उसे स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता है ।
जिसे अत्यधिक स्वतंत्रता मिल जाय,
वह सबकुछ चौपट करने लगता है ।।
फरिश्तों की गुलामी करने से,
शैतानों पर हुकूमत करना भला ।
पिंजरे में बंद शेर की तरह जीने से,
आवारा पशु की तरह रहना भला ।।
दासता की हालत में कोई नियम लागू नहीं होता है ।
स्वतंत्रता खोने वाले के पास कुछ नहीं बचता है।।
दूसरों की गुलामी के निवाले से हृष्ट-पुष्ट हो जाने से,
स्वतंत्रता के साथ दुर्बल बने रहना भला ।
झूठ-फरेब, भ्रष्टाचार, दुराचार-अनाचार भरी शान से
गरीब रहकर घर की रुखी-सूखी खाकर जीना भला ।।
.........कविता रावत
14 टिप्पणियां:
कविता जी, सही कहा आपने। स्वतंत्रता खोने वाले के पास कुछ नहीं बचता है। सुंदर प्रस्तुति।
सही लिखा है .. आज़ादी पर पूरी तरह दूसरे की आज़ादी का ख्याल ख्याल रखते हुए ...
सच है की जब तक अंतस आज़ाद नहीं ... सच्ची आज़ादी नहीं ...
शब्दशः सत्य एवं पुष्ट ।
wah! kya khub likha hai.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-08-2016) को "कल स्वतंत्रता दिवस है" (चर्चा अंक-2434) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
अच्छी बातें परोसीं।
जो अपना स्वामी स्वयं नहीं,
उसे स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता है ।
ध्रुव सत्य
सादर
एकदम सही.कहा.आपने कविता जी । सुदंर रचना ।
एकदम सही.कहा.आपने कविता जी । सुदंर रचना ।
सुंदर एवम् सत्य कथ्य..
स्वतंत्रता खो देने के बाद ही वैसे बहुत कुछ बचा रहे हैं लोग सुना है :)
सुन्दर प्रस्तुति ।
सच कहा, सोने के पिंजरे से भला तिनके का घोसला।
कटु सत्य तो यही है
सादर
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