कहाँ जा रहा है मुआ ये ज़माना
किसको बताएं, क्या क्या बताना!
लग रहा है बिन पानी सब सून
न दाल गल रही है और न चून
लग रहा है बिन पानी सब सून
न दाल गल रही है और न चून
सुबह उठकर नल के पास
पानी के लिए मैं तरसने लगा
जब मुई एक बूंद भी न टपकी
तो नगर निगम को कोसने लगा
तभी गड-गड की आवाज आयी
मैं समझ गया पानी आ रहा है
आने से पहले धमका रहा है
भक भक-भक कर पानी आया
पानी था कि पानी की छाया
बाल्टी भरने से पहले ही कूच कर गया
ताव में तनी नीची मेरी मूंछ कर गया
इतने में अन्दर से झुंझलाती आवाज आई
पानी तो गया अब इसी में है भलाई
जाओ नगर निगम के दफ्तर में जाओ
जाकर दो चार बाल्टी वहां से भर लाओ
पानी के लिए मैं तरसने लगा
जब मुई एक बूंद भी न टपकी
तो नगर निगम को कोसने लगा
तभी गड-गड की आवाज आयी
मैं समझ गया पानी आ रहा है
आने से पहले धमका रहा है
भक भक-भक कर पानी आया
पानी था कि पानी की छाया
बाल्टी भरने से पहले ही कूच कर गया
ताव में तनी नीची मेरी मूंछ कर गया
इतने में अन्दर से झुंझलाती आवाज आई
पानी तो गया अब इसी में है भलाई
जाओ नगर निगम के दफ्तर में जाओ
जाकर दो चार बाल्टी वहां से भर लाओ
मैं बाल्टी लेकर निकला बडबडाते हुए
गेट पर मिला कर्मचारी लड़खड़ाते हुए
बोला 'मिस्टर आप अन्दर कैसे घुस आए
नरक निगम में आने का पासपोर्ट दिखाएं
और फिर जो भी हो लेन-दान करते जाइए
दो चार क्या दस बीस बाल्टी ले जाइए
वह मेरे हाथ की बाल्टियां तुरंत भर लाया
मैंने खुश होकर प्यार से उसको भरमाया
'भाई मेरे लगता है तुम बहुत समझदार हो
अपने कर्तव्य के प्रति बहुत ही वफादार हो'
मेरी बात सुनकर वह सहजता से बोला-
भाई साहब, आप इन बातों को छोडिये
पहले इस पानी की कीमत तो तोलिए
मैंने उत्सुकता वश बाल्टी में झांककर देखा
और देखकर नज़ारा, गुस्सा उस पर फेंका
'अरे मूर्ख! ये पानी नहीं ये तो शराब है
क्या तेरा दिमाग बिलकुल ही ख़राब है
मुझे गुस्से में देख वह समझाने लगा
बिना पान के ही मुझे चूना लगाने लगा
'भाई साहब आप हमें यूं ही ठेलते जा रहे हैं
हम क्या करें पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं
और दारु के स्रोत दिन-ब-दिन फूटते जा रहे हैं
इसीलिए हम इसे विकल्प के तौर पर आजमा रहे हैं
अब नल में पानी के साथ ठर्रा मिलाया जाएगा
और इसे ही इस समस्या का हल समझा जाएगा
कलयुग में सब चलेगा, अब नशा ही नल में बहेगा
गेट पर मिला कर्मचारी लड़खड़ाते हुए
बोला 'मिस्टर आप अन्दर कैसे घुस आए
नरक निगम में आने का पासपोर्ट दिखाएं
और फिर जो भी हो लेन-दान करते जाइए
दो चार क्या दस बीस बाल्टी ले जाइए
वह मेरे हाथ की बाल्टियां तुरंत भर लाया
मैंने खुश होकर प्यार से उसको भरमाया
'भाई मेरे लगता है तुम बहुत समझदार हो
अपने कर्तव्य के प्रति बहुत ही वफादार हो'
मेरी बात सुनकर वह सहजता से बोला-
भाई साहब, आप इन बातों को छोडिये
पहले इस पानी की कीमत तो तोलिए
मैंने उत्सुकता वश बाल्टी में झांककर देखा
और देखकर नज़ारा, गुस्सा उस पर फेंका
'अरे मूर्ख! ये पानी नहीं ये तो शराब है
क्या तेरा दिमाग बिलकुल ही ख़राब है
मुझे गुस्से में देख वह समझाने लगा
बिना पान के ही मुझे चूना लगाने लगा
'भाई साहब आप हमें यूं ही ठेलते जा रहे हैं
हम क्या करें पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं
और दारु के स्रोत दिन-ब-दिन फूटते जा रहे हैं
इसीलिए हम इसे विकल्प के तौर पर आजमा रहे हैं
अब नल में पानी के साथ ठर्रा मिलाया जाएगा
और इसे ही इस समस्या का हल समझा जाएगा
कलयुग में सब चलेगा, अब नशा ही नल में बहेगा
मैं अवाक!
वह गाने लगा-
'राम राज में दूध मिला
कृष्ण राज में घी
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी'
'राम राज में दूध मिला
कृष्ण राज में घी
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी'
.....कविता रावत
28 टिप्पणियां:
मैं समझ गया पानी आ रहा है
आने से पहले धमका रहा है ........
abhi-abhi pahad se loutkr aaya hun wahan bhi yahi haal hai.....sajeev chitran, badhai..
आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी
सचमुच यही दशा-दुर्दशा है। बढ़िया लिखा है।
वाह....बहुत सटीक व्यंग...
नरक निगम में आने का पासपोर्ट दिखाएं
और फिर जो भी हो लेन-दान करते जाइए
**************
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी
बहुत बढ़िया ...:):)
'राम राज में दूध मिला
कृष्ण राज में घी
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी' ye panktiyan to lajawaab hain
कहाँ जा रहा है मुआ ये ज़माना
किसको बताएं, क्या क्या बताना!
लग रहा है बिन पानी सब सून
न दाल गल रही है और न चून
Wah, kavita ji wah , shuru kee in chaar laayino ko padhkar hee dil khush ho gayaa.
हम क्या करें पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं
और दारु के स्रोत दिन-ब-दिन फूटते जा रहे हैं
क्या पता कल किसी तरह पानी के सूखे स्रोतो में से दारू की धारा फूट निकले.
wah kya baat hai...........
ek sateek vyang...........
'राम राज में दूध मिला
कृष्ण राज में घी
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी'..
अच्छा व्यंग है ... सच लिखा है आज के ज़माने में पानी पर कम ... दारू पर ज़्यादा ध्यान दे रही है सरकार भी ...
shandaar vyangyatamak rachna.........Kavita jee!!
puri kavita ki ek-ek line sateek hai......
bahut khub!!
hamara blog aapke intzaar me hai...:P
kya arthpoorn vyangya kiya hai, waah
हम क्या करें पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं
और दारु के स्रोत दिन-ब-दिन फूटते जा रहे हैं
कविता इतनी अच्छी है कि विशेष कुछ कहने को बचा नहीं है, एक शे’र याद आ गया
प्यास लगती है चलो रेत निचोड़ी जाए।
अपने हिस्से में समन्दर नहीं आने वाला।
'राम राज में दूध मिला
कृष्ण राज में घी
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी'.....अच्छा व्यंग
'राम राज में दूध मिला
कृष्ण राज में घी
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी'
!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Jawab aap ke hi shabdon mein..
हम क्या करें पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं
और दारु के स्रोत दिन-ब-दिन फूटते जा रहे हैं
हम क्या करें पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं
और दारु के स्रोत दिन-ब-दिन फूटते जा रहे हैं
कमाल की सोच - जबरदस्त रचना
सटीक व्यंग्य... लेकिन जिनकी आँख का पानी मर गया हो, उनपर क्या असर होगा..अभी हाल ही में अनाज बाहर खुले में सड़ रहे थे और गोदाम में दारू भरी थी...
बहुत ही खुबसुरत! वाकई तारीफे काबिल कविता है आपकी कविताजी. जल समस्या को इतनी सहजता से पेश किया है की हम बात नाही सकते. इसमे विडंबन भी है, व्यंग भी है, समस्या भ है और समाधान भी है!
बहुत अच्छा लिखा है आपने ....एक सटीक प्रश्न उठाया है ...और खासकर राजस्थान जैसे इलाको में जहाँ साल में ९ महीने सूखा ही पड़ता है ,,,नहाना तो दूर ,,पीने के लिए भी पानी की कीमत चुकानी पड़ती है ....और अब तो हालत बहुत ही दयनीय हो चुके //// है पर क्या शराब कभी पानी के भाव मिलेगी ...पर कब ..? :)
आनन्दप्रद ।
लेकिन कविता जी इसका जिम्मेदार इंसान खुद ही है ना ।
ये समझ में नहीं आया कि आपने व्यंग्य किस पर किया
सरकार पर , प्रशाषन पर , या पब्लिक पर..मेरे ख्याल
में सरकारी मशीनरी इतनी गलत नहीं है..जितना कि
आदमी खुद अपने स्तर पर ज्यादा भ्रष्ट है..ब्लाग जगत
को देखकर मुझे राजाओं के जमाने के भांड याद आ जाते
है ..जो बेमतलब न सिर्फ़ वाह वाह करते थे..बल्कि राजा के
बारे में ऐसा बङचङकर बोलते थे कि चापलूसी पसन्द करने
वाला राजा भी हैरत में पङ जाता था..
satguru-satykikhoj.blogspot.com
bahut bahut bahut bdhiya .
आपकी इस बेजोड़ रचना की प्रशंशा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...बेहतरीन व्यंग किया है आपने...बधाई...
नीरज
अच्छी रचना.... पर बिना पानी के दारू कैसे बनेगी याने अब धीरे-धीरे दारू भी खतम.... हे राम...!!!!!!!
सोद्देश्य कविता…
bahut sahi ,aesi samsaya aajkal har kahi banti nazar aa rahi hai .satik vyang .
बहुत अच्छा लिखा है आपने ....एक सटीक प्रश्न उठाया है ..
Aazadi ki jang jaari thi. Gandhi ji Jawaharlal ji ke ghar,( Ilahabad me)subah mooh haath dho rahe the. Dono kisi gambheer charcha me kho gaye.
Achanak gandhiji bol uthe," Oh! Maine bekar itni der paani baha diya!"
Nehru" Aap bhool rahe hain,ki, jahan 3 nadiyon ka sangam,wahan ham khade hain!"
Gandhi" Ye nadiyan mujh akele ke liye nahi bahtin! Hame utnahi istemal karna chahiye,jitni zaroorat ho!"
Tab paryawaranwaad kaa naam bhi kisee ne suna nahi tha!
अच्छी रचना..
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