इसके साथ ही भगवान गणेश घर-घर में विराजमान होकर सुशोभित हैं। हमारे घर में भी गत पाँच वर्ष जब से मेरे शिवा ने होश संभाला उसके गणेश प्रेम और जिद्द से भगवान गणेश की स्थापना की जा रही है। इस बारे में मैंने उसके बारे में अपने ब्लाॅग पर गणपति में रमें बच्चे नाम से एक पोस्ट लिखी। तब मेरा शिवा पहली कक्षा में पढ़ता था। अब वह तीसरी कक्षा में है और हिन्दी-अंग्रेजी बहुत अच्छे से पढ़ लेता है। इसके साथ ही भले ही उनके स्कूल में संस्कृत छठवीं कक्षा से पढ़ाई जाती है, लेकिन उसे अभी से संस्कृत पढ़ने में विशेष रूचि है। इसी के चलते वह चुपके से एक कापी में किसी किताब या समाचार पत्र-पत्रिका से गणेश जी से बारे में छपा चुपके-छुपके लिखता रहता है और उनकी विभिन्न आकृतियां उकेरता रहता है। अभी उसने मुझे अपनी कापी में लिखे भगवान गणेश के संस्कृत नाम- ऊँ गणाधिपतये नमः, ऊँ विध्ननाशाय नमः, ऊँ ईशपुत्राय नमः, ऊँ सर्वासिद्धिप्रदाय नमः, ऊँ एकदंताय नमः, ऊँ कुमार गुरवे नमः, ऊँ मूषक वाहनाय नमः, ऊँ उमा पुत्राय नमः, ऊँ विनायकाय नमः, ऊँ ईशवक्त्राय नमः पढ़कर सुनाये तो मुझे आश्चर्य हुआ। जिज्ञासावश पूछा तो बताया कि दीदी से मैंने पढ़ना सीखा है और अबकी बार गणेशजी की पूजा मैं खुद ही करूँगा इसके लिए आपको मेरे गणपति के लिए लड्डू और मोदक बनाने होंगे।
हर दिन आॅफिस की ड्यूटी तो बजाते ही हैं अब बच्चे ने ड्यूटी लगाई है तो मैंने भी लड्डू और मोदक बनाने की तैयारी कर ली है। बस इंतजार है तो गणेश चतुर्थी की छुट्टी का। इसके साथ ही पापा की ड्यूटी हर शाम शहर के विभिन्न जगहों पर विराजमान गणेशजी की प्रतिमाओं और झाकियों को दिखाने की लगा रखी है।
हमारे घर के ठीक सामने एक फूल का पेड़ है। गर्मियों में मैं हर दिन उसे खूब पानी देती रही, फिर भी मुझे वह कभी खिला नजर नहीं आया; मुरझाया ही दिखा। लेकिन बरसात की पहली फुहार क्या पड़ी कि वह खिल उठा और फूलों से लद गया। यह प्रकृति का कमाल है। अब उसे देख लगता है जैसे उसे भी गणेशोत्सव की खबर पहले से ही लग गई, तभी तो वह फूलों से लदकर गणेश जी के स्वागत के तैयार है। अब हर सुबह मुझे जल्दी बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने के बाद गणपति जी के लिए पहले फूल तोड़कर माला बनाने फिर लड्डू, मोदक का भोग लगाने की अतिरिक्त ड्यूटी तो निभानी है, साथ-साथ आॅफिस की तैयारी भी करनी है। भले ही अतिरिक्ति भागमभाग में दिन बीतेगा लेकिन मैं जानती हूँ गणपति जी की कृपा से इसमें में भी आनन्द की अनुभूति होगी क्योंकि कलियुग में शक्ति और विध्नेश्वर कहलाने वाले भगवान गणेश की उपासना शीघ्र फलदायी जो मानी गई है। यही सोचकर भक्ति भाव और बच्चों की खुशी की खातिर शरीर में तरोताजगी महसूस कर अपने काम में जुटी रहती हूँ ।
भगवान गणेश जी सर्वत्र किसी न किसी रूप में पूजे जाते हैं, उनके बारे में जितना कहा जाय, लिखा जाय कम है। आज सिंघ और तिब्बत से लेकर जापान और श्रीलंका तक तथा भारत में जन्मे प्रत्येक विचार एवं विश्वास में गणपति समाए हैं। जैन सम्प्रदाय में ज्ञान का संकलन करने वाले गणेश या गणाध्यक्ष की मान्यता है तो बौद्ध के वज्रयान शाखा का विश्वास कभी यहां तक रहा है कि गणपति के स्तुति के बिना मंत्रसिद्धि नहीं हो सकती। नेपाल तथा तिब्बत के वज्रयानी बौद्ध अपने आराध्य तथागत की मूर्ति के बगल में गणेश जी को स्थापित रखते रहे हैं। सुदूर जापान तक बौद्ध प्रभावशाली राष्ट्र में भी गणपति पूजा का कोई न कोई रूप मिल जाता है। प्रत्येक मनुष्य अपने शुभ कार्य को निर्विध्न समाप्त करना चाहता है। गणपति मंगल-मूर्ति हैं, विध्नों के विनाशक हैं। इसलिए इनकी पूजा सर्वप्रथम होती है। शास्त्रों में गणेश को ओंकारात्मक माना गया है, अतः उनका सबसे पहले पूजन होता है।
भगवान गणेश जी के अनूठी शारीरिक संरचना से हमें बहुत सी बातें सीखने को मिलती है। जैसे- उनका बड़ा मस्तक हमें बड़ी और फायदेमंद बातें सोचने के लिए प्रेरित करता है तो छोटी-छोटी आंखे हाथ में लिए कार्यों को उचित ढंग से और शीघ्र पूरा करने की ओर इशारा करती हैं। उनके सूप जैसे बड़े कान हमें नये विचारों और सुझावों को धैर्यपूर्वक सुनने की सीख देते हैं तो लम्बी सूंड हमें अपने चारों ओर की घटनाओं की जानकारी और ज्यादा सीखने के लिए प्रेरित करती हैं । उनका छोटा मुंह हमें कम बोलने की याद दिलाता है तो जीभ हमें तोल मोल के बोल की सीख देती है।
जय श्री गणेश!
सभी को गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें।
कविता रावत