सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी से होली मनाओ री।
गा रही हूँ खूब खुशी के मारे, तुम संग मेरे गाओ री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के रंग बरसाओ री।।
आया था बसंत जब, डाली-डाली हरियाली थी,
आकर कोयल आंगन में तब, गीत सुमंगल गाती थी।
फूल खिलते बहारों में, सबके ही मन लुभाती थी,
प्रिय बिनु यह सब तनिक दिल को न भाती थी।।
आया बसंत लौट के, फूलों के रंग में मुझे डुबाओ री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के फाग सुनाओ री।।
घिरकर भादो में काली घटायें, मन विकल कर गई थी,
गरज-गरज कर बरसते बादल, दिल झकझौर करती थी।
निरख दृश्य ऐसे उनकी यादों में खोई-खोई रहती थी,
लेकर आयेंगे होली के रंग, बैचेन दिल को समझाती थी।
लेकर आए वे होली के रंग, तुम भी मेरे संग रंगो री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, होली के गीत गाओ री।।
उछलती कूदती मचलती, कभी खुशी से झूम उठती,
भूलकर अपना बिच्छोह, पल-पल प्रिय गले लगती।
कभी प्रिय गले लगती, कभी खुशी के आसूं बहाती,
भूलकर अपना बिच्छोह, पल-पल प्रिय गले लगती।
कभी प्रिय गले लगती, कभी खुशी के आसूं बहाती,
कभी झूम-झूम, घूम-घूम कर गली-गली घूम आती।।
गली-गली जाकर कहती, तुम संग मेरे झूमो री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे,खूब रंगोली सजाओ री।।
गए जब प्रियतम दूर मुझसे नित बैचेन रहती थी,
प्रिय मिलन की बेला को, नित आतुर रहती थी।
अब सम्मुख कान्हा मेरे, नजरें उनसे चुराती हूँ,
जताकर प्रेम उन्हीं से, गीत सुमंगल गाती हूँ।
गली-गली जाकर कहती, तुम संग मेरे झूमो री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे,खूब रंगोली सजाओ री।।
गए जब प्रियतम दूर मुझसे नित बैचेन रहती थी,
प्रिय मिलन की बेला को, नित आतुर रहती थी।
अब सम्मुख कान्हा मेरे, नजरें उनसे चुराती हूँ,
जताकर प्रेम उन्हीं से, गीत सुमंगल गाती हूँ।
गा रही हूँ खूब खुशी के मारे, तुम संग मेरे गाओ री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के रंग बरसाओ री।।
आया था बसंत जब, डाली-डाली हरियाली थी,
आकर कोयल आंगन में तब, गीत सुमंगल गाती थी।
फूल खिलते बहारों में, सबके ही मन लुभाती थी,
प्रिय बिनु यह सब तनिक दिल को न भाती थी।।
आया बसंत लौट के, फूलों के रंग में मुझे डुबाओ री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के फाग सुनाओ री।।
घिरकर भादो में काली घटायें, मन विकल कर गई थी,
गरज-गरज कर बरसते बादल, दिल झकझौर करती थी।
निरख दृश्य ऐसे उनकी यादों में खोई-खोई रहती थी,
लेकर आयेंगे होली के रंग, बैचेन दिल को समझाती थी।
लेकर आए वे होली के रंग, तुम भी मेरे संग रंगो री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, होली के गीत गाओ री।।
उम्दा होली गीत, आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर होली गीत ,,,
ReplyDeleteRecent post: रंगों के दोहे ,
सुन्दर होली गीत।
ReplyDeleteबहुर सुन्दर मन-भावन गीत कविता जी -बधाई इस सुन्दर गीत के लिए
ReplyDeletelatest post भक्तों की अभिलाषा
latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
आया था बसंत जब, डाली-डाली हरियाली थी,
ReplyDeleteआकर कोयल आंगन में तब, गीत सुमंगल गाती थी।
फूल खिलते बहारों में, सबके ही मन लुभाती थी,
पिय बिनु यह सब तनिक दिल को न भाती थी।।
very nice kavita ji .happy holi to you.
कविता जी बहुत ही सुन्दर गीत प्रकृति और जीवन को
ReplyDeleteझंकृत करता हुआ ,होलो की अग्रिम सुभकामनाएं
होली के गीत गाओ और रंगों में रंग जाओ
ReplyDeleteमंगल मिलन की हार्दिक शुभकामनाएं
होली की हार्दिक मंगलकामनाएँ...
ReplyDeletevery nice song
ReplyDeleteबहुत सुंदर होली गीत .... होली की शुभकामनायें
ReplyDeletebahut sundar geet kavita jee....happy holi...
ReplyDeleteबहुत शानदार और उम्दा !
ReplyDeleteहोली की अग्रिम शुभकामनाएँ स्वीकारें !
जब गीदड़ का लाइसेंस अनपढ़ कुत्तों के आगे काम ना आया
होली के अवसर पर ब्रज की होली के रंग में रंगी होली गीत बहुत सुन्दर लगी ..........................
ReplyDeleteआपको भी होली की शुभकामनायें!!!!!!!!!!!!
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ..होली की शुभकामनायें..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteहोली आई होली आई
ReplyDeleteकान्हा के संग खेलें होली
ग्वाल बाल संग नाचे राधा
कृष्ण गोपियों की हंसी ठिठोली
आया बसंत लौट के, फूलों के रंग में मुझे डुबाओ री।
ReplyDeleteसखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के फाग सुनाओ री।।
बहुत बढियां ,भावपूर्ण चित्रण |
वाह! बहुत ख़ूब! होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 27/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteगए जब प्रियतम दूर मुझसे नित बैचेन रहती थी,
ReplyDeleteप्रिय मिलन की बेला को, नित आतुर रहती थी।
अब सम्मुख कान्हा मेरे, नजरें उनसे चुराती हूँ,
जताकर प्रेम उन्हीं से, गीत सुमंगल गाती हूँ।
होली का मौसम ओर कान्हा की ठिठोली न हो, उसका प्रेम किसी न किसी रूप में न हो ... उसका जिक्र न हो तो होली का त्योहार कहां ... अनुपम भाव लिए मधुर गीत ...
आपको होली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं ...
खुबसूरत होली को समर्पित रचना...शुभ होलिकोत्सव...आपको...सपरिवार...
ReplyDeleteउत्कृष्ट सांगीतिक गीत फाग का भाषिक माधुरी स्वर और ताल लिए ब्रज की मिठास लिए .
ReplyDeleteबढ़िया रचना फाग पे .मुबारक फाग फाग की रीत ,फाग की प्रीत ,फाग के लठ्ठ फाग . की भंग ,राग और रंग .शुक्रिया ज़नाब की सौद्देश्य टिपण्णी का .
होली की बहुत ही सुंदर रचना, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteपधारें " चाँद से करती हूँ बातें "
बहुत ही सुन्दर गीत कविता जी
ReplyDeleteआपको होली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं ..
सुन्दर होली गीत. होली की शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्यारा होली गीत..........
ReplyDeleteHappy HOLI!!!!!
वाह! बहुत सुन्दर होली गीत......... आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबहुत उम्दा सुंदर रचना!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
आया था बसंत जब, डाली-डाली हरियाली थी,
ReplyDeleteआकर कोयल आंगन में तब, गीत सुमंगल गाती थी।
फूल खिलते बहारों में, सबके ही मन लुभाती थी,
प्रिय बिनु यह सब तनिक दिल को न भाती थी।।
आया बसंत लौट के, फूलों के रंग में मुझे डुबाओ री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के फाग सुनाओ री।।
बहुत सुन्दर कविता जी!
..........................................................................
रंग भरी मस्ती और ब्रज की होली ...तिस पर होली में राधा और कान्हा का जिक्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है
.....आपको होली की पुरे परिवार सहित अग्रिम शुभकामनायें
होली के गीत हो और श्याम के बिना पूरा हो जाए..पढ़कर आनंद आ गया .सादर
ReplyDeleteहोली मुबारक
ReplyDeleteअभी 'प्रहलाद' नहीं हुआ है अर्थात प्रजा का आह्लाद नहीं हुआ है.आह्लाद -खुशी -प्रसन्नता जनता को नसीब नहीं है.करों के भार से ,अपहरण -बलात्कार से,चोरी-डकैती ,लूट-मार से,जनता त्राही-त्राही कर रही है.आज फिर आवश्यकता है -'वराह अवतार' की .वराह=वर+अह =वर यानि अच्छा और अह यानी दिन .इस प्रकार वराह अवतार का मतलब है अच्छा दिन -समय आना.जब जनता जागरूक हो जाती है तो अच्छा समय (दिन) आता है और तभी 'प्रहलाद' का जन्म होता है अर्थात प्रजा का आह्लाद होता है =प्रजा की खुशी होती है.ऐसा होने पर ही हिरण्याक्ष तथा हिरण्य कश्यप का अंत हो जाता है अर्थात शोषण और उत्पीडन समाप्त हो जाता है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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आपको रंगों के पावनपर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
घिरकर भादो में काली घटायें, मन विकल कर गई थी,
ReplyDeleteगरज-गरज कर बरसते बादल, दिल झकझौर करती थी।
निरख दृश्य ऐसे उनकी यादों में खोई-खोई रहती थी,
लेकर आयेंगे होली के रंग, बैचेन दिल को समझाती थी।
behad prabhavshali prastuti ke liye aabhar Kavita ji ,
वाह! बहुत ही उत्कृष्ट, बहुत बधाई.
ReplyDeleteहोली के अवसर पर लिखी मेरी रचनाओं पर भी आपका स्वागत है.
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): होली
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): होली नयनन की पिचकारी से
होली की हार्दिक शुभकामनायें!!!
ReplyDeleteमन को आह्लादित करती यह उमंग बनी रहे!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteहोली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ...
:-)
होली की हार्दिक शुभकामनायें!!!
बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत खूब .सुन्दर प्रस्तुति. आपको होली की हार्दिक शुभ कामना .
ना शिकबा अब रहे कोई ,ना ही दुश्मनी पनपे गले अब मिल भी जाओं सब, कि आयी आज होली है प्रियतम क्या प्रिय क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .
उमंग भरा होली गीत -मिलन के चटख रंग से सराबोर
ReplyDeleteवाह क्या बात है! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteलेकर आए वे होली के रंग, तुम भी मेरे संग रंगो री।
ReplyDeleteसखि! घर आयो कान्हा मेरे, होली के गीत गाओ री।।
बहुत सुंदर गीत.
आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाये.
आया था बसंत जब, डाली-डाली हरियाली थी,
ReplyDeleteआकर कोयल आंगन में तब, गीत सुमंगल गाती थी।
फूल खिलते बहारों में, सबके ही मन लुभाती थी,
प्रिय बिनु यह सब तनिक दिल को न भाती थी।।
...............बहुत-बहुत सुन्दर गीत!!
nice one
ReplyDeleteसुन्दर गीत ..!!!
ReplyDeleteसुंदर |
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