बिन पानी सब सून - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

मंगलवार, 1 जून 2010

बिन पानी सब सून

कहाँ जा रहा है मुआ ये ज़माना
किसको बताएं, क्‍या क्‍या बताना!
लग रहा है बिन पानी सब सून
न दाल गल रही है और न चून
सुबह उठकर नल के पास
पानी के लिए मैं तरसने लगा
जब मुई एक बूंद भी न टपकी
तो नगर निगम को कोसने लगा
तभी गड-गड की आवाज आयी
मैं समझ गया पानी आ रहा है
आने से पहले धमका रहा है
भक भक-भक कर पानी आया
पानी था कि पानी की छाया
बाल्टी भरने से पहले ही कूच कर गया
ताव में तनी नीची मेरी मूंछ कर गया
इतने में अन्दर से झुंझलाती आवाज आई
पानी तो गया अब इसी में है भलाई
जाओ नगर निगम के दफ्तर में जाओ
जाकर दो चार बाल्टी वहां से भर लाओ
मैं बाल्टी लेकर निकला बडबडाते हुए
गेट पर मिला कर्मचारी लड़खड़ाते हुए
बोला 'मिस्टर आप अन्दर कैसे घुस आए
नरक निगम में आने का पासपोर्ट दिखाएं
और फिर जो भी हो लेन-दान करते जाइए
दो चार क्‍या दस बीस बाल्‍टी ले जाइए
वह मेरे हाथ की बाल्टियां तुरंत भर लाया
मैंने खुश होकर प्‍यार से उसको भरमाया
'भाई मेरे लगता है तुम बहुत समझदार हो
अपने कर्तव्य के प्रति बहुत ही वफादार हो'
मेरी बात सुनकर वह सहजता से बोला-
भाई साहब, आप इन बातों को छोडिये
पहले इस पानी की कीमत तो तोलिए
मैंने उत्‍सुकता वश बाल्टी में झांककर देखा
और देखकर नज़ारा, गुस्सा उस पर फेंका
'अरे मूर्ख! ये पानी नहीं ये तो शराब है
क्या तेरा दिमाग बिलकुल ही ख़राब है
मुझे गुस्से में देख वह समझाने लगा
बिना पान के ही मुझे चूना लगाने लगा
'भाई साहब आप हमें यूं ही ठेलते जा रहे हैं
हम क्या करें पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं
और दारु के स्रोत दिन-ब-दिन फूटते जा रहे हैं
इसीलिए हम इसे विकल्प के तौर पर आजमा रहे हैं
अब नल में पानी के साथ ठर्रा मिलाया जाएगा
और इसे ही इस समस्या का हल समझा जाएगा
कलयुग में सब चलेगा, अब नशा ही नल में बहेगा
मैं अवाक!
वह गाने लगा-
'राम राज में दूध मिला
कृष्ण राज में घी
कलयुग में दारु मिली
पानी समझकर पी'
   .....कविता रावत