एक छोटा सा घर था जिसका
खेती-बाड़ी कर पढ़ना-लिखना ही
तब मुख्य लक्ष्य था उसका
खेलने-कूदने की फुरसत नहीं उसे
वह हरदम अपने काम में लगा रहता
कभी तो आएगी ख़ुशी हिस्से उसकी
यही हरपल बैठ सोच लिया करता
हंसी-ख़ुशी काम करते बीते दिन
वह कभी दु:खी होता था नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह रहने लगा है दूर परदेश कहीं!
गाँव के चहुँदिशी आच्छादित सुन्दर वन
झूम-झूम कर उसे अपने पास बुलाते
मनमोहक छटा बिखेरते खेत-खलियान
जब मिली-जुली फसलों से भर आते
घर-आँगन में फुदकती रहती चिड़ियाँ
देते सब उनको भरपूर दाना-पानी
उतर जाती उसकी दिन भर की थकन
सुनने को मिलती जब किस्से कहानी
खो जाता तब सुनहरे सपनों में
कभी वह बेचैन होता था नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह रहने लगा है दूर परदेश कहीं!
गाँव पास उसके बहती नदी-नहर
जो सींचती खेत-खेत, डाली-डाली
अपनेपन लिए होता सारा माहौल
हरतरफ हरदम छायी रहती खुशहाली
गिरता हिम लुभाते नदी-नाले, पहाड़
हिमाच्छादित पेड़-पौधे झुक-झुक जाते
फिर जब सर्द बयार बहती झूम-झूम
तब लगता जैसे वे गीत सुमंगल गाते
ऐसे मनोहार गाँव की राह छोड़ वह
कौन राह खो गया उसका पता नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह रहने लगा है दूर परदेश कहीं!
........कविता रावत
63 टिप्पणियां:
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
पेट पालने के लिये घर से बाहर जाने वालों का दर्द महसूस किया जा सकता है। कविता पढ कर अपना गाँव याद आ गया। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
यह तो बहुत सुन्दर कविता है. चित्र भी मनमोहक.
पाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.
बहुत सुन्दर कविता और चित्र भी कविता के भाव के अनुरूप ...
हमारे यहाँ भी ऐसे ही पहाड होते हैं
Aah! Jeevan yapan ke liye na jane insaan ko kya kya karna pad jata hai!Ek tees-si uthi dilme!
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
बहुत सुंदर.... पर कहाँ मिटती हैं यह यादें मन से.... गाँव की यादें
अब तो गाँव भी शहर में तब्दील होते जा रहे हैं;पर जो गाँव में रहा है उसकी यादें कभी मिट नहीं सकतीं .
सादर
bahut sundar kavita.
प्रवासी दूर जा बसते हैं ... पर मन में यादें हमेशा रहती हैं ... शहर की आपाधापी में खो जाते हैं वो धूल बन के रह जाते हैं ...
है बसा हमारा हिन्दुस्तान गांवों में।
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
amit se bhaw
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
सच बहुत याद आता है ऐसे में वो गाँव....
आपने तो पूरी तस्वीर ही खींच दी...बहुत ही सुन्दर कविता
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं
अच्छा लगा इस कविता के माध्यम से अपने देश और आपके दिल को जानकर
बहुत सुन्दर कविता
ek khubsurat kavita ke madhyam se aapne apne khubsurat yaado ko sanjoya hai.bahut khub!!
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
कविता जी,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.सच आज भी गाँव मन में बसा है बिल्कुल उसी तरह......
.
.
मेरे ब्लॉग सृजन शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "
बहुत अच्छी, गाँव की याद ताज़ा कर दी आपने कविता जी, ........ पलायन सर्वत्र है. ........ हर आदमी अभाव का रोना रोकर या ज्यादा पाने की चाह में दौड़ रहा है........और जब भौतिक सुख हासिल हो जा रहा है तो फिर वह पीछे का रोना रो रहा है.....जगजीत सिंह की आवाज में यह ग़ज़ल याद आ रही है:- " ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले चीन लो मुझसे मेरी जवानी / मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज़ की कश्ती, वो बारिस का पानी ........."
मेरा गाँव जाने कहाँ खो गया ?
आपने तो पूरी तस्वीर ही खींच दी...बहुत ही सुन्दर कविता
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए नगरों में जाना मजबूरी है...पर अपने गांव की मिटटी को छोड़ने की कशिश हमेशा बनी रहती है.परदेश में बसे लोगों के दर्द को बहुत ही शिद्दत के साथ व्यक्त किया है..आभार .
अब वो मनोहारी गाँव कहाँ रहे ? बस यूँ ही है अस्त-व्यस्त सा हर जगह ...
आपके सुन्दर मनमोहक गांव की परिकल्पना - इस कविता पर मेरी भी शुभकामना स्वीकार करें.
अति सुंदर रचना जी, धन्यवाद
kavita ji aapka lekh pada bahoot acha hai,
प्रवासी के दर्द को बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी है आपने . कविता को चार पांच बार पढ़ा . हर बार दिल मचल उठा . बहुत सुंदर रचना है .
गांव की तस्वीर भी बहुत सुंदर है .
मजा आ गया
धन्यवाद
माधव राय
मृत्युंजय कुमार राय
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं
....pravasi rachna ke marfat aapne gaon ka jeewant varnan prastut kiya hai.. man ko bahut achha laga..gaon kee tasveer dekh apna gaon yaad aa gaya....dhanyavaad
पास गाँव के नदी-नहर बहती-रहती
जो सींचती खेत-खेत और डाली-डाली
अपनेपन से भरा माहौल दिखता था
हरतरफ फैली दिखती थी खुशहाली
गिरता हिम नदी-नाले, पहाड़ लुभाते
और हिमाच्छादित पेड़-पौधे झुक जाते
फिर जब सर्द बयार बहती झूम-झूम
तब लगता जैसे कोई गीत सुमंगल गाते
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
...gaon ka manmohak sajeev chitran..... gaon yaad bahut aate hain lekin kya karen roji-roti aade aa jatee hai...
tasveer kya aapke gaon kee hai? bahut sundar hai n isliye pooch raha hun!
सच कहा आपने अब तो बस यादें बची है मन में,
चाहें वो दिल में हो, तस्वीरों में हो, या हमारे बुने हुए हसीं पलों में हो,
लेकिन कुछ नहीं बचा अब तो बस यादें बची है मन में.......
मैं ब्लॉगर पर नया हूँ लेकिन थोडा बहुत लिखने की गुस्ताखी कर लेता हूँ प्लीज आप मेरे ब्लोग्स पर अपनी नज़रों का करम करें और मेरे लिखे हुए साधारण से कुछ पोस्ट्स पर अपने कमेंट्स भी जरूर दें और मुझे
आगे भी लिखते रहने के लिए प्रेरित करें. मेरे ब्लोग्स का यूआरएल है:-
samratonlyfor.blogspot.com और
reportergovind.blogspot.com
nice poem,
lovely blog.
Sundar bhavavyakti. Apne mujhe meri yaadon men dhakel diya. Sachhi yaden kabhi nahin mitti.
ek bahut hi shaandaar aur sarthak kavita ke liye Apko bdhaai.
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं
गाँव की याद आ गयी ... १० साल से जा नहीं पायी परदेश में बहुत याद आती है गाँव की...... तस्वीर और कविता पढ़कर गाँव साकार हो उठा
धन्यवाद
सुन्दर मनमोहक गाँव में बसा
एक छोटा सा घर था जिसका
खेती-पाती कर पढ़ना-लिखना ही
उस वक्त मुख्य लक्ष्य था जिसका
खेलने-कूदने की फुर्सत कहाँ उसे
वह नित अपने काम में जुटा रहता
कभी तो आएगी ख़ुशी हिस्से मेरी
यही हरपल बैठ सोचा करता
हंसी-ख़ुशी से हरदिन काम करता
वह कभी दु:खी होता था नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
.
.......इतनी सुन्दर कविता पढ़कर अपना बचपन याद आ गया ..........कुछ ऐसी ही स्थति में जी रही हम परदेश में ...... क्या करें मजबूरी है .....
बहुत अच्छा लगा पढ़कर गाँव की याद में खो से गए थे हम ..............आभार
... sundar rachanaa !!!
अपना बचपन याद आ गाया आप की कविता पढ़ कर,गांव की तस्वीर देखकर| आभार|
यादें ही तो जीवन की धरोहर हैं...सुन्दर शब्दों में सहेज लिया आपने इन्हें..बधाई.
'सप्तरंगी प्रेम' के लिए आपकी प्रेम आधारित रचनाओं का स्वागत है.
hindi.literature@yahoo.com पर मेल कर सकती हैं.
सुन्दर मनमोहक गाँव में बसा
एक छोटा सा घर था जिसका
खेती-पाती कर पढ़ना-लिखना ही
उस वक्त मुख्य लक्ष्य था जिसका
खेलने-कूदने की फुर्सत कहाँ उसे
वह नित अपने काम में जुटा रहता
कभी तो आएगी ख़ुशी हिस्से मेरी
यही हरपल बैठ सोचा करता
हंसी-ख़ुशी से हरदिन काम करता
वह कभी दु:खी होता था नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं
गिरता हिम नदी-नाले, पहाड़ लुभाते
और हिमाच्छादित पेड़-पौधे झुक जाते
फिर जब सर्द बयार बहती झूम-झूम
तब लगता जैसे कोई गीत सुमंगल गाते
..... आपके गाँव की कविता पढ़कर मुझे मेरा गाँव बहुत याद आने लगा है ... गाँव के वे बचपन के दिन जब स्कूल जंगल के रास्ते से जाना होता था ..अकेले में डर सा लगता था लेकिन सबके साथ में स्कूल, जंगल से लकड़ियों का गठर सर पर लादे लाना , घास के लिए दुसरे गाँव के निकल जाना ....... आपने तो गाँव के उन दिनों की याद ताज़ी कर दी ..... बहुत कम जाना होता है गाँव ..क्या कर सकते हैं अब तो बच्चों के साथ कब दिन निकल जाता है, पता ही नहीं चलता .....सुंदर प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण भी किया आपने ..मन को बहुत अच्छा लगा ....आपका बहुत आभार
सशक्त अभिव्यक्ति!! बधाई.
और हिमाच्छादित पेड़-पौधे झुक जाते
फिर जब सर्द बयार बहती झूम-झूम
तब लगता जैसे कोई गीत सुमंगल गाते
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
....bahut pyari kavita...padhkar gaon kee yaad satane lagi hai, aajkal barf girni shuru ho gayee hai.. telephone network kam ho milta hai lekin aapne ek saakar chitran kar gaon ko jiwant bana diya..aabhari hun....
कविता जी,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.सच आज भी गाँव मन में बसा है बिल्कुल उसी तरह......
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
अति उत्तम बरनन किया है गाँव का |बधाई
आशा
कविता जी सुन्दर रचना ...गाँव की यादें ..आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया
sundar rachna!
yaadon mein base gaanv yatharth ki zameen par bhi milen...
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
खेलने-कूदने की फुर्सत कहाँ उसे
वह नित अपने काम में जुटा रहता
कभी तो आएगी ख़ुशी हिस्से मेरी
यही हरपल बैठ सोचा करता
हंसी-ख़ुशी से हरदिन काम करता
वह कभी दु:खी होता था नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं!
गाँव को कैसे भूल सकते हैं हम! .........बस तो गए हैं हम प्रदेश में लेकिन गाँव कभी भूल नहीं सकतें हैं, आखिर जड़ें तो वहीँ हैं हमारी ......
बहुत सुन्दर गाँव की मिटटी की सौंधी सुगंध से भरी रचना ...बहुत आभार आपका !!!!!!!!!!
कविता जी, ये यादें किसी खजाने से कम नहीं।
---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
बहुत सुन्दर कविता और चित्र भी कविता के भाव के अनुरूप....
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
bahut sunder chirankan gaon ka........bahut sunder bhavo kee abhivykti......rozee rotee ke liye insaan ko kya nahee karna padta.........
vaise nagrikaran ab gaono me bhee shuru ho gaya hai.........
aur aajkal kanha ho...? bhool bhal gayee.....?
जडॉं से उखड़ने का दुख यही तो है ।
मुझे भी अपना बचपन याद आ गया ! खूबअसूरत !
कविता जी देखा आपका गाँव ......
तस्वीर में तो काफी खूबसूरत .....पर अब सीने में यादें लिए फिरता है .....
बहुत सुंदर...अपना बचपन याद आ गया . पर कहाँ मिटती हैं गाँव की यादें मन से....
गांव के मनोरम दृश्य को अच्छी तरह से बताने की कोशिश की है आपने।
वो देश बसे या परदेश --- वो गांव वाली बात मिलेगी क्या?
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं
बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने...बहुत खूब
बेहतरीन रचना।
आपने तो मुझे मेरे गांव की याद दिला दी... धन्यवाद कविता जी। शानदार रचना।
आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
आपकी कविताओं की विषय वस्तु और शब्द संयोजन प्रभावित करता करता रहा है. इस पोस्ट में गाँव के चित्र ने चार चाँद लगा दिए हैं. मुझे लगता है कि शैली की तरफ और ध्यान दें तो आपकी रचनाएँ ज्यादा प्रभावशाली हो सकती हैं.
अब ऐसे गाँव की राह छोड़ चुका वह
दमघोंटू शहर में खुली हवा नसीब नहीं
अब सिर्फ कुछ यादें बची हैं मन में
वह बस चुका है दूर परदेश कहीं
बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने...बेहतरीन रचना।
ye kavita nhi ji ye tasveer hai ji sab kuch bol rhi gav ke bare me...
In fact when someone doesn't know afterward its up to
other users that they will help, so here it
takes place.
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एक छोटा सा घर था जिसका,
खेती पाती कर पङना लिखना ही,
उस वक़्त मुख्य लक्ष्य था जिसका,
खेलने कूदने की फुर्सत कहां उसे,
वह नित अपने काम में जुटा रहता,
कभी तो आयेगी खुशी हिस्से मेरी,
यही हरपल बैठ सोचा कराता,,!!
आपकी रचना में गांव का पिछङापन, बिरहन का दुख और पलायन का दर्द झलकता है,,!! अत्यंत सुन्दर और भाव-विभोर लेख
nice
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