हर आदमी किसी न किसी के काम का जरूर होता है
लेकिन ...............
कुछ लोग कहते हैं कि कुछ लोग किसी काम के नहीं होते
फिर भी बहुत लोग जाने क्यों उन्हें हरदम घेरे रहते हैं ?
मैं कहती हूँ कि कुछ न कुछ छुपी कला तो है उनमें
वर्ना यूँ ही लोग कहाँ किसी की पूछ-परख करते हैं
(सनद रहे कि 64 कलाओं में से कम से कम एक कला का हर इंसान स्वामी होता है, जो पर्याप्त है जीने के लिए। ये बात और है कि उसे कौन सी कला में महारत हासिल है )
(2)
वे छुपाते हैं राज-ए-कारनामे दुनिया वालों से
जो हरदम दुनिया वालों की नजरों में रहते हैं
माना कि वे रखते हैं दुनिया वालों पर नज़र
पर एक दिन दुनिया वाले भी उनकी खबर लेते हैं
(कच्चे-चिट्ठों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है)
(3)

कुछ न कुछ बात रहती है जब
तभी वह बाहर तक फैलती है
जहाँ धुंआ उठ रहा होता है
वहाँ आग जरूर मिलती है
(न अकारण कोई बात और न धुंआ उठता है)
(4)
वे हारकर भी कहाँ हारे
जो रंग दे सबको अपने रंग में
कुशल घुड़सवार भी गिरते हैं
मैदान-ए-जंग में
(कौन कितना कुशल है इसकी असली परीक्षा मैदाने-ए -जंग में ही होती है)\
लेकिन ...............
कुछ लोग कहते हैं कि कुछ लोग किसी काम के नहीं होते
फिर भी बहुत लोग जाने क्यों उन्हें हरदम घेरे रहते हैं ?
मैं कहती हूँ कि कुछ न कुछ छुपी कला तो है उनमें
वर्ना यूँ ही लोग कहाँ किसी की पूछ-परख करते हैं
(सनद रहे कि 64 कलाओं में से कम से कम एक कला का हर इंसान स्वामी होता है, जो पर्याप्त है जीने के लिए। ये बात और है कि उसे कौन सी कला में महारत हासिल है )
(2)
वे छुपाते हैं राज-ए-कारनामे दुनिया वालों से
जो हरदम दुनिया वालों की नजरों में रहते हैं
माना कि वे रखते हैं दुनिया वालों पर नज़र
पर एक दिन दुनिया वाले भी उनकी खबर लेते हैं
(कच्चे-चिट्ठों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है)
(3)

कुछ न कुछ बात रहती है जब
तभी वह बाहर तक फैलती है
जहाँ धुंआ उठ रहा होता है
वहाँ आग जरूर मिलती है
(न अकारण कोई बात और न धुंआ उठता है)
(4)
वे हारकर भी कहाँ हारे
जो रंग दे सबको अपने रंग में
कुशल घुड़सवार भी गिरते हैं
मैदान-ए-जंग में
(कौन कितना कुशल है इसकी असली परीक्षा मैदाने-ए -जंग में ही होती है)\
16 टिप्पणियां:
Satik aewem sarthak sabdo ki prastuti..
Satik aewem sarthak sabdo ki prastuti..
वाह! जी वाह! जुबां पर चढ़ने वाली शायरी है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-09-2016) को "शुभम् करोति कल्याणम्" (चर्चा अंक-2453) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
हर इंसान में कुछ न कुछ खुबी अवश्य होती है। लेकिन कई बार इंसान की पूरी जिंदगी निकल जाती है इस खुबी को तलाशने में! सुंदर प्रस्तुति!
हर इंसान में कुछ न कुछ खुबी अवश्य होती है। लेकिन कई बार इंसान की पूरी जिंदगी निकल जाती है इस खुबी को तलाशने में! सुंदर प्रस्तुति!
बहुत खूब ... हर छंद अपने आप में गहरा सन्देश लिए है ... सार्थक और सकारात्मक बात जो सोचने और समझने लायक है ... सुन्दर प्रस्तुति है ...
वाह ! क्या छलका तेरे अंदाज का रंग ....
वे छुपाते हैं राज-ए-कारनामे दुनिया वालों से
जो हरदम दुनिया वालों की नजरों में रहते हैं
माना कि वे रखते हैं दुनिया वालों पर नज़र
पर एक दिन दुनिया वाले भी उनकी खबर लेते हैं
मतलब की बात लिखी है आपने !!
Waaaah lajwaaab prastuti !
कुछ न कुछ बात रहती है जब
तभी वह बाहर तक फैलती है
जहाँ धुंआ उठ रहा होता है
वहाँ आग जरूर मिलती है
... गहरा सन्देश लिए है आपके छंद
shandar
बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली रचना की प्रस्तुति। मुझे बहुत पसंद आई।
बड़ी दार्शनिकता भरी पोस्ट।
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