पिछले १५-२० दिन से भोपाल से बाहर रहने के कारण नेट से दूरी बनी रही. अभी दिसंबर माह शुरू हुआ तो भोपाल गैस त्रासदी का वह भयावह मंजर आँखों में कौंधने लगा. अपनी आँखों के सामने घटी इस त्रासदी के भयावह दृश्य कई वर्ष बाद भी दिन-रात आँखों में उमड़ते-घुमड़ते हुए मन को बेचैन करते रहे. उस समय अपनी भूल अक्सर उन पीड़ित घर-परिवारों की दशा देख-सुनकर मन बार-बार उन्हीं के इर्द-गिर्द घूम-घूम कर व्यथित हुए बिना नहीं रह पाता था और जब-जब कोई भी पीड़ित व्यक्ति अपनी व्यथा सुनाता था तो मन गहरी संवेदना से भर उठता और क्या करें, क्या नहीं की उधेड़बुन में खोकर बेचैन हो जाता . कई बार सोचा कि उस घटना का अपने ब्लॉग पर विस्तृत वर्णन करुँगी लेकिन अब तो आलम यह है व्यस्तता के चलते कब दिसंबर का माह आ जाता है पता ही नहीं चलता. फ़िलहाल ऐसे ही हालातों में उन दिनों की लिखी एक आँखों देखी त्रासद भरी जीवंत घटना का काव्य रूप प्रस्तुत कर रही हूँ...
वो पास खड़ी थी मेरे
दूर कहीं की रहने वाली,
दिखती थी वो मुझको ऐसी
ज्यों मूक खड़ी हो डाली।
पलभर उसके ऊपर उठे नयन
पलभर नीचे थे झपके,
पसीज गया यह मन मेरा
जब आँसू उसके थे टपके।
वीरान दिखती वो इस कदर
ज्यों पतझड़ में रहती डाली,
वो मूक खड़ी थी पास मेरे
दूर कहीं की रहने वाली।।
समझ न पाया मैं दु:ख उसका
जाने वो क्या चाहती थी,
सूनापन दिखता नयनों में
वो पल-पल आँसू बहाती थी।
निरख रही थी सूनी गोद वह
और पसार रही थी निज झोली
जब दु:ख का कारण पूछा मैंने
तब वह तनिक सहमकर बोली-
'छिन चुका था सुहाग मेरा
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
'असहाय वेदना' थी यह उसकी
गोद हुई थी उसकी खाली,
वो दुखियारी पास खड़ी थी
दूर कहीं की रहने वाली।।
दूर कहीं की रहने वाली,
दिखती थी वो मुझको ऐसी
ज्यों मूक खड़ी हो डाली।
पलभर उसके ऊपर उठे नयन
पलभर नीचे थे झपके,
पसीज गया यह मन मेरा
जब आँसू उसके थे टपके।
वीरान दिखती वो इस कदर
ज्यों पतझड़ में रहती डाली,
वो मूक खड़ी थी पास मेरे
दूर कहीं की रहने वाली।।
समझ न पाया मैं दु:ख उसका
जाने वो क्या चाहती थी,
सूनापन दिखता नयनों में
वो पल-पल आँसू बहाती थी।
निरख रही थी सूनी गोद वह
और पसार रही थी निज झोली
जब दु:ख का कारण पूछा मैंने
तब वह तनिक सहमकर बोली-
'छिन चुका था सुहाग मेरा
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
'असहाय वेदना' थी यह उसकी
गोद हुई थी उसकी खाली,
वो दुखियारी पास खड़ी थी
दूर कहीं की रहने वाली।।
...कविता रावत
60 टिप्पणियां:
एक त्रासद भरी याद के बजाय शायद एक त्रासदी भरी याद या एक त्रासद याद या त्रासदी भरी एक याद कहना बेहतर हो. (त्रासद - त्रास देने वाला/वाली)
बहुत मार्मिक ....
इस दर्द के साथ हूँ, और क्या कहूँ
उस त्रासदी के घाव रह रह हमें पीड़ा देंगे।
बहुत मार्मिक..
कविता जी
उस त्रासदी की हमे भी पीड़ा है,
मार्मिक सुंदर पोस्ट ....
मेरे पिछले पोस्ट -शब्द-में आपका स्वागत है ,
Uf! Sach kitna satatee hongee wo yaden!
Rachana bahut achhee ban padee hai.
बहुत ही मार्मिक यादे है...
behad marmik....
हां बहुत त्रासद है उस रात को याद करना.
uff bahut hi dil dehla dene wala prasang.
सच बड़ी भयानक त्रासदी थी ..... मार्मिक रचना
मार्मिक रचना
मार्मिक!
दिल छुने वाली घटना।
भयानक त्रासदी थी वह।
जख्म अब भी हरे हैं....
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!चर्चा मंच में शामिल होकर चर्चा को समृद्ध बनाएं....
सुगढ़ अंतरस्पर्शी रचना....
सादर...
बहुत सुन्दर. उस त्रासदी में जिन हजारों ने अपने प्राणों की आहुति दी है उनके लिए श्रद्धांजलि. यह भी एक औपचरिकता बन कर रह गयी है.
कई बार सोचा कि उस घटना का अपने ब्लॉग पर विस्तृत वर्णन करुँगी
आपको अवश्य ही अपना पूरा का पूरा संस्मरण विस्तार से सिलसिलेवार लिखना चाहिए. जल्द ही लिख डालें. 3 दिसम्बर को ही प्रकाशित हो ये जरूरी नहीं.
इस त्रासदी को एक याद भी नहीं कह सकते कभी एक पल को भी नहीं भूले हों जिसे वो याद कैसे हो सकती ये तो ज़ख्म है वह भी हरा...क्या कहें शब्द ही नहीं हैं... मार्मिक रचना
kuchh zakhm kabhee nahee bharte
bahut sundar
बहुत मार्मिक पोस्ट त्रासदी में जिन हजारों ने अपने प्राणों की आहुति दी है उनके लिए श्रद्धांजलि. यह दुखद स्थिति है की यह आज भी एक औपचरिकता बन कर रह गयी है.
हमारे समाज में इस तरह की कई महिलाये है जो त्रासदी को
झेल रही है ...बहुत ही मार्मिक रचना लिखा है आपने.. !
बेहद मर्मस्पर्शी ।
उफ़ ………निशब्द कर दिया।
हर साल जख्म हरे हो जाते हैं...दिसंबर में...
सार्थक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । आभार.।
आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
'छिन चुका था सुहाग मेरा
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
'असहाय वेदना' थी यह उसकी
गोद हुई थी उसकी खाली,
वो दुखियारी पास खड़ी थी
दूर कहीं की रहने वाली।।
आपने मार्मिक कविता के माध्यम से कभी न भूलने वाली त्रासदी को जीवंत बना दिया है..
बहुत बहुत आभार!
पलभर उसके ऊपर उठे नयन
पलभर नीचे थे झपके,
पसीज गया यह मन मेरा
जब आँसू उसके थे टपके।
वीरान दिखती वो इस कदर
ज्यों पतझड़ में रहती डाली,
वो मूक खड़ी थी पास मेरे
दूर कहीं की रहने वाली।।
...मूक कर देनी वाली दुर्घटना का हुबहू चित्रण पढ़कर मन में गहरी संवेदना उमड़ने लगी है.. शब्द नहीं सूझ रहे...
हर त्रासदी अपने पीछे एक गम , आंसू और भयावह तस्वीर छोड़ जाता है ! भोपाल त्रासदी वाकई गंभीर मसाला है ! आज भी लोग इसके त्रासदी से मुक्त नहीं हो पाए है !आखिर ऐसा कब तक ?
बहुत मार्मिक मार्मिक रचना ..आभार.।
बहुत ही मार्मिक लिखा है आपने।
सादर
कल 06/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत ही मार्मिक ...
यह त्रासदी हम सबको जीवन भर त्रास देता रहेगा..
जितनी मार्मिक घटना थी, उतनी ही मार्मिक कविता भी .
Maarmik ... Jisne is trasadi ko bhugta hai vahi iska dard jaan sakta hai ...
कभी न भुला सकने वाली दु:खद घटना...
ऐसी घटना को भूलना तो संभव ही नहीं है दुःख तो इस बात का है कि हमने इससे कुछ विशेष सीखा भी नहीं है.
भोपाल गैस त्रासदी के बाद की त्रासदी कम पीड़ादायक है क्या ?
दिल को छू गई! मार्मिक पोस्ट!
बहुत मार्मिक रूप से चित्रित रचना ..
भुक्तभोगियों के लिए अब भी यह त्रासदी कम नहीं है ....
कविता जी , इस सुंदर कविता के माध्यम से अपने गैस त्रासदी का बहुत मार्मिक एवं ह्रदय विदारक दृश्य प्रस्तुत किया है. क्या कहूँ , कुछ कहने में अपने को असमर्थ पाता हूँ.
मार्मिक घटना..मार्मिक कविता ..
यह त्रासदी हम भोपाल वासियों को बार बार त्रास देता रहेगा..
मार्मिक रचना
अंतस के भावों से सुंदर शब्दों में पिरोयी गयी आपकी रचना बेहद ही अच्छी लगी । मरे नए पोस्ट "आरसी प्रसाद सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
भोपाल की घटना जीवन भर त्रास देने वाली ही है।
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
बहुत मार्मिक दृश्य को दिखाती रचना
कविता जी त्रासदी का बहुत मार्मिक एवं ह्रदय विदारक दृश्य प्रस्तुत किया है. यह दर्द यूँ ही आजीवन भर सालता रहेगा...
'छिन चुका था सुहाग मेरा
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
.कविता में यथार्थ चित्रण उपस्थित होकर मन में उतर कर बहुत पीड़ा पहुंचा गया...
मार्मिक क्षणों को भूलना कठिन होता है. और भोपाल की त्रासदी का भयावह रूप....क्या कहा जाए
भोपाल में घटी यह दुर्घटना जीवन भर त्रास देने वाली ही है...मार्मिक आलेख और उतनी ही मार्मिक कविता ...
rachna behad jeevant hai...trasdi ki yaad dila gayi....
fursat ke kuch pal mere blog ke saath bhi bitaiye...achha lagega..
गहरी सहानुभूति प्रतीत होती है इस रचना में
Achhi rachna.
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
बहुत ही मार्मिक रचना
बहुत ही मार्मिक ... मार्मिक क्षणों को भूलना कठिन होता है. और भोपाल की त्रासदी का भयावह रूप
बहुत मामिक पंग्तियाँ
गहन भावों से भरा कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
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