मधुमेह दिवस पर कुछ जरुरी सबक - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 12 नवंबर 2014

मधुमेह दिवस पर कुछ जरुरी सबक

भारतीय चिंतन सिर्फ उपदेशात्मक नहीं है। स्वस्थ जीवन के सूत्रों को व्यवहार में लाने के लिए सोलह संस्कारों की योजना की गई है, जो भारतीय समाज में आज भी प्रचलित है। आचार्य चरक ने कहा है कि दोषों को नष्ट कर और गुणों का संवर्धन करके नये गुणों को विकसित करना ही संस्कार है, "संस्कारों हि गुणान्तराधानमुच्यते।" स्वस्थ उत्तम संतान प्राप्ति के लिए गर्भिणी की सुरक्षा हेतु गर्भाधान संस्कार, पुंसवन कर्म, सीमननतोनयन ये संस्कार प्रसव पूर्व होते हैं। इस कला के विज्ञान को सामने लाने के लिए अध्ययन और अनुसंधान गुजरात में चल रहे हैं।  इतनी सुदृढ़ सामाजिक व्यवस्था के बावजूद भी मात्र मृत्यु दर एमएमआर चिन्ता का विषय बना हुआ है। प्रति लाख 212 महिलायें प्रसव के दौरान दम तोड़ देती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण खून की कमी यानि एनीमिया है। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के रिपोर्ट के अनुसार 5.7 करोड़ महिलाओं में से 3.2 करोड़ महिलायें भारत में एनीमिया से ग्रसित हैं।  यदि रक्ताल्पता को नियंत्रित किया जाये तो मात्र मृत्युदर में सुधार संभव है।  भारतीय किशोरियों में रक्ताल्पता एक चिंतनीय समस्या है। 88 प्रतिशत से अधिक किशोरियां एनीमिया से पीडि़त हैं, जो कि विवाह के पश्चात् कमजोर शिशु को जन्म देती है जो कि बढ़ी हुई मातृ मृत्यु दर का एक बड़ा कारण भी है। 
            डायबिटीज सरीखे रोग बाल्यावस्था से ही देखे जा रहे हैं।  बदलती जीवन शैली सिमटते परिवार, नौकरी पेशा माता-पिता, स्पर्धात्मक शैक्षणिक व्यवस्था आधुनिक जीवन के गैजेट्स पर बढ़ती निर्भरता, खान-पान की बदलती शैली के कारण बाल एवं किशोरों का शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य तो प्रभावित हुआ ही है साथ ही भावनात्मक संवेगात्मक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है।
बाल्यावस्था जीवन विकास की प्रथम महत्वपूर्ण अवस्था है। इस आधारभूत सोपान में उन्हें पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिले या जरूरत से ज्यादा मिले तो विकास बाधित और असंतुलित होगा। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र में जहां कुपोषण एक विकराल समस्या है वहीं शहरी क्षेत्रों में जंक फूड, साॅफ्ट ड्रिंक आदि अत्यधिक कैलोरी के सेवन के कारण मोटापा, ब्लड प्रेशर और
           स्वास्थ्य के क्षेत्र में चुनौतियां अपार हैं। बदलती जीवन शैली के कारण डायबिटीज, मोटापा, हृदयरोग, ब्लडप्रेशर, अनिद्रा आदि रोगों का बढ़ना चिन्ता का विषय है। बढ़ते मधुमेह के प्रतिशत के कारण भारत वर्ल्ड डायबिटीज केपिटल (World Dibeties Calpital) बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है। अध्ययन, अनुसंधान से पुष्ट होता विज्ञान मानव को स्वस्थ और दीर्घायु बनाने हेतु निरन्तर प्रयत्नशील है। स्टेम सेल द्वारा ब्लड कैंसर, ट्यूमर, थैलेसीमिया, आॅस्टियोपोरेसिस कई वंशानुगत रोग, इम्युनिटी डिसआर्डर आदि रोगों के प्रभावी इलाज की संभावना जगी है। स्टेम सेल की सीमित संख्या को देखते हुए सामान्य वयस्क कोशिका से स्टेम सेल बनाने वाले जापान के शिन्या यामानाका को वर्ष 2012 का मेडिसीन का नोबल पुरस्कार भी मिला है। उन्होंने ईजाद की है Induced plury protent stem cell (IPS) इसे बनाने के लिए त्वचा या अन्य किसी दूसरे अंग की कोशिका को री प्रोग्राम किया जाता है। जापान की ही 30 वर्षीया ओबाकाता ने इस खोज को और आगे बढ़ाया। ‘नेचर’ में छपे उनके शोध पत्र ने कोशिकाओं पर साइट्रिक एसिड का हल्का घोल डालकर चूहे में कृत्रिम रूप से स्टेम सेल बनाने की संभावना उजागर की है। विज्ञान जीन थेरैपी द्वारा कई आनुवांशिक रोगों से बचाव की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास हो रहे हैं। जहाँ एक ओर वैज्ञानिक अथक परिश्रम करके अनेक रोगों का प्रभावी इलाज ढूंढ़ने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर निहित स्वार्थ इस पुनीत क्षेत्र को बदनाम कर रहे हैं। हालीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जोली का एक उदाहरण ही इस पराकाष्ठा को व्यक्त करने के लिए काफी है। नकली दवाओं का कारोबार 200 विलियन डाॅलर का आंकड़ा पार कर गया है। बाजार में मिलने वाली 12 से 25 प्रतिशत दवाईयों नकली होती है। एंटीबायोटिक के अंधाधुंध अविवेकपूर्ण प्रयोग के कारण इनका कम हो रहा असर Post Antibiotic युग की चेतावनी दे रहा है। मन को व्यथित करने वाले निहित स्वार्थ के विपरीत एक उजला उदाहरण भी है। मैडम क्यूरी को जब अपने आविष्कार के लिए नोबल पुरस्कार मिला तो उनके पास ढ़ंग के कपड़े भी पहनने को न थे। उस समारोह में मैडम क्यूरी से पूछा गया कि क्या वे इस खोज का पेटेंट करायेंगी? तो उनका जवाब था कि वैज्ञानिक आविष्कार अस्तित्व में आने के बाद से ही जनता की धरोहर हो जाती है, उन्हें उनकी भलाई में लगानी चाहिए ना कि उसका पेटेंट कराकर उसे कमाई का जरिया बनाना चाहिए। सत् और असत् शक्तियां तो हर युग में रहती है पर मंथन से अमृत निकलता है, यह शाश्वत है। जीवन शैली में हो रहे बदलाव पर नियंत्रण समाज जागरण, प्रबोधन, सहभागिता, समन्वय और चिन्तन से संभव है। आरोग्य का भारतीय चिन्तन अपने देश के नागरिकों की आवश्यकता के अनुरूप स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध कराना चाहता है। आज हमारे देश में अनेक स्वास्थ्य कार्यक्रम पश्चिमी चिन्तन से प्रभावित हैं। हम मात्र उनके माॅडल का अनुकरण कर रहे हैं। इन राष्ट्रीय कार्यक्रमों की समीक्षा करते हुए सर्वसमावेशी स्वास्थ्य नीति बनाने की आवश्यकता है। 
            किसी भी देश के समग्र विकास का माॅडल स्वास्थ्य और शिक्षा के बिना अधूरा माना जाता है। ये दो ऐसे आधारभूत स्तम्भ हैं, जिन पर किसी भी देश के न केवल वर्तमान विकास के कारक देखे जाते हैं बल्कि उसमें भविष्य के विकास के बीज भी सन्निहित होते हैं। कैंसर, एड्स आदि जटिल रोगों में जहां अध्ययन, अनुसंधान के लिए भारी भरकम बजट की आवश्यकता है, वहीं संक्रामक रोग, अतिसार, मलेरिया, एनीमिया जैसे सामान्य रोगों में कम से कम खर्च में प्रभावी रूप से ठीक हो सकते हैं। इन पर त्वरित और सर्व सुलभ चिकित्सा की आवश्यकता है। बड़े-बड़े चिकित्सा संस्थान जटिल रोगों से उबार सकते हैं, पर छोटे-छोटे स्वास्थ्य केन्द्र जीवन की रक्षा के लिए निहायत जरूरी है। इसलिए समाज की आवश्यकता के अनुरूप ऐसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति कार्यक्रम बनानी चाहिए- जिसमें सामुदायिक स्वास्थ्य सेवायें सबकी पहुँच में हों, चिकित्सा कम खर्चीली, निरापद, गुणवत्ता रूप और विवेकपूर्ण हों, सामान्य रोगों का एक निश्चित प्रोटोकाॅल हों, संस्थागत सेवाओं में परस्पर तालमेल में हों, स्वास्थ्य सुरक्षा तंत्र विकसित हों, मानव हित में स्वास्थ्य पद्धतियों का समन्वय हों, विभिन्न स्तरों पर सरकार द्वारा नियमित स्वास्थ्य परीक्षण की योजना हों आदि-आदि। हमारे यहां स्वास्थ्य रक्षा तंत्र की अपेक्षा चिकित्सा व्यवस्था पर कई गुना खर्च किया जाता है। आज आवश्यकता हैं कि आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, योग जैसी स्वास्थ्य पद्धतियों के साथ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के समेकित कोर्स आयुर्जीनामिक्स शुरू किये जायें। कला और विज्ञान के तालमेल से स्वास्थ्य ठीक रहेगा और चिकित्सा व्यवस्थायें बेहतर बनेंगी। स्वास्थ्य के विषय को अस्पतालों से निकालकर जन-जन में ले जाना होगा। अस्पताल आधारित स्वास्थ्य सेवाओं की अपेक्षा जन स्वास्थ्य के प्रति जन चेतना विकसित करने की जरूरत है। 
           विश्व मधुमेह दिवस पर जन-जन के स्वस्थ, सुखद और सार्थक जीवन के लिए सेवा-संवेदना के मूल मंत्र के साथ समन्वय, सहयोग, सहभागिता के तीन सूत्रों के साथ आइये मिलकर प्रभावी कदम उठायें। पहले हम स्वयं स्वस्थ रहकर  अपने परिवार को स्वस्थ रखें फिर उसके बाद समाज के स्वास्थ्य के लिए सेवा कार्य करते हुए राष्ट्र को स्वस्थ करने की आदर्श कल्पना साकार करने की दिशा में कदम बढ़ायें।

डाॅ. मधुसूदन देशपांडे, आयुर्वेद चिकित्सक, ओजस पंचकर्म सेंटर भोपाल के सहयोग से ...........
........कविता रावत