चिंतन और व्यवहार बनाता है आचरण
और वातावरण से निर्मित होती है परिस्थितियाँ
जो निर्धारक है सुख-दुःख और उत्थान-पतन की
आज बहुधा यही सुनने में आता है
कि जमाना बुरा है, कलयुगी दौर है
परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं
और भाग्य चक्र उल्टा है
और इसी उधेड़बुन में बिना जड़ों को सींचे
सूखे मुरझाये पेड़ों को हरा-भरा बनाने की
कोशिश जारी है
आस्थाओं का स्तर गिरना जारी है
और संकीर्ण स्वार्थपरता का विलासी परितोषण
बनता जा रहा है जीवन लक्ष्य
वैभव भा रहा है हर किसी को
इसके साथ ही बढ़ रही है समृद्धि
पर रोग-कलह, पशु-प्रवृत्ति, अपराध-वृत्ति व मनोरोग वृद्धि
दुगुनी रफ़्तार से बढ़ रहे हैं
और धीरे-धीरे मानव स्वयं दस्तक दे रहा है
महाविनाश युद्ध की विभीषिकाओं के द्वार पर
-कविता रावत
12 टिप्पणियां:
इसी उधेड़बुन में बिना जड़ों को सींचे
सूखे मुरझाये पेड़ों को हरा-भरा बनाने की
कोशिश जारी है
sahi taraf ingit kiya hai
आज के जीवन का कटु सत्य तो है ही ये पर उसे याद दिलाने के लिए आभार.सब कुछ जानते हुए भी हम उसे भूल जाते हैं या उसको भूलने का दिखावा करते हैं आभार .
rasim ji aur rachan ji ne bilkul sahi kaha hai
katu satya hai ye aaj ka
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
sach me aastha ka star girta jaa raha hai , sundar prastuti
ye sab jeevan ka chakr hai kitni bhi bhaotikta me jiye par laout ke aana hi der hi sahi .
जीवन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
सुंदर शब्दों का बेहतरीन उपयोग किया है आपने, ब्लॉग की सेटिंग और बेहतर की जा सकती है .
ये सच है .... सटीक बात कही है आपने .....
अगर कभी भी इस दुनिया का विनाश हुवा तो मानव खुद ही जिम्मेवार होगा इसके लिए ..
बहुत बहुत बहुत बढ़िया रचना \सत्य |आस्था का स्तर गिर रहा है ,स्वार्थपरता बढ़ रही है |सम्रद्धि के साथ मनोरोगों में भी ब्रद्धि हो रही है |आदमी प्रवत्ति जानवर से ज्यादा खराब हो रही है यह सिल सिला न जाने कब से चल रहा है यह आज की बात नहीं है किसी कवि ने सर्प से पूछा था कि तू आदमी के पास रहा नहीं आदमी के साथ रहा नहीं फिर तूने काटना कहाँ से सीखा और जहर कहाँ से पाया
sach yahi hai..
आज आपकी बहुत सारी रचनाएँ पढ़ी....हर रचना पर सोचा टिप्पणी दूँ लेकिन फिर सोचा जो सबसे ज्यादा सुन्दर लगेगी उसी पर लिखूंगा ....तो आपकी ये रचना और
कड़ाके की घूप में ..
दोनों ही रचनाओं ने दिल पे अपनी गहरी छाप छोड़ी है ..दोनों ही रचनाएँ गहरे भाव समेटे है दाद हाज़िर है क़ुबूल करें
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