छोटू की कोई अपनी बपौती नहीं, वह हक़ से कूड़े के ढ़ेर पर भी अपना अधिकार नहीं जता पाता. जब कभी उसने ऐसी हिमाकत करने की कोशिश की तो मोहल्ले भर के भुक्कड़ कुत्तों ने उसे खदेड़ने की एकजुट होकर पुरजोर कोशिश कर डाली। लेकिन हर बार हर किसी की चल जाय, ऐसा प्राय:नहीं होता । छोटू भी हार मानने वालों में नहीं। उसने भी इन भुक्कड़ कुत्तों की औकात जल्दी ही नाप ली । वह बखूबी समझ गया है कि ये आवारा कुत्ते पालतू हाइब्रिड कुत्तों की तुलना में कहीं ज्यादा समझदार और संवेदनशील हैं। उसने बस दो-चार बार कूड़े के ढ़ेर से मिले चंद रोटी, ब्रेड के टुकड़े इनके आगे डालकर पुचकार भर लिया है, बस फिर हो गयी दांत काटी रोटी वाली दोस्ती।

छोटू शहर के व्यस्ततम बाजार में अपना कोई चायनीज फ़ूड जैसा स्टाल भी नहीं लगाता, फिर भी वह तो स्टाल पर चाउमीन, सांभर-बड़ा, इडली-डोसा, चाट, फुलकी की रंगत में रंगा हर आने-जाने वाले ग्राहकों की सेवा में तत्पर रहता है।
भले इस छोटू से हमारा भी लगाव हो गया, सोचता हूँ पूरे भारत में ऐसे कितने छोटू होंगे जिन्हें समाज प्यार भी करता हो और वंचित भी रखे हुए है.
ReplyDeleteबहुत ही भावुक और समाज पर एक करारा व्यंग
ReplyDeleteसमाज के ये सर्वथा उपेक्षित लोग मुफ्त में हमारा काम जो आसान करने में रात दिन लगे रहते हैं इसीलिए हमें इनकी चिंता क्यों होगी? मुफ्त का काम अच्छा ही लगता है आज सभी को !
ReplyDeleteहमारे आस की एक जबरदस्त सच्चाई को बड़ी ही मासूमियत से प्रस्तुत करने के लिए आपका शुक्रिया!!!
इस छोटू को मैंने हर जगह देखा है ....अक्सर बेमतलब पिटते रहने से उसकी खाल मोटी होती जा रही है ...छोटू वक़्त और किस्मत को कोसता नहीं ...वह मुसकुराता रहता है हर उस मुस्कुराहट को देख कर जो उसे देख कर मुसकुराती तो है लेकिन उसके मन को शायद महसूस नहीं कर पाती।
ReplyDeleteसादर
सच्चाई को बड़ी ही भावुकता से प्रस्तुत करने के लिए आपका.....आभार कविता जी./
ReplyDeleteMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
जिसमें ख़ुशी ढूंढ लें हम जीने के लिए ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteमुसीबत के मारे छोटू के पास कोई विकल्प नहीं.. कौन देगा उसे विकल्प..स्कूल से लेकर दफ्तर, देश विदेश सबकुछ उसका यही है तभी तो वह खुश रहता है और हम सबको कुछ लगता है ..हम खुश तो वह खुश!!!!!
ReplyDeleteअपनी ख़ुशी के आगे ..अपने लिए सोचने के अलावा आज हमारे पास कुछ और है ही नहीं .....
बहुत गंभीर विचारणीय पोस्ट..आपका आभार
.... छोटू...न जाने कितने छोटू....आह !
ReplyDeleteदेश में करोड़ों बच्चों की शायद यही नियति है .
ReplyDeleteहम अभी भी आर्थिक सम्पन्नता की दृष्टि से इथियोपिया जैसे देशों की श्रेणी में आते हैं .
लेकिन घुट घुट कर मरने से अच्छा तो अपने काम को एन्जॉय करना ही है .
बढ़िया लघु कथा .
भावमय करती छोटू की कहानी ...
ReplyDeleteYe chhoti-si kahanee kitna kuchh sikha jatee hai!
ReplyDeletebahut sundar kahaani......aise na jane kitne chhotu hume shahron me yahan-vahan bikhre kudon ke dheron ke aaspaas ghumte milte hain, jinhe dekhkar man me sahaanubhuti to paida hoti hai magar kuchh kar nahi pate aur apni raah pakad kar nikal padte hain aage, aisi chhoti-chhoti kahaniyan-kisse, man ko udwelit kar dete hain.......!
ReplyDeleteवह बखूबी समझ गया है कि ये आवारा कुत्ते पालतू हाइब्रिड कुत्तों की तुलना में कहीं ज्यादा समझदार और संवेदनशील हैं।
ReplyDelete..............................................
ऐसा मत कहिये इन राजसी ठाट-बाट वाले प्राणियों को ..एक तरह की गाली है यह उनके लिए...
.....
गरीब लाचार जब भूख प्यास से तड़फकर मरता है
तब तस्वीर में वह करोड़ों में खेलता नज़र आता है
..क्या कहिये..... लाजवाब
वर्तमान दशा का सटीक आकलन....
ReplyDeleteछोटू ! शभ्य एवं शिक्षित समाज का दायाँ हाथ ! या फिर उसकी हकीकत .....?
ReplyDeleteगंभीर विचारणीय पोस्ट हेतु आपका आभार.
chhootoo jaise bachchon ko insaf milna hi chahiye .is umr mr unka kaam karna samaj ke munh par tamacha hai .sarthak post .aabhar .
ReplyDeletelike this page and wish indian hockey team for London olympic
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteअरुन (arunsblog.in)
har garib bache ko aakhir me haarkar chottu hi bnna pdta hai.. jo uska bhala sochta hai uske paas madad krne k liye kuch hota nahi.. jiske paas sab kuch hota hai wo sochta nhi...
ReplyDeleteबहुत कुछ दिखा और सीखा रही है यह छोटू की छोटी सी कहानी... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteएक छोटू बेटे के हॉस्टल में भी है.......................
ReplyDeleteजो बड़ा होना चाहता है............
क्या छोटू कभी बड़ा बनेगा?????
सादर.
जहाँ भी जाते हैं, कोई न कोई छोटू दिख जाता है।
ReplyDeleteकौन ध्यान देगा इन छोटुओं के प्रति ?....कब हम बचपन को सिर्फ़ छोटू बनने से रोक पायेंगे ?...अंतस को झकझोरती प्रभावी प्रस्तुति...
ReplyDeleteछोटू कोई एक नहीं है बल्कि सब जगह मौजूद है और हर जगह इसी तरह मुसकुराते गालियाँ सुनने को मजबूर है.
ReplyDeleteहर जगह मौजूद है यह छोटू ...
ReplyDeleteइन छोटुओं के पास समाज को देने के लिए बहुत कुछ है।
ReplyDeleteइन छोटुओं की मेहरबानी से इस समाज में हम
ReplyDeleteबड़े बने हुए हैं .....???
आभार है इनका !
छोटुओं को लेकर वाजिब चिंता....
ReplyDeleteआशा है कि इस जद्दोजहद का परिणाम चमकीला होगा. छोटू एक दिन बड़ा होगा.
ReplyDeleteआज तो याद करने का दिन है..
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक आलेख के लिए धन्यवाद
छोटू शहर के व्यस्ततम बाजार में अपना कोई चायनीज फ़ूड जैसा स्टाल भी नहीं लगाता, फिर भी वह तो स्टाल पर चाउमीन, सांभर-बड़ा, इडली-डोसा, चाट, फुलकी की रंगत में रंगा हर आने-जाने वाले ग्राहकों की सेवा में तत्पर रहता है।
ReplyDelete..हर जगह है छोटू ,,,,, पर देखने वाला ...समझने वाला उसे कोई नहीं..
मजदूर दिवस पर सार्थक बहुत विचारनीय लेख ...
आपका बहुत आभार !
छोटू नहीं रहेगा तो हमारा क्या होगा! यही चिंता है सताती है हर किसी को ... में बैठकर गंभीर विचार मंथन चलता रहता है लेकिन छोटू बेटा कुछ नहीं देख पाता........... लगा है हमारे काम पर...
ReplyDeleteमैम आपको फेसबुक पर देखती हूँ आज ब्लॉग पर इधर उधर भटकते लिंक देख कर आयी हूँ
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छा लिखती है आप..............
मजदूर दिवस पर हम लोग जरुर एक दो दिन थोडा बहुत चिंता करते हैं लेकिन असली बात तो यही है की यह सिर्फ बंद कमरों के फाइलों में ही बंधुवा मजबूर बनकर रह जाता है.......................
छोटू की सच्ची तस्वीर दिखाकर लोगों को उनके प्रति सच्ची हमदर्दी का यह प्रयास बहुत अनुकर्णीय है .. surekha
निष्ठुर समाज में ये छोटू न जाने किस ज़ुर्म की सज़ा भुगत रहे हैं!
ReplyDeleteबधाई .
ReplyDeleteमार्मिक बुनावट है इस लघु कथा की जिसका भाव फलक बड़ा व्यापक है एक दृष्टि छिपाए है एक अंदाज़ खुश रहने अनुकूलन करने का .ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए ,न हो कमीज़ तो पांवों से पेट ढक लेंगें ...
बुधवार, 2 मई 2012
" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
कविताजी, पहली बार आपका ब्लाग देखा अच्छा लगा। छोटू की जीवटता को पहचानने की नजर आपके पास है। बधाई, सवाल यही है कि हम और आप ऐसे छोटुओं के कितने आंसू पोछ पाते हैं।
ReplyDeleteकविताजी, पहली बार आपका ब्लाग देखा अच्छा लगा। छोटू की जीवटता को पहचानने की नजर आपके पास है। बधाई, सवाल यही है कि हम और आप ऐसे छोटुओं के कितने आंसू पोछ पाते हैं।
ReplyDeleteन जाने कितने छोटू है,अंतस को झकझोरती प्रभावी प्रस्तुति....
ReplyDeleteMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
एक छोटू ढूढने पर जाने कितने ही छोटू बहुत आसानी से मिल जाते हैं ............... इनको पूछ परख वाला ऊपर वाला है ....
ReplyDeleteअभिजात्य वर्ग को यह छोटू बहुत पसंद है .... पर सिर्फ काम के लिए ....
ब्लॉग पोस्ट अच्छी लगी... .
सादर
छोटू के जीवन कों सही उकेरा है आपने इस पोस्ट में ... हजारों छोटू ऐसे भी व्यस्त हैं मस्त हैं अपने जीवन में ... पर काश कोइ कुछ प्रेरणा ले पाए उनसे ...
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक आलेख
ReplyDeleteसमाज पर एक करारा व्यंग
मजदूर की हक़ में कुछ नहीं ..खुश रहना के अलावा और चारा ही क्या है....हर हाल में खुश रहने की मजबूरी ...
ReplyDeleteकविता जी नमस्कार,
ReplyDeleteहमें बताते हुए हर्श् हो रहा है कि पूर्व में हुई चर्चा के अनुसार हम आपके ब्लाग पोस्ट में लिखे गए लेख को अपने दैनिक समाचार पत्र भास्कर भूमि में प्रकाशित कर रहे हैं। अखबार की प्रति आप तक भेजने के लिए अपना पता और ईमेल आईडी भास्कर भूमि के आईडी में प्रेशित करने की कृपा करें।
धन्यवाद
This comment has been removed by the author.
Deleteयह रचना प्रभावशाली है कविता जी ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
हर जगह हैं छोटू ........ इनके बिना काम नहीं चलता.... हँसते खेलते अपने काम में मस्त लेकिन उनके मन की थाह लेने को कोई तैयार नहीं .....
ReplyDelete.................सादर
हमेशा से प्रासंगिक विषय ...........
ReplyDeleteनियति के हाथों मजबूर हो कर समय से पहले ही बडे हो गए छोटू ने "ईदगाह" के हामिद और " छोटा जादूगर" कहानी के छोटा जादूगर की याद दिला दी.
ReplyDeleteसुंदर, सामयिक आलेख
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ReplyDeleteजीवन कितना भी सम्पूर्ण क्यु न हो पर एक दूसरे से इस कदर जुडा हुआ है कि किसी एक कि कमी भी उसे आगे बढते रहने से रोक सकती है पर इंसान अपने मद में इतना चूर हो जाता है कि उसे आसपास के लोग दिखाई ही नहीं देते | गरीबी उन्हें इस कदर चुभती है जैसे वो एक गंभीर बीमारी हो जवकि सच तो ये है कि यही गरीब लोग इनको सहारा देकर उप्पेर उठने में मददगार होते हैं |
ReplyDeleteसार्थक लेख |
नमस्कार। आप मेरे ब्लाग तक आए और आपने प्रोत्साहित किया आपका आभार। आप बहुत अच्छा लिखती है पढ़ना अच्छा लगता है । आपको साधुवाद
ReplyDeleteछोटू की अपनी कोई दुकान नहीं है। वह तो हर दिन ठेले से चाय ले जाकर आस-पास के सरकारी, गैर सरकारी दफ्तरों में चाय पिलाने में मस्त रहता है। दफ्तरों में कौन क्या काम करता है, क्या सोचता-विचारता है, क्या क़ानून-कायदा बनाता बिगाड़ता रहता है, वह इन सबके तीन पांच में कभी नहीं पड़ता। वह इन दफ्तरों की भाषा शैली से भले वाकिफ न हो पाता हो लेकिन अपनी कट चाय, फुल चाय ज्यादा से ज्यादा कर्मचारियों को पिलाने के लिए किस भाषा शैली का प्रयोग करना है, वह बखूबी जानता है। अपने काम में बंधे, जुटे कर्मचारी उसके लिए कभी सोचे-विचारे, किसी तरह की मदद करे, इसकी वह कोई अपेक्षा नहीं रखता. सबको वह खुशमिजाज दिखता है, सभी की जुबां पर उसका नाम है, बस यही सोच वह खुश हो लेता है।
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हज़ारों छोटू ऐसे ही खुश रहते हैं। उनकी नियति यही है। और करें भी क्या? अपना और उससे ज़्यादा परिवार का पेट पालना है।
हज़ारों छोटू ऐसे ही खुश रहते हैं।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना.........
कविता जी,
ReplyDeleteपूर्व में हुई चर्चा के अनुसार आपके ब्लॉग से कुछ लेख को अपने दैनिक समचार पत्र भास्कर भूमि में प्रकाशित किया है। अखबार की प्रतियां आप तक भेजना चाहते है। आप अपने घर की पता भेजने की कृपा करे.......bhaskhar.bhumi.rjn@gmail.com
भास्कर भूमि का ई पेपर देखे......www.bhaskarbhumi.com
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ReplyDeleteExcellent Working Dear Friend Nice Information Share all over the world.God Bless You.
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