शहर की महज औपचारिक दिशा की और निरंतर अग्रसर होती स्वत्रंत्रता दिवस की एक दिवसीय चकाचौध के बीच बचपन में गाँव के स्कूल में मनाये जाने वाले स्वत्रंत्रता दिवस की याद रह रह कर आ जाती है । जब गाँव की टेढ़ी-मेढ़ी, संकरी उबड़-खाबड़ पगडंडियों से प्रभात फेरी के लिए गाँव-गाँव, घर-घर जाकर देशभक्ति के गीतों से देशप्रेम में अलख जागते थे, जिन्हें गाँव के नौजवान, बड़े,बुजुर्ग सभी बड़े जोश के साथ बड़ी उत्सुकता से स्वागत कर बड़े मग्न होकर सुनते थे। एक गीत हमारे तिरंगे का जिसे मैं अब भी बच्चों से संग गाया करती हूँ जो मुझे बेहद प्यारा लगता है..
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा
इस झंडे के नीचे निर्भय
होये महान शक्ति का संचय
बोलो भारत माता की जय
....................
उस समय छोटे-छोटे कदमों से जंगल की संकरी डरावनी राह चलते यह गीत हौसला बुलंद करने के लिए कम नहीं था.............
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
सामने पहाड़ हो
या सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं
तुम निडर हटो नहीं
...............
......अब तो शहरी हालातों को देश स्कूल में पढ़ी देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले क्रांतिकारी अमर वीर देशभक्तों का बलिदानी इतिहास धार्मिक पौराणिक कथा-कहानियों की तरह बनती जा रही हैं, जिसे पढ़ना-सुनना दुर्भाग्यवस उबाऊ, नीरस समझा जाने लगा है। राजनीति शास्त्र की किताब में पढ़ा 'हमारा संविधान' जिसमें हमारा लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता, मौलिक अधिकार व कर्तव्यों की बड़ी-बड़ी व्याख्याएं होती थी अब स्कूल के बस्तों और पुस्तकालयों में स्वयं ही घुट रहीं हैं और वर्तमान वास्तविक राजनीति तो हमारी संसद, विधान मंडलों की सुरक्षित, चाक-चौबंद समझी जानी वाली बंद कंदराओं से बाहर आकर स्कूल, कॉलेज में सीधे दाखिला लेकर सीधे-साधे, भोले-भाले, गरीब समझे जाने वाले ग्रामीणों के घर-घर में अपनी घुसपैठ करते हुए 'राजनीति' की एक खुली किताब बन गयी है, जिसमें सभी बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी निभाते नज़र आने लगे हैं।
..कविता रावत
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!!!!!
ReplyDelete*स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ. सादर * *संजय भास्कर
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है.
ReplyDelete"दूसरों की गुलामी के निवाले से हृष्ट-पुष्ट हो जाने से
स्वतंत्रता के साथ दुर्बल बने रहना भला !"
ठीक कहा है लेकिन यदि स्वतन्त्र रहते हुए हृष्ट-पुष्ट हो पायें तो और भी अच्छा हो. दिली इच्छा है कि भारत फ़ले फ़ूले और सभी खुशहाल हों. देश वासी ईमानदार और देशभ्क्त बनें.
बेहतरीन लिखा आपने...बधाई.
ReplyDeleteस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteआजादी का पर्व आपके जीवन में भी खुशियां लाएं
आपको शुभकामनाएं
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteराष्ट्रीय पर्व पर हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteकविता, आपने तो बचपन की यादों के साथ स्कूल के दिन की याद भी दिलाई | वाकई, बहुत ही सराहनीय सोच और बयान है | मेरा सेल्यूट देश के लिएँ तो हमेशा है,
आज अच्छी दोस्त होने के के लिएँ तुम भी सेल्यूट का स्वीकार करो | मेरे जज्बे को समझ रही होंगी |
आपको स्वाधीनता दिवस की बहुत शुभकामना, जय हिंद!
ReplyDeleteआजादी दिवस की शुभकामनाएँ
ReplyDelete१५ अगस्त के संदर्भ में - वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने क्या हम नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ? [On the occasion of 15th August….]
कविता जी..बेहद सुंदर यादें मन को छू लेने वालीं..और उतने ही खूबसूरत उद्धरण और आपकी कविता… यथार्थ चित्रित होता है आपकी कविताओं में!!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ..
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
samvedi post......sadhuwad..
ReplyDeleteaapko bhi svatantrata divas ki mangalkamnaye.........
ReplyDeleteबचपन की यादें सचमुच कहीं और ही ले जाती हैं, बहुत ही सुंदर रचना बधाई. आपको स्वतंत्रता दिवस पर ढेरों शुभकामनाएं.
ReplyDeleteपिंजरे में बंद शेर की तरह रहने से
ReplyDeleteआवारा पशु की तरह फिरना भला !!
आजादी से बड़ी कोई चीज नहीं है. सुन्दर भाव.
प्रभात फेरिया और फिर नारे लगाना .. बचपन को कुरेद गया आपका आलेख.
सुन्दर चित्रण, कविता जी !
ReplyDeletebachpan me padhi hui ye kavita ham apne bachchon ko aaj bhi bade garv se sunaate hai. par aapne bilkui sahi likha ab vo kahaani kisse bankar kitaabi baaten rah gai hai .bahut hi achhi post
ReplyDeleteaajadi ke is parv ki aapko bhi hadik badhai.
poonam
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...!!
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!
http://iisanuii.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html
... स्वतंत्रता दिवस पर्व की हार्दिक बधाई एवं
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !!!
स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ..
ReplyDeleteआजादी की शुभकामनाएं....स्कुल में बनाया जाने वाला समारोह हमेशा दिलों में जिंदा रहता है.....
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
अच्छी रचना।
ReplyDeleteसच्ची इंसानी सोच
ReplyDeletesach kaha aapne.........hame bhi apna bachpan yaad aa gaya........wo chillate hue vande matram kahna aur fir last me jalebi milna........yaad hai hame......:)
ReplyDeletesach kahun uss samay wo jalebiyan hi hamare ajadi ka prateek thi sayad.......:D
bahut achchhi rachna!
सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteदासता की हालत में कोई नियम लागू नहीं होता है !
ReplyDeleteजो अपनी स्वतंत्रता खो चुका उसके पास कुछ नहीं बचता है !!
सच कहा है ... दासता फिर चाहे अपने आप की ही क्यों न हो .... अपनी इंद्रियों की क्यों न हो .... अच्छा लिखा है बहुत ...
dher saari shubhkaamna is din ki ..lekin shayad ab waqt badal gaya hai , ab mere blog par hi dekh lijiye...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeletekavita ji ,aapne to apni rachna se bachpan ki tatha schooli dino ki yaad taza kar di. jab ham jor -jor se is kavita ko rata karte the.
ReplyDeletebahut hi prashanshaniy avam sarthak post.
aapko bhi hardik badhai.
poonam
बहुत कुछ याद दिला गई आपकी रचना |हम सबकी यादो की कसक एक जैसी है किन्तु तेजी से बदलते वैश्विक प्रभाव ने ,घर घर की राजनीति ने कहाँ ला दिया हमे.? हम असहाय बनकर देखते रहे |
ReplyDeleteकारवां गुजर गया गुबार देखते रहे |
यह जायज़ चिंता है
ReplyDeleteदिल मैं जब तेरी लगन रक्श किया करती थी
ReplyDeleteमेरी हर साँस मैं खुशबु सी बसा करती थी
अब तो महफिल से भी होता नही कुछ ग़म का इलाज
पहले तन्हाई भी दुःख बाँट लिया करती थी
अब जो रक्सां है कई रंग भरे चेहरों में
यही मिटटी कभी बेकार उड़ा करती थी
रंग के जाल ही मिलते हैं जिधर जाता हूँ
रौशनी यूँ न मुझे तंग किया करती थी
अब मुझे चांदनी कुछ भी तो नही कहती है
कभी ये तेरे संदेशे भी दिया करती थी
किस कदर प्यार से ये पेड़ बुलाते थे मुझे
किस तरह छाओं तेरा जीकर किया करती थी
ये दर-ओ-बाम कभी शाम लिपट'ते थे मुझे
हर गली बढ़ के क़दम चूम लिया करती थी