धुएं में फिक्र - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 31 मई 2014

धुएं में फिक्र

कभी बचपन में हम बच्चों को दुबले-पतले, खांस-खांस कर बीड़ी फूंकते हुए बुजुर्गो के मुंह से बीड़ी खींच कर और फिर उन्हें यह कह कर चिढ़ाते हुए खूब मजा आता था कि ‘बीडी पीकर ज्ञान घटे, खांसत-खांसत जी थके, खून सूखा अंदर का, मुंह देखो बन्दर का’ । हमारी इन हरकतों से नाराज होकर जब कोई बुजुर्ग हमारे पीछे अपनी बीड़ी के लिए हांफ-हांफ कर दौड़ लगा बैठते तो हम एक ही सांस में दूर तक भाग खड़े होते। तब हताश होकर वे बेचारे थोड़ी दूर भागने के बाद ही थक हारकर वहीं बैठ बंडल से दूसरी बीड़ी जलाकर धुंआ उगलने बैठ जाते। यह देख हम चोरी-छिपे दबे पांव आकर उनके पीछे चुपचाप इस ताक में बैठ जाते कि कब हमें फिर से यह खेल खेलने का मौका मिले। इस दौरान जब कभी उनकी नजर हम पर पड़ती तो वे डांटने डपटने के बजाय मुस्कराते हुए उल्टी-सीधी बीड़ी मुंह में फंसा कर कभी नाक से तो कभी मुंह से हवा में धुंए की विभिन्न कलाकृतियाँ उकेरने लगते तो हम मंत्रमुग्ध होकर यह खेल देखते दंग रह जाते। तब उनका यह करतब हमारे लिए किसी जादूगर के जादू से कम न था।

बचपन के दिन बीते और बड़े हुए। समझ में आया कि बचपन में हम तो मासूम थे ही, लेकिन बीड़ी का धुंआ उड़ाने वाले हमारे बड़े बुजुर्ग भी कम मासूम न थे, जो खांसते-खांसते बेदम होकर भी हमें धुंए की जादूगरी दिखाना कभी न भूले, पर कभी यह न जान सके कि यह धुंआ सबके लिए कितना घातक है। आज भी गांव से लेकर शहर तक जब किसी को बेफ्रिक होकर धुंआ उड़ाते, मुंह में गुटखा ठूसें देखती हूँ तो यही लगता कि हम पहले से भी ज्यादा मासूम हो चुके हैं, जो लाख चेतावनी और जागरूकता के बावजूद भी तम्बाकू को गले लगाकर खुश हुए जा रहे हैं।
           हाल ही में तम्बाकू से बचने के तमाम उपदेशों के प्रचार के साथ विश्व तम्बाकू निषेध दिवस गुजर गया। माना जाता है कि धूम्रपान सर्वप्रथम अमेरिका में 'रेड इंडियंस' ने शुरू किया। सन् 1600 के प्रारम्भ में यह यूरोप के देशों में फैला।   मौजूदा समय में विश्व जनसंख्या का एक बड़ा भाग धूम्रपान  के रूप में तम्बाकू का उपयोग करता है, बहुत सारे लोग इसे चबाते हैं।  जबकि  लगभग सभी वैज्ञानिक शोध तम्बाकू के नतीजों में तम्बाकू के सेवन को हानिकारक बताया गया है। निकोटीन सिगरेट में प्रयोग होने वाली तम्बाकू का एक व्यापक उत्तेेजना पैदा करने वाला घातक होता है। यह अधिक विषैला होता है और शरीर पर कई तरह के घातक असर डालता है।  धूम्रपान से बढ़ा हुआ रक्त हृदय रोग की संभावनाओं को बढ़ा देता है। गर्भवती महिलाओं में निकोटिन से भ्रूण की वृद्धि कम होती है। निकोटीन के अलावा तम्बाकू के धुंए में कार्बनमोनोआॅक्साइड बहुचक्रीय ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बन एवं टार पाये जाते हैं।  यह टार कैंसर पैदा करने में किस तरह की भूमिका निभाता है, यह अब छिपा नहीं है। यह ध्यान रखना चाहिए कि  फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित पंचानबे फीसद मरीज धूम्रपान या तम्बाकू चबाने के कारण इस स्थिति में पहुंचते हैं। इसके अलावा, भारत में सबसे ज्यादा टीबी या तपेदिक के रोगी मिलते हैं, जिसकी एक सबसे बड़ी वजह धूम्रपान ही है। साथ ही, खांसी या  ब्रोंकाइटिस,  हृदय संवहनी रोग, फेफड़ों की बीमारी का नतीजा यह होता है की इससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है।
दरअसल, तम्बाकू सेवन रोगों को खुला निमंत्रण तो देता ही है, साथ ही यह धूम्रपान न करने वालों को चिड़चिड़ा बनाता है। बल्कि सच कहा जाय तो धूम्रपान न करने वाले इसकी आदत रखने वालों से परेशान ही रहते हैं, भले ही वे सार्थक विरोध नहीं जता पाएं।


धूम्रपान से होने वाले कुछ प्रमुख रोगों के बारे में जानिए 
और आज ही छोड़ने का संकल्प कीजिये  
  • कैंसर:  तम्बाकू के  धुएं से उपस्थित बेंजपाएरीन कैंसर जनित रोग होता है। लगभग 95 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर के मरीज धूम्रपान के कारण होते हैं। विपरीत धूम्रपान मुख कैंसर का कारण होता है। विपरीत धूम्रपान में सिगार का जलता हुआ सिरा मुख में रखा जाता है। विपरीत धूम्रपान आंध्रप्रदेश के गांवों में सामान्य होता है। बीड़ी के धूम्रपान के कारण जीभ, फैरिंग्स (गला), लैरिंग्स, टांन्सिल एवं ग्रासनली के कैंसर हो जाता है। होंठ कैंसर सिगार एवं पाइप के द्वारा होता है। तम्बाकू चबाने से मुख कैंसर होता हैं
  • टी.बी. (तपेदिक):  धूम्रपान से हमारे भारत में सबसे ज्यादा टीबी या तपेदिक के रोगी मिलते हैं। तपेदिक के जीवाणु संक्रमति व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में फैल सकते हैं।
  • खांसी एवं ब्रोंकाइटिस : तम्बाकू के धूम्रपान से फैरिंग्स और ब्रोंकाई की म्यूकस झिल्ली उत्तेजित होने के कारण खांसी एवं ब्रोंकाइटिस हो जाता है।
  • हृदय संवहनी रोग : तम्बाकू के धूम्रपान के कारण एड्रीनील का स्त्रावण बढ़ जाता है जिससे धमनियों के संकुचन द्वारा रक्त दाब, हृदय स्पंदन की दर में वृद्धि हो जाती है। उच्च रक्त दाब हृदय संबंधी रोगों की संभावनाओं को बढ़ाता है। निकोटीन हृदय के द्विपट कपाट को नष्ट करता हैं
  • एम्फाइसिमा- तम्बाकू का धुआं फेफड़ों की एल्वियोलाई की भित्ति तोड़ सकता है। गैसीय विनिमय के लिए सतही क्षेत्रफल को कम कर देता है, जिससे एम्फाइसिमा हो जाता है।
  • प्रतिरक्षा तंत्र पर प्रभाव :  यह प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करता है।
  • आॅक्सीजन वहन क्षमता में कमी :  तम्बाकू के धुंए की कार्बनमोनोआॅक्साइड शीघ्रता से आरबीसी की होमोग्लोबिन को बांधती है एवं सह विषाक्तता का कारण होती है, जो हीमोग्लोबिन की आॅक्सीजन वहन क्षमता को कम करता है
....कविता रावत




20 टिप्‍पणियां:

RAJ ने कहा…

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर आज ही इस बुरी लत को जड़मूल से नष्ट करने का संकल्प लेकर इसे अपने आस पड़ोस, घर-दफ्तर और गांव-शहर से दूर भगायें........
बहुत जरुरी है इस लत से छुटकारा पाने की ..........
सार्थक सामयिक पोस्ट
शुभकामनायें!

आशीष अवस्थी ने कहा…

बढ़िया लेख व लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 01/जून /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

तम्बाखू से होने वाले बीमारियों की अच्छी जानकारी !
New post मोदी सरकार की प्रथामिकता क्या है ?
new post ग्रीष्म ऋतू !

Vandana Sharma ने कहा…

bahut uttam

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

एक बार आदत पड़ जाय तो छूटती नहीं है।

Basant Khileri ने कहा…

आपने एक बहु हि अच्छे विषय पर सवाल उठाया है|
Hindi Computer Tips

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

प्रत्येक के लिए उपयागी जानकारी।
सीख और चेतावनी देता लेख।

Neetu Singhal ने कहा…

मैने भी तीन साल तक खूब गुटके खाए..,
अब तो तीन साल हो गए उसे खाना तो दूर उसकी तरफ देखा भी नहीं.....

Neetu Singhal ने कहा…


मेरी माता जी तम्बाखू घिसती थी, एक दिन कहीं प्रवचन हो रहे थे महाराज बोले कुछ दान करो, वो तम्बाखू का डब्बा दान कर आई, फिर क्या लत छूट गई.....

Asha Joglekar ने कहा…

य़े धूम्रपानी अपने साथ अपने घरवालों को और सहयात्रियों को भी जबरदस्ती धूम्रपान कराकर( पैसिव स्मोकिंग) नुकसान पहुंचाते है। सामयिक, सटीक रचना।

Arogya Bharti ने कहा…

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर तम्बाकू से होने वाले रोगों के बारे में बहुत उपयोगी जानकारी लगी .... सभी स्वस्थ रहे यह सबका सपना हों...यही सद्इच्छा हमारी हैं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

धूम्रपान एक बिमारी की तरह है ... आदत लग जाए तो मुश्किल ही छूटती है ... इसलिए जितना हो सके बच्चों को और बड़े होते बच्चों को इससे दूर रखने और उसके बुरे प्रभाव को उजागर करने की जरूरत है ...

vijay ने कहा…

बीडी पीकर ज्ञान घटे, खांसत-खांसत जी थके, खून सूखा अंदर का, मुंह देखो बन्दर का’
वाह ! बहुत खूब कहा..................
जानते हैं हम कि तम्बाकू बीमारी की जड़ है फिर भी उसे निमंत्रण देते हैं... संगी साथियों के साथ बीड़ी फूंककर और गुटका मल मल कर खाने में शान समझते हैं जिससे स्वयं ही नहीं घर परिवार का भी बेडा गर्क होने में देर नहीं लगी ...........

PS ने कहा…

बीड़ी तम्बाकू के लत एक बार लगी तो जिंदगी लेकर ही छोड़ती हैं....
बीड़ी पीने वाले और तम्बाकू खाने वाले एक बार खाना खाना भूल सकते हैं लेकिन इनको नहीं ....
बहुत उपयोगी आलेख

Unknown ने कहा…

कविता जी आपने धूम्रपान से होने वाले प्रमुख रोगों के बारे में और उसके दुष्प्रभाव को इस लेख के माध्यम से बहुत अच्छी तरह बताया हैं .. तम्बाकू और बीड़ी-सिगरेट को बड़े हलके में लेने वालों के लिए यह लेख काफी लाभकारी है

Himkar Shyam ने कहा…

सार्थक और उपयोगी पोस्ट. गुटखा, सिगरेट तंबाकू, पान मसाला, जर्दा, खैनी व इससे जुड़े तमाम उत्पादों का पूर्ण रूप से सफाया जरूरी है. तम्बाकू के घातक प्रभाव और गंभीर बीमारियों के प्रति जन-जागृति के लिए अभियान चलाने की जरूरत है.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

संकल्प लेकर इस आदत का पीछा छुड़ाया जाय.... साथ ही इसे स्टाइल स्टेटमेंट समझने की गलती न हो

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कविता जी,आपने बहुत ही सुंदर तरीके से धूम्रपान से होने वाले नुकसान के बारे मे समझाया है.लेकिन लोगों को समझाना मुश्किल है.हर जाहीरत मे बड़े- बड़े अक्षरों मे लिखा होता है की धूम्रपान करना सेहत के लिए हानिकारक है . फिर भी लोग ---

Unknown ने कहा…

आपकी यह पोस्ट अपने ब्लॉग पर साभार पोस्ट कर रहा हूँ..