जग में कैसा है यह संताप - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 23 जुलाई 2014

जग में कैसा है यह संताप

कोई भूख से मरता,
       तो कोई चिन्ताओं से है घिरा,
किसी पर दु:ख का सागर
       तो किसी पर मुसीबतों का पहाड़ गिरा।
कहीं बजने लगती हैं शहनाइयाँ
       तो कहीं जल उठता है दु:ख का चिराग,
कहीं खुशी कहीं फैला दु:ख
       जग में कैसा है यह संताप।।

कोई धनी तो कोई निर्धन
       किसी को निराशा ने है सताया
प्रभु की यह कैसी लीला!
       किसी को सुखी, किसी को दु:खी बनाया।
किसी की बिगड़ती दशा
       तो किसी के खुल जाते हैं भाग,
देख न पाता कोई कभी खुशियाँ
       जग में कैसा है यह संताप।।

कोई सिखाता है प्रेमभाव
       पर किसी की आँखों में झलकती नफरत,
कोई दिल में भरता खुशियाँ
       तो कोई भरता है दिल में उलफत।
किसी के सीने में दर्द छिपा
       कोई उगलता शोलों की आग
कोई संकोच, कोई दहशत में
       जग में कैसा है यह संताप।।

कोई शोषित, कोई पीड़ित
       किसी को निर्धनता ने है मारा,
कोई मजबूर कोई असहाय
       किसी को समाज ने है धिक्कारा।
सजा मिलती किसी और को
       पर कोई और ही करता है पाप
कहीं धोखा, कहीं अन्याय फैला
       जग में कैसा है यह संताप।।


30 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

सार्थक पोस्ट...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत बढ़िया .....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

यही तो उस इश्वर की माया है ... शायद एह यही बात ही तो है उसने अपने हाथ में रक्खी ...
वर्ना इंसान भी भगवान् न बन जाए ... भावपूर्ण रचना ...

वाणी गीत ने कहा…

जग में सब है ! हंसी ख़ुशी दुःख अपराध !
सार सार गहि ले थोथा दे उड़ाय !

Suman ने कहा…

द्वन्द से भरा इसी का नाम जीवन है कोई मूक अनुभव करता है
कोई अभिव्यक्त करता है !

vijay ने कहा…

कोई शोषित, कोई पीड़ित
किसी को निर्धनता ने है मारा,
कोई मजबूर कोई असहाय
किसी को समाज ने है धिक्कारा।
सजा मिलती किसी और को
पर कोई और ही करता है पाप
कहीं धोखा, कहीं अन्याय फैला
जग में कैसा है यह संताप।।
………………………………।
यही दस्तूर बन गया है आज दुनिया का

मर्मस्पर्शी और गहरे भाव ....

आशीष अवस्थी ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति , आ. धन्यवाद !
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RAJ ने कहा…

सबकुछ प्रभु की माया है प्रताप है उसके बिना पत्ता भी नहीं हिलता ............... हम इंसानों को भरम हो जाता है हम अपने मर्जी से जीते हैं मरते हैं ...............................
सुन्दर भावपूर्ण रचना ......................

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बेहद उम्दा और बेहतरीन ...आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@मुकेश के जन्मदिन पर.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत ख़ूब!

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

इस रंग विरंगे दुनियाँ में क्यों अलग अलग तगदीर
कोई जीता है सपनो में तो कोई करता है तदवीर !
शायद यही दुनिया की रीति है |
कर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

यहीं तो संसार है संताप से भरा। चारों ओर पुण्य और पवित्रता हो तो वह स्वर्ग बन जाएगा। पर ईमानदार होने का नतिजा है कि ऐसी अंतर वाली स्थिति में हमें अफसोस होता है।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

अनेक विरोधों का समुच्चय जिसमें ताल-मेल बैठा कर गुज़र करना है - यही है संसार !

यशवन्त माथुर (Yashwant Raj Bali Mathur) ने कहा…

कल 25/जुलाई /2014 को एक बार पुनः आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

"तो कहीं जल उठता है दु:ख का चिराग," चिराग शब्द का प्रयोग उचित प्रतीत नही हो रहा है।

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

Vandana Sharma ने कहा…

बिलकुल सही व्यक्त किया अपने

dr sachin ने कहा…

बहुत सुन्दर .....

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर

prerna argal ने कहा…

Bahut sunder bhav liye sunder shabdon me likhi saarthak kavita .bahut badhai aapko.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर रचना ।

Himkar Shyam ने कहा…

सुंदर भावाभिव्यक्ति. कहीं है सुख, कहीं है दुःख, कहीं खुशी, कहीं संताप. ज़िन्दगी तो ऐसी ही हैं.

Sadhana Vaid ने कहा…

यही सबसे बड़ी विडम्बना है कि हमारा समाज ऐसी ही विसंगतियों से भरा हुआ है और इनका कोई निदान भी समझ में नहीं आता ! बहुत ही सुंदर सार्थक सशक्त रचना !

Unknown ने कहा…

Niyati niyam yahi hai kabhi koi khush kabhi koi gamgeen....sacchi rachna

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

भावपूर्ण रचना .....जाने कैसी विडंबना है ये...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

यही विषमता है जो जीवन को जीवन बनाती है! लेकिन आपने जिस नज़र से और जिस गहराई से उनको देखा परखा है वह निश्चित रूप से प्रशंसनीय है!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर भावाभिव्यक्ति

शब्दों की मुस्कुराहट पर ...विषम परिस्थितियों में छाप छोड़ता लेखन

Harash Mahajan ने कहा…

अति सुंदर ।