असह्य वेदना | भोपाल गैस त्रासदी की दर्दभरी दास्‍तां | Bhopal disaster | - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

असह्य वेदना | भोपाल गैस त्रासदी की दर्दभरी दास्‍तां | Bhopal disaster |


जैसे ही प्रतिवर्ष दिसंबर माह शुरू होता है तो भोपाल गैस त्रासदी का वह भयावह मंजर आँखों में कौंधने लगता है। अपनी आँखों के सामने घटी इस त्रासदी के भयावह दृश्य कई वर्ष बाद भी आँखों में उमड़ते-घुमड़ते हुए मन को बेचैन कर देती है। उस समय की यादें अक्सर उन सभी पीड़ित घर-परिवारों की दशा देख-सुनकर मन बार-बार उन्हीं के इर्द-गिर्द घूम-घूम कर मन को व्यथित कर देता है। जब-जब कोई भी पीड़ित व्यक्ति अपनी व्यथा सुनाता था तो मन गहरी संवेदना से भर उठता और क्या करें, क्या नहीं की उधेड़बुन में खोकर बेचैन होने लगता।  आज ब्लॉग पर तत्समय की हालातों में उन दिनों की लिखी एक आँखों देखी त्रासद भरी जीवंत घटना का काव्य रूप प्रस्तुत कर रही हूँ।   

वो पास खड़ी थी मेरे
        दूर कहीं की रहने वाली,
दिखती थी वो मुझको ऐसी
        ज्यों मूक खड़ी हो डाली।
पलभर उसके ऊपर उठे नयन
       पलभर नीचे थे झपके,
पसीज गया यह मन मेरा
      जब आँसू उसके थे टपके।
वीरान दिखती वो इस कदर
      ज्यों पतझड़ में रहती डाली,
वो मूक खड़ी थी पास मेरे
      दूर कहीं की रहने वाली।।
समझ न पाया मैं दु:ख उसका
     जाने वो क्या चाहती थी,
सूनापन दिखता नयनों में
     वो पल-पल आँसू बहाती थी।
निरख रही थी सूनी गोद वह
    और पसार रही थी निज झोली
जब दु:ख का कारण पूछा मैंने
      तब वह तनिक सहमकर बोली-
'छिन चुका था सुहाग मेरा
     किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
     खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
'असहाय वेदना' थी यह उसकी
     गोद हुई थी उसकी खाली,
वो दुखियारी पास खड़ी थी 
      दूर कहीं की रहने वाली।।

...कविता रावत 

61 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

एक त्रासद भरी याद के बजाय शायद एक त्रासदी भरी याद या एक त्रासद याद या त्रासदी भरी एक याद कहना बेहतर हो. (त्रासद - त्रास देने वाला/वाली)

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत मार्मिक ....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

इस दर्द के साथ हूँ, और क्या कहूँ

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उस त्रासदी के घाव रह रह हमें पीड़ा देंगे।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मार्मिक..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

कविता जी
उस त्रासदी की हमे भी पीड़ा है,
मार्मिक सुंदर पोस्ट ....
मेरे पिछले पोस्ट -शब्द-में आपका स्वागत है ,

kshama ने कहा…

Uf! Sach kitna satatee hongee wo yaden!
Rachana bahut achhee ban padee hai.

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही मार्मिक यादे है...

सागर ने कहा…

behad marmik....

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

हां बहुत त्रासद है उस रात को याद करना.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

uff bahut hi dil dehla dene wala prasang.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच बड़ी भयानक त्रासदी थी ..... मार्मिक रचना

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

मार्मिक रचना

अनुपमा पाठक ने कहा…

मार्मिक!

मनोज कुमार ने कहा…

दिल छुने वाली घटना।

Atul Shrivastava ने कहा…

भयानक त्रासदी थी वह।
जख्‍म अब भी हरे हैं....

Atul Shrivastava ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!चर्चा मंच में शामिल होकर चर्चा को समृद्ध बनाएं....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सुगढ़ अंतरस्पर्शी रचना....
सादर...

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत सुन्दर. उस त्रासदी में जिन हजारों ने अपने प्राणों की आहुति दी है उनके लिए श्रद्धांजलि. यह भी एक औपचरिकता बन कर रह गयी है.

रवि रतलामी ने कहा…

कई बार सोचा कि उस घटना का अपने ब्लॉग पर विस्तृत वर्णन करुँगी

आपको अवश्य ही अपना पूरा का पूरा संस्मरण विस्तार से सिलसिलेवार लिखना चाहिए. जल्द ही लिख डालें. 3 दिसम्बर को ही प्रकाशित हो ये जरूरी नहीं.

संध्या शर्मा ने कहा…

इस त्रासदी को एक याद भी नहीं कह सकते कभी एक पल को भी नहीं भूले हों जिसे वो याद कैसे हो सकती ये तो ज़ख्म है वह भी हरा...क्या कहें शब्द ही नहीं हैं... मार्मिक रचना

Nirantar ने कहा…

kuchh zakhm kabhee nahee bharte

bahut sundar

vijay ने कहा…

बहुत मार्मिक पोस्ट त्रासदी में जिन हजारों ने अपने प्राणों की आहुति दी है उनके लिए श्रद्धांजलि. यह दुखद स्थिति है की यह आज भी एक औपचरिकता बन कर रह गयी है.

Jeevan Pushp ने कहा…

हमारे समाज में इस तरह की कई महिलाये है जो त्रासदी को
झेल रही है ...बहुत ही मार्मिक रचना लिखा है आपने.. !

सदा ने कहा…

बेहद मर्मस्‍पर्शी ।

vandana gupta ने कहा…

उफ़ ………निशब्द कर दिया।

Vaanbhatt ने कहा…

हर साल जख्म हरे हो जाते हैं...दिसंबर में...

प्रेम सरोवर ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । आभार.।

Dinesh pareek ने कहा…

आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

pratibha ने कहा…

'छिन चुका था सुहाग मेरा
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
'असहाय वेदना' थी यह उसकी
गोद हुई थी उसकी खाली,
वो दुखियारी पास खड़ी थी
दूर कहीं की रहने वाली।।

आपने मार्मिक कविता के माध्यम से कभी न भूलने वाली त्रासदी को जीवंत बना दिया है..
बहुत बहुत आभार!

बेनामी ने कहा…

पलभर उसके ऊपर उठे नयन
पलभर नीचे थे झपके,
पसीज गया यह मन मेरा
जब आँसू उसके थे टपके।
वीरान दिखती वो इस कदर
ज्यों पतझड़ में रहती डाली,
वो मूक खड़ी थी पास मेरे
दूर कहीं की रहने वाली।।
...मूक कर देनी वाली दुर्घटना का हुबहू चित्रण पढ़कर मन में गहरी संवेदना उमड़ने लगी है.. शब्द नहीं सूझ रहे...

G.N.SHAW ने कहा…

हर त्रासदी अपने पीछे एक गम , आंसू और भयावह तस्वीर छोड़ जाता है ! भोपाल त्रासदी वाकई गंभीर मसाला है ! आज भी लोग इसके त्रासदी से मुक्त नहीं हो पाए है !आखिर ऐसा कब तक ?

बेनामी ने कहा…

बहुत मार्मिक मार्मिक रचना ..आभार.।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही मार्मिक लिखा है आपने।


सादर

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 06/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

बेनामी ने कहा…

बहुत ही मार्मिक ...
यह त्रासदी हम सबको जीवन भर त्रास देता रहेगा..

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

जितनी मार्मिक घटना थी, उतनी ही मार्मिक कविता भी .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Maarmik ... Jisne is trasadi ko bhugta hai vahi iska dard jaan sakta hai ...

Archana Chaoji ने कहा…

कभी न भुला सकने वाली दु:खद घटना...

रचना दीक्षित ने कहा…

ऐसी घटना को भूलना तो संभव ही नहीं है दुःख तो इस बात का है कि हमने इससे कुछ विशेष सीखा भी नहीं है.

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

भोपाल गैस त्रासदी के बाद की त्रासदी कम पीड़ादायक है क्या ?

Urmi ने कहा…

दिल को छू गई! मार्मिक पोस्ट!

Surya ने कहा…

बहुत मार्मिक रूप से चित्रित रचना ..
भुक्तभोगियों के लिए अब भी यह त्रासदी कम नहीं है ....

aarkay ने कहा…

कविता जी , इस सुंदर कविता के माध्यम से अपने गैस त्रासदी का बहुत मार्मिक एवं ह्रदय विदारक दृश्य प्रस्तुत किया है. क्या कहूँ , कुछ कहने में अपने को असमर्थ पाता हूँ.

pankaj ने कहा…

मार्मिक घटना..मार्मिक कविता ..

बेनामी ने कहा…

यह त्रासदी हम भोपाल वासियों को बार बार त्रास देता रहेगा..
मार्मिक रचना

प्रेम सरोवर ने कहा…

अंतस के भावों से सुंदर शब्दों में पिरोयी गयी आपकी रचना बेहद ही अच्छी लगी । मरे नए पोस्ट "आरसी प्रसाद सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

भोपाल की घटना जीवन भर त्रास देने वाली ही है।

सुंदर भावाभिव्यक्ति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत मार्मिक दृश्य को दिखाती रचना

Dolly ने कहा…

कविता जी त्रासदी का बहुत मार्मिक एवं ह्रदय विदारक दृश्य प्रस्तुत किया है. यह दर्द यूँ ही आजीवन भर सालता रहेगा...
'छिन चुका था सुहाग मेरा
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
.कविता में यथार्थ चित्रण उपस्थित होकर मन में उतर कर बहुत पीड़ा पहुंचा गया...

Bharat Bhushan ने कहा…

मार्मिक क्षणों को भूलना कठिन होता है. और भोपाल की त्रासदी का भयावह रूप....क्या कहा जाए

बेनामी ने कहा…

भोपाल में घटी यह दुर्घटना जीवन भर त्रास देने वाली ही है...मार्मिक आलेख और उतनी ही मार्मिक कविता ...

anita agarwal ने कहा…

rachna behad jeevant hai...trasdi ki yaad dila gayi....
fursat ke kuch pal mere blog ke saath bhi bitaiye...achha lagega..

Vandana Ramasingh ने कहा…

गहरी सहानुभूति प्रतीत होती है इस रचना में

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग ने कहा…

Achhi rachna.

प्रेम सरोवर ने कहा…

इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही मार्मिक रचना

Dr. Sanjay ने कहा…

बहुत ही मार्मिक ... मार्मिक क्षणों को भूलना कठिन होता है. और भोपाल की त्रासदी का भयावह रूप

Mamta Bajpai ने कहा…

बहुत मामिक पंग्तियाँ

प्रेम सरोवर ने कहा…

गहन भावों से भरा कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सी यादें उभर आई .... गहरा भाव लिये रचना ...