती है
आपने बखूबी व्यक्त किया है अपनी भावनाओ को.

सूर्यकांत द्विवेदी ने कहा…

कविता जी
कविता सुंदर लगी। यह जानकर भी सुखद अनुभूति हुई कि आपका तआल्लुक पहाड़ से है। मैं भी वहीं की गोद में जन्मा और पला हूं। पहाड़ की वादियां देखकर मन प्रसन्न हुआ। एक दोहा देखिए--
आंगन में निज वसंत के पतझड़ ही मेहमान
भोर दिन को निगल गया रातों का दिनमान।
-सूर्यकांत द्विवेदी
dskantd@gmail.com

शरद कोकास ने कहा…

जीवन मे उदासी भी ज़रूरी है लेकिन इसे निराशा मे तब्दील होने से बचाना चाहिये । नवगीत के शिल्प मे यह गीत अच्छा है ।

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! इस बेहतरीन और शानदार कविता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

निर्मला कपिला ने कहा…

आम्रकुंजों की देख हरीतिमा तब
कहता मुझसे मेरा पतझड़ मन
छिपा ले हरे -भरे पत्तों में तू भी
अपनी अदृश्य पीड़ा सघन
कविता बहुत कुछ शायद इतने दिनों छूट गया पढने से शायद ये मेरे लिये लिखी गयी कविता बन गयी है। या शायद कभी कभी सब का मनऐसा ही होता है। जिसे हम शब्दों मे सहज ही उतार लेते हैं बहुत सुन्दर रचना है। अपने लिये तुम्हारा स्नेह देख कर मन भीग सा गया है तुम्हरी सभी मेल्ज़ शेज कर रखी हैं । पढती हूँ तो एक सुखद अनुभूति होती है कि मेरी बेटियाँ मेरा कितना ध्यान रखती हैं अब मैं आगे से बहुत अच्छी हूँ और अपना काम शुरू कर दिया है। धन्य्aवाद न्हीं कहूँगी बस आशीर्वाद दूँगी सदा खुश रहो सुखी रहो। और इसी तरह लिखती रहो बहुत विस्त्रित शब्दों का भंडार है तुम्हारे पास और सृजनात्मक क्षमता भी है बस ऐसे ही लिखती रहो बधाई

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आम्रकुंजों की देख हरीतिमा तब
कहता मुझसे मेरा पतझड़ मन
छिपा ले हरे -भरे पत्तों में तू भी
अपनी अदृश्य पीड़ा सघन ....

ASHA और UMEED को PALLAVIT KARTI BEJOD RACHNA है ...... SACH MEIN KISI को UMEED KA DIYA DIKHAANA APNE MAN को SHAANTI DETA है ......... बहूत ही SUNDAR शब्द SANYOJAN के SAATH MADHUR BHAAVON SE SAJI है AAPKI RACHNA .... BADHAAI

Apanatva ने कहा…

waitig for your comment on KHATAS /////

Unknown ने कहा…

kavitaji..bahut hi bhavpurn rachna hue hai aapse sahaj v sunder bhasha mein ....kavita padhker hum apne ko kuch smirdh paate hai ..badhai

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहतर ढ़ंग से आपने अपने मन की बात कही।

kuldeep Singh Rana ने कहा…

kuch b kaho aap bhut mahan ho

kuldeep Singh Rana ने कहा…

madam ji kuch jeevan k baare may bhi Bole to akelapan ya jo jindgi se haar gaya ho

Govind Rawat ने कहा…

Beautiful Thoughts