कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 30 जुलाई 2014

कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद

          हिन्दी साहित्य की आजीवन सेवा कर हिन्दी-गद्य का रूप स्थिर करने, उपन्यास-साहित्य को मानव-जीवन से संबंधित करने एवं कहानी को साहित्य-जगत् में अग्रसर करने वाले महामानव मुंशी प्रेमचंद का जन्म बनारस से चार मील दूर लमही ग्राम में 31 जुलाई, 1880 को हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू, फारसी से हुई। सात वर्ष की अवस्था में माता और चैदह वर्ष की अवस्था में पिता के देहान्त के बाद उनका संषर्घमय जीवन शुरू किया हुआ, जिसने मृत्युपर्यन्त उनका साथ नहीं छोड़ा। पन्द्रह वर्ष की आयु में विवाह हुआ जो सफल नहीं रहा तो उन्होंने बाल-विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया, जिनसे उनकी तीन संताने हुई- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
अध्यापन से जीविका चलाने वाले प्रेमचन्द जी पहले उर्दू में ‘धनपत राय’ नाम से लिखते रहे। उर्दू में उनका पहला उपलब्ध उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ माना जाता है। उनका आरंभिक लेख उर्दू में प्रकाशित होने वाली 'जमाना पत्रिका' में छपते रहे। इस पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम की सलाह पर उन्होंने हिन्दी में ‘प्रेमचंद’ नाम से वर्ष 1915-16 से लिखना आरम्भ किया। लगभग 20 वर्ष की अल्पावधि में उन्होंने 11-12 उपन्यास और लगभग 300 से अधिक कहानी तथा नाटक लिखकर हिन्दी-साहित्य को समृद्ध किया। 
मुंशी प्रेमचंद का प्रगतिशील सुधारवादी दृष्टिकोण सदा उनके सम्मुख रहा है। उन्होंने विधवा-विवाह पर रोक, बाल-विवाह, दहेज, अनमेल विवाह, वृद्ध विवाह, आभूषण प्रियता, वेश्या जीवन आदि सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के निमित्त ‘सेवासदन’, गबन, निर्मला जैसे कालजयी उपन्यास लिखे। वेे शताब्दियों से पददलित और उपेक्षित, अपमानित कृषकों की आवाज और परदे में कैद, पग-पग पर लांछित और अपमानित असहाय नारी जाति की महिमा के जबरदस्त वकील माने जाते हैं । उन्होंने अपने उपन्यास, कहानी आदि में जिस तरह सीधी-सादी, मंजी हुई परिष्कृत संस्कृत पदावली से प्रौढ़ और उर्दू से चंचल भाषा के साथ प्रचलित ग्रामीण शब्दों से भरे मुहावरों और कहावतों का प्रयोग कर सहज रूप दिया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। प्रेमचंद जी का  लेखन आज भी इतना प्रासंगिक है कि बड़े-छोटे सभी प्रकाशक समय-समय उनके उपन्यास, कहानी प्रकाशित कर जनमानस तक सुगमता से पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इंटरनेट पर उनके साहित्य को सहजने का जो सराहनीय प्रयास भारत कोश द्वारा किया गया है वह अभूतपूर्व और अनुकरणीय है। 
मुंशी प्रेमचंद जी को 'कलम के सिपाही', 'कलम के जादूगर' या फिर 'उपन्यास सम्राट' किसी भी नाम से जानिये उनके   बारे में आज जो भी जितना चाहे लिखे, वह अत्यल्प होगा। प्रेमचंद जी मेरे पंसदीदा लेखकों में से एक हैं। उनकी कहानी हो या उपन्यास जितनी बार पढ़ती हूंँ, उतनी बार मुझे उनमें नयापन नजर आता है। प्रेमचंद जयंती के अवसर पर उनके लिए ‘हिन्दी साहित्य’ में उद्धृत आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का कथन समीचीन होगा- "अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार-विचार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा, दुःख-सुख और सूझ-बूझ जानना चाहते  हैं तो प्रेमचंद जी से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। झोपडि़यों से लेकर महलों तक, खोमचे वालों से लेकर बैंकों तक, गांव से लेकर धारा-सभाओं तक आपको इतने कौशलपूर्वक और प्रामाणिक भाव से कोई नहीं ले जा सकता। आप बेखटके प्रेमचंद का हाथ पकड़ कर मेढ़ों पर गाते हुए किसान को, अंतःपुर में मान किए बैठी प्रियतमा को, कोठे पर बैठी हुई वार-वनि-वनिता को, रोटियों के लिए ललकते हुए भिखमंगों को, कूट परामर्श में लीन गोयन्दों को, ईर्ष्या- परायण प्रोफेसरों को, दुर्बल-हृदय बैंकरों को, साहस-परायण चमारिन को, ढ़ोंगी पंडितों को, फरेबी पटवारी को, नीचाशय अमीर को देख सकते हैं और निश्चिन्त होकर विश्वास कर सकते हैं कि जो कुछ आपने देखा, वह गलत नहीं है।"

...कविता रावत

46 टिप्‍पणियां:

Dr Parveen Chopra ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आप का यह लेख ..उस महान कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी की याद दिलाता हुआ।
कल ईद थी और मैं सारा दिन उन की कहानी ईदगाह याद करता रहा....... अद्भुत लेखन।
आचार्य द्विवेदी जी के प्रेमचंद जी के बारे में विचार पढ़ कर मन गदगद हो गया।

vijay ने कहा…

प्रेमचंद जी मेरे भी सर्वप्रिय लेखक हैं उनका जवाब और कही नहीं मिलता है .......
जिंदगी भर संघर्ष में जीते हुए हिंदी साहित्य के नीव बने मुंशी प्रेमचंद सच में एक महत्व थे ..जयंती विशेष पर सुन्दर, सार्थक और संग्रहणीय आलेख के लिए आपको बहुत धन्यवाद ................

vandana gupta ने कहा…

satik prastutikaran

आशीष अवस्थी ने कहा…

बढ़िया लेखन व प्रस्तुति , आ. धन्यवाद !
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NKC ने कहा…

bahut sundar, Premchand jee ke baare me padhana janana bahut hi ruchipurn aur preranadaayak lagata hai , aapka asnkhya dhanyawaad Kavita jee!

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

द्विवेदी जी का कथन मा्र्मिक एवं समीचीन है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम चंद जी ने कहानी के एक नए दौर की शुरुआत करी जो आप पात्रों के करीब रह कर दिल में उतर जाती थी ...
बहुत ही सुन्दर, जानकारी से परिपूर्ण लेख ...

Asha Lata Saxena ने कहा…

उत्तम जानकारी देता लेख

Vaanbhatt ने कहा…

प्रेमचन्द एक कालजयी लेखक हैं...और उनकी रचनायें आज भी उतनी ही पसंद की जातीं हैं...

Surya ने कहा…

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के सबसे लोकप्रिय और प्रासंगिक साहित्यकार हैं. उनकी जयंती पर सामयिक लेखन के लिए आपका धन्यवाद ........................
आभार!!!!!

Dolly ने कहा…

प्रेमचंद जी जैसे लेखक कई शताब्दियों बाद जन्म लेते है ................बहुत बढ़िया लेखन........

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

सुन्‍दर।

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-07-2014 को चर्चा मंच पर { चर्चा - 1691 }ओ काले मेघा में दिया गया है
आभार

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक प्रस्तुति...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

जानकारीपरक पोस्ट, नमन

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

प्रेमचंद भारतीय संस्कृति के वास्तविक और मौलिक चितेरे थे।
विनम्र श्रद्धांजलि !

संजय भास्‍कर ने कहा…

हिंदी साहित्य के सबसे लोकप्रिय साहित्यकार हैं....प्रेमचंद जी

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

हिंदी भाषा और साहित्य के प्रत्येक ज्ञाता प्रेमचंद के प्रति सम्मान के भाव रखता है। आपने बिल्कुल उचित समय पर प्रेमचंद के प्रति अपने आदर भाव प्रकट करते हुए लेख लिखा है।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

प्रेमचंद का सजीव चरित्र चित्रण अतुलनीय है ! बहुत सुन्दर आलेख |
नई पोस्ट माँ है धरती !

शकुन्‍तला शर्मा ने कहा…

क़लम के सिपाही प्रेमचन्द को मेरा सलाम । काश ! मैं उनकी तरह एक कहानी भी लिख पाती । shaakuntalam.blogspot.in

बेनामी ने कहा…

सुन्दर लेखन ....
कलम के सिपाही को नमन!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज गुरुवार ३१ जुलाई २०१४ की बुलेटिन -- कलम के सिपाही को नमन– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
एक निवेदन--- यदि आप फेसबुक पर हैं तो कृपया ब्लॉग बुलेटिन ग्रुप से जुड़कर अपनी पोस्ट की जानकारी सबके साथ साझा करें.
सादर आभार!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

एक सच्ची श्रद्धांजलि कलम के सिपाही को :)

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

shrdhanjali ...

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

premchandra hindi sahitya ke amuly dharohar hain ....

राजीव कुमार झा ने कहा…

प्रेमचंद सर्वकालिक महान लेखक रहे हैं.उनकी कहानियां आज भी प्रासांगिक हैं.

Asha Joglekar ने कहा…

प्रेमचंद जी के जन्मदिवस पर उनके बारे में पढ कर बहुत अच्छा लगा. अपने समय के इस यथार्थ वदी और उत्कृष्ट लेखक को शत शत प्रणाम।

virendra sharma ने कहा…

सुन्दर सार्थक लेखन शुक्रिया आपकी टिप्पणियों के लिए।

Unknown ने कहा…

बहुत ही बढ़िया आलेख

Unknown ने कहा…

कविता जी जय हो आपकी ''इतने सुन्दर ढ़ंग से मुंशी जी के बारे में लिखने के लिए।
बहुत सुन्दर लेख

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut dino baad aap mere blog par aaye....dekh kar khushi hui. bahut bahut shukriya.

prem chand ji k liye is se behtar shradhanjali aur kuchh nahi ho sakti.

bahut sunder lekh.

aabhar.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

एक महान कथाकार की स्मृति को बहुत ही सुन्दर शब्द दिये हैं आपने!! आभार!

Unknown ने कहा…

महान उपन्यासकार व कथाकार की स्मृति बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरन ......

Deven Pandey ने कहा…

हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकार एवं लेखक मुंशी प्रेमचंद जी को सादर नमन

Satish Saxena ने कहा…

प्रेमचंद के ऊपर लिखा गया बेहतरीन लेख , बधाई और आभार आपका !

ऋचा ने कहा…

बेहतरीन लेख के लिए बधाई। मुंशी जी को नमन।

बेनामी ने कहा…

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