कहा जाता है किसी देश की संस्कृति उसका हृदय व मस्तिष्क दोनों ही होती हैं। जनमानस प्रसन्नता और खुश होकर आनंदपूर्वक जीवन यापन कर सके, यही तो जीवन का लक्ष्य है । इसका उत्तरदायित्व उस देश की संस्कृति पर ही निर्भर करता है, यह बात हमारी उत्सव प्रधान भारतीय संस्कृति से स्वयं सिद्ध हो जाती है। यहाँ का जनजीवन पर्वों के उल्लास, उमंग से हमेशा तरोताजा बना रहता है। हर ऋतु में उत्सव है, त्यौहार है, जिसमें जीवन जीने का एक नवीन दृष्टिकोण समाहित है। यही कारण है कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी झोंपड़ी में रहकर भी जीवन की सुगंध से भरपूर जीवन सुख जान लेता है। रिमझिम बरसते सावन के बीच भाई-बहिन के लिए अद्भुत, अमूल्य व अनंत प्यार का पारिवारिक पर्व रक्षाबंधन हमारे द्वार खड़ा है। अन्य पर्व की भांति इस पर्व की शुरुआत के किस्से भी कम रोचक नहीं हैं। जहाँ एक प्राचीन मान्यता के अनुसार सर्वप्रथम इन्द्र की पत्नी शची ने अपने पति की विजय एवं मंगलकामना से प्रेरित होकर उनको रक्षा सूत्र बांधकर इस परंपरा की शुरुआत की, ऐसा माना जाता है। वहीँ दूसरी मान्यता है कि श्रावण मास में ऋषिगण आश्रम में रहकर स्वाध्याय और यज्ञ करते थे, जिसकी पूर्णाहुति श्रावण पूर्णिमा को होती थी। इसमें ऋषियों के लिए तर्पण कर्म भी होता था, जिसमें नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता था, जिससे इसका नाम 'श्रावणी उपाकर्म' पड़ा। इसके अंत में रक्षा सूत्र बाँधने की प्रथा थी, यही प्रथा कालांतर में 'रक्षाबंधन' कहलाने लगा। इसी प्रतिष्ठा का निर्वहन करते हुए आज भी इस दिन ब्राह्मणगण यजमान को 'रक्षा सूत्र' बाँधते हैं। मुस्लिम काल में यही 'रक्षा सूत्र' अथार्थ 'राखी' बन गया जिसमें हिन्दू नारी अपनी रक्षार्थ किसी भी विजातीय वीर पुरुष को 'राखी' बांधकर अपना भाई मान लेती थी। मेवाड़ की वीरांगना कर्मवती का हुमायूँ को 'रक्षी' भेजना इसका प्रमाण माना जाता है। यदपि इस बात से आज भी बहुत से इतिहासकार एकमत नहीं हैं।
काल का कुटिल प्रवाह मान्यताओं, विश्वासों और परम्पराओं को जब बहा ले जाती है तब उनके अवशेष मात्र रह जाते हैं। पूर्वकाल का यह 'श्रावणी यज्ञ' एवं वेदों का पठन-पाठन अब मात्र नवीन यज्ञोपवीत धारण करना और हवन आहुति तक सीमित रह गया है और वीर-बन्धु को 'रक्षी' बाँधने की प्रथा विकृत होकर भाई-बहिन का रिश्ता निभाने, सालभर में कम से कम एक बार मेल-मिलाप का संयोग बन कलाई पर राखी बाँधने और उपहार आदि तक सीमित होकर पांच सितारा संस्कृति की ओर बढ़ चला है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने इंसान को आज अर्थकेन्द्रित करके व्यक्तिवादी बना दिया है और इसी का परिणाम है कि आज वास्तविकता को नकारते हुए आडम्बर को प्रधानता दी जाने लगी है।
तमाम बदलती परिस्थितियों को दरकिनार कर आज जब भी रक्षाबंधन के अवसर पर मैं अपने आस-पास छोटे मासूम भाई-बहिनों को रंग-बिरंगी राखी खरीदकर बाँधने के लिए उत्सुक देखती हूँ तो यही लगता है कि असली त्यौहार तो इन्हीं नन्हें-मुन्ने मासूमों का है, जो अभी तमाम दुनियादारी के चक्करों से कोसों दूर हैं। कभी जब हम भी इन्हीं की तरह मासूम हुआ करते थे तो हमें भी इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता था। भाईयों को राखी बाँधने के इंतज़ार के साथ ही हमें घर में मेहमानों के लिए बनते तरह-तरह के पकवानों और मिठाईयों का लुत्फ़ उठाने का कुछ ज्यादा ही इंतज़ार रहता था। क्योंकि ऐसे मौके विशेष वार-त्यौहार के दिन ही आते थे। आज की तरह रेडीमेड का जमाना नहीं था। आज बदलते परिवेश में कुछ विवशताओं के वशीभूत होकर जब देखती हूँ तो सोचने लगती हूँ कि किस तरह छोटे भाई-बहन बड़े होकर अपनी-अपनी घर गृहस्थी में अपने पारिवारिक दायित्व और दुनियादारी में उलझ कर रह जाते हैं कि उन्हें एक दूसरे की सुध लेने की कोई तिथि याद नहीं रहती। वह तो भला हो इस त्यौहार का जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कम से कम साल भर में एक बार आकर मन में स्नेह, उल्लास और उत्साह भरकर रिश्तों के इस कच्चे धागों की डोर को सतत स्नेह, प्रेम और प्यार की निर्बाध आकांक्षा को जीवंत बनाये रखने के लिए एक सूत्र में बाँधने चला आता है। किसी ने सच ही कहा है कि-
"कच्चे धागों में बहनों का प्यार है।
देखो राखी का आया त्यौहार है।।"
सभी को रक्षाबंधन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें!
आप को भी सपरिवार रक्षाबंधन की अनेकानेक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने
ReplyDeleteआप को भी सपरिवार रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
रक्षासूत्र रक्षाबंधन के बारे में आपका लेख अच्छा लगा ... रक्षाबंधन पर्व पर अग्रिम हार्दिक बधाई और शुभकामनाये ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख कविता जी.....
ReplyDeleteइस भीगे भीगे रक्षाबंधन की आपको भी ढेरों शुभकामनाएं.
अनु
हमारे भारत में ही ऐसे अटूट त्यौहार हैं , जो जोड़ते हैं
ReplyDeleteएक सुदृढ़ सामाजिक संरचना का परिचायक है यह त्योहार..
ReplyDeleteसमसामयिक और विचारणीय
ReplyDeletebahut achha lekh .........ye sach bhi hai ke bhai -bahan ke jaisa pyar aur sneh anmol hota hai duniya me
ReplyDeleteसही लिखा है आपने
ReplyDeleteभाई-बहन के प्यार का यह त्योहार पांच सितारा संस्कृति की ओर बढ़ चला है।
सुंदर लेख ...
आपको भी रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ :)
आज के समय के अनुकूल लेख ...आपको भी रक्षा बंधन की शुभकामानाएं
ReplyDeleteKayi baar bhai bahanon me badee katuta dekhi hai.....aapko raksha bandhan mubarak ho.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-956 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बदलते परिवेश में भी कुछ है जो नहीं बदलता है..आशा है कि उसे बदलना भी नहीं चाहिए..सुंदर लेख.
ReplyDeletevery nice post .informative indeed .thanks .
ReplyDeleteTHIS IS MISSION LONDON OLYMPIC
INDIAN WOMAN
आज त्योहारों का मूल स्वरूप ही बदलता जा रहा है,,,,,
ReplyDeleteइस सुंदर आलेख के लिए,,,,कविता जी बधाई,,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
रक्षाबंधन,दीपावली,कृष्ण जन्माष्टमी जैसे कई पर्व युवाओं की पसंद से दूर होते जा रहे हैं. रक्षाबंधन का पर्व सिर्फ भाई बहन तक ही सिमट गया है.बहुत से परिवार इस पर्व को मनाने से वंचित हो जाते हैं क्योंकि कई परिवारों में कहीं भाई नहीं है तो कहीं बहन. कन्या भ्रूणहत्या की बढ़ती घटनाएं ने भी सैकड़ों लाखों परिवार से रक्षा बंधन पर्व का आत्मिक सुख छीन लिया है.
ReplyDeleteraksha bandhan kee bahut bahut shubhkamnayen .बहुत सार्थक प्रस्तुति.भावनात्मक प्रस्तुति आभार रफ़्तार जिंदगी में सदा चलके पाएंगे मोहपाश छोड़ सही रास्ता अपनाएं
ReplyDelete............बहुत सुन्दर ..........
ReplyDeleteआप को भी सपरिवार रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.....
आज 30/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकितनी अजीब बात है...आज हम अपनी निजी दुनिया में इतने व्यस्त हो गये हैं कि भाई-बहन को अपना रिश्ता याद दिलाने की ज़रूरत पड़ने लगी है...!
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और सुंदर प्रस्तुति !
आपको व आपके परिवार को रक्षा-बंधन की शुभकामनाएँ!!!:-)
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...आभार सहित रक्षाबंधन पर्व की अनंत शुभकामनाएं
ReplyDeleteराखी की शुभकामनाएं. हम तो जनेऊ बदल कर ही मना लेंगे. राखी का त्यौहार इसी रूप में यहाँ प्रचलित है.
ReplyDeleteरक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteरक्षासूत्र रक्षाबंधन के बारे में बहुत अच्छी जानकारी पढने को मिली ... आज के हिसाब से सही लिखा है ..रक्षाबंधन पर्व पर अग्रिम शुभकामनाये ...
ReplyDeleteभाईयों को राखी बाँधने के इंतज़ार के साथ ही हमें घर में मेहमानों के लिए बनते तरह-तरह के पकवानों और मिठाईयों का लुत्फ़ उठाने का कुछ ज्यादा ही इंतज़ार रहता था। क्योंकि ऐसे मौके विशेष वार-त्यौहार के दिन ही आते थे। आज की तरह रेडीमेड का जमाना नहीं था।
ReplyDeleteसही है पहले और आज के ज़माने में जमीं आसमां का अंतर है ...आज रिश्ते उपहार में मोहताज होने लगे है ...बहुत बढ़िया सामयिक आलेख ...
रक्षा पर्व की हार्दिक शुभकामना
सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार सहित रक्षाबंधन पर्व की अनंत शुभकामनाएं...
सार्थक लेख .... आज सब दिखावा सा हो गया है .... रक्षाबंधन की शुभकामनायें
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार को ३१/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteसामाजिक ताने बाने को सहेजता हुआ पर्व है रक्षा बंधन . हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteकविता जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'कविता रावत' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 31 जुलाई को 'बदलती परिस्थितियां और रक्षाबंधन'शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
चाहे कितनी भी बदल जाये पर चलो मात्र् 1 दिन तो बहन भाई को एक दुसरे की याद आती है वरना आज के युग मे यह संभव कहा है यहा तो सिर्फ भगदोड और रूपये की चमक है बस
ReplyDeleteयूनिक तकनीकी ब्लाग
कविता जी आपकी चिंता जायज है... बाजारवाद आज इतना हावी हो गया है की हमारे त्योहारों में अब वो सादगी और अपनापन नहीं रहा... भारत के पास अब भी सँभालने का मौका है लेकिन हम लगता है ये मौका भी खो देंगे...
ReplyDeleteआपको शुभकामनाएं
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकविता जी, उम्दा चिंतन-
ReplyDeleteबाजारवाद भी हमारा ही लाया हुवा है ... आशा है की ये भाई बहन के प्रेम में अपना स्थान नहीं बनाएगा ... पर कुछ कहना मुमकिन नही ...
ReplyDeleteआपको रक्षा बंधन की बधाई ...
चाहे त्यौहार मनाने के मायने बदल जाएँ पर अगर उनमें सादगी रहे तो हम खुश हैं.. पर अफ़सोस सब आडम्बर हो चला है.. पर हमारी कोशिश सादगी की रहेगी हमेशा..
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक चिंतन.
ReplyDeleteसरलता और सादगी में ही आनन्द है.
आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
फालोअर्स और ब्लोगिंग पर मेरा मार्ग दर्शन कीजियेगा,कविता जी.
रक्षा बंधन के पर्व पर संपूर्ण दृष्टि डालती शानदार पोस्ट पढ़वाने के लिए आभार।
ReplyDeleteसुन्दर लेख, वाकयी रक्षाबन्धन जैसा त्यौहार भारत के सर्वश्रेष्ठ त्यौहारों में से है।
ReplyDeleteआपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर भावभीनी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteरक्षा बंधन पर शानदार पोस्ट पढ़वाने के लिए आभार।देर से आने के लिए माफी..कविता जी..आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteअसली त्यौहार तो इन्हीं नन्हें-मुन्ने मासूमों का है, जो अभी तमाम दुनियादारी के चक्करों से कोसों दूर हैं। कभी जब हम भी इन्हीं की तरह मासूम हुआ करते थे तो हमें भी इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता था। भाईयों को राखी बाँधने के इंतज़ार के साथ ही हमें घर में मेहमानों के लिए बनते तरह-तरह के पकवानों और मिठाईयों का लुत्फ़ उठाने का कुछ ज्यादा ही इंतज़ार रहता था।
ReplyDeleteआदरणीया कविता जी ..जय श्री राधे सच में बचपन के दिन भी क्या दिन थे ..बहुत सुन्दर लेख आप का ..भाई बहन का ये प्यारा त्यौहार रक्षा वन्धन यों ही ताजगी ले आता रहे और ये प्यार अमर रहे ...उमड़ता रहे जन मानस में
मेरे ब्लॉग बाल झरोखा सत्यम की दुनिया और खुश्बू में आप का स्नेह मिला मन अभिभूत हुआ अपना स्नेह बनाये रखें
बधाई
भ्रमर ५
देर से ही सही, शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक लेख.
ReplyDeleteसुन्दर..ह्रदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteSahi kaha Aapne.
ReplyDelete............
कितनी बदल रही है हिन्दी!
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteI know this web page provides quality based articles or reviews and extra stuff, is there
ReplyDeleteany other web page which presents such stuff
in quality?
my web page; look at these guys