धर्मेन्द्र मांझी मध्यप्रदेश से एक छोटे से अति पिछड़े गाँव भारकच्छ कला का रहने वाला है। उसके गाँव के स्कूल में विज्ञान विषय न होने से उसने दूसरे गाँव के स्कूल में जाकर खुद दिहाड़ी-मजदूरी करके पढ़ाई की। उसे स्कूल भी उसी के जैसा तंगहाल मिला फिर भी उसने जैसे-तैसे १२वीं पास की और फिर अपने घरवालों के लाख मना करने पर भी एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए घर को बिना बताए भोपाल भाग आया। जहाँ उसने सर्वदा विपरीत परिस्थितियों में अपनी जिद्द,जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति के बलबूते १० वर्ष तक की कठोर साधना के बाद मेडिकल की प्रवेश परीक्षा नीट पास करके भोपाल स्थित चिरायु मेडिकल काॅलेज एंड हॉस्पिटल में दाखिला लिया। यहाँ एक बात स्पष्ट है कि जहाँ सर्व सुविधा होने पर भी आज बहुत से छात्र दो-तीन बार असफल होने पर आगे की तैयारी छोड़कर दूसरी राह चल पड़ते हैं, वहीं मांझी ने अपनी अकल्पनीय दयनीय आर्थिक और विकट परिस्थितियों के बाद कई बार असफल होने पर भी हार नहीं मानी और अपनी मंजिल एमबीबीएस डॉक्टर बनने की यात्रा पूरी कर ली, वह समाज के सामने एक अनूठा उदाहरण है।
मांझी के माँ-बाप मजदूरी करते हैं और सब्जी-फल का ठेला लगाते हैं। घर के नाम पर झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। दो जून की रोटी जुटाना भी जिनके लिए मुश्किल है। ऐसे में जब अच्छे-खासे घर के माँ-बाप अपने बच्चों को प्राइवेट कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई जहाँ ५०-६० लाख की फीस होती है, वहां दाखिला दिलाने की सोचते तक नहीं हैं, वहीँ एक ऐसे घर का बच्चा जब अपने बचपन के सपने की खातिर अपनी अधकचरी शिक्षा और गरीबी लेकर भोपाल आता है और वह दुनिया भर के तमाम कष्ट, यातनाएं, दुर्दिन, टूटन, बिखरन, हताशा-निराशा सब कुछ सहन कर अपनी राह से नहीं भटकता है और अपनी मंजिल पा कर ही दम लेता है, क्या आप ऐसे आर्थिक, सामाजिक और मानसिक संत्रासों से गुजरकर एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर डॉक्टर बने दशरथ मांझी की तरह एक और मांझी-धर्मेंद्र मांझी से एक बार भी मिलना नहीं चाहेंगे? उसके बारे में एक बार भी जानना नहीं चाहते कि कैसे उसने २७ वर्ष तक तपस्या कर अपना मुकाम हासिल किया? तो मिलिए 'एक और मांझी' से जो आपसे महज एक क्लिक की दूरी पर है। जानिए कैसे उसने अपनी घोर गरीबी के बीच एक छोटे से गांव से भागते हुए भोपाल पहुंचकर फटे पुराने कपड़े और नंगे पाँव चल-चल कर अपनी 'डॉक्टर बनने के जिद्द' के चलते लोगों से पहले माँग-माँग कर और फिर शासन-प्रशासन तंत्र की अभेद व्यूह रचना को भेदकर अपनी २७ वर्ष की तपस्या के बल पर अपने बचपन से देखते आये 'डॉक्टर बनने के सपने' को साकार कर समाज के सामने एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है।
आज और अभी मिलिए हमारे इस गुदड़ी के लाल "एक और मांझी-धर्मेन्द्र मांझी'' से, जो आपसे मिलने के लिए "गरीबी में डॉक्टरी" में तैयार बैठा है। समीक्षा में अपने विचार व्यक्त अवश्य व्यक्त करें।
विशेष आग्रह: यह पुस्तक हमारी शब्द.इन प्लेटफॉर्म पर 'पुस्तक लेखन प्रतियोगिता' माह फरवरी २०२२ के लिए लिखी गयी है। इस पुस्तक की १० कहानियों में से मुख्य कहानी गरीबी में डॉक्टरी है। यह कहानी कोई कोरी कल्पित कहानी नहीं बल्कि एक सर्वथा सत्य पर आधारित संघर्ष गाथा है। इसके सूत्रधार धर्मेंद्र मांझी के साथ पग-पग पर चलकर ही हम इस व्यथा-कथा लिखने में सफल हो पाए हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि आपको हमारी मुख्य कहानी के अलावा भी अन्य कहानियों में से कोई न कोई कहानी अवश्य अच्छी लगेगी, मन को भाएगी, प्रेरणा मिलेगी और आप पढ़कर निराश नहीं होंगे। इसलिए कृपया पुस्तक को ऑनलाइन खरीदिये और हमारी कहानियों को पढ़ने के पश्चात् समीक्षा जरूर लिखें और हमें इस प्रतियोगिता में सफल बनाने में अपना योगदान दें।