“लब्धास्पदोऽस्मीति विवादभीरोस्तितिक्षमाणस्य परेण निन्दाम्।
यस्यागमः केवल जीविकायां तं ज्ञानपण्यं वाणिजं वदन्ति।। "
- अर्थात जो अध्यापक नौकरी पा लेने पर शास्त्रार्थ से भागता है, दूसरों के अंगुली उठाने पर चुप रह जाता है और केवल पेट पालने के लिए विद्या पढ़ाता है, ऐसा व्यक्ति पंडित (शिक्षक) नहीं वरन् ज्ञान बेचने वाला बनिया कहलाता है। लेकिन दुःखद पहलू है कि आज ज्ञान से पेट भरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा नजर आती है। स्वतंत्रता के पश्चात् जिस तीव्र गति से विद्यालयों की संख्या बढ़ी उस अनुपात में शिक्षा का स्तर ऊँचा होने के बजाय नीचे गिरना गंभीर चिन्ता का विषय है। आज शासकीय और शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों में अध्यापन और अनुशासन का बुरा हाल जब-तब जगजाहिर होना आम बात है। बावजूद इसके जब कोई शिक्षक या प्राचार्य राजनीतिक दांव-पेंच के माध्यम से सम्मानित होता है तो यह एक निराशाजनक स्थिति निर्मित करता है। जिस प्रकार दाल-चावल में कंकर देखकर उसे अनुपयोगी न मानकर उसमें से कंकर चुनकर उन्हें बाहर कर उसका सदुपयोग किया जाता है, उसी प्रकार यदि शासन-प्रशासन बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के प्रति समर्पित अध्यापकों को ही सम्मानित करें तो ‘शिक्षक दिवस‘ और भी गौरवान्वित होकर सार्थकता को प्राप्त होगा।
शिक्षक दिवस और गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित..... कविता रावत
सुंदर प्रस्तुति। शिक्षक दिवस और गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सामयिक लेख ..
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस व गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं
सुंदर लेख. पर अब शिक्षक होना भी किसी दूसरे काम या जॉब की तरह ही है. आदर्श से दूर.
जवाब देंहटाएंभारत वर्ष की तो परम्परा ही गुरु शिष्या की रही है ... और कहा गुरु का मान रहता है वो देश हमेशा आगे रहता है ... इसी परम्परा को देश के ऊँच लोगों ने भी निभाया है ... हार्दिक शुभकामनाएँ और गणेश जी के आगमन की भी बधाई ...
जवाब देंहटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति शिक्षक दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंअर्थात जो अध्यापक नौकरी पा लेने पर शास्त्रार्थ से भागता है, दूसरों के अंगुली उठाने पर चुप रह जाता है और केवल पेट पालने के लिए विद्या पढ़ाता है, ऐसा व्यक्ति पंडित (शिक्षक) नहीं वरन् ज्ञान बेचने वाला बनिया कहलाता है। बढ़िया लेखन कविता जी ! लेकिन शिक्षक को भी अपना , अपने बच्चों का पेट पालन करना होता है ! उसे आर्थिक रूप से मजबूत बनने दिया जाए तब शायद वो सही रूप में अपनी परिभाषा को जी पाए !!
जवाब देंहटाएंSteek lekhan ......
जवाब देंहटाएंGaneshotsv ki anant shubhkamnayen !!
बहुत सारगर्भित और सटीक विवेचन...शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशिक्षक की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है। बच्चे कच्ची माटी से तैयार घडों की मानिंद होते हैं। जिन्हें एक शिक्षक ही पका कर राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगाता है। अच्छे और योग्य शिक्षकों को समर्पित है आपका लेख।
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-10-2016) के चर्चा मंच "मातृ-शक्ति की छाँव" (चर्चा अंक-2490) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक विश्लेषण ...
जवाब देंहटाएंसुंदर सारगर्भित लेख कविता जी।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने कविता जी , आज शिक्षक ज्ञान बहने वाला बनिया बन गया है | उसे केवल तनख्वाह से मतलब है | शिक्षकों को बच्चों की समस्याओं व्को बाल मनोविज्ञान समझना व् उसके अनुसार शिक्षा देना ही उनके पद को गरिमामय बनता है | ... सारगर्भित आलेख
जवाब देंहटाएंशिक्षक का महत्त्व भी उतना है जितना गुरु का ... गुरु आध्यात्म, स्वयं, समाज और शिक्षक समाज, जीविका और सनास से जोड़ता है ... उसके महत्त्व को कम नहीं किया जा सकता ... हाँ आज कर शिक्षा एक व्यवसाय है जीविकचालाने का माध्यम है इसलिए सारे दायित्व पूरे न कर पता हो ... पर उसका महत्त्व आज ज्यादा है ...
जवाब देंहटाएंआज के बदलते परिवेश में शिक्षक का महत्व मान और तरीक़ा बदल रहा है ... मान्यताएँ जब बदलती हैं तो पात्र भी बदलते हैं ...
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख ...
बहुत सुंदर लेख लिखा आपने 👌
जवाब देंहटाएंसच ही कहा है कविता जी " जिसमें अपने कर्तव्य के प्रति कर्तव्य हीनता है वह वास्तव में शिक्षक नही कहा जा सकता है शिक्षक का ध्येय शिष्य को अपने ज्ञान के अनुसार गुणवत्ता युक्त शिक्षा देना है नही तो वह केवल धोकेबाज व्यापारी है सच्चा व्यापारी भी नही https://www.ayurvedlight.com
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेख !
जवाब देंहटाएं