पुस्तक प्रकाशन और समीक्षा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

बुधवार, 5 जनवरी 2022

पुस्तक प्रकाशन और समीक्षा



हर कोई लिखने वाला दिल से चाहेगा कि यदि उसका लिखा एक पुस्तक के स्वरुप में उसके सामने आ जाय तो वह पल उसके लिए कितना बड़ा सुखकर होगा!  लेकिन यह किसी भी लेखक के लिए लिखने से अधिक उसे पुस्तक रूप में देख पाना कठिन होता है। इसी कठिनाई को दृष्टिगत रखते हुए शब्‍द.इन  ने हिन्दी लेखकों को एक ऐसा मंच समर्पित किया है, जहाँ कोई भी लेखक अपनी किताबें लिखकर उसे निःशुल्क प्रकाशित करा सकता है। इसी कड़ी में जब  शब्‍द.इन  मंच द्वारा  पुस्तक लेखन प्रतियोगिता  का आयोजन किया गया तो मैंने भी देर से ही सही लेकिन उसमें भाग लिया और अपनी  5 पुस्तकों (2 कविता संग्रह लोक उक्ति में कविता एवं  यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता , एक यात्रा संस्मरण कुछ खट्टे-मीठे पल,  एक संस्मरण कुछ भूली बिसरी यादें और एक कहानी संग्रह होंठों पर तैरती मुस्‍कान ) का प्रकाशन किया है।  इसी तारतम्य में मेरे काव्य संग्रह 'यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता" पर हिंदी के जाने-माने साहित्यकार और ब्लॉगर रवि रतलामी जी ने अपने ब्लॉग "छींटे और बौछारें" में कुछ इस प्रकार समीक्षा लिखी है :  

           कविता रावत का कविता संग्रह - यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता - कई मामलों में विशिष्ट कही जा सकती है. संग्रह की कविताएँ वैसे तो बिना किसी भाषाई जादूगरी और उच्चकोटि की साहित्यिक कलाबाजी रहित, बेहद आसान, रोजमर्रा की बोलचाल वाली शैली में लिखी गई हैं जो ठेठ साहित्यिक दृष्टि वालों की आलोचनात्मक दृष्टि को कुछ खटक सकती हैं, मगर इनमें नित्य जीवन का सत्य-कथ्य इतना अधिक अंतर्निर्मित है कि आप बहुत सी कविताओं में अपनी स्वयं की जी हुई बातें बिंधी हुई पाते हैं, और इन कविताओं से अपने आप को अनायास ही जोड़ पाते हैं.

एक उदाहरण -

मैं और मेरा कंप्यूटर

कभी कभी 

मेरे कंप्यूटर की

सांसें भी हो जाती हैं मद्धम

और वह भी बोझिल कदमों को

आगे बढ़ाने में असमर्थ  हो जाता है

मेरी तरह

और फिर

चिढ़ाता है मुझे

जैसे कोई छोटा बच्चा

उलझन में देख किसी बड़े को

मासूमियत से मुस्कुराता है

चुपचाप !

कभी यह मुझे 

डील डौल  से चुस्त -दुरुस्त

उस बैल के तरह

दिखने लगता है जो बार-बार

जोतते ही बैठ जाता है अकड़कर

फिर चाहे कितना ही कोंचो

पुचकारो

टस से मस नहीं होता! ….

           यदि आप इन पंक्तियों को पढ़ पा रहे हैं तो निश्चित रूप से आप भी कंप्यूटिंग उपकरणों का उपयोग कर रहे होंगे. कभी इन उपकरणों ने अपनी क्षमताओं से आपको रिझाया होगा, अपने कार्यों से आपको खुश किया होगा, और  कभी कहीं अटक-फटक कर - हैंग-क्रैश होकर या आपको कहीं मेन्यू में अटका-उलझा कर परेशान भी किया होगा. कविता रावत ने कितनी खूबसूरती से इस अनुभव को बहुत ही सरल शब्दों में बयान किया है.

         संग्रह में आधा सैकड़ा से भी अधिक विविध विषय व विधा की कविताएं संग्रहित हैं. कुछ के शीर्षक से ही आपको अंदाजा हो सकता है कि किस बारे में बात की जा रही होगी, अलबत्ता अंदाजे बयाँ जुदा हो सकता है -

गूगल बाबा

हम भोपाली

मेरी बहना जाएगी स्कूल

प्यार का ककहरा

गांव छोड़ शहर को धावे

होली के गीत गाओ री

…आदि.


         ऐसा नहीं है कि संग्रह में, जैसा कि ऊपर शीर्षकों में वर्णित है, रोजमर्रा जीवन के सहज सरल विषयों पर कविताई की भरमार है. बल्कि बहुत सी सूफ़ियाई अंदाज की बातें भी हैं. जैसे कि इन शीर्षकों से दर्शित हैं -

जिंदगी रहती कहां है

क्या रखा है जागने में

जब कोई मुझसे पूछता है

लगता पतझड़ सा यह जीवन

जग में कैसा है यह संताप


…आदि.

          ऐसी ही एक ग़ज़ल, जिसका शीर्षक है - चुप मत रह एक लप्पड़ मार के तो देख - की एक पंक्ति है -

बहुत हुआ गिड़गिड़ाना हाथ-पैर जोड़ना

चुप मत रह एक लप्पड़ मार के तो देख.

        जो आज के सामाजिक, राजनैतिक परिदृष्य में इस आवश्यकता को दर्शित करता है कि व्यक्ति को अब अपने हक के लिए आवाज उठानी ही होगी.

          संग्रह में कुछ विशिष्ट प्रतिमान लिए प्रेम कविताएँ भी हैं, कुछ बाल-कविताएँ-सी भी हैं, देश-प्रेम भी है, तो पारिवारिक स्नेह बंधन को जांचते परखते स्त्रैण लेखन का प्रतिरूप स्वरूप खास कविताएं भी. यथा -

कहीं एक सूने कोने में

भरे-पूरे परिवार के बावजूद

किसी की खुशियाँ

बेवसी, बेचारगी में सिमटी देख

दिल को पहुँचती है गहरी ठेस

सोचती हूं

क्यों अपने ही घर में कोई

बनकर तानाशाह चलाता हुक्म

सबको नचाता है अपने इशारों पर

हांकता है निरीह प्राणियों की तरह

डराता-धमकाता है दुश्मन समझकर

केवल अपनी ख़ुशी चाहता है

क्यों नहीं देख पाता वह

परिवार में अपनी ख़ुशी!

माना कि स्वतंत्र है

अपनी जिंदगी जीने के लिए

खा-पीकर,

देर-सबेर घर लौटने के लिए

           संग्रह में हर स्वाद की कविताएँ मौजूद हैं जिससे एकरसता का आभास नहीं होता, और संग्रह कामयाब और पठनीय बन पड़ा है. जहाँ आज चहुँओर घोर अपठनीय कविताओं की भरमार है, वहाँ, कविता रावत एक दिलचस्प, पठनीय और सफल कविता संग्रह प्रस्तुत करने में सफल रही हैं।

 रवि रतलामी


एक विशेष अनुरोध-

मेरा सभी ब्लॉगर साथियों ने अनुरोध है कि वे भी शब्द.इन मंच पर अकाउंट बनाकर अपनी पुस्तकों को पुस्तकाकार रूप में संकलित करें, जिससे आपके लिखे के साथ-साथ हमारी हिंदी भाषा का वैश्विक स्तर पर अधिकाधिक प्रचार-प्रसार संभव हो सके। यदि कोई भी ब्लॉगर साथी मेरा मनोबल बढ़ाने और मुझे निरंतर लेखन हेतु प्रोत्साहित करने से उद्देश्य से मेरी पुस्तकों पर समीक्षा लिखना चाहे तो उनका हार्दिक स्‍वागत है।  मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी, उनका आभार होगा। समीक्षा सीधे नीचे दिए गए पुस्तकों के लिंक पर जाकर या फिर मेरे ईमेल आईडी  kavitarawatbpl@gmail.com पर भेज सकते हैं। 

शब्द.इन मंच पर मेरी पुस्तकों का लिंक क्रमशः इस प्रकार हैं -    

यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता  

लोक उक्ति में कविता

कुछ भूली बिसरी यादें

कुछ खट्टे-मीठे पल

होंठों पर तैरती मुस्‍कान


 

10 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-01-2022) को चर्चा मंच      "नसीहत कचोटती है"   (चर्चा अंक-4300)     पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
-- 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

Jyoti Dehliwal ने कहा…

इतनी सारी पुस्तको के लिए बहुत बहुत बधाई, कविता दी।

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर चित्रण और सुझाव

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

Bharti Das ने कहा…

बहुत सुंदर, अनंत शुभकामनाएं

मन की वीणा ने कहा…

आपकी पुस्तकों के बारे में जानकारी, और - 'यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता ' की समालोचना सब कुछ अप्रतिम।
हृदय से बधाई आपको, पुस्तकों के सफल संपादन के लिए, और नये संकलनों के लिए शुभकामनाएं।

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी एक रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नववर्ष मंगलमय हो।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बहुत बढ़िया खबर कविता जी, आपकी पुस्तकों का प्रकाशन सच में उत्साह से सराबोर कर गया। रवि रतलामी जी की समीक्षा भी अप्रतिम है जो पुस्तकों के प्रति दिलचस्पी बढ़ा गई ।
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और असंख्य बधाइयां 💐💐

बेनामी ने कहा…

well done! congratulation on publishing books on whole sale trade format.

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

कविता offline पुस्तक रूप में कैसे मिलेगी। गिरधारी खंकरियाल