मैं उपहार की पैकिंग खोलते हुए सोच रही थी कि आज तक तो मैं ही इन्हें उपहार की बात छोड़ो, छोटी-छोटी चीजें भी लाकर देती हूँ। फिर आज ये ऐसा कौन सा उपहार देने चले मुझे, देखूँ तो और जैसे ही मैंने बाहर की पैकिंग उधेड़ी और अंदर झाँक कर देखा तो उसमें मुझे 'सचिन कम्प्यूटर डेल्हीवेरी' कुरियर कंपनी का एक पेड 'कैश मेमो' जिस पर 'बुक' लिखा था, मिला तो मैं समझ गयी कि इसमें तो किताबें हैं। अब मेरी उत्सुकता बढ़ी कि देखूँ आखिर कौन सी किताबें हैं, मैंने जल्दी से फाड़कर किताबें बाहर निकाली तो उन पर 'यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता" और नीचे 'कविता रावत' लिखा देखा तो मैं अवाक रह गई। मेरे मुँह से निकला, 'अरे! ये तो मेरी कविताओं का संग्रह है! ये किसने छाप दिया!" यह सुनकर पतिदेव बोले,'बधाई हो। अब फिर कभी मत कहना कि मैं आज दिन तक तुम्हारे लिए कोई उपहार नहीं लाया।" मैं मुस्कुराते हुए 'हाँ, बाबा हाँ, नहीं कहूँगी ' कहते हुए किताब को उलट-पुलट कर देखने लगी और सोचती रही कि मैं खामख्वाह ही कभी-कभी इन्हें 'कभी कोई चीज नहीं लाते मेरे लिए' कह देती हूँ। मैं और मेरे जीवनसाथी "साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जायेगा मिल कर बोझ उठाना" गीत की तरह हर कदम पर एक-दूसरे का साथ देते हैं, जिसका साक्ष्य मेरा यह 'यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता' काव्य संग्रह का प्रकाशन है। यदि वे शब्द.इन टीम की सहायता प्रकोष्ठ से सम्पर्क कर चुपके-चुपके मेरे इस 'कविता संग्रह' का प्रकाशन करवा कर मुझे उपहार स्वरुप भेंट न करते तो शायद इस कविता की कवितायेँ यूँ ही इधर-उधर बिखरी-बिखरी जाने कब तक मेरा मुँह ताकती रहती।
लोकोक्तियों पर आधारित मेरे पहले काव्य संग्रह 'लोक उक्ति में कविता' के उपरांत "यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता" मेरा दूसरा काव्य संग्रह है। इस संग्रह में मैंने बिना किसी भाषाई जादूगरी और उच्चकोटि की साहित्यिक कलाबाजी के स्थान पर दैनिक जीवन की आम बोलचाल की भाषा-शैली को प्राथमिकता दी है। संग्रह में कई विषय व विधा की कविताएं संग्रहीत हैं। संग्रह में एक ओर जहाँ आपको कुछ कविताओं में आज के सामाजिक, राजनैतिक परिदृष्य में अपने हक के लिए आवाज उठाने की गूँज सुनाई देगी, वहीँ दूसरी ओर कुछ विशिष्ट प्रतिमान लिए, कुछ प्रेम और कुछ देश-प्रेम की कविताओं के साथ कुछ पारिवारिक स्नेह बंधन के प्रतिरूप स्वरूप खास कविताएं भी.पढ़ने को मिलेंगी। संग्रह में एकरसता का आभास न हो इसलिए मैंने इसमें हर स्वाद की कविताओं को परोसा है। निष्कर्ष रूप से यह पुस्तक आम आदमी और अपने सुख-दुःख, संवेदनाओं व सामाजिक विषमताओं के बीच मन में उमड़ी गहन संवेदना और उससे दिल में उमड़ते-घुमड़ते खट्टे-मीठे अनुभवों व विचारों का संग्रह है, जिसे अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक नित्य नैमित कर्म समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस तक पहुंचाने का यह मेरा एक प्रयास है।
मेरा यह काव्य संग्रह साहित्य एवं पुस्तक प्रेमी पाठकों के लिए शब्द.इन के प्लेटफॉर्म पर ऑनलान एडिशन और पेपरबैग दोनों रूप में उपलब्ध है, जिसे आप शब्द.इन प्लेटफॉर्म के निम्न लिंक पर जाकर ऑनलान एडिशन और पेपरबैग दोनों रूप में खरीद सकते हैं-
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