स्वतंत्रता दिवस के लड्डू। बचपन के 15 अगस्त की यादें। - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 14 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस के लड्डू। बचपन के 15 अगस्त की यादें।

कभी बचपन में हम पंद्रह अगस्त के एक दिन पहले एक सफ़ेद कागज़ पर गाढ़े लाल, हरे और नीले रंग से तिरंगा बनाकर उसे गोंद से एक लकड़ी के डंडे पर फहरा कर झंडा तैयार कर लिया करते थे और फिर 15 अगस्त के दिन जल्दी सुबह उठकर बड़े जोश से जब प्रभात फेरी लगाते हुए देश भक्ति जागरण गीत और नारे लगाते हुए उबड़=खाबड़ पगडंडियों से निकलकर गाँव में प्रवेश करते, तो तब लोग हमारे गीतों और नारों की बुलंद आवाज सुनकर अपने घरों से बाहर निकल कर हमारा स्वागत कर हमारा उत्साहवर्धन करते। प्रभात फेरी में हम बच्चे देशभक्ति के जाने कितने ही गीत और नारे इतने जोर-शोर से गला फाड़ चिल्ला-चिल्ला कहते कि अगले दिन गले से आवाज ही निकलनी बंद हो जाया करती। प्रभात फेरी के माध्यम से गाँव-गाँव, घर-घर जाकर देशभक्ति के गीत और नारों से देशप्रेम का अलख जगाने का यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहता। शाम को स्कूल से 1-2 लड्डू क्या मिले कि बड़े खुश होकर घर लौटते ही अपने घर और आस-पड़ोस में उसे मंदिर के प्रसाद की तरह बांट लेते तो मन को बड़ी शांति मिलती। आज उन गीतों और नारों को याद कर मन एक बार फिर से बचपन की मस्ती में झूम रहा है कि....
"कौमी तिरंगे झंडे, ऊँचे रहो जहाँ में
हो तेरी सर बुलंदी, ज्यों चाँद आस्मां में
तू मान है हमारा, तू शान है हमारी
तू जीत का निशाँ है, तू जान है हमारी
आकाश और जमीं पर, हो तेरा बोल बाला
झुक जाय तेरे आगे, हर तख्तो- ताज वाला
हर कौम की नज़र में, तू अमन का निशाँ है"
....................,....,........................
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा
इस झंडे के नीचे निर्भय
होये महान शक्ति का संचय
बोलो भारत माता की जय
....................
उस समय छोटे-छोटे कदमों से जंगल की संकरी डरावनी राह चलते यह गीत हौसला बुलंद करने के लिए कम नहीं था.............

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
सामने पहाड़ हो
या सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं
तुम निडर हटो नहीं
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इन गीतों के बीच-बीच में तब गुरूजी हम बच्चों में नया जोश भरने के लिए इस तरह नारे बुलंद करते कि...
 "शेर बच्चो!"
 "हाँ जी हाँ"
"खाते क्या हो?"
" दूध-मलाई"
"करते क्या हो?"
 "देश भलाई"
.. तब बचपन के इन "दूध -मलाई" और "देश भलाई" जैसे नारों की समझ तो थी नहीं, लेकिन अब जब बहुत कुछ समझ आता है तो अब न वैसी दूध मलाई और देश भलाई देखने को आंखें  तरस कर रह जाती हैं। खैर दूध मलाई और देश भलाई के परे आइए, एक बार फिर इस स्वतन्त्रता दिवस  के अवसर पर आप भी  मेरे साथ-साथ ये प्यारा गीत गाकर उन अमर वीर सैनानियों को याद कीजिए, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया....
"इस वास्ते पंद्रह अगस्त है हमें प्यारा
आजाद हुआ आज के दिन देश हमारा"
इस दिन के लिए खून शहीदों ने दिया था
बापू ने भी इस दिन के लिए ज़हर पिया था
इस दिन के लिए नींद जवाहर ने तजी थी
नेताजी ने पोशाख सिपाही की सजी थी
गूंजा था आज देश में जय हिंद का नारा
आज़ाद हुआ आज के दिन देश हमारा
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स्वतंत्रता दिवस की मंगलकामनाओं सहित
जय हिंद, जय भारत 
...कविता रावत