कहते हैं अपना दुःख बाँट देने से मन हल्का हो जाता है. सुख बाँटने से दूना और दुःख बाँटने से आधा रह जाता है. यही मन में सोच अपने गाँव की अभी हाल ही की एक दुःखद वृतांत जिसने मेरे अंतर्मन तक को झिंझोड़ दिया, को ब्लॉग परिवार के साथ बाँटकर मन हल्का करने का प्रयास कर रही हूँ. गत वर्ष जहाँ बच्चों की गर्मियों की छुटियों में हम गाँव से सभी धार्मिक यात्रा में बद्रीनाथ से लगभग ४० किलोमीटर पहले जोशीमठ गए जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पहाड़, सड़कें मन को लुभा रहे थे, वहीँ अभी जून माह की दुःखप्रद यात्रा में गहन वेदना से भरी आँखों से वही पहाड़ और टेढ़ी- मेढ़ी सड़कें इतनी भयावह नज़र आई कि उनकी खूबसूरती वीरानगी में बदली दिखी. १३ जून को जब रात को ८:३० बजे गाँव से हमारे ९ निकट सम्बन्धियों की जिसमें मेरे ममेरा देवर भी शामिल था, जिनकी टाटा सूमो गहरी खाई में गिर जाने से दर्दनाक मौत की खबर मिली तो एकपल को लगा जैसे पाँव तले जमीं खिसक गयी, सहसा विश्वास ही नहीं हो हुआ. एक बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुँचाने से पहले ही एक साथ ९ लोग अपने परिवार और हम सबसे सदा-सदा के लिए दूर चले गए. पूरी रात दुःखी मन गाँव के और भागता जा रहा था और इतनी दूरी बहुत अखर रही थी कि इस समय हमें पीड़ित दुःखी परिवारों की बीच होना चाहिए था.
दूसरे दिन सुबह भारी दुःखी मन से गाँव के लिये निकले, वहां पहुंचे तो सारा गाँव मातम में डूबा मिला. एक पल में किसी का बाप, भाई, बेटा, पति तो किसी का सगा सम्बन्धी सबसे दूर चला गया. शोक संतप्त परिवारों को सांत्वना देते लोग कोई उस बीमार व्यक्ति को तो कोई उस हाल फ़िलहाल ही बनी नई अधूरी सड़क को मनहूस बताकर अपने दुखी मन का गुबार बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे. रह रह कर जब भी मृतको की बीबी और छोटे-छोटे मासूम बच्चों की ओर नज़र घूमती गला भर-भर आता और ऑंखें नम हुए बिना नहीं रहती और मन यह सोचने पर मजबूर होता कि अब इनका कैसे गुजर बसर होगा! कोई अपना पूरा कुटुंब छोड़ यूँ ही सबको रोता कलपता छोड़ गया था. एक परिवार के तो दो ही लड़के थे, एक पिछली बरसात में बिजली गिरने से मारा गया तो दूसरा इस दुर्घटना का शिकार हो गया, घर में बुढ़ी माँ और पत्नी को जिन्दा लाश के तरह छोड़ गया. एक परिवार सभी ५ आदमी चल बसे. सभी परिवारों की बड़ी दारुण स्थिति किसी से छुपी नहीं है; न जाने इसमें ईश्वर की क्या मर्जी है!
बच्चों के स्कूल खुलने की वजह से हमें जल्दी ही वापस भोपाल लौटना पड़ा. लौटते समय बस और ट्रेन में वह ग़मगीन दृश्य बार-बार आँखों में कौंध उठता और रह रहकर शोक में डूबे सभी परिवारवालों की मनः स्थिति समझकर मन और दुखी होने लगता. सच में नियति के आगे प्राणी कितना असहाय, बेवस और निरीह बन जाता है. शायद आदमी की नियति यही है कि वह जिस घोड़े पर बैठा होता है उसकी लगाम ऊपर वाले के पास होती है तभी तो अभी हमारे इस दुःख का घाव अभी हरा-भरा भी नहीं है कि गाँव से वापस आते ही दबे पाँव पीछे-पीछे चाचा ससुर की मृत्यु की खबर आ गई और फिर गाँव की एक शोकभरी यात्रा शुरू... ...
दूसरे दिन सुबह भारी दुःखी मन से गाँव के लिये निकले, वहां पहुंचे तो सारा गाँव मातम में डूबा मिला. एक पल में किसी का बाप, भाई, बेटा, पति तो किसी का सगा सम्बन्धी सबसे दूर चला गया. शोक संतप्त परिवारों को सांत्वना देते लोग कोई उस बीमार व्यक्ति को तो कोई उस हाल फ़िलहाल ही बनी नई अधूरी सड़क को मनहूस बताकर अपने दुखी मन का गुबार बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे. रह रह कर जब भी मृतको की बीबी और छोटे-छोटे मासूम बच्चों की ओर नज़र घूमती गला भर-भर आता और ऑंखें नम हुए बिना नहीं रहती और मन यह सोचने पर मजबूर होता कि अब इनका कैसे गुजर बसर होगा! कोई अपना पूरा कुटुंब छोड़ यूँ ही सबको रोता कलपता छोड़ गया था. एक परिवार के तो दो ही लड़के थे, एक पिछली बरसात में बिजली गिरने से मारा गया तो दूसरा इस दुर्घटना का शिकार हो गया, घर में बुढ़ी माँ और पत्नी को जिन्दा लाश के तरह छोड़ गया. एक परिवार सभी ५ आदमी चल बसे. सभी परिवारों की बड़ी दारुण स्थिति किसी से छुपी नहीं है; न जाने इसमें ईश्वर की क्या मर्जी है!
बच्चों के स्कूल खुलने की वजह से हमें जल्दी ही वापस भोपाल लौटना पड़ा. लौटते समय बस और ट्रेन में वह ग़मगीन दृश्य बार-बार आँखों में कौंध उठता और रह रहकर शोक में डूबे सभी परिवारवालों की मनः स्थिति समझकर मन और दुखी होने लगता. सच में नियति के आगे प्राणी कितना असहाय, बेवस और निरीह बन जाता है. शायद आदमी की नियति यही है कि वह जिस घोड़े पर बैठा होता है उसकी लगाम ऊपर वाले के पास होती है तभी तो अभी हमारे इस दुःख का घाव अभी हरा-भरा भी नहीं है कि गाँव से वापस आते ही दबे पाँव पीछे-पीछे चाचा ससुर की मृत्यु की खबर आ गई और फिर गाँव की एक शोकभरी यात्रा शुरू... ...
मृत्यु शाश्वत सत्य है, यह जानते हुए भी दुनिया में आकर प्राणी न जाने क्या- क्या करता है? भले ही किसी की मृत्यु पर उसी परिवार को पूरी जिंदगी उसका खामियाजा भुगतने पर मजबूर होना पड़ता है, फिर भी मेरा मानना है कि यदि हम ऐसे समय में स्वयं उपस्थित होकर शोकग्रस्त परिवार को सांत्वना देते हुए उनके इस दुःख को बाँट पाते हैं तो इससे निश्चित ही उनको जीने की राह मिलती है.....
गाँव की इस दुःखद यात्रा के बारे में सोच दुखियारा मन कहता है कि-
क्या भरोसा है जिंदगानी का
आदमी बुलबुला है पानी का
ये दुनिया तो है दो दिन का मेला
भरा है जिसमे अपना-पराया झमेला!
भले ही आदमी-आदमी से भेद करता है
पर अंत सबको बराबर कर देता है!
.....कविता रावत
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletekकविता बहुत दुखद और दिल दहला देने वाली दुर्घटना है। भगवान मृत्कों की आत्मा को शान्ति दे और सभी परिवार के लोगों को इसे सहन करने की ताकत दे। इन्सान के जीवन की डोर उसके हाथ मे है जैसे वो चाहे नाचना ही पडता है। शुभकामनायें
ReplyDeleteकविता जी दुख के पहाड़ का इस तरह टूटना सचमुच बहुत हृदय विदारक है। आप और आपका परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति मिले यही कामना है।
ReplyDeleteमाफ करें यह मौका तो नहीं है, पर मुझे लगता है यह कहना जरूरी है कि जो और साथी यहां आ रहे हैं वे आचार्य जी के ब्लाग पर जाकर कम से कम एक टिप्पणी दर्ज करें। आचार्य जी आंख मूंदकर सुंदर लेखन का प्रसाद हर जगह बांट रहे हैं। वे देखते भी नहीं हैं कि पोस्ट में क्या लिखा है। यहां कविता जी अपने दुख को बांटकर मन को थोड़ा हल्का करना चाहती हैं और आचार्य जी हैं कि पहली ही टिप्पणी में जले पर नमक छिड़ककर चले गए। धिक्कार है।
ReplyDeleteमैं तो यहां कुछ लिखने से पहले अपनी टिप्पणी आचार्य जी के ब्लाग पर दर्ज कर आया हूं।
बहुत ही दुखद हैं ...ईश्वर आपको इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें ....
ReplyDeleteराजेश जी के विचारों से सहमत हूँ....
ReplyDelete@राजेश उत्साही
ReplyDeleteसुन्दर लेखन के भाव निम्नलिखित पंक्तियों के लिये दर्ज किये गये थे जो निसंदेह सुन्दर व प्रसंशनीय हैं :-
क्या भरोसा है जिंदगानी का
आदमी बुलबुला है पानी का
ये दुनिया तो है दो दिन का मेला
भरा है जिसमे अपना-पराया झमेला!
भले ही आदमी-आदमी से भेद करता है
पर अंत सबको बराबर कर देता है!
क्या दुखद घटना की लेखन के रूप में अभिव्यक्ति सुन्दर नहीं हो सकती ?
क्या किसी की मौत सुन्दर नहीं हो सकती ?
@आचार्य जी हर बात को कहने का एक उचित समय होता है। आपने फिर से वही गलती की । आप यहां कह गए क्या किसी की मौत सुंदर नहीं हो सकती। कविता जी के परिवार में जो मौतें हुई हैं वे आपको सुंदर नजर आ रहीं हैं।
ReplyDelete@राजेश उत्साही
ReplyDeleteइस लेख में जिन मौतों का जिक्र है वे कतई सुन्दर नहीं हैं।
कविता जी
ReplyDeleteमुझे खेद है कि मैंने आपकी अंतिम में लिखी गईं ""कवितारूपी पंक्तियों"" को महत्व देते हुये अपनी टिप्पणी दर्ज कर दी थी।
सादर !
ReplyDeleteहम आपके साथ मिलकर उन सभी आत्माओं कि शांति के लिए इश्वर से प्रार्थना करते हैं साथ ही साथ उन लोगों को जो इन अकाल मौतों से अकेले पड़ गए हैं उनको शक्ति मिले ऐसी परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है |
अंतत :
जीने के साथ मरना भी लिखता है भगवान
फिर भी इसको भूल कर जीता है इन्सान |
रत्नेश त्रिपाठी
aise samay kai prashn uth khade hote hai man me ?
ReplyDeleteye kaisee pareeksha...?
aisa inke ,hamare sath hee kyo....?
dhandhas bandhane ke liye uparyukt shavdo kee kamee mahsoos ho rahee hai.......
ishvar se prarthana hai dhairy shakti v paristitheeyo se jhoojhane kee shakti de sabhee aatmjano ko.
...ईश्वर आपको इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें .... shayad yahi niyati ki mansha thi.
ReplyDeleteक्या भरोसा है जिंदगानी का
ReplyDeleteआदमी बुलबुला है पानी का .....kya baat kahi hai.
हम आपके साथ मिलकर उन सभी आत्माओं कि शांति के लिए इश्वर से प्रार्थना करते हैं
दुख की इस घड़ी में मुझे अपने साथ समझे।
ReplyDeleteसच कहा आपने।
ReplyDelete………….
दिव्य शक्ति द्वारा उड़ने की कला।
किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?
दुख की इस घड़ी हम सब आप के साथ है !
ReplyDeleteआओ साथ मिल कर उन सभी आत्माओं कि शांति के लिए इश्वर से प्रार्थना करे !
कविता जी, आपको बहुत मिस किया, लेकिन सोचा न था कि आप आते ही ऐसा दुःखद समाचार देंगीं. आपकी एवम् उनके परिवार की इस दुःखद घड़ी में हम बराबर सम्मिलित हैं. परमपिता से यह प्रार्थना है कि इस वेदना को सहने की शक्ति शोकाकुल परिवार को प्रदान करे.
ReplyDeleteक्या भरोसा है जिंदगानी का
ReplyDeleteआदमी बुलबुला है पानी का
ये दुनिया तो है दो दिन का मेला
भरा है जिसमे अपना-पराया झमेला!
भले ही आदमी-आदमी से भेद करता है
पर अंत सबको बराबर कर देता है!
कविता जी,
सत्य वचन! अभिभूत हुआ!
क्या भरोसा है जिंदगानी का
ReplyDeleteआदमी बुलबुला है पानी का
ये दुनिया तो है दो दिन का मेला
भरा है जिसमे अपना-पराया झमेला!
भले ही आदमी-आदमी से भेद करता है
पर अंत सबको बराबर कर देता है!
कविता जी
,
बहुत सही लिखा !!
कविता जी दुख के पहाड़ का इस तरह टूटना सचमुच बहुत हृदय विदारक है। आप और आपका परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति मिले यही कामना है।
ReplyDeleteकविता जी बहुत बड़ी दुर्घटना ऐसे में परिवार और शुभचिंतकों पर क्या बीत रही है कुछ कहना मुश्किल है भगवान से प्रार्थना है कि परिवार को शक्ति दे ..
ReplyDeleteनीचे कविता में इंगित भाव जीवन की सच्चाई है...
may the departed souls rest in peace
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपता नहीं हर अच्छी चीज़ के साथ एक बुराई क्यों जुड़ी होती है. पहाड़ों की खूबसूरती जहाँ लुभाती है, वहीं खाईं में गिरकर अक्सर अनेक मौतें होती हैं... कभी-कभी तो बस में जाते समय खाईं देखकर डर लगता है... पिछली गर्मी जब हमलोग देवप्रयाग गए थे, तो एक ट्रक ने हमारी बस को टक्कर मार दी थी और हमलोग बाल-बाल बचे...ट्रक खाई में गिर गया था, लेकिन उसमें बैठे लोग बच गए थे... दिल्ली की सड़कों को सुन्दर बनाने में इतना खर्च करने वाली सरकार वहाँ के हाइवेज़ को नहीं सुधार पा रही है.
ReplyDeleteआपके ऊपर एक साथ इतने दुःख पड़ गए हैं... क्या सांत्वना दूँ ... इतना कह सकती हूँ कि हमलोग आपके साथ हैं... आप अपना दुःख हमसे बेहिचक बाँट सकती हैं.
"क्या भरोसा है जिंदगानी का
ReplyDeleteआदमी बुलबुला है पानी का
....
भले ही आदमी-आदमी से भेद करता है
पर अंत सबको बराबर कर देता है!"
जीवन सत्य
बेहद अफ़सोस जनक कविता जी ! जिन परिवारों में कोई नहीं बचा उनके गुजारा कैसे होगा ? क्या सामूहिक प्रयास करने लायक उस गाँव में कोई व्यक्ति या संस्थाएं आगे नहीं आयीं ?
ReplyDeleteकविता. .. जो चले गये हैं वे वापस नहीं आ सकते , और हम भी जब तक जीवित हैं उन्हे याद कर सकते हैं । यही सच है । और यही सच हमेशा जीवित रहेगा , हम रहें न रहें ।
ReplyDeleteafsos janak ghanta......:(
ReplyDeletelekin yahi saswat sayta hai kavita jee, jo aaya hai, wo jayega........lekin uske jaane ke baad fir bhi ham sabko bura to lagta hi hai........fir bhi jaise , hame bhi jana hi parega.........!!
meri shraddhanjali unhe........!!
कविता जी जानकर बहुत दु:ख हुआ। जो इस दुनिया से चले गए लौट कर नहीं आते यही जीवन की सच्चाई है लेकिन उनकी यादों के सहारे परिवार को जीना पडता है । जीवन संघर्ष का नाम है। मेरी भगवान से प्रार्थना है कि परिवार को इस दु:ख की घडी में शक्ति दे .
ReplyDeleteक्या भरोसा है जिंदगानी का
ReplyDeleteआदमी बुलबुला है पानी का
सच है ये ... जीवन तो पानी के बुलबुले की तरह है ... बहुत दुख हुवा जान के ... जो चले गये वो वापस तो नही आते पर यादें ज़रूर दूर तक साथ रहती हैं ...
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ReplyDeletepahad ka safar barsat ke mausam me mushkil bhara rehta hai.. is dukh me aapke saath sareekh hoo.....
ReplyDeleteDukhad ghatna !
ReplyDeleteIshwar mritak ki aatma ko shanti de aur parivaar walon ko shakti .
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मृत्यु शाश्वत सत्य है, यह जानते हुए भी दुनिया में आकर प्राणी न जाने क्या- क्या करता है? भले ही किसी की मृत्यु पर उसी परिवार को पूरी जिंदगी उसका खामियाजा भुगतने पर मजबूर होना पड़ता है, फिर भी मेरा मानना है कि यदि हम ऐसे समय में स्वयं उपस्थित होकर शोकग्रस्त परिवार को सांत्वना देते हुए उनके इस दुःख को बाँट पाते हैं तो इससे निश्चित ही उनको जीने की राह मिलती है.....
ReplyDeleteसचमुच!
मनुष्य को ये संवेदनाएं ही व्यक्तित्व प्रदान करती हैं। जो जानता है वही इन चीजों को मानता है.तपकर ही निखार आता है.भोपाल की गैस त्रासदी को आपने भोगा है, सारे दर्द अब आपके सांचे से होकर गुजर सकते हैं और वह जिसे आप अपनत्व के साथ ‘अपना ब्लाग परिवार ’ कहती हैं, इसका लाभ ले सकता है , अपने को तराषते हुए त्रत्र
धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिए।
सच है ये
ReplyDeleteना कांटों का है दामन ना फुलों कि सेज सुहानी है
ज़िन्दगी तो बस नदी सा बहता पानी है
ना रुकी है पल को भी किसी क रोके
रफ्तार उसकी तुफानी है
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है
is hradya vidaarak ghatana ko padhne ke baad apna hi mann dravit ho gaya .. aapne use dekha .. dekh kar apne andar kitni uthal puthal huyi hogi , samajh sakti hoon ,.. ISHWAR UN SABHI PARIWAAR WAALON KO DUKH SAHAN KARNE KI SHAKTI AUR MRATKON KI AATMA KO SHANTI PRADAAN KARE ..
ReplyDeleteकविताजी
ReplyDeleteबहुत दिनों से आपको किसी ब्लाग पर नहीं देखा तो आज आपका ब्लाग देखा तो दिल दहला देने वाली पोस्ट पढ़ी |ईश्वर दिवंगत आत्माओ को शांति प्रदान करे और परिवार को दुःख सहने की शक्ति दे |
आपके परिवार का दूख समझ सकती हूँ इस दुख में आपके साथ हूँ |
मेरे दुःखभरे इन क्षणों को पारिवारिक माहौल देते हुए बांटने और कम करने के लिए सबका बहुत-बहुत आभार.
ReplyDeleteईश्वर उनको सम्बल और सहनशक्ति दे जिन्होंने यह आघात झेले, और उनको शान्ति जो चले गए।
ReplyDeleteअन्त में जीतती ज़िन्दगी ही है।
मौत तो एक छोटा सा स्टेशन है इस ज़िन्दगी की रेलयात्रा में - जहाँ कुछ लोग गाड़ी बदलने और कुछ थकान उतारने को उतर जाते हैं। सफ़र ख़त्म तो कम ही का होता है, और जिनका हो जाता है - उन्हें भागदौड़ से आराम!
सम्वेदनाओं सहित
आपकी पोस्ट पर बहुत दिन बाद आया। क्षमा कीजिएगा। एक साथ इतना दुख किसी को भी हिला सकता है। संसार का यही विचित्र चलन है कि शाश्वत सत्य को जानकर भी हम जाने क्या क्या करते हैं। कितनों का हक मारते हैं। प्रार्थना करता हूं ईश्वर से की आपको इस दुख से उबरने की शक्ति दे। हो सके तो पोस्ट पर रेगुलर आने और लिखने का प्रयास करें। लेखन दुख को कम न कर सके मगर पीड़ा की तीव्रता को कुछ कम जरुर कर सकता है। मेरा अनुभव यही है।
ReplyDeleteबेहद अफ़सोस जनक कविता जी !
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