चिंतन और व्यवहार बनाता है आचरण
और वातावरण से निर्मित होती है परिस्थितियाँ
जो निर्धारक है सुख-दुःख और उत्थान-पतन की
आज बहुधा यही सुनने में आता है
कि जमाना बुरा है, कलयुगी दौर है
परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं
और भाग्य चक्र उल्टा है
और इसी उधेड़बुन में बिना जड़ों को सींचे
सूखे मुरझाये पेड़ों को हरा-भरा बनाने की
कोशिश जारी है
आस्थाओं का स्तर गिरना जारी है
और संकीर्ण स्वार्थपरता का विलासी परितोषण
बनता जा रहा है जीवन लक्ष्य
वैभव भा रहा है हर किसी को
इसके साथ ही बढ़ रही है समृद्धि
पर रोग-कलह, पशु-प्रवृत्ति, अपराध-वृत्ति व मनोरोग वृद्धि
दुगुनी रफ़्तार से बढ़ रहे हैं
और धीरे-धीरे मानव स्वयं दस्तक दे रहा है
महाविनाश युद्ध की विभीषिकाओं के द्वार पर
-कविता रावत