जब उमड़- घुमड़ बरसे पानी,
आह! इन काली घटाओं की दिखती
हरदम अजब- गजब की मनमानी।
देख बरसते बादलों को ऊपर
मलिन पौधे प्रफुल्लित हो जाते हैं,
ज्यों बरसाये बादल बूंद- बूंद
त्यों नित ये अद्भुत छटा बिखेरते हैं।
अजब- गजब के रंग बिखरे
इस बर्षा से चहुंदिशि फैले हरियाली,
जब उमड़- घुमड़ बरसे बदरा
तब मनमोहक दिखती हरदम डाली!
तू भी क्या- क्या गुल खिलाती है,
हरदम बूंद-बूंद बरस-बरसकर
मलिन पौधों को दर्पण सा चमकाती है।
ये घनघोर काली घटाएं तो बार- बार बरसाये बरसा की बौछारे
बरसकर भर देते मन उमंग तब
जब घर ऊपर घिर- घिर आते सारे।
धन्य - धन्य! वे घर सारे
जिनके ऊपर बरसे ऊपर का पानी,
धन्य- धन्य हैं वे जीव धरा पर जिनको फल मिलता नित मनमानी।
बरस पड़ता यह काले बादलों का पानी!
धन्य हे ‘मनभावन वर्षा’ तू!
तेरी अपार अभेद अरू अमिट कहानी।
........कविता रावत
कैसे कहें, कहां-कहां, कब-कब
ReplyDeleteबरस पड़ता यह काले बादलों का पानी!
धन्य हे ‘मनभावन वर्षा’ तू!
तेरी अपार अभेद अरू अमिट कहानी।
Jab,jab ye jeevan dayini der lagati hai,rooth jatee hai,duniya mano mrityuke kagar pe khadi ho jati hai!
बहुत सुन्दर ....बर्षा आगमन का सभी को इंतज़ार रहता है ...
ReplyDeleteumda rachna ..!!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर और चित्रों का भी खूबसूरत प्रयोग.
ReplyDeleteकैसे कहें, कहां-कहां, कब-कब
ReplyDeleteबरस पड़ता यह काले बादलों का पानी!
धन्य हे ‘मनभावन वर्षा’ तू!
तेरी अपार अभेद अरू अमिट कहानी।
..... आपने जिस तरह से बरसात के बहाने बहुत ही उम्दा ढंग से देश की वर्तमान स्थिति का चित्रण किया है वह अनुपम और काबिलेतारीफ है ... इसके लिए आभार .
आजकल राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में ऐसे ही बरसात की सम्पूर्ण देश में बौछारे जोर-शोर से हो रही है. सारा देश त्रस्त है ऐसी बरसात से ... न जाने हमारे देश पर ये मंडराते काले बादलों के कारनामे कब छटेंगे और विश्वपटल पर हम साफ़ सुथरी छबि बनाकर अपनी गरिमा बनेने रखने में सक्षम हो सकेंगें..
सुंदर रचना...सावन का मजा दुगुना हो गया.
ReplyDeleteसुन्दर रचना इस गीले मौसम पर ...
ReplyDeleteहरदम बूंद-बूंद बरस-बरसकर
ReplyDeleteमलिन पौधों को दर्पण सा चमकाती है।
----
Ati Sundar
अच्छी कविता है और चित्र भी बड़े अच्छे हैं. पर हम तो यहाँ तरस रहे हैं बारिश के लिए. बीच-बीच में थोड़ी बारिश होती भी है, तो दूसरे दिन फिर गर्मी और उमस.
ReplyDelete...बहुत सुन्दर !!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteकविता जी आपकी कविता अगर चित्रोंके बिना पढी जाए तो अधूरी प्रतीत होगी... आज पहली बार किसी पोस्ट पर चित्रों को रचना का पूरक बनते देखा है.. गहरे भावों के साथ वर्त्तमान परिस्थिति पर कटाक्ष करती एक बेहतरीन रचना!!
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रकॄति चित्रण.....सुखद अनुभूति हुई इस ब्लाग पर आ कर। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
ReplyDelete................................
"जब जमाने को भानु खूब भून देते हैं।
तभी राहत सभी को मानसून देते हैं॥
लाखों तौफ़ीक़ से हासिल न हो वैसी राहत-
हिज्र में मीठे-वचन जो सकून देते हैं॥"
-डॉ० डंडा लखनवी
kavita ji, aapki adbhut man bhav an kavita ne wawai me man moh liya.bahut hi khoob surati se varshha ka chitran.
ReplyDeletepoonam
बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता....
ReplyDelete____________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
manbhaavan varshaa kaa satik chitran. badhaai.
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकविता जी
ReplyDeleteबरखा रानी का बखान करते करते आपके मन का बच्चा बार बार उछल कूद मचा रहा था न बाहर आने के लिए? पर कही कहीं पंक्तियों में परिपक्व इंसान दिख रहा है....हाय रे काहे नहीं मन बच्चों सा ही निश्छल हो जाता है बार बार....
पर क्या करं इतनी दुनियादारी है की पूछिए मत....चलिए अपने अंदर के बच्चे को देख ही लिया कुछ क्षण के लिए ही सही....इसके लिए धन्यवाद..
कैसे कहें, कहां-कहां, कब-कब
ReplyDeleteबरस पड़ता यह काले बादलों का पानी!
धन्य हे ‘मनभावन वर्षा’ तू!
तेरी अपार अभेद अरू अमिट कहानी।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
seeing this first time...good poems
ReplyDeleteबरखा रानी ...जरा जम के बरसो .....
ReplyDeleteआपको ये सावन की बरसात मुबारक ......
इधर तो गर्मी से बुरा हाल है .......
कैसे कहें, कहां-कहां, कब-कब
ReplyDeleteबरस पड़ता यह काले बादलों का पानी!
धन्य हे ‘मनभावन वर्षा’ तू!
तेरी अपार अभेद अरू अमिट कहानी।
बहुत सुन्दर प्रकॄति चित्रण अच्छी प्रस्तुति।
वाह सुन्दर बारिश. मन भावन दृश्य.
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
ReplyDeletebaarish to waise hi lubhawni hotih hain..aapki kavita ne aur bhilubhawni bna diya
ReplyDeleteलोग तो कहते हैं "बेमौसम बरसात" लेकिन आपकी मनभावन वर्षा!! तो मौसमी. दिल्ली में अभी अभी जोरदार बारिस हुई इसलिए कविता पढने का आनंद दुगना हो गया - धन्यवाद्
ReplyDeletebaarish ka sundar roop....acha laga pad kar....
ReplyDeleteMeri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..
Banned Area News : I'm terrified of sharks: Jessica Simpson
Hi..
ReplyDelete"Kavita" ji ki sundar Kavita...
main aayi barkha manbhavan...
hariyaali lekar aati hai...
rituon main jyon ritu Sawan...
Chahun oor barkha ki boonden...
Kaare badra ghir ghir aayee..
sookhe taru bhi aanandit ho..
nav pallav ke sang muskaayen...
Saavan ki barkha main hum...
sada hi bheege poore man se...
shabdon ki baarish main bheege..
bhavon se antarman mahke..
Sundar Kavita...
Deepak
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई !
ReplyDeleteKavita Ji Vastav me aapki kavita bohut sunder hai.
ReplyDeleteआह! काले बादलों वाली बर्षा
ReplyDeleteतू भी क्या- क्या गुल खिलाती है,
हरदम बूंद-बूंद बरस-बरसकर
मलिन पौधों को दर्पण सा चमकाती है..
वाह ... क्या खूब वर्षा का बखान किया है ... सुंदर रचना के साथ सावन की फुहार छोड़ी है ....
awsum that 's the poem i want for project
ReplyDelete