लोकतंत्र का महोत्सव। LokSabha Election - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 6 मई 2024

लोकतंत्र का महोत्सव। LokSabha Election


जब से लोकतंत्र का चुनावी बिगुल बजा है, तब से कविवर पदमाकर के वसंत ऋतु की तरह ‘कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में, क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है, कहे पद्माकर परागन में पौनहू में, पानन में पीक में पलासन पगंत है, द्वार में दिसान में दुनी में देस.देसन में, देखो दीप.दीपन में दीपत दिगंत है, बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में, बनन में बागन में बगरयो बसंत है' की तर्ज पर इन दिनों गाँव की चौपाल, खेत-खलियान से लेकर शहर की गली-कूचों में, घर-परिवार में, हाट-बाजार में, पान-गुटके की गुमठियों में, चाय की दुकान-ठेलों में, होटल-रेस्टोरेन्ट में, स्कूल-कालेज में, बस में, हवाई जहाज में, ट्रेन में, पार्क में, पिकनिक में, शादी-ब्याह में, सरकारी-गैर सरकारी दफ्तरों में, रेडियो-टीवी में, समाचार पत्र-पत्रिकाओं में, टेलीफोन-मोबाइल में, इंटरनेट में, धार्मिक अनुष्ठानों में, पढ़े-लिखे हो या अनपढ़, गरीब हो या अमीर, व्यापारी हो या किसान, नौकरीपेशा हो या बेरोजगार, जवान हो या बुजुर्ग हर किसी पर लोकतंत्र के महोत्सव का रंग सिर चढ़कर बोल रहा है।
पाँच वर्ष में एक बार लगने वाले इस महोत्सव में लोकतंत्र के बड़े-बड़े जादूगर अपनी-अपनी जादुई छडि़यों से देश में व्याप्त बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई, भ्रष्टाचार को दूर भगाने के लिए ऐसे करतब दिखा रहे है, जिसे देखते ही अच्छे से अच्छा जादूगर भाग खड़ा हो जाय। जनता जनार्दन को राजनीति के अभिनय का ऐसा जौहर देखने को मिल रहा है, जिसे कोई बड़े से बड़ा अभिनेता भी नहीं निभा सकता है। नौटंकियों का सुन्दर अभूतपूर्व दुर्लभ समागम एक साथ देखने का आनन्द भी जनता को मिल रहा है।  इस महोत्सव में लोकतंत्र के महारथी जो सुनहरे सपने दिखा रहे हैं, उनमें जनता का मन खूब रमा हुआ है।
इधर महोत्सव में समुद्र मंथन जारी है, जिसके भाग्य में लक्ष्मी होगी उनके दिन सुदामा की तरह कुछ इस तरह फिरने में देर नहीं लगनी वाली-
“कै वह टूटी सी छानि हुती कहँ। कंचन के सब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती कहँ। लै गजराजहु ठाडे महावत।।
भूमि कठोर पै रात कटै कहँ। कोमल सेज पै नींद न आवत।
कै जुरतो नहिं कोदों सवाँ, प्रभु के परताप ते दाख न भावत।।“
  उधर जिनके भाग्य में विषपान लिखा होगा, वे या तो “सदा न फूले तोरई, सदा न सावन होय। सदा न जीवन थिर रहे, सदा न जीवै कोय"की तर्ज पर 5 साल तक चुप रहेंगे या फिर कविवर बिहारी की ग्रीष्म ऋतु की कल्पना की तरह 'जब ग्रीष्म का प्रकोप प्राणियों को व्याकुल कर देता है तो वे सुध-बुध खोकर पारस्परिक राग-द्वेष भी भूल जाते हैं। परस्पर विरोधी स्वभाव वाले जीव एक दूसरे के समीप पड़े रहते हैं, किन्तु उन्हें कोई खबर नहीं रहती।’ इस तरह की तपोवन जैसी स्थिति में मिलेंगे-“कहलाने एकत बसत, अहि, मयूर, मृग बाघ, जगत तपोवन सो कियो, दीरघ दाघ निदाघ“।
लोकत्रंत के महारथी राजनेता "जो डूबे सो ऊबरे, गहरे पानी पैठ" की तरह लगे हुये हैं तो हम आम जनता की तरह अपने मतदान फर्ज निभाकर "मैं बपूरा बू़ड़न डरा, रहा किनारे बैठ" की तर्ज पर लोकतंत्र के इस महोत्सव में तमाशबीन बनकर एक तरफ मिथ्याओं पर धर्म का मुलम्मा चढ़ते तो दूसरी तरफ सच्चाई से ईमान को निचुड़ते देख अकबर इलाहाबादी को याद कर रहे हैं-
 "नयी तहजीब में दिक्कत, ज्यादा तो नहीं होती
मजहब रहते हैं, कायम, फकत ईमान जाता है।"

..... कविता रावत

30 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 26/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बढ़िया....सामयिक आलेख,...

सादर
अनु

आशीष अवस्थी ने कहा…

बहुत सुंदर , कविता जी धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ सच्चा साथी ~ ) - { Inspiring stories -part - 6 }
~ ज़िन्दगी मेरे साथ -बोलो बिंदास ! ~( एक ऐसा ब्लॉग जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता हैं )

vijay ने कहा…

नयी तहजीब में दिक्कत, ज्यादा तो नहीं होती
मजहब रहते हैं, कायम, फकत ईमान जाता है।
आज भी सच है इलाहाबादी का यह शेर ..........
सटीक चुनावी चित्रण .....

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर विश्लेषण, बधाई.

Vaanbhatt ने कहा…

इस महापर्व का पूरा खाका खीँच दिया...

Himkar Shyam ने कहा…

बहुत सामयिक...चुनावी महापर्व का सार्थक व सटीक विश्लेषण, बधाई...

RAJ ने कहा…

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में, क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है, कहे पद्माकर परागन में पौनहू में, पानन में पीक में पलासन पगंत है, द्वार में दिसान में दुनी में देस.देसन में, देखो दीप.दीपन में दीपत दिगंत है, बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में, बनन में बागन में बगरयो बसंत है'...........................
वाह! साहित्यिक अंदाज में लोकतंत्र के महोत्सव का खूब रंग जमाया है आपने कविता जी!
अतीव सुन्दर !! हम भी रंग गए लोकतंत्र के महोत्सव के इस रंग में। …………

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर एवं सामयिक आलेख.
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गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

लोकतंत्र का डांस इंडिया डांस महोत्सव।

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर विश्लेषण,

कौशल लाल ने कहा…

सटीक....सुन्दर विश्लेषण.....

Madhuresh ने कहा…

बहुत ही उम्दा पंक्तियाँ चुनी है आपने। खासकर कविवर पद्माकर की बसंत पर जो पंक्तियाँ लिखी है-वो पढ़े बनता है!
साथ ही सार्थ, सुन्दर आलेख!
सादर
मधुरेश

PS ने कहा…

कहलाने एकत बसत, अहि, मयूर, मृग बाघ,
जगत तपोवन सो कियो, दीरघ दाघ निदाघ“।

१६ मई के बाद जब तीखी गर्मी पड़ेगी तब यही होना है एक ही घाट में सब पानी पीते नज़र आएंगे
...चुनावी महापर्व पर सुन्दर सामयिक आलेख .....

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

ईमान बचा हो जहाँ वही तो जायेगा
कितना कहाँ पानी है अब कुँआ आ कर ही बतायेगा :)

बहुत सुँदर विश्लेषण ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

साहित्य कि भाषा में ही आपने सही और सटीक टीका किया है इस महापर्व पर ...
अब तो बस लोगों के फैंसले का समय और इंतज़ार है ...

virendra sharma ने कहा…

प्रजातंत्र का सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत कर दिया आपने प्रबंध शैली में मध्यकालीन कवियों के झरोखे से। बेहतरीन प्रस्तुति।

ऋचा जोशी ने कहा…

सटीक लिखा है आपने। साधुवाद।

Hari Shanker Rarhi ने कहा…

chunaao jaise neeras vishay mein sahitya ka achchha misran karke rochak samgree di hai !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुँदर विश्लेषण महोत्सव का खूब रंग जमाया है

Unknown ने कहा…

नयी तहजीब में दिक्कत, ज्यादा तो नहीं होती
मजहब रहते हैं, कायम, फकत ईमान जाता है।
सच्चाई और ईमानदारी के मायने नहीं रहे अब ..
बहुत बढ़िया....
सामयिक आलेख......

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

बेहतरीन सामयिक आलेख !!
मतदान करना सबसे जरूरी !!

Preeti 'Agyaat' ने कहा…

सटीक, सामयिक आलेख ! बहुत बढ़िया !

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

लोकतंत्र के इस महापर्व में कई सुदामा ओबामा जैसे बनेंगे तो कई सूरमा सुरमा जैसे बिखर भी जाएंगे ।

निबंध का लालित्य प्रशंसनीय है ।

Arogya Bharti ने कहा…

स्वस्थ, समृद्ध और सशक्त भारत के लिए सक्षम नेतृत्व को ही चुने ...........सार्थक सन्देश
सुन्दर सामयिक आलेख

prritiy----sneh ने कहा…

achha lekh likha hai

shubhkamnayen

Neeraj Neer ने कहा…

सटीक एवं समसामयिक आलेख ... लेखन भी अत्यंत प्रभावी..

Rakesh Kumar ने कहा…

लोकतंत्र के महोत्सव को कविता और
मुहावरों के साथ अनुपम संगम करके
बहुत ही रोचक शैली में प्रस्तुत किया है आपने.

सुन्दर कवितामय प्रस्तुति के लिए आभार कविता जी.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@मतदान कीजिए
नयी पोस्ट@सुनो न संगेमरमर