मित्र और मित्रता : एक नज़र - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 1 अगस्त 2010

मित्र और मित्रता : एक नज़र















मैत्री बहुत उदार होती है पर प्रेम कृपण होता है
मित्र के घर का रास्ता कभी लम्बा नहीं होता है

मित्र के लिए जो भार उठाया वह हल्का मालूम होता है
जो मित्रों का भला करे वह अपना ही भला करता है

बिना विश्वास कभी मित्रता चिर स्थाई नहीं रहती है
मैत्री में महज औपचरिकता अधूरेपन को दर्शाती है

दूसरों से तुलना करने पर दोस्त भी दुश्मन बन जाता है
दो मित्रों के विवाद में निर्णायक बन एक गंवाना पड़ता है

मित्र वही जो भर्त्सना एकांत में पर प्रशंसा सबके सम्मुख करता है
सच्चा मित्र दूसरों को हमारे गुण पर अवगुण हमें बताता है

जो उपहार में मित्र खरीदते हैं उन्हें दूसरे कोई खरीद ले जाते हैं
मित्र सांरगी के तार हैं ज्यादा कसने पर टूटकर बिखर जाते हैं

अनपरखे मित्र अनतोड़े अखरोट के तरह होते हैं
विपत्ति में सच्चे-झूठे मित्र पहचान लिए जाते हैं

झूठे मित्रों की जुबाँ मीठी लेकिन दिल बहुत कडुवे होते हैं
झूठे मित्र व परछाई सूरज चमकने तक ही साथ रहते हैं

मित्रों का चयन थोड़े पर चुनिंदा पुस्तकों की भांति कर लिया
तो समझो जिंदगी में हमने एक साथ बहुत कुछ पा लिया

                             ......कविता रावत