शहर की दौड़-धूप से बदहाल होती जिंदगी के बीच जब हम सुकून के दो पल तलाशते हैं तो मन को निराश हो जाता है. ऐसे में पहाड़ शब्द जेहन में आते ही हरे-भरे पेडों की छांव, खेत-खलियान, गाँव की टेढ़ी-मेढ़ी बलखाती पगडंडियों, पत्थरों से बने सीधे-टेढ़े घर, गौशालाओं में बंधी गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि की धुंधली तस्वीर मन में उमंग भर देती है।
शहर के भीड़ भरे एकाकी जीवन के बीच जब गाँव की सरल, सौम्य मिलनसारिता का ख्याल आता है तो मन ख़ुशी से भर उठता है और कदम उस तरफ खिंचने लगते हैं।
उत्तराखंड से दूर भोपाल में रहते हुए भी मेरा मन बार-बार अपने गृह नगर पौड़ी गढ़वाल की सुरम्य पहाड़ियों की तरफ भागने लगता है. धार्मिक अनुष्ठान (देवी-देवता पूजन) या शादी समारोह के लिए तो वहां जाना होता ही है. लेकिन जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियां होती हैं, तब मेरी प्राथमिकता मेरे पहाड़ के गाँव ही होते हैं. मैं अक्सर ऐसे मनोहारी प्राकृतिक छटा को जीवंत बनाये रखने के उद्देश्य से अपने छोटे से मोबाइल कैमरे में कैद करना नहीं भूलती, जिसे मैं समय-समय पर अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से अपनी रचनाओं में प्रयुक्त करती रहती हूँ
ऊँचे-नीचे, उबड़-खाबड़ पहाडों के गाँवों में जो एक विशेषता सब जगह नजर आती है वह इनके आस-पास पानी के स्रोतों का होना है. गाँव की संस्कृति, पहाड़ी हवा, पानी और सीधी-साधी जीवन शैली से भरे, सरल स्वभाव के लोगों के बीच मन को अपार शांति मिलती है. उनके दुःख-सुख में शामिल होकर उनकी भोली-भाली, सीधी-साधी बातें, पहाडों की कहानियां सुनना बहुत अच्छा लगता है. लेकिन जब हम इन लोगों की जिंदगी में गहराई से उतरते हैं तो पता चलता है कि वह भी दुर्गम पहाड़ सी उतार-चढ़ाव भरी है. उनकी अपनी कहानी इन खूबसूरत वादियों में किसी बिडम्बना से कमतर नहीं!
गाँव में देवी-देवता पूजन का विशेष महत्व है. अपने अपने देवी-देवताओं और उनकी आराधना का समय अलग होने के बावजूद पूजा करने का ढ़ंग अलग-अलग न होकर एक ही है. आज भी गाँव के लोग चाहे वे देश में हों या विदेश में और चाहे कितने भी पढ़-लिखकर बड़े-बड़े पद या या व्यवसाय से क्यों न जुड़े हों; वे इसी बहाने देर-सबेर गाँव की ओर खिंचे चले आते हैं.
ऐसे ही एक धार्मिक आयोजन से मेरी पिछली यात्रा प्रारंभ हुई. हम देवता पूजन में शामिल होने गाँव गए. गाँव में पहले दिन देवता पूजन हुआ और दूसरे दिन हम सुबह-सुबह देवता स्नान कराने हेतु पहले हरिद्वार और फिर आगे जोशीमठ तक की यात्रा के लिए निकल पड़े. इस यात्रा में पहले महीनों लग जाया करते थे, पर आजकल आवागमन के सहज साधनों के कारण यह यात्रा महज ३-४ दिन में ही संपन्न हो जाती है।
गाँव से १०-१२ घंटे की यात्रा के बाद हम हरिद्वार पहुंचे. हरिद्वार ऋषि मुनियों तथा सिद्ध पुरूषों की तपस्थली रही है. यह पवित्र वसुंधरा विश्व की प्राचीनतम तथा पौराणिक धरोहर है. यही कारण है कि आज हरिद्वार विश्व के मानचित्र पर अपना अलग ही स्थान रखता है. इसका नाम हरिद्वार कैसे पढ़ा, इस विषय में अनेक किस्से- कहानियां प्रचलित हैं. कहते हैं प्रसिद्ध बद्रीधाम का उदगम द्वार होने से इसे 'हरिद्वार' कहा गया है।
गंगा हमारी भारतीय संस्कृति और गौरवपूर्ण सभ्यता का प्रतीक है. वह हमारी आस्था, परम्पराओं और विश्वास से जुड़ी है. अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध हरिद्वार पर्यटकों व तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है. गंगा में स्नान करने के बाद जो अभूतपूर्व सुखद अनुभूति हुई, वह आज भी ताजगी भर देती है।
रात्रि विश्राम के बाद हम जोशीमठ की अपनी आगे की यात्रा के लिए सुबह-सुबह निकल पड़े. हरिद्वार से ऋषिकेश होते हुए देव प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग और नन्द प्रयाग के दुर्गम पहाडों और घाटियों के उतार-चढावों को लांघते हुए सर्पीली सड़कों में लुढकते, बलखाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे. सड़क के चारों ओर जब भी नजर घूमती पहाडों का अद्भुत सौंदर्य, तलहटी में बहती नदियाँ पावन भागीरथी, मन्दाकिनी, अलकनन्दा, जैसे अपनी गोद में खेलने के लिए बुला रही थीं।
पहली बार गगनचुंबी पहाड़ियों और घाटियों के बीच बहुत गहरे व संकरे डरावने लटकते रास्तों से गुजरने का अनुभव बड़ा ही भयावह लेकिन रोमांचकारी लगा. रुद्रप्रयाग में अलकनंदा जो कि बद्रीनाथ के ऊपर हिमालय की चोटियों से और मन्दाकिनी जो केदारनाथ के बर्फीले शिखरों से निकलकर एक होकर पवित्र गंगा का रूप धारण करती हैं, उसका अभूतपूर्व सौंदर्य देखते ही बनता है. जहाँ पहले नदियों में विपुल जल के बाद भी पानी बहकर व्यर्थ चला जाता था, वहीँ जोशीमठ से पहले नेशनल थर्मल पावर प्रोजेक्ट का विद्युत उत्पादन सयंत्र देखकर ख़ुशी हुई, निसंदेह यह दुर्गम पहाड़ी घाटियों में एक बहुत बड़ा साहसिक कदम है, जो उत्तराखंड के विकास की सुनहली झलक है।
जोशीमठ पहुँचने पर हमने सबसे पहले नरसिंह भगवान् के दर्शन कर वहां बने एक निश्चित स्थान पर स्नान किया. यहाँ से बद्रीनाथ की दूरी मात्र ४० किलोमीटर है. बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने पर जोशीमठ में बद्रीनाथ यहीं विराजते हैं. यहाँ से बद्रीनाथ के गगनचुंबी विशाल दैत्यकाय पहाड़ नजर आ रहे थे . जिनमें बमुश्किल एकाध पेड़ ही दिखाई दे रहे थे. चट्टानों को अपने में समाये हुए आसमान को छूने को आतुर ये पहाड़ दमख़म के साथ गहरी घाटियों में तनकर खड़े अपनी देवभूमि का आभास करा रहे थे. इनके आगे श्रद्धा और भक्तिभाव् से शीश झुका जा रहा था. जोशीमठ में रात्रिविश्राम के उपरांत हमने तड़के गाँव की ओर कूच किया
ऊँची-नीची मनोहर पहाड़ियों के बीच जहाँ भी सड़क के आस-पास दुकान या गाँव आते, बस रुकते ही वहां के उदार मानवीय व्यवहार से भरे रहवासियों को देख मन ख़ुशी से भर उठता. तन तो साथ होता पर मन सुरम्य पेड़-पौधों से आच्छादित पहाड़ियों और घाटियों में विचरते हुए जाने कहाँ खो जाता ! खुली आँखों से जीता-जागता यह मनोहर सपना देखते-देखते कब मेरी यह धार्मिक यात्रा समाप्त हुई, मुझे इसका अहसास वापस भोपाल पहुंचकर ही हो पाया।
44 टिप्पणियां:
BILKUL SAHI BAAT KI AAPNE YE
PAHAD AUR NADIYAN, HUMARI AASTHA HI HAI
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
पहाड़ों का सौदर्य अपने मोहपाश में बांध लेता है. अच्छा विवरण/ अच्छी तस्वीरें.
सुन्दर लेखन
पहाड़ वैसे भी मुझे बहुत आकर्षित करते हैं... और इसीलिए मेरी आत्मा काँप उठती है जब देखता हूँ कि पहाड़ों को निर्वस्त्र किया जा रहा है. आपकी यात्रा मे हम भी सम्मिलित हुए, आपके माध्यम से, इस पोस्ट के माध्यम से... धन्यवाद!!
कविता जी आपके साथ पहाड़ की यात्रा करके अच्छा लगा। पहाड़ों के फोटो भी बहुत सुंदर हैं। पर उनके साथ अगर कैप्शन भी होते तो और आनंद आता ।
हुस्न पहाड़ों का !!!!!!!!!अच्छी लगी ये यात्रा
Naisargik!
Jai Ho!
'जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियां होती हैं, तब मेरी प्राथमिकता मेरे पहाड़ के गाँव ही होते हैं.'
-यह प्रायः प्रत्येक प्रवासी पहाडी की प्राथमिकता होती है. आपने अपने लेख में पहाड़ का सजीव वर्णन किया है, किन्तु उत्तराखंड के पहाड़ों का वास्तविक आनंद वहाँ जाकर ही अनुभव किया जा सकता है.
सादर!
एक बार जो निकाला अमरनाथ यात्रा पर तो आज तक खीचा चला जाता हूँ, क्योंकि प्रकीर्ति का सौंदर्य इन पहाड़ों में देखने को मिलता है !
कई यादें ताजा कराती पोस्ट !
रत्नेश त्रिपाठी
लम्बी.... मगर बहुत बहुत अच्छी व् शानदार पोस्ट....
aapka varnan bahut pasand aaya.par sach maniye jab hum kedarnath badreenath kee yatra par gaye the prakrutik sodndary ne to man moh liya tha par jagah jagah
savdhan ! patthar gir rahe hai ye sandesh dil dahlane wala har mod par mil raha tha..........
raste me patthar gire hue bhee mile the.........
asuraksha kee bhavne ne sara mazaa hee kirkira kar diya tha raste ka..........
बहुत अच्छा संस्मरण।
सजीव चित्रण। आपके संग यात्रा करना अच्छा लगा।
sunder... thanx2u
Its not only plgrims and hills, actually the memories of childhood make us to crave for.....
vivj2000.blogspot.com
...बेहद प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!
बहुत सुंदर संस्मरण !
आपने बरसों पहले की गयी बदरीनाथ यात्रा की याद ताज़ा कर दी...नयनाभिराम चित्र और वर्णन पढ़ कर मन गदगद हो गया...
नीरज
अच्छा विवरण, अच्छी तस्वीरें. सुन्दर लेखन
बहुत सुन्दर आलेख....पहाड़ों का सौन्दर्य तो बहुत ही आकृष्ट करता है...आप सौभाग्यशाली हैं कि पहाड़ों की गोद में आपका घर है.....ऋषिकेश तो इतना सुरम्य है कि वहाँ से आने का ही मन नहीं होता... सारी पुरानी यात्राएं, याद दिला गयी,ये पोस्ट
सुंदर संस्मरण...
पहाड़ों के नैसर्गिक सौन्दर्य को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता... पहाड़ों पर जाकर ही इस बात का अहसास होता है कि इन्हें देवताओं की भूमि क्यों कहा जाता है... पहाड़ सदियों से तपस्या में लीन किसी संत की तरह लगते हैं...
bahut achcha alekh aapke saath hamari bhi yaatra ho gayi
aap bhopal ki hai jaankar bada achcha laga
nice yatra..
पहाड़ मुझे बचपन से ही आकर्षित करते हैं. मुझे अभी तक याद है जब मैं १२ साल की उम्र में पहली बार उत्तराखण्ड गयी थी अपने परिवार के साथ. तब पहली बार पहाड़ देखे थे और देखती ही रह गयी थी. तबसे कई बार जा चुकी हूँ. दिल्ली से पास होने के कारण हमलोग छोटा बहाना मिलते ही पहुँच जाते हैं देहरादून, हरिद्वार और मसूरी. अभी पिछली गर्मियों में हम देवप्रयाग गए थे, दिल्ली के दोस्तों के साथ. उसकी फोटो भी मैंने अपने वर्डप्रेस ब्लॉग पर लगाई थीं. उत्तराखंड तो देवभूमि है, आप किस्मतवाली हैं, जो वहाँ आपका जन्म हुआ. मुझे पहाड़ के गाँव बहुत अच्छे लगते हैं. आप मुझे वहाँ ले चलेंगी न कभी?
parvato ke khubsurati ko aapne apne shabdo me aur jayda bikher diya.....:)
ek khubsurat aalekh!!
hamare blog pe aayen.......:)
....खुली आँखों से जीता-जागता यह मनोहर सपना देखते-देखते कब मेरी यह धार्मिक यात्रा समाप्त हुई, मुझे इसका अहसास वापस भोपाल पहुंचकर ही हो पाया. sunder ati sunder.......
सुंदर-सजीव विवरण...
आभार
सुंदर फोटो देख कर गर्मी भूल गया कुछ देर तक .... पॉडी गड़वाल की सांस्कृति की विस्तरत जानकारी दी है आपने ... अच्छा लगा ...
बहुत सुन्दर और रोचक पोस्ट--तस्वीरें भी सुन्दर हैं।
विस्त्रित विवरण के साथ मनमोहक तस्वीरें देख कर मेरा भी मन वहाँ जाने कघो रहा है । सही मे पहाडों मे जो पृकृ्ति की छठा देखने को मिलती है वो और कहीं नही। सुन्दर संस्मरण-- बधाई
abhi pichle mheene hi phdo par gai thi uske phle do bar charo dham ki yatra ki thi aapki post pdhkar vahi yade taja ho gai .bahut sundar varnan .
kitu phadi ka jeevan bahut kthin hai khaskar vaha ki mhilao ki jeevata man par amit chap chodti hai .
sansmaran kaafi jivant hai
Kavita ji,
aapake lekhini se bhi bahut achchha chitran hota hai... jisne yah nahi dekha, use bhi aanand aaye...
itani pavita yatra karavaane ki liye dhanyavad |
कविता जी बधाई आपको। आपकी यह पोस्ट दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में उनके ब्लाग कालम फिर से में दिनांक 10 जून को पहाड़ों पर जिंदगी नाम से प्रकाशित हुई है। देखना चाहें तो यह रही लिंक http://feeds2.feedburner.com/blogonprint
उत्तराखण्ड देवभुमि है यहां मन को शान्ति मिलती है धार्मिक आस्था के इन्ही कुछ केन्द्रो के इतिहास के बारे में जानिए। गंगा के करीब, ब्लाग
पर ।
http://sunitakhatri.blogspot.com
विवरण उपयोगी ।
बधाई ।
यह यात्रा विवरन पढ़कर अच्छा लगा ।
is mausam me yah yatra vivran padhkar thandak pahunchi ,hariyali waise hi rahat deti hai .
उम्दा पोस्ट. हम तो वर्णन पढ़कर ही रोमांचित हुए जाते हैं..वाह!
aapka prayas bahat achcha hai pahado ka mahetv bataine ke liye sukrriya
Apne sath hume bhi yatra karane ke liye dhanywaad.
आपका ब्लाग बहुत पसन्द आया. पहाड़ के बारे में लिखती रहें..
हेम पन्त
www.MeraPahad.com
अच्छी तस्वीर हैं
बहुत सुन्दर वृतांन्त!
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