बदलती परिस्थितियाँ और रक्षाबन्धन - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 29 जुलाई 2012

बदलती परिस्थितियाँ और रक्षाबन्धन

कहा जाता है किसी देश की संस्कृति उसका हृदय व मस्तिष्क दोनों ही होती हैं  जनमानस प्रसन्नता और खुश होकर आनंदपूर्वक जीवन यापन कर सके, यही तो जीवन का लक्ष्य है  इसका उत्तरदायित्व उस देश की संस्कृति पर ही निर्भर करता है, यह बात हमारी उत्सव प्रधान भारतीय संस्कृति से स्वयं सिद्ध हो जाती है। यहाँ का जनजीवन पर्वों के उल्लास, उमंग से हमेशा तरोताजा बना रहता है। हर ऋतु में उत्सव है, त्यौहार है, जिसमें जीवन जीने का एक नवीन दृष्टिकोण समाहित है। यही कारण है कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी झोंपड़ी में रहकर भी जीवन की सुगंध से भरपूर जीवन सुख जान लेता  है रिमझिम बरसते सावन के बीच भाई-बहिन के लिए अद्भुत, अमूल्य व अनंत प्यार का पारिवारिक पर्व रक्षाबंधन हमारे द्वार खड़ा है। अन्य पर्व की भांति इस पर्व की शुरुआत के किस्से भी कम रोचक नहीं हैं। जहाँ एक प्राचीन मान्यता के अनुसार सर्वप्रथम इन्द्र की पत्नी शची ने अपने पति की विजय एवं मंगलकामना से प्रेरित होकर उनको रक्षा सूत्र बांधकर इस परंपरा की शुरुआत की, ऐसा माना जाता है। वहीँ दूसरी मान्यता है कि श्रावण मास में ऋषिगण आश्रम में रहकर स्वाध्याय और यज्ञ करते थे, जिसकी पूर्णाहुति श्रावण पूर्णिमा को होती थी। इसमें ऋषियों के लिए तर्पण कर्म भी होता था, जिसमें नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता था, जिससे इसका नाम 'श्रावणी उपाकर्म' पड़ा। इसके अंत में रक्षा सूत्र बाँधने की प्रथा थी, यही प्रथा कालांतर में 'रक्षाबंधन' कहलाने लगा। इसी प्रतिष्ठा का निर्वहन करते हुए आज भी इस दिन ब्राह्मणगण यजमान को 'रक्षा सूत्र' बाँधते हैं   मुस्लिम काल में यही 'रक्षा सूत्र' अथार्थ 'राखी' बन गया जिसमें हिन्दू नारी अपनी रक्षार्थ किसी भी विजातीय वीर पुरुष को 'राखी' बांधकर अपना भाई मान लेती थी। मेवाड़ की वीरांगना कर्मवती का हुमायूँ को 'रक्षी' भेजना इसका प्रमाण माना जाता है। यदपि इस बात से आज भी बहुत से इतिहासकार एकमत नहीं हैं 
काल का कुटिल प्रवाह मान्यताओं, विश्वासों और परम्पराओं को जब बहा ले जाती है तब उनके अवशेष मात्र रह जाते हैं। पूर्वकाल का यह 'श्रावणी यज्ञ' एवं वेदों का पठन-पाठन अब मात्र नवीन यज्ञोपवीत धारण करना और हवन आहुति तक सीमित रह गया है और वीर-बन्धु को 'रक्षी' बाँधने की प्रथा विकृत होकर भाई-बहिन का रिश्ता निभाने, सालभर में कम से कम एक बार मेल-मिलाप का संयोग बन कलाई पर राखी बाँधने और उपहार आदि तक सीमित होकर पांच सितारा संस्कृति की ओर बढ़ चला है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने इंसान को आज अर्थकेन्द्रित करके व्यक्तिवादी बना दिया है और इसी का परिणाम है कि आज वास्तविकता को नकारते हुए आडम्बर को प्रधानता दी जाने लगी है      
तमाम बदलती परिस्थितियों को दरकिनार कर आज जब भी रक्षाबंधन के अवसर पर मैं अपने आस-पास छोटे मासूम भाई-बहिनों को रंग-बिरंगी राखी खरीदकर बाँधने के लिए उत्सुक देखती हूँ तो यही लगता है कि असली त्यौहार तो इन्हीं नन्हें-मुन्ने मासूमों का है, जो अभी तमाम दुनियादारी के चक्करों से कोसों दूर हैं। कभी जब हम भी इन्हीं की तरह मासूम हुआ करते थे तो हमें भी इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता था। भाईयों को राखी बाँधने के  इंतज़ार के साथ ही हमें घर में मेहमानों के लिए बनते तरह-तरह के पकवानों और मिठाईयों का लुत्फ़ उठाने का कुछ ज्यादा ही इंतज़ार रहता था। क्योंकि ऐसे मौके विशेष वार-त्यौहार के दिन ही आते थे। आज की तरह रेडीमेड का जमाना नहीं था। आज बदलते परिवेश में कुछ विवशताओं के वशीभूत होकर जब देखती हूँ तो सोचने लगती हूँ कि किस तरह छोटे भाई-बहन बड़े होकर अपनी-अपनी घर गृहस्थी में अपने पारिवारिक दायित्व और दुनियादारी में उलझ कर रह जाते हैं कि उन्हें एक दूसरे की सुध लेने की कोई तिथि याद नहीं रहती। वह तो भला हो इस त्यौहार का जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कम से कम साल भर में एक बार आकर मन में स्नेह, उल्लास और उत्साह भरकर रिश्तों के इस कच्चे धागों की डोर को सतत स्नेह, प्रेम और प्यार की निर्बाध आकांक्षा को जीवंत बनाये रखने के लिए एक सूत्र में बाँधने चला आता है किसी ने सच ही कहा है कि-
"कच्चे धागों में बहनों का प्यार है 
देखो राखी का आया त्यौहार है।"

सभी को रक्षाबंधन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें!
      ...कविता रावत 

48 टिप्‍पणियां:

रचना दीक्षित ने कहा…

आप को भी सपरिवार रक्षाबंधन की अनेकानेक शुभकामनाएँ.

vijay ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है आपने
आप को भी सपरिवार रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

समय चक्र ने कहा…

रक्षासूत्र रक्षाबंधन के बारे में आपका लेख अच्छा लगा ... रक्षाबंधन पर्व पर अग्रिम हार्दिक बधाई और शुभकामनाये ...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत अच्छा लेख कविता जी.....
इस भीगे भीगे रक्षाबंधन की आपको भी ढेरों शुभकामनाएं.

अनु

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हमारे भारत में ही ऐसे अटूट त्यौहार हैं , जो जोड़ते हैं

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक सुदृढ़ सामाजिक संरचना का परिचायक है यह त्योहार..

राजेश सिंह ने कहा…

समसामयिक और विचारणीय

nayee dunia ने कहा…

bahut achha lekh .........ye sach bhi hai ke bhai -bahan ke jaisa pyar aur sneh anmol hota hai duniya me

शिवनाथ कुमार ने कहा…

सही लिखा है आपने
भाई-बहन के प्यार का यह त्योहार पांच सितारा संस्कृति की ओर बढ़ चला है।

सुंदर लेख ...
आपको भी रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ :)

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

आज के समय के अनुकूल लेख ...आपको भी रक्षा बंधन की शुभकामानाएं

kshama ने कहा…

Kayi baar bhai bahanon me badee katuta dekhi hai.....aapko raksha bandhan mubarak ho.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत ख़ूब!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-956 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

Amrita Tanmay ने कहा…

बदलते परिवेश में भी कुछ है जो नहीं बदलता है..आशा है कि उसे बदलना भी नहीं चाहिए..सुंदर लेख.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

आज त्योहारों का मूल स्वरूप ही बदलता जा रहा है,,,,,
इस सुंदर आलेख के लिए,,,,कविता जी बधाई,,,,,

RECENT POST,,,इन्तजार,,,

सुनील अनुरागी ने कहा…

रक्षाबंधन,दीपावली,कृष्ण जन्माष्टमी जैसे कई पर्व युवाओं की पसंद से दूर होते जा रहे हैं. रक्षाबंधन का पर्व सिर्फ भाई बहन तक ही सिमट गया है.बहुत से परिवार इस पर्व को मनाने से वंचित हो जाते हैं क्योंकि कई परिवारों में कहीं भाई नहीं है तो कहीं बहन. कन्या भ्रूणहत्या की बढ़ती घटनाएं ने भी सैकड़ों लाखों परिवार से रक्षा बंधन पर्व का आत्मिक सुख छीन लिया है.

Shalini kaushik ने कहा…

raksha bandhan kee bahut bahut shubhkamnayen .बहुत सार्थक प्रस्तुति.भावनात्मक प्रस्तुति आभार रफ़्तार जिंदगी में सदा चलके पाएंगे मोहपाश छोड़ सही रास्ता अपनाएं

Suresh kumar ने कहा…

............बहुत सुन्दर ..........
आप को भी सपरिवार रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.....

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आज 30/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

कितनी अजीब बात है...आज हम अपनी निजी दुनिया में इतने व्यस्त हो गये हैं कि भाई-बहन को अपना रिश्ता याद दिलाने की ज़रूरत पड़ने लगी है...!
बहुत ज्ञानवर्धक और सुंदर प्रस्तुति !
आपको व आपके परिवार को रक्षा-बंधन की शुभकामनाएँ!!!:-)

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...आभार सहित रक्षाबंधन पर्व की अनंत शुभकामनाएं

P.N. Subramanian ने कहा…

राखी की शुभकामनाएं. हम तो जनेऊ बदल कर ही मना लेंगे. राखी का त्यौहार इसी रूप में यहाँ प्रचलित है.

Ramakant Singh ने कहा…

रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें!

Meenakshi ने कहा…

रक्षासूत्र रक्षाबंधन के बारे में बहुत अच्छी जानकारी पढने को मिली ... आज के हिसाब से सही लिखा है ..रक्षाबंधन पर्व पर अग्रिम शुभकामनाये ...

बेनामी ने कहा…

भाईयों को राखी बाँधने के इंतज़ार के साथ ही हमें घर में मेहमानों के लिए बनते तरह-तरह के पकवानों और मिठाईयों का लुत्फ़ उठाने का कुछ ज्यादा ही इंतज़ार रहता था। क्योंकि ऐसे मौके विशेष वार-त्यौहार के दिन ही आते थे। आज की तरह रेडीमेड का जमाना नहीं था।

सही है पहले और आज के ज़माने में जमीं आसमां का अंतर है ...आज रिश्ते उपहार में मोहताज होने लगे है ...बहुत बढ़िया सामयिक आलेख ...
रक्षा पर्व की हार्दिक शुभकामना

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति !
आभार सहित रक्षाबंधन पर्व की अनंत शुभकामनाएं...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सार्थक लेख .... आज सब दिखावा सा हो गया है .... रक्षाबंधन की शुभकामनायें

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

सामाजिक ताने बाने को सहेजता हुआ पर्व है रक्षा बंधन . हार्दिक शुभकामनाएं

bkaskar bhumi ने कहा…

कविता जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'कविता रावत' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 31 जुलाई को 'बदलती परिस्थितियां और रक्षाबंधन'शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

विनोद सैनी ने कहा…

चाहे कितनी भी बदल जाये पर चलो मात्र् 1 दिन तो बहन भाई को एक दुसरे की याद आती है वरना आज के युग मे यह संभव कहा है यहा तो सिर्फ भगदोड और रूपये की चमक है बस

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लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

कविता जी आपकी चिंता जायज है... बाजारवाद आज इतना हावी हो गया है की हमारे त्योहारों में अब वो सादगी और अपनापन नहीं रहा... भारत के पास अब भी सँभालने का मौका है लेकिन हम लगता है ये मौका भी खो देंगे...
आपको शुभकामनाएं

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Raju Patel ने कहा…

कविता जी, उम्दा चिंतन-

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बाजारवाद भी हमारा ही लाया हुवा है ... आशा है की ये भाई बहन के प्रेम में अपना स्थान नहीं बनाएगा ... पर कुछ कहना मुमकिन नही ...
आपको रक्षा बंधन की बधाई ...

Pratik Maheshwari ने कहा…

चाहे त्यौहार मनाने के मायने बदल जाएँ पर अगर उनमें सादगी रहे तो हम खुश हैं.. पर अफ़सोस सब आडम्बर हो चला है.. पर हमारी कोशिश सादगी की रहेगी हमेशा..

Rakesh Kumar ने कहा…

सुन्दर सार्थक चिंतन.
सरलता और सादगी में ही आनन्द है.

आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
फालोअर्स और ब्लोगिंग पर मेरा मार्ग दर्शन कीजियेगा,कविता जी.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

रक्षा बंधन के पर्व पर संपूर्ण दृष्टि डालती शानदार पोस्ट पढ़वाने के लिए आभार।

ePandit ने कहा…

सुन्दर लेख, वाकयी रक्षाबन्धन जैसा त्यौहार भारत के सर्वश्रेष्ठ त्यौहारों में से है।

Rohit Singh ने कहा…

आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

Asha Joglekar ने कहा…

रक्षाबंधन पर भावभीनी प्रस्तुति ।

Maheshwari kaneri ने कहा…

रक्षा बंधन पर शानदार पोस्ट पढ़वाने के लिए आभार।देर से आने के लिए माफी..कविता जी..आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

असली त्यौहार तो इन्हीं नन्हें-मुन्ने मासूमों का है, जो अभी तमाम दुनियादारी के चक्करों से कोसों दूर हैं। कभी जब हम भी इन्हीं की तरह मासूम हुआ करते थे तो हमें भी इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता था। भाईयों को राखी बाँधने के इंतज़ार के साथ ही हमें घर में मेहमानों के लिए बनते तरह-तरह के पकवानों और मिठाईयों का लुत्फ़ उठाने का कुछ ज्यादा ही इंतज़ार रहता था।
आदरणीया कविता जी ..जय श्री राधे सच में बचपन के दिन भी क्या दिन थे ..बहुत सुन्दर लेख आप का ..भाई बहन का ये प्यारा त्यौहार रक्षा वन्धन यों ही ताजगी ले आता रहे और ये प्यार अमर रहे ...उमड़ता रहे जन मानस में
मेरे ब्लॉग बाल झरोखा सत्यम की दुनिया और खुश्बू में आप का स्नेह मिला मन अभिभूत हुआ अपना स्नेह बनाये रखें
बधाई
भ्रमर ५

मनोज कुमार ने कहा…

देर से ही सही, शुभकामनाएं।

Rajput ने कहा…

सुन्दर सार्थक लेख.

आशा बिष्ट ने कहा…

सुन्दर..ह्रदय स्पर्शी रचना

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Sahi kaha Aapne.
............
कितनी बदल रही है हिन्दी!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

बेनामी ने कहा…

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