जल प्रदूषण पर चिंतन - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 2 जून 2015

जल प्रदूषण पर चिंतन

आज पूरा विश्व पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है। जहाँ तक पीने के स्वच्छ पानी का सवाल है, तो बीते दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में  कहा गया कि यदि लोगों को स्वच्छ जल और सैनिटेशन की स्तरीय सुविधाए मुहैया करा दी जाये तो दुनिया में बीमारियों से पड़ने वाले बोझ को 9 फीसदी और भारत समेत दुनिया के 32 सबसे ज्यादा प्रभावित देशोें में 15 फीसदी बोझ को काफी हद तक कम किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। यह अध्ययन इस बात का प्रमाण  है कि पीने के पानी की व्यवस्था के बाद हर साल प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियों से हुई एक अरब साठ लाख मौतों को टाला जा सकता है। इसके लिए उक्त एजेसियां भ्रष्टाचार, नौकरशाही के संवेदनशील रवैये, संसाधनों की अनुपलब्धता और बुनियादी सुविधाओं का अभाव व इन समस्याओं पर सरकार का अंकुश न होना अहम मानती है। 
            दुनिया के 123 देशों में अपने नागरिकों को दूषित जल पिलाने वाले देशों में भारत 121वें  स्थान पर है। जबकि हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश हमसे 80वें व श्रीलंका और पाकिस्तान 40वें स्थान ऊपर है। पानी के भारी संकट से भारत और चीन की 40 फीसदी आबादी को इसका सामना करना पड़ रहा है। असल में दुनिया में 2.6 अरब आबादी को साफ सफाई स्वच्छ पेयजल और गंदे नाले के निकासी जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में हर साल मरने वाले 1.03 करोड़ लोगों में करीब 7.8 लाख लोग प्रदूषित पानी पीने व गंदगी से पैदा होने वाली बीमारियों से मरते हैं। रिपोर्ट के अनुसार साफ-सफाई और पानी की उचित व्यवस्था करने पर पूरी दुनिया में तकरीबन 7 अरब 34 करोड़ डाॅलर बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही 10 अरब डाॅलर की सालाना उत्पादकता बढ़ेगी और इन मौतों से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सालाना 3.6 अरब डाॅलर के बराबर अतिरिक्त आय अलग से की जा सकेगी। 
           इसमें दो राय नहीं है कि भारत में भूजल के अतिशय दोहन एवं प्रदूषण के कारण नाइट्रेट, अमोनिया, क्लोराइड, व फ्लोराइड का भूजल पर अत्यधिक दबाव है, नतीजतन घुलन आॅक्सीजन की मात्रा दिन-ब-दिन कम होती जा रहीं है। सभी वैज्ञानिक इस पर एकमत हैं कि भूमिगत जल कृषि कार्यों में रासायनिक खादों या उद्योगों में रसायानों  का बेतहाशा इस्तेमाल से बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। लंदन के शोधकर्ताओं ने यह साबित कर दिया है कि जहां पेयजल में लिंडेन, मालिथयोेन, डीडीटी और क्लोपाइरियोफोस जैसे कीटनाशक तत्व मौजूद रहते हैं वहाँ कैंसर, स्तन कैंसर, मधुमेह, रक्तचाप, कब्ज और गुर्दें सम्बन्धी रोग बहुतायत में होते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। भूजल स्त्रोतों की हालत इससे भी ज्यादा खराब है। सर्वेक्षण इस बात का प्रमाण है कि  उत्तरप्रदेश बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व पश्चिम बंगाल के भूमिगत जल में नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटेशियम के अलावा सीसा, मैगनीज, जस्ता, निकिल और लौह जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ व जहरीले तत्व सामान्य स्तर से काफी ज्यादा मात्रा में मौजूद हैं।          
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कृषि कार्य में इस्तेमाल की गई रासायनिक खाद 50 फीसदी फसल में समा जाता है। 25 फीसदी मिट्टी में मिल जाता है और शेष 25 फीसदी भूमिगत जल में मिलकर उसे प्रदूषित करता है। रसायन, कूड़े व प्रदूषित पानी ने जहांँ भूमि जल व नदियों को प्रदूषित करने में अहम भूमिका निभाई है। वहीं नदियों का प्रदूषित पानी पीने योग्य न रहकर भयंकर जानलेवा बीमारियों को न्योता दे रहा है। हमारे यहां प्रदूषित पानी पीने से हर साल 16 लाख बच्चे अकाल मौत के मुंह में चले जाते हैं। देश में कुल बीमारियों में से 80 फीसदी प्रदूषित पानी पीने के कारण होती है। अतः जल की प्रत्येक बूंद के संरक्षण और इसके विवेकपूर्ण उपयोग का प्रण लेना चाहिए। असलीयत यह है कि ठीक इसके उल्टा हो रहा है क्योंकि जल सबसे ज्यादा शुद्ध और पवित्र माना गया है उसको सरकार द्वारा ही स्वीकृत औद्योगिक संस्थान और कारखानें प्रदूषित कर रहे हैं। विडंबना यह है कि उसकी शुद्धता के बाबत् सरकार सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी और दिशा निर्देशों को अनसुना कर रही है। यही एक प्रमुख कारण है कि यहां के लोग विवशता में प्रदूषित पानी पीकर मौत के मुख में जा रहे हैं । वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते समुचित उपाय नहीं किये गये तो आने वाले वर्षो में पीने के पानी के भीषण संकट का सामना करना पडेगा।
           पर्यावरण सम्बन्धी तमाम अध्ययन देश में जल प्रदूषण के दिनोदिन भयावह होते जाने के बारे में चेताते रहते हैं। अब सीएजी यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इस बारे में आगाह किया है। पर्यावरणविदों की चेतावनियों की बराबर अनदेखी की गई है। इसलिए स्वाभाविक ही सवाल उठता है कि क्या सीएजी की इस रिपोर्ट को हमारी सरकारें गंभीरता से लेंगी? संसद में पेश सीएजी की ताजा रपट देश में जल प्रदूषण की भयावह स्थिति के लिये सरकार को फटकार लगाते हुए बताती है कि हमारे घरों में जिस पानी की आपूर्ति की जाती हैं, वह आमतौर पर प्रदूषित और कई बीमारियों को पैदा करने वाले जीवाणुओं से भरा होता है। मुश्किल केवल घरेलू उपयोग या पेयजल तक सीमित नहीं है। 
           विभिन्न प्रकार के रासायनिक खादों और कीटनाशकों के व्यापक इस्तेमाल ने खेतों को इस हालत में पहुंचा दिया है कि उनसे होकर रिसने वाला बरसात का पानी जहरीले रसायनों को नदियों में पहुंचा देता है। भूजल के गिरते स्तर और उसकी गुणवत्ता में कमीं को लेकर कई अध्ययन सामने आ चुके हैं। इसके अलावा शहरों से गुजरने वाले मल-जल और औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले कचरे के चलते पहले चिंताजनक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है, इसे सीएजी ने भी अपनी रपट में दर्ज किया है। देश में 14 बड़ी, 55 लघु और कई 100 छोटी नदियों में मल जल और औद्योगिक कचरा लाखों लीटर पानी के साथ छोडे़ जाते है। विडंबना यह है कि बाकी पानी को उसी रूप में विभिन्न जल स्त्रोतों में छोड़ दिया जाता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि नदियों, तालाबों, झीलों को प्रदूषण मुक्त बनाने के नाम पर अरबों रूपये खर्च से जो कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, उनकी असलियत क्या है? 
           पिछले दो दशक के दौरान केन्द्र सरकार देश में विभिन्न जल प्रदूषण नियंत्रण परियोजनाओं, मसलन गंगा और यमुना कार्य योजनाओं पर अब तक लगभग बीस हजार करोड़ रूपये खर्च कर चुकी है। लेकिन अब तक इसके कोई खास नतीजे नहीं आये हैं। उल्टे दिल्ली से गुजरने वाली यमुना की जो हालत हो गई है उसे देखते हुए सीएजी ने अपनी रपट में इसे एक ‘मृदा‘ नदी कहा है तो शायद इसमें अतिश्योक्ति नहीं है। कहने को केन्द्र और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक दूसरे के सहयोगी हैं। लेकिन उनके नियंत्रण क्षेत्रों को लेकर ऐसी स्थिति हो गई है कि सीएजी के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे पर एजेंसी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हुई है। एक अध्ययन के मुताबिक बीस राज्यों की सात करोड़ आबादी फ्लोराईड और एक करोड़ लोग सतह के जल में आर्सेनिक की अधिक मात्रा घुल जाने के खतरे से जूझ रहे हैं। इसके अलावा सुरक्षित पेयजल कार्यक्रम के तहत सतह के जल में क्लोराइड, टीडीसी, नाइट्रेट की अधिकता भी बाधा बनी हुई है। 
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब साठ फीसदी बीमारियों की मूल वजह जल प्रदूषण है। जाहिर है, अगर समय रहते बेहतर जल प्रबंधन की दिशा में ठोस पहल नहीं की गई तो इसका परिणाम समूचे समाज को भुगतना पडेगा। जल प्रदूषण नियंत्रण परियोजनाओं पर अरबों खरबों रूपये बहाने के बजाय जरूरत इस बात की है कि कृषि और औद्योगिक क्षत्रों में जल शोधन संयत्रों की स्थापना और संचालन को बढ़ावा दिया जाय। 

पर्यावरण संतुलन के लिये कुछ उपयोगी बिन्दु   

  • पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के लिये जिम्मेदार कारणों में से एक पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने के लिये ग्रीन कंज्यूमर की अवधारणा बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। इससे न केवल पारिस्थितिकी में बल्कि अर्थव्यवस्था मेें भी सुधार होगा। 
  • वर्तमान समय को उत्पादक दौर कहा जा सकता है लेकिन इसकी सार्थकता तब होगी जब गांवों में निर्मित उत्पादों का व्यापक स्तर पर उपयोग हो। ये उत्पाद पूरी तरह शुद्ध होते हैं, जबकि शहरों के उत्पादों में मिलावट की समस्या होती है। ग्रीन कंज्यूमर की अवधारणा गांवों की अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को संतुलित बनाने के साथ-साथ अमीर-गरीब की खाई पाटने में मददगार होगी। 
  • गांवों मे तैयार किए गए उत्पाद मिलावट रहित होने की वजह से सेहत के लिये भी उपयोगी होते हैं, जबकि पर्यावरण प्रदूषण के संकट से दो चार हो रहे शहरों में बड़ी बीमारियों का खतरा हैं। उद्योगपतियों को चाहिए कि वे गांवों में तैयार उत्पादों का उपयोग करें ताकि इन उत्पादों के निर्माताओं को बढ़ावा मिल सके। बेहतर भविष्य के लिये वैसे भी इकाॅनामी और इकोलाॅजी में संतुलन और इनका साथ-साथ विकास जरूरी है। 
  • पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन से जुड़े शिवकेश गुप्ता कहते हैं कि कई प्रदेशों में पाॅलीथिन पूरी तरह प्रतिबंधित हैं, लेकिन इनका उपयोग हो रहा है। पाॅलीथिन का उपयोग कर सड़के बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। ऐसी सड़के बारिश में जल्दी खराब भी नहीं होती है। सड़कों पर पड़े पत्तों की सफाई कर उन्हें जला दिया जाता है, जबकि इन्हीं पत्तों को जमीन में मिट्टी मे दबाने से अच्छी खाद बन सकती हैं। 
  • इन दिनों कई प्रकार के इकोफ्रेेन्डली उत्पाद मिल रहें हैं। कई कम्पनियां ऐसे बैग में अपने उत्पाद उपलब्ध करा रहीं है जो ऐसे पदार्थ से बनी है जिन्हें दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। सौंदर्य से जुडे़ हर्बल उत्पाद, जूट कागज और कपडे़ के थैले और घरों को ठण्डा रखने के लिये खस से बनी पट्टियाँ भी लोकप्रिय हो रहीं है, लेकिन यह दर बहुत धीमी हैं। इकोफ्रेेन्डली उत्पादों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग धीरे-धीरे कम्पनियों को भी प्रेरित करेेगा और वे मांग के अनुरूप ऐसे उत्पाद बनाएंगी। इसके लिये स्वदेशी कम्पनियों को आगे आना चाहिए।                           
मासिक पत्रिका आरोग्य सम्पदा से संकलित

28 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

प्रेरक प्रस्तुति

Unknown ने कहा…

जल प्रदूषण रोकना बहुत जरुरी हैं ..

Manoj Kumar ने कहा…

यह एक सोचनीय विषय है . हम सबको इस हेतु ध्यान देने की जरूरत है

Arogya Bharti ने कहा…

इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

चिंतनीय विषय पर सार्थक विचार और सुझाव

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सार्थक और सुंदर आलेख।

vijay ने कहा…

बड़ी उपयोगी जानकारी
पर्यावरण को बचाना होगा अगर नहीं तो फिर इंसान को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे ........

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सार्थक और विचारणीय पोस्ट ... बहुत सटीक लिखती हैं आप आज की ज्वलंत समस्याओं पर ...
सहमत हूँ आपकी बात पर की भारतदेश में यह समस्या दिन ब दिन विषम होती जा रही है ... पानी कम होने की समस्या तो है ही और जो पानी है वो भी प्रदूषित हो रहा है और हम इस और ध्यान ही नहीं दे रहे हैं ... आशा है सरकार, समाज और व्यवसाई भी इस तरफ ध्यान देंगे ...

RAJ ने कहा…

जल प्रदूषण की ज्वलंत समस्या के विषय को सटीक प्रस्तुत किया है आपने . ..........वास्तव में यह एक बहुत ही गंभीर विषय है

Himkar Shyam ने कहा…

सुंदर, सार्थक और विचारणीय आलेख ....मानव स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ जल का होना नितांत आवश्यक है

Unknown ने कहा…

sabhi ke sochne or dhyan dene ki jarurat hai.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पूर्वजों ने तो जल संरक्षण को अधिकतम महत्व दिया था, हम ही भुला बैठे।

Mithilesh dubey ने कहा…

सार्थक और विचारणीय लेख लिखा है आपने। जल है तो जीवन है

यहाँ भी पधारें
http://chlachitra.blogspot.in/
http://cricketluverr.blogspot.com

virendra sharma ने कहा…

पर्यावरण के प्रति कगबरदारी पैदा करता एक महत्वपूर्ण आलेख ,बधाई।

Ashi ने कहा…

काश, नासमझ लोग इसके महत्व को जान पाते।
............
लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!

Asha Joglekar ने कहा…

दुनिया के 123 देशों में अपने नागरिकों को दूषित जल पिलाने वाले देशों में भारत 121वें स्थान पर है। जबकि हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश हमसे 80वें व श्रीलंका और पाकिस्तान 40वें स्थान ऊपर है। नियम तो हैं पर उनका पालन ठीक से नही हो रहा। उद्योगों के मालिकों को मुनाफे के आगे कुछ सूझता नही। आम लोगों में जागरूकता नही है। धर्म के नाम पर नदियों जलाशयों तालाबों में निर्माल्य का पंचामृत आदि का विसर्जन प्रदूषण बढाता है। प्रदूषण फैलाने वालों को दंड का प्रावधान तो है पर उसका पालन कर्ता ही घूस खा कर इसे रोकता नही है। लोगों को इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी आकिर जल ही तो जीवन है।

Vinars Dawane ने कहा…

sarthk ........

कहकशां खान ने कहा…

बहुत ही सार्थक लेख। इस कड़वी सच्‍चाई से हम सब अच्‍छी तरह रूबरू हुए।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ज्ञानवर्धक और उपयोगी आलेख ।

प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप विनाशकारी हो सकता है।

Harshita Joshi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Harshita Joshi ने कहा…

बढ़िया लेख
http://ghoomofiro.blogspot.in/

virendra sharma ने कहा…

GOOD JOB BUDDY KEEP IT UP .

संजय भास्‍कर ने कहा…

स्वच्छ जल का होना नितांत आवश्यक है

Hindikunj ने कहा…

जल बहुत ही आवश्यक है !
हिंदीकुंज.कॉम

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

SUJATA PRIYE ने कहा…

वाह! बेहतरीन।जल की स्वच्छता एवं रख-रखाव के लिए सार्थक एवं विचारनीय लेखन।बधाई।

शुभा ने कहा…

बहुत ही विचारणीय विषय है यह ..। जल से ही जीवन है बहुत अच्छी जानकारी देता हुआ ,उम्दा लेख .

Rohitas Ghorela ने कहा…

यह वो विषय है जो हमे गम्भीरता से लेना चाहिए।
सार्थक व विचारणीय विषय
लिखावट सिरे की।