छोटू की कोई अपनी बपौती नहीं, वह हक़ से कूड़े के ढ़ेर पर भी अपना अधिकार नहीं जता पाता. जब कभी उसने ऐसी हिमाकत करने की कोशिश की तो मोहल्ले भर के भुक्कड़ कुत्तों ने उसे खदेड़ने की एकजुट होकर पुरजोर कोशिश कर डाली। लेकिन हर बार हर किसी की चल जाय, ऐसा प्राय:नहीं होता । छोटू भी हार मानने वालों में नहीं। उसने भी इन भुक्कड़ कुत्तों की औकात जल्दी ही नाप ली । वह बखूबी समझ गया है कि ये आवारा कुत्ते पालतू हाइब्रिड कुत्तों की तुलना में कहीं ज्यादा समझदार और संवेदनशील हैं। उसने बस दो-चार बार कूड़े के ढ़ेर से मिले चंद रोटी, ब्रेड के टुकड़े इनके आगे डालकर पुचकार भर लिया है, बस फिर हो गयी दांत काटी रोटी वाली दोस्ती।

छोटू शहर के व्यस्ततम बाजार में अपना कोई चायनीज फ़ूड जैसा स्टाल भी नहीं लगाता, फिर भी वह तो स्टाल पर चाउमीन, सांभर-बड़ा, इडली-डोसा, चाट, फुलकी की रंगत में रंगा हर आने-जाने वाले ग्राहकों की सेवा में तत्पर रहता है।