हम भाँति-भाँति के पंछी हैं - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 25 जनवरी 2016

हम भाँति-भाँति के पंछी हैं

हम भाँति-भाँति के पंछी हैं पर बाग़ तो एक हमारा है
वो बाग़ है हिन्दोस्तान हमें जो प्राणों से भी प्यारा है
हम  हम भाँति-भाँति के पंछी ………………………

बाग़ वही है बाग़ जिसमें तरह-तरह की कलियाँ हों
कहीं पे रस्ते चंपा के हों कहीं गुलाबी गलियाँ हों
कोई पहेली कहीं नहीं है, सीधा साफ़ इशारा है
हम  हम भाँति-भाँति के पंछी ………………………

बड़ी ख़ुशी से ऐसे-वैसे इकड़े तिकड़े बोलो जी
लेकिन दिल में गिरह जो बाँधी  है वो पहले खोलो जी
सुर में चाहे फर्क हो फिर भी इक  तारा इक तारा
पंजाबी या बंगाली मद्रासी या गुजराती हो
प्रीत की इक बारात है यह हम सबके साथी हो
भेद या बोली कुछ भी हो हम एक शमां  के परवाने
आपस में तकरार करें हम ऐसे तो नहीं दीवाने
मंदिर मस्जिद गिरजा अपना, अपना ही गुरुद्वारा है
हम  हम भाँति-भाँति के पंछी ……………………… 
                                                      …राजेन्द्र कृष्ण

सभी ब्लोग्गर्स एवं पाठकों को गणत्रंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!