यह सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। यह हमारे राष्ट्रीय जीवन में हर्ष और उल्लास का दिन तो है ही इसके साथ ही स्वतंत्रता की खातिर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों का पुण्य दिवस भी है। देश की स्वतंत्रता के लिए 1857 से लेकर 1947 तक क्रांतिकारियों व आन्दोलनकारियों के साथ ही लेखकों, कवियों और पत्रकारों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी गौरव गाथा हमें प्रेरणा देती है कि हम स्वतंत्रता के मूल्य को बनाये रखने के लिए कृत संकल्पित रहें।
प्रेमचंद की 'रंगभूमि, कर्मभूमि' उपन्यास, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का 'भारत -दर्शन' नाटक, जयशंकर प्रसाद का 'चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त' नाटक आज भी उठाकर पढि़ए देशप्रेम की भावना जगाने के लिए बड़े कारगर सिद्ध होंगे। वीर सावरकर की "1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम" हो या पंडित नेहरू की 'भारत एक खोज' या फिर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 'गीता रहस्य' या शरद बाबू का उपन्यास 'पथ के दावेदार' जिसने भी इन्हें पढ़ा, उसे घर-परिवार की चिन्ता छोड़ देश की खातिर अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए स्वतंत्रता के महासमर में कूदते देर नहीं लगी।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्ता ने “भारत-भारती“ में देशप्रेम की भावना को सर्वोपरि मानते हुए आव्हान किया-
“जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।।“
देश पर मर मिटने वाले वीर शहीदों के कटे सिरों के बीच अपना सिर मिलाने की तीव्र चाहत लिए सोहन लाल द्विवेदी ने कहा-
“हो जहाँ बलि शीश अगणित, एक सिर मेरा मिला लो।“
वहीं आगे उन्होंने “पुष्प की अभिलाषा“ में देश पर मर मिटने वाले सैनिकों के मार्ग में बिछ जाने की अदम्य इच्छा व्यक्त की-
“मुझे तोड़ लेना बनमाली! उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जायें वीर अनेक।।“
सुभद्रा कुमारी चौहान की “झांसी की रानी" कविता को कौन भूल सकता है, जिसने अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दी। वीर सैनिकों में देशप्रेम का अगाध संचार कर जोश भरने वाली अनूठी कृति आज भी प्रासंगिक है-
“सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढे़ भारत में भी आई, फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की, कीमत सबने पहिचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तनवार पुरानी थी,
बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी की रानी थी।“
“पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं“ का मर्म स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहे वीर सैनिक ही नहीं वफादार प्राणी भी जान गये तभी तो पं. श्याम नारायण पाण्डेय ने महाराणा प्रताप के घोड़े ‘चेतक’ के लिए "हल्दी घाटी" में लिखा-
“रणबीच चौकड़ी भर-भरकर, चेतक बन गया निराला था,
राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था,
गिरता न कभी चेतक तन पर, राणा प्रताप का कोड़ा था,
वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर, या आसमान पर घोड़ा था।“
देशप्रेम की भावना जगाने के लिए जयशंकर प्रसार ने "अरुण यह मधुमय देश हमारा" सुमित्रानंदर पंत ने "ज्योति भूमि, जय भारत देश।" निराला ने "भारती! जय विजय करे। स्वर्ग सस्य कमल धरे।।" कामता प्रसाद गुप्त ने "प्राण क्या हैं देश के लिए के लिए। देश खोकर जो जिए तो क्या जिए।।" इकबाल ने "सारे जहाँ से अच्छा हिस्तोस्ताँ हमारा" तो बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने 'विप्लव गान' में
''कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाये
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर को जाये
नाश ! नाश! हाँ महानाश! ! ! की
प्रलयंकारी आंख खुल जाये।"
कहकर रणबांकुरों में नई चेतना का संचार किया। इसी श्रृंखला में शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, रामनरेश त्रिपाठी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ राधाचरण गोस्वामी, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, राधाकृष्ण दास, श्रीधर पाठक, माधव प्रसाद शुक्ल, नाथूराम शर्मा शंकर, गया प्रसाद शुक्ल स्नेही (त्रिशूल), माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, अज्ञेय जैसे अगणित कवियों के साथ ही बंकिम चन्द्र चटर्जी का देशप्रेम से ओत-प्रोत “वन्दे मातरम्“ गीत-
वन्दे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयज शीतलां
शस्य श्यामलां मातरम्! वन्दे मातरम्!
शुभ्र ज्योत्स्ना-पुलकित-यामिनीम्
फुल्ल-कुसुमित-दु्रमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरत्। वन्दे मातरम्! “
...........................जो आज हमारा राष्ट्रीय गीत है, जिसकी श्रद्धा, भक्ति व स्वाभिमान की प्रेरणा से लाखों युवक हंसते-हंसते देश की खातिर फांसी के फंदे पर झूल गये। वहीं हमारे राष्ट्रगान "जनगण मन अधिनायक" के रचयिता रवीन्द्र नाथ ठाकुर का योगदान अद्वितीय व अविस्मरणीय है।
स्वतंत्रता दिवस के सुअवसर पर बाबू गुलाबराय का कथन समीचीन है - "15 अगस्त का शुभ दिन भारत के राजनीतिक इतिहास में सबसे अधिक महत्व है। आज ही हमारी सघन कलुष-कालिमामयी दासता की लौह श्रृंखला टूटी थीं। आज ही स्वतंत्रता के नवोज्ज्वल प्रभात के दर्शन हुए थे। आज ही दिल्ली के लाल किले पर पहली बार यूनियन जैक के स्थान पर सत्य और अहिंसा का प्रतीक तिरंगा झंडा स्वतंत्रता की हवा के झौंकों से लहराया था। आज ही हमारी नेताओं के चिरसंचित स्वप्न चरितार्थ हुए थे। आज ही युगों के पश्चात् शंख-ध्वनि के साथ जयघोष और पूर्ण स्ततंत्रता का उद्घोष हुआ था।"
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी गीत को याद करते हुए सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
जय हिन्द! जय भारत!
......कविता रावत
37 टिप्पणियां:
मन में हिलोरें सी उठने लगती हैं इस आलेख को पढ़ कर ... स्वतंत्रता की वेदी पर किसी का भी योगदान कम नहीं रहा ...
सैनानियों से कवी से जन जन से उठती देश भक्ति की पुकार ने ही आज हमें अपना कहने को स्थान दिया है ... जय भारत भूमि, पुन्य भूमि ...
आज हम जो खुली हवा में सांसे ले रहे हैं इसके लिए हम ऋणी है सभी देशप्रेमियों का जिन्होने इसमें अपनी आहुति दी,,, प्रेरणा दी.....आलेख पढ़कर मन में देशभक्ति की हिलोरे उठने लगी है ..देशप्रेम की भावना जगाने का सार्थक प्रयास है यह आलेख ........
जय हिंंद! जय भारत!
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सुन्दर सार्थक सामयिक आलेख
जय हिन्द! जय भारत!
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सुन्दर सार्थक सामयिक आलेख
जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम
सार्थक आलेख, उम्दा चयन... देशभक्ति की भावना जगाती एक से बढ़ कर एक प्रेरणादायी रचनाएँ...साहित्य सदा से मानवीय प्रेरणा का महत्वपूर्ण माध्यम रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन इसकी उत्कृष्ट मिसाल है। स्वतंत्रता संग्राम के लिए जनमानस को तैयार करने में साहित्य और पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान था। इस आंदोलन के लिए राजनेताओं को जितना संघर्ष करना पड़ा, उससे तनिक भी कम संघर्ष साहित्यकारों एवं पत्रकारों को नहीं करना पड़ा। जय हिंद!
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ !
सुन्दर जानकारीपरक और सहेजने योग्य पोस्ट ....
स्वतंत्रता दिवस के सन्दर्भ में बहुत सुन्दर सार्थक और अनुकरणीय सामयिक आलेख
जय भारत! स्वस्थ भारत! जय हिन्द!
बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...जय हिन्द
बहुत सुन्दर।
“मुझे तोड़ लेना बनमाली! उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जायें वीर अनेक।।“
.....देशभक्ति की भावना जगाती एक से बढ़ कर एक प्रेरणादायी रचनाएँ !
जय हिन्द!
पढते ही मन उद्वेलित हो गया।
बहुत सुंदर एवं समसामयिक आलेख.
Sare jahan se achcha Hindostan hamara..
Jai hind!
जोशीला आलेख ...स्वाधीनता आंदोलन में सहितियिक भूमिका का सुन्दर वर्णनं
जय हिन्द ...
जोशीला आलेख ...स्वाधीनता आंदोलन में सहितियिक भूमिका का सुन्दर वर्णनं
जय हिन्द ...
बेहतरीन आलेख। बधाई !!
हुत सुंदर एवं समसामयिक आलेख....
जय हिन्द!
सहेजने योग्य जानकारी ...
मेरा भारत महान!
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ !
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।।
शानदार गौरव गान
जय हिन्द!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना..
स्वतंत्रता संग्राम में साहित्य का योगदान अप्रतिम रहा है बहुत सशक्त प्रस्तुति १५ अगस्त पर .
समयोपयोगी और सार्थक लेख। साहित्य के राष्ट्रभक्ति का पूर्ण आकलन करता है।
बढ़िया रचना , आ. धन्यवाद !
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 15 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
प्रासंगिक सुंदर प्रस्तुति।।।
सुन्दर सार्थक आलेख ......
बढ़िया लेख ..........स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं!
स्वतंत्रता यूँ ही नहीं मिली हमको मोल समझाना होता सबको ........साहित्य के योगदान का सुन्दर संकलन पढ़ाया आपने ....
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई हो!
आपको स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
सुन्दर सार्थक संग्रहणीय आलेख
सुन्दर संग्रहणीय आलेख ...
स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं ..
सुन्दर संग्रहणीय आलेख ...
यह आलेख अपनी कई विशिष्टताओं को उजागर करता है .
जैसे स्वतंत्रता का सही आंकलन,साहित्य में इसका महत्व और देश की
सांस्कृतिक विरासत में देश भक्ति का योगदान ---
बहुत ही नये संदर्भों से रचा गया है.
सार्थक संग्रहणीय आलेख
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है --
आजादी ------ ???
सुंदर सशक्त लेखन यौमे आज़ादी के पावन पर्व पर .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों के लिए .
shashakt lekh...shandaar ...
निश्चय ही साहित्यकारों को अतुलनीय योगदान रहा है ।बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए आभार रावत जी।
सुन्दर संग्रहणीय आलेख! आभार
स्वतंत्रता आन्दोलन में साहित्य की भूमिका पर बहुत बढ़िया लेख लिखा आपने. हम सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। भारत स्वतंत्रता आंदोलन में स्वातंत्र सैनिको के साथ साथ लेखकों और पत्रकारों की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं.
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