तुमको
सोचने के बाद
जाने क्यों
मन दो कदम पीछे हटता है
दिल दो कदम आगे बढ़ता है
पर अंतर्मन रोकता है बमुश्किल
फिर चेहरा तुम्हारा
झूम आता है आँखों में
तुम उतरते हो
दिल की अतल गहराईयों में
बस एक द्वंद्ध चलता है
फिर कभी अचानक ही
बरसने लगता है
तुमको
सोचने के बाद
जाने क्यों!
...कविता रावत
सोचने के बाद
जाने क्यों
तुमसे बात करने की प्रबल इच्छा
जाग उठती है
तुमको
सोचने के बाद
डरती हूँ
कहीं जुबाँ पर
आ न जाएं वे बातें
जो पसंद न हों तुमको
बेचैन कर दें
मन को
भाव की भाषा चेहरे पर
दिखने न लगें
कहीं सबको
फूलों से लदी खुशगवार डाली देख
सोचती हूँ डाली के बारे में
तब क्या गुजरेगी डाली पर
जब फूलों से वीरान
आकर्षित न कर पाएगी
मुहं फेर बढ़ लेगा कोई अपना
जो आता था कभी करीब
अपना समझ प्यार भरे कदमों से
और चुन ले जाता कुछ फूल
मान,सम्मान, पूजा की खातिर
बेधड़क, बेरोकटोक
सोचती हूँ डाली के बारे में
तब क्या गुजरेगी डाली पर
जब फूलों से वीरान
आकर्षित न कर पाएगी
मुहं फेर बढ़ लेगा कोई अपना
जो आता था कभी करीब
अपना समझ प्यार भरे कदमों से
और चुन ले जाता कुछ फूल
मान,सम्मान, पूजा की खातिर
बेधड़क, बेरोकटोक
मन दो कदम पीछे हटता है
दिल दो कदम आगे बढ़ता है
पर अंतर्मन रोकता है बमुश्किल
फिर चेहरा तुम्हारा
झूम आता है आँखों में
तुम उतरते हो
दिल की अतल गहराईयों में
जिसके छोर को पकड़ पाना
नामुमकिन सा लगता है
बस एक द्वंद्ध चलता है
बस मन यूं ही तपता है
कभी हँसता, रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है फिर कभी अचानक ही
बदली बन गरज-चमक कर
प्रेम बगिया पर आ बरसने लगता है
तुमको
सोचने के बाद
जाने क्यों!
...कविता रावत
आदरणीय कविता रावत जी
ReplyDeleteनमस्कार !
सोचती हूँ डाली के बारे में
तब क्या गुजरेगी डाली पर
जब फूलों से वीरान
आकर्षित न कर पाएगी
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
बस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसताए रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
दिल की गहराइयों से उपजी एक अत्यंत प्रभावशाली कविता।
yh kahin swyam se vartalaap ka koi naya or khubsurat andaaz to nahi.....bhrhaal uprokt sunder rachna hetu abhaar.
ReplyDeleteजो पसंद न हों तुमको
ReplyDeleteबेचैन कर दें
मन को
भाव की भाषा चेहरे पर
दिखने न लगें
खुबसुरत ख्याल, सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग ...सुंदर बिम्ब ...पूरी कविता सोचने पर विवश करती है ...तुमको सोचने के बाद ..शुभकामनायें
बस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसताए रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
मन की कशमकश को सुन्दर शब्दों मे पिरोया है
अच्छी लगी रचना। बधाई।
मन दो कदम पीछे हटता है
ReplyDeleteदिल दो कदम आगे बढ़ता है
यही उहापोह और अंतर्द्वन्द ही तो है जो कभी प्रतिगामी, कभी अनुगामी तो कभी ऊर्ध्वगामी बनाता है और फिर शायद यही जीवन है
बस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसताए रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
जीवन की कशमकश को बड़ी खूबसूरती से पिरोया...... सुंदर कविता
इस क्यूँ का जवाब तो किसी के पास नहीं होता कविता जी .... बहुत खूबसूरत भाव है रचना का .. शुभकामनाएं ...
ReplyDeletetumko sochne ke baad
ReplyDeleteshabd bhi os kee bundon se dikhne lagte hain...
"....कहीं जुबाँ पर
ReplyDeleteआ न जाएं वे बातें
जो पसंद न हों तुमको
बेचैन कर दें
मन को
भाव की भाषा चेहरे पर
दिखने न लगें
कहीं सबको
फूलों से लदी खुशगवार डाली देख......."
दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ.मन के अंतर्द्वंद का बेहतरीन चित्रण.
सादर.
sach aisa bhi hota hai kya ?
ReplyDeleteअंतर्द्वंद को कहती अच्छी रचना ..
ReplyDelete5/10
ReplyDeleteकविता का पहला आधा हिस्सा बहुत सुन्दर लगा.
बाद में असर कम हो गया है.
अंतर्द्वन्द को बखूबी उकेरा है।
ReplyDeleteबेचैन कर दें
ReplyDeleteमन को
भाव की भाषा चेहरे पर
दिखने न लगें
कहीं सबको
अन्तर्द्वन्द की सुगढ़ अभिव्यक्ति है आप की कविता..नाम को सार्थक करती एक रचना!
man ki vedna ka achchha chitran hai.... bahoot khoob
ReplyDeleteबस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसता, रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
अन्तर्द्वन्द को अभिव्यक्त करने की प्रभावोत्पादक शैली. ..............एक मार्मिक कविता. .......वधाई.
मन दो कदम पीछे हटता है
ReplyDeleteदिल दो कदम आगे बढ़ता है
इस कविता में संवेदना का विस्तार व्यापक रूप से देखा जा सकता है।
बस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसता, रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
द्वंद से गुज़रते मन की सुन्दर अभिव्यक्ति.
फिर कभी अचानक ही
ReplyDeleteबदली बन गरज-चमक कर
प्रेम बगिया पर आ
बरसने लगता है
तुमको
सोचने के बाद
बहुत सशक्त तरीके से मन की कश्मोकाश को सुंदर रूप दिया इस रचना के जरिये.
क्या करें जिस से जितना ज्यादा प्रेम होता है मन उसी के बारे सोचता रहता है और तरह तरह के अच्छे बुरे विचार जन्म लेते हैं अच्छा द्वन्द है मन और विचारों का
ReplyDeleteसोचती हूँ डाली के बारे में
ReplyDeleteतब क्या गुजरेगी डाली पर
जब फूलों से वीरान
आकर्षित न कर पाएगी
मुहं फेर बढ़ लेगा कोई अपना
जो आता था कभी करीब
अपना समझ प्यार भरे कदमों से
और चुन ले जाता कुछ फूल
मान,सम्मान, पूजा की खातिर
बेधड़क, बेरोकटोक
..बहुत प्रभावोत्पादक शैली से मन की सुगढ़ अभिव्यक्ति
दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ.....बधाई।
bahut achcha likhi hain aap.
ReplyDeleteमन के अंतर्द्वंद को आपने सुन्दर तरीके से दिखाया है ...
ReplyDeleteबाल दिवस की शुभकामनायें !
अच्छी लगी कविता की कविता \
ReplyDeleteशुभकामनाये
हम भी यही कहते हैं कि है अच्छी है कविता।
ReplyDeleteमेरी तो यही कामना है कि भगवान न करे कि किसी कि जिदगी में बिना फूलों वाली डाली जैसी हालत हो। आकर्षण तन से बढ़कर मन को हो सभी का। पर आंख बंद कर देने से बिल्ली नहीं भागती। सच का रंग काफी कड़वा होता है अक्सर।
ReplyDeleteमन दो कदम पीछे हटता है
ReplyDeleteदिल दो कदम आगे बढ़ता है
पर अंतर्मन रोकता है बमुश्किल
फिर चेहरा तुम्हारा
झूम आता है आँखों में
तुम उतरते हो
दिल की अतल गहराईयों में
जिसके छोर को पकड़ पाना
नामुमकिन सा लगता है
...bahad prabhavshali dhang se aapne pyar ke is antardhwandh ko shabdon mein dhala hai... Dil mein utar gayee... aap kee kavitayen padhkar bahut hi achha lagta hai..bahut asarkari rachnayen likhti hai aap..aabhar
बस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसता, रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
..मन के अंतर्द्वंद द्वंद से गुज़रते मन की सुन्दर अभिव्यक्ति
मनोभावों की हलचल लिये एक सुन्दर सशक्त रचना. आपने सच ही कहा है कि कभी कभी व्यक्ति जो कहना चाहता है शायद इसीलिये नहीं कह पाता कि वह नहीं जानता सामने वाला क्या प्रतिक्रिया करेगा और इसी उहापोह में कही बार तो उम्र गुजर जाती है और फ़िर हाथ लगता है सिर्फ़ एक अफ़सोस कि काश अपनी बात उस समय कह दी होती. बेबाकी के बुरे परिणाम हो सकते हैं परन्तु शायद चुप रहने के अतिबुरे परिणाम.... लिखते रहिये
ReplyDeleteएक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसता, रुलाता
....यह जीवन ही इक दंद है...सुन्दर व सार्थक कविता..बधाई.
_________________
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डरती हूँ
ReplyDeleteकहीं जुबाँ पर
आ न जाएं वे बातें
जो पसंद न हों तुमको
बेचैन कर दें
मन को
भाव की भाषा चेहरे पर
दिखने न लगें
कहीं सबको
...मन के अंतर्द्वंद को आपने सुन्दर तरीके से दिखाया है ..बधाई
आ न जाएं वे बातें
ReplyDeleteजो पसंद न हों तुमको
बेचैन कर दें
मन को
भाव की भाषा चेहरे पर
दिखने न लगें
कहीं सबको
....दिल को छू लेने वाली मन के अंतर्द्वंद का बेहतरीन चित्रण.
सुन्दर व सार्थक कविता......बधाई
दूर था इसलिये देर हुई.. पहले भी कहा था और आज भी कहता हूँ कि आपके कहने का अंदाज़ अलग है.. अपकी कविता में उत्तराखण्ड की निस्छल पहाड़ियों की अतल गहराई दिखती है. बहुत ही सुंदरता से भाव पिरोये हैं आपने.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है! हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteलघुकथा – शांति का दूत
सोचती हूँ डाली के बारे में
ReplyDeleteतब क्या गुजरेगी डाली पर
जब फूलों से वीरान
आकर्षित न कर पाएगी
...मन के अंतर्द्वंद की बहुत बढ़िया प्रस्तुति...
हार्दिक शुभकामनाएं!
कविता जी, मानसिक उथल पुथल की आपने सुन्दर अभिव्यक्ति की है---बहुत ही सहजता पूर्वक।
ReplyDeleteसोचती हूँ डाली के बारे में
ReplyDeleteतब क्या गुजरेगी डाली पर
जब फूलों से वीरान
आकर्षित न कर पाएगी
मुहं फेर बढ़ लेगा कोई अपना
जो आता था कभी करीब
अपना समझ प्यार भरे कदमों से...
..बहुत चंगा है जी
बल्ले-बल्ले ..
bahut acchi rachna,
ReplyDeleteमन दो कदम पीछे हटता है
ReplyDeleteदिल दो कदम आगे बढ़ता है
पर अंतर्मन रोकता है बमुश्किल
फिर चेहरा तुम्हारा
झूम आता है आँखों में
तुम उतरते हो
दिल की अतल गहराईयों में
.... मन और विचारों का बहुत अच्छा द्वन्द ....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
कविता जी, प्रेमरस से सराबोर एक शानदार कविता पढवाने के लिए शुक्रिया।
ReplyDelete---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्या आप सच्चे देशभक्त हैं?
सोच जब भी गहरी हुई है कहीं कोई अंदेशा भी जन्मता है। सोच का विस्तार है यह। और जब किसी प्रेम के सन्दर्भ में होता है तो कई कई तरह से वो मन के तूफान को बांधने के यत्न में ज्यादा मचलता है। यहां हृदय और मन के बीच का संघर्ष है। पर यह संघर्ष भी कितना सरल, कितना अबोध सा...। दिल और मन की इस रस्साकशी में बेचारी आंखे भी नम होती है और दिमाग का हाल हजारो-हजार विचारों से मेघों को उद्वेलित करता रहता है। रचना में 'सोच' ने अपने अर्थों के साथ न्याय किया है जो मुझे काफी अच्छा लगा।
ReplyDeleteफिर कभी अचानक ही
ReplyDeleteबदली बन गरज-चमक कर
प्रेम बगिया पर आ
बरसने लगता है
तुमको
सोचने के बाद
....प्रेमभरी मन:स्थिति के द्वन्द को आपने बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है.. लाजवाब शुद्ध सात्विक प्रेमाभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद!
बस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसताए रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
दिल की गहराइयों से उपजी एक अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति
एक शानदार कविता पढवाने के लिए शुक्रिया
Kavita ji bahut sundar antardwand hai..
ReplyDeleteaur aapka dhanyvaad ..aap hamare blog me aayi..
aik baat bataiye.. kya me sahi hoon.. aapki profile picture me aapke pichey jo pahad hai uska naam HATHI Parvat hai.. Joshimath me.. galat sahi jo bhi hoga chalega .. antardwand me nahi rahungi.. aapse pooch lungi.. :))
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteबस एक द्वंद्ध चलता है
ReplyDeleteबस मन यूं ही तपता है
कभी हँसताए रुलाता
कभी अनजान बन
दुनिया की भीड़ में खो जाता है
....आप के नामानुकूल सार्थक अन्तर्द्वन्द की सुन्दर सुगढ़ अभिव्यक्ति ....