गौरेया कितनी भी ऊँची क्यों न उड़े गरुड़ तो नहीं बन जाएगी
बिल्ली कितनी भी क्यों न उछले बाघ तो नहीं बन जाएगी!
घोड़े में जितनी ताकत हो वह उतना ही बोझ उठा पायेगा
जिसे आदत पड़ गई लदने की वह जमीं पर क्या चलेगा!
जो अंडा नहीं उठा सकता है वह भला डंडा क्या उठाएगा
जो नहर पार नहीं कर सकता वह समुद्र क्या पार करेगा!
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
....कविता रावत
65 टिप्पणियां:
गौरेया कितनी भी ऊँची क्यों न उड़े गरुड़ तो नहीं बन जाएगी
बिल्ली कितनी भी क्यों न उछले बाघ तो नहीं बन जाएगी!
kya khoob ?
आदरणीय कविता रावत जी
नमस्कार !
एकदम सही बात कही है
बहुत खूब ...आपकी यह प्रस्तुति पढ़ कर खुशी होती है ...
Happy Republic Day.........Jai HIND
bilkul sach kaha aapne..;;)
kab ham sab rashtragan samajh payenge..!
बहुत खूब कहा है आपने इस रचना में बेहतरीन ...।
कविता जी,
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
शानदार उपालंभ है इस अभिव्यक्ति में।
गौरेया कितनी भी ऊँची क्यों न उड़े गरुड़ तो नहीं बन जाएगी
बिल्ली कितनी भी क्यों न उछले बाघ तो नहीं बन जाएगी!
waah
राष्ट्रगान हृदयगत करना होगा, तभी कुछ हित होगा।
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
...बहुत सही कहा...साधुवाद.
बात बिलकुल सही है आपकी...
राष्ट्र गान का सम्मान सबको करना सीखना होगा तभी देश का भला होगा
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
कविता जी!
एकदम सही कटाक्ष किया है आपने कि जो नेता, अफसर या कर्मचारी राष्ट्रगान के समय बुत बने रहते है वे उसका आशय क्या समझेगें
राष्ट्रगान हृदयगत करना होगा, तभी कुछ हित होगा।
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
बिलकुल सही कहा।आअच्छी कविता के लिये बधाई।
लाख टके की बात!!
अधिकांश बुत सिर्फ तन से वहां होते हैं मन तो पैसे-कुर्सी के खेल में उलझा होता है।
अच्छी रचना है कविता जी .
सटीक व्यंग है.
अंडा और डंडा
बहुत ही बढ़िया
आप एकदम सीधी और मारक बातें लिखती हैं. बहुत बढ़िया.
Sundar rachana!
Gantantr diwas kee hardik badhayee!
बहुत सुंदर ....गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं
कविता जी , बहुत ही सुंदर एवम विचारणीय प्रस्तुति. बिल्कुल सही.
बुलंद हौसले का दूसरा नाम : आभा खेत्रपाल
अच्छी रचना.
गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
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जो अंडा नहीं उठा सकता है वह भला डंडा क्या उठाएगा
जो नहर पार नहीं कर सकता वह समुद्र क्या पार करेगा!
कविता जी,
तीखा कटाक्ष किया है आपने।
अच्छी रचना।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई।
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा
बहुत सही कहा है कविता जी आपने .......शुक्रिया आपका
गणतंत्र दिवस पर लोकोक्तियों के माध्यम से व्यवस्था पर सटीक प्रहार. ........... गणतंत्र दिवस की आपको भी वधाई कविता जी.
62वें गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं।
आभार।
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
लाख टके की बात.. अधिकांश बुत सिर्फ तन से वहां होते हैं मन तो पैसे-कुर्सी के खेल में उलझा होता है।
तीखा कटाक्ष किया है आपने।
अच्छी रचना।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई।
जो अंडा नहीं उठा सकता है वह भला डंडा क्या उठाएगा
जो नहर पार नहीं कर सकता वह समुद्र क्या पार करेगा!
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा
बहुत दूर की कौड़ी ढूढ़ कर लाईं है कविता जी ! सरल मगर बोफोर्स तोप की मारक क्षमता वाली रचना ... .. राष्ट्रगान कितने नेता या बड़े अफसर सही ढंग से या आता भी है या नहीं बहुत बड़ा प्रश्न है मगर हिम्मत कौन करें इनसे कहने का. किसी को अपनी नौकरी तो किसी को अपने नेता को खुश जो करना होता है... यही तो देशभक्ति रह गयी है .... आपकी रचना पढने वाला कम से सोचने पर मजबूर जरुर होगा! आभार है आपका
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा
झंडा फहराने वाले इन हमारे नेता अफसरों को राष्ट्रगान कितना आता है यह सभी भलीभांति जानते हैं? राष्ट्रगान जब आता ही नहीं है तो उसका मतलब वे न आज तक समझ पाए हैं और न समझेगें!! इस रचना के माध्यम से आपने जोरदार तमाचा मारा है ऐसे डोंगियों के गाल पर,बहुत तसल्ली हुयी ..शायद हम आम लोगों के लिए यही काफी है.......बेहतरीन देशप्रेम दर्शाती रचना के लिए बधाई!!!
बिल्कुल सच कहा है आप ने ,ध्वजारोहण करना और उस को deserve करना २ अलग बातें हैं ,जो ध्वज के महत्व को नहीं समझ पाते वे राष्ट्र गान कैसे समझेंगे
सुंदर विचार
bahut sahi likha apne.
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
लाख टके की बात.. व्यवस्था पर तीखा प्रहार.
आपका शुक्रिया...........
एक गहन चिंतन दर्शाता हुआ , बेहतरीन कटाक्ष।
बात बिलकुल सही है आपकी....
राष्ट्रगान में निहित अर्थ जबतक आत्मसात ना कर लें....बस रस्म्पूर्ति कर वर्ष में दो बार झंडा फहरा देने का कोई अर्थ नहीं.
एक बहुत ही सार्थक कविता
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
जो अंडा नहीं उठा सकता है वह भला डंडा क्या उठाएगा
जो नहर पार नहीं कर सकता वह समुद्र क्या पार करेगा!..
वाह ... क्या बात कही है ... सच है पहले खुद कुछ करना पढ़ता है ...
घोड़े में जितनी ताकत हो वह उतना ही बोझ उठा पायेगा
जिसे आदत पड़ गई लदने की वह जमीं पर क्या चलेगा!
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
जो ध्वज के महत्व को नहीं समझ पाते वे राष्ट्र गान कैसे समझेंगे
एक गहन चिंतन दर्शाता हुआ , बेहतरीन कटाक्ष।
every word is saying the truth..
यही तो मार-मार के समझाना है। मारने का मतलब ये है कि चुनाव में सबक सीखाना है..न कि कानून को अपने हाथ में लेना।
बहुत बढ़िया सटीक चोट की है मृतकों पर .....! शुभकामनायें आपको!
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा
... इन बुत बनकर खड़े होने वालों को राष्ट्रगान का जिस दिन मतलब समझ आ जाएगा उस दिन हमारा भारत फिर से विश्वगुरु बन जाएगा.. फिलहाल जब तब राजनीति में अनपढ़, फुटपतिया किस्म के लोगों का बोलबाला रहेगा, जनता जागेगी नहीं तो यह सब ही चलता रहेगा .....
बहुत सुन्दर प्रभावशाली रचना के लिए आभारी हैं
kavitaji sundar badhai
bahut sahee...bahut sahee....
अत्यंत भावप्रवण विचार हैं आपके...कवित्व में सुगढ़ता तो धीरे-धीरे आ जाएगी।
सुप्तावस्था के जागृतों पर बेहतरीन कटाक्ष दिखता है आपकी इस रचना में ।
जिन्दगी के रंग को फालो करने हेतु आपका आभार...
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा
..super creation! Thanks Kavita Ji!!!
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
बढिया
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
एक गहन चिंतन दर्शाता हुआ , बेहतरीन कटाक्ष। आपका आभार...
ठीक ऐसे ही
जो अपनी माँ को आदर नहीं दे सकता वह मौसी के पैर क्या दबाएगा ?
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
Nice post.
Welcome.
मानवता को बचाइये
लेकिन पहले माँ को बचाइये
हर दिल में इक जज़्बा जगाइये
'प्यारी माँ' को अपनाईये
'प्यारी माँ' केवल एक ब्लाग मात्र नहीं है बल्कि एक अभियान है जिसमें आपके सहयोग की ज़रूरत है । अपनी ईमेल आईडी भेजिए ताकि आप इस रचनात्मक और पवित्र अभियान मेँ एक लेखिका के तौर पर शामिल हो सकें ।
धन्यवाद !
eshvani@gmail.com
ठीक ऐसे ही
जो अपनी माँ को आदर नहीं दे सकता वह मौसी के पैर क्या दबाएगा ?
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
Nice post.
Welcome.
मानवता को बचाइये
लेकिन पहले माँ को बचाइये
हर दिल में इक जज़्बा जगाइये
'प्यारी माँ' को अपनाईये
'प्यारी माँ' केवल एक ब्लाग मात्र नहीं है बल्कि एक अभियान है जिसमें आपके सहयोग की ज़रूरत है । अपनी ईमेल आईडी भेजिए ताकि आप इस रचनात्मक और पवित्र अभियान मेँ एक लेखिका के तौर पर शामिल हो सकें ।
धन्यवाद !
eshvani@gmail.com
ठीक ऐसे ही
जो अपनी माँ को आदर नहीं दे सकता वह मौसी के पैर क्या दबाएगा ?
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
Nice post.
Welcome.
मानवता को बचाइये
लेकिन पहले माँ को बचाइये
हर दिल में इक जज़्बा जगाइये
'प्यारी माँ' को अपनाईये
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धन्यवाद !
eshvani@gmail.com
sundar rachana
Jai hind
धन्यवाद
आद. कविता जी,
आपने दिल से सच्ची बात लिखी है !
आपके तेवर व्यवस्था की नाकामी से उपजे तीखे विचारों के अनगिनत तूफ़ान समेटे हुए हैं !
बहुत बहुत साधुवाद
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
बहुत कुछ कह दिया थोड़े से शब्दों में. बधाईयां.
बेहतरीन कटाक्ष...
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
...एक गहन चिंतन दर्शाता हुआ , बेहतरीन कटाक्ष।
देशप्रेम से ओतप्रोत काव्य ...
शब्द-शब्द प्रशंसनीय
जो फहरा के तिरंगा बुत खड़ा वह राष्ट्रगान क्या समझेगा!
व्यवस्था के खिलाफ तीक्ष्ण कटाक्ष...... बहुत अच्छी देशप्रेम की भावना को दर्शाती रचना......
सुन्दर रचना.
"सुंदर रचना जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा"
पहाड़ पर चढ़ने के लिए
कदम दर कदम
हाँफना पड़ता है
लेना होता है संकल्प कि अभी
और भरने हैं इतने डग
इच्छित चोटी को छूने के लिए
पहाड़ बताते हैं कि
ऊँचा उठने के लिए
चाहिए संकल्प और मेहनत
जबकि उतरते वक्त पाँव
थरथराते हैं इसलिए
गिरते वक्त
संभलना जरूरी होता है ।
बिलकुल सही कटाक्ष है उन सभी नागरिकों के लिए, "The so-called Top-Shots" जिन्हें अपना राष्ट्रगान तक याद नहीं है...
आभार
अतिसुन्दर रचना
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