राष्ट्र निर्माता और संस्कृति संरक्षक होता है शिक्षक - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 5 सितंबर 2016

राष्ट्र निर्माता और संस्कृति संरक्षक होता है शिक्षक

शिक्षक को राष्ट्र का निर्माता और उसकी संस्कृति का संरक्षक माना जाता है। वे शिक्षा द्वारा  छात्र-छात्राओं को सुसंस्कृतवान बनाकर उनके अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर देश को श्रेष्ठ नागरिक प्रदान करने में अहम् दायित्व निर्वहन करते हैं। वे केवल बच्चों को न केवल साक्षर बनाते हैं, बल्कि अपने उपदेश के माध्यम से उनके ज्ञान का तीसरा नेत्र भी खोलते हैं, जिससे उनमें भला-बुरा, हित-अहित सोचने की शक्ति उत्पन्न होती हैं और वे राष्ट्र की समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सक्षम बनते हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का अध्यापन कार्य महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहा बावजूद इसके उन्होंने अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाये जाना का संकल्प किया। इसका कारण स्पष्ट है कि वे भलीभांति जानते थे कि माध्यमिक शिक्षण संस्थानों में छात्र-छात्राओं में जो संस्कार अंकुरित होते हैं, वे ही आगे चलकर महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पल्लवित होते हैं।
           'मालविकाग्रिमित्रम' नाटक में महाकवि कालिदास ने कहा हैं-
 “लब्धास्पदोऽस्मीति विवादभीरोस्तितिक्षमाणस्य परेण निन्दाम्।
 यस्यागमः केवल जीविकायां तं ज्ञानपण्यं वाणिजं वदन्ति।। "
          - अर्थात जो अध्यापक नौकरी पा लेने पर शास्त्रार्थ से भागता है, दूसरों के अंगुली उठाने पर चुप रह जाता है और केवल पेट पालने के लिए विद्या पढ़ाता है, ऐसा व्यक्ति पंडित (शिक्षक) नहीं वरन् ज्ञान बेचने वाला बनिया कहलाता है। लेकिन दुःखद पहलू है कि आज ज्ञान से पेट भरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा नजर आती है। स्वतंत्रता के पश्चात् जिस तीव्र गति से विद्यालयों की संख्या बढ़ी उस अनुपात में शिक्षा का स्तर ऊँचा होने के बजाय नीचे गिरना गंभीर चिन्ता का विषय है। आज शासकीय और शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों में अध्यापन और अनुशासन का बुरा हाल जब-तब जगजाहिर होना आम बात है। बावजूद इसके जब कोई शिक्षक या प्राचार्य राजनीतिक दांव-पेंच के माध्यम से सम्मानित होता है तो यह एक निराशाजनक स्थिति निर्मित करता है। जिस प्रकार दाल-चावल में कंकर देखकर उसे अनुपयोगी न मानकर उसमें से कंकर चुनकर उन्हें बाहर कर उसका सदुपयोग किया जाता है, उसी प्रकार यदि शासन-प्रशासन बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के प्रति समर्पित अध्यापकों को ही सम्मानित करें तो ‘शिक्षक दिवस‘ और भी गौरवान्वित होकर  सार्थकता को प्राप्त होगा। 

शिक्षक दिवस और गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित..... कविता रावत