घर-गृहस्थी और समाज - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

घर-गृहस्थी और समाज

बचपन की धमाचौकड़ी के साथ स्कूली शिक्षा और फिर कॉलेज की चकाचौंध से बाहर निकलकर जब मैं कुछ वर्ष बाद परिवार और नाते रिश्तेदारों की दिन-रात की दौड़-धूप के फलीभूत होने से अनजाने रिश्तों की डोर से बंधी तो मैंने अपने आपको एक अलग ही दुनिया में पाया, जिसे एक लड़की की अपनी घर गृहस्थी कहा जाता है, जो सदियों से उसका असली घर बताया गया है। यह संयोग ही रहा कि इधर शादी की बात पक्की हुई और दूसरी ओर मेरी शिक्षा विभाग में सर्विस लगी। शादी की बात पक्की होने के बाद मुझे प्यार की भाषा समझ आयी तो कुछ दिन कविता, कहानी और शेरो-शायरी का सुखद दौर चल पड़ा लेकिन शादी होने बाद घर-गृहस्थी और समाज का जो कटु अनुभव हुआ, वह किसी त्रासदी से कमतर नहीं है।    
         शादी होने के बाद समाज में एक लड़की के लिए जो सबसे अहम् बात समझी जाती है वह उसका माँ बनना है, लेकिन मेरा १० वर्ष की लम्बी त्रासदी झेलने के बाद माँ बनना, जीवन के कटु अनुभवों से गुजरना रहा है। त्रासदी इसलिए कहूँगी क्योंकि आज भी एक माध्यम परिवार की स्त्री को इतनी लम्बी अवधि के बाद माँ न बनने की स्थिति में अपने ही घर-परिवार, नाते-रिश्तेदार और समाज के लोगों से जो ताने- कडुवी बातें झेलनी पड़ती है, मैं समझती हूँ कि वह किसी त्रासदी से कमतर नहीं। मेरे लिए भी यह भोपाल गैस त्रासदी झेलने के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी रही है। इस व्यथा से गुजरने वाली प्रत्येक स्त्री मेरी  यह बात बखूबी समझ सकती है।  खैर मैं इस मामले में अपने जीवन साथी जो कि मेरे लिए शुरू से ही कभी अनजाने नहीं रहे, हर कदम पर एक सच्चे हमसफ़र की तरह कदम-दर-कदम साथ निभाते चले आये, इसे मैं अपना सौभाग्य समझती हूँ।  अब मेरी एक बिटिया और एक बेटा है, ऑफिस की भागमभाग और उनकी देखभाल में एक-एक दिन और साल कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता।  जिंदगी में दौड़ धूप जरुर बहुत है लेकिन घर आकर बच्चों की खट्टी--मीठी, अटपटी, समझदार भरी बातें सुनकर मन को एक सुकून मिलता है।  मेरे पति और मेरी आदतें भी लगभग एक सी हैं, जिससे हमारे बीच कभी कोई  टकराव की स्थिति निर्मित नहीं हुई।  हम शुरू से ही पति-पत्नी की तरह नहीं बल्कि दोस्त की तरह रहते हैं, जिससे आपसी सामंजस्य से सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है।  मेरा ब्लॉग लेखन बिना इनके प्रोत्साहन और सहयोग के संभव नहीं है, जिसके कारण मैं अपने विचार, भावनाएं ब्लॉग पर साझा कर पाती हूँ।
          ब्लॉग पर कविता, लेख के बाद समय मिलने पर मैं अपनी कुछ अप्रकाशित अपठित कहानियां भी प्रस्तुत करना चाहूंगी, बस आपका यूँ ही आशीर्वाद, प्रोत्साहन, मार्गदर्शन और सहयोग की आकांक्षी हूँ

                                                           ...कविता रावत