जब सूरज की प्रचण्ड गर्मी से हवा गर्म होने लगी, तो वह आग में घी का काम कर लू का रूप धारण कर बहने लगी। सूरज के प्रचण्ड रूप को देखकर पशु पक्षी ही नहीं, वातावरण भी सांय-सांय कर अपनी व्याकुलता व्यक्त करनी लगी तो प्रसाद जी की पंक्तियां याद आयी- "किरण नहीं, ये पावक के कण, जगती-तल पर गिरते हैं।" लू की सन्नाटा मारती हुई झपटों से तन-मन आकुल-व्याकुल हुआ तो मन पहाड़ों की ओर भागने लगा। सौभाग्यवश पिछले सप्ताह आॅफिस की ओर से पचमढ़ी की वादियों में 3 दिवसीय कार्यालय प्रबन्धन प्रशिक्षण का सुअवसर मिला तो तपती गर्मी से झुलसाये तन-मन में पचमढ़ी हिल स्टेशन घूमने की तीव्र उत्कण्ठा जाग उठी।

गर्मी के प्रकोप से बचने के लिए सुबह 19 सहकर्मियों के साथ हम बड़े उत्साह और उमंग के साथ बस द्वारा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी पर स्थित सुन्दर पठारों से घिरे ‘सतपुड़ा की रानी‘ पचमढ़ी के लिए रवाना हुए। भोपाल से पचमढ़ी लगभग 200 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। लगभग 4 घंटे तपते-उबलते जैसे ही हमारी बस पिपरिया से सर्पाकार पहाड़ी घाटी की ओर बढ़ी तो गर्मी के स्थान पर ठंडी हवा के झौंकों ने आकर हमारा स्वागत किया तो मन मयूर नाच उठा और आंखे चारों ओर फैली शस्य-श्यामला और हरे-भरे साल-सागौन, देवदार, नीलगिरि, गुलमोहर और अन्य छोटे-बड़े दुर्लभ किस्म के पेड़-पौधों की मनमोहक दृश्यावली में डूबने-उतरने लगा। चारों ओर फैली घनेरी झाड़ियों, लताओं, ऊँचे-ऊँचे पेड़-पौधों के रूप में प्रकृति ने अपने विविध रूप से "मांसल सी आज हुई थी, हिमवती प्रकृति पाषाणी" (प्रसाद जी) बनकर मन मोह लिया।

पचमढ़ी पहुंचने पर उसकी खूबसूरती और शांति में डूबकर श्रांत-क्लांत मन ताजा हो उठा। पचमढ़ी में ठहरने के लिए टूरिस्ट बंगले, हाॅलीडे होम्स और काॅटेज के साथ ही सस्ते रेस्ट हाउस भी उपलब्ध हैं लेकिन हम सभी सहकर्मियों के लिए आॅफिस की ओर से पंचायत गेस्ट हाउस में खाने-ठहरने की उचित व्यवस्था की गई थी। शाम को सभी पैदल-पैदल पचमढ़ी बाजार की सैर को निकल पड़े। यहाँ के सुव्यवस्थित और पाॅलीथीन मुक्त बाजार देखना शहरवासी के लिए सबक है। हमारे प्रशिक्षण का समय सुबह 9 बजे से 3 बजे निश्चित था इसलिए उसके मुताबिक ही सबने आपस में मिल बैठ आसपास के दर्शनीय स्थलों जैसे- पांडव गुफा, धूपगढ़, बी फाॅल, अप्सरा फाॅल, रजत प्रपात, जटाशंकर, हांडी खोह, राजेन्द्र गिरि आदि खंगालने का प्रोग्राम बनाया।

गर्मियों में शरीर को ऊर्जावान व स्वस्थ बनाये रखने के लिए सुबह-सवेरे ताजी हवा में घूम-फिर कर थोड़ा बहुत योग, व्यायाम कर लेना लाभप्रद माना गया है और अगर घूमने-फिरने की जगह कोई हिल स्टेशन हो तो फिर समझो कारूं का खजाना हाथ आ गया। यह बात ध्यान में रखते हुए मैं सुबह 5 बजे पैदल-पैदल सघन वृक्षों से आच्छादित वन गलियारों और घाटियों की मनमोहक दृश्यावली में गोते लगाने निकल पडी। यहाँ मुझे एक ओर सैनिकों का अभ्यास तो दूसरी ओर हरियाली से घिरा राजभवन और कलेक्टर का बंगला देखना बड़ा सुहावना लगा। कभी गर्मियों में एक माह के लिए पूरा मंत्रिमंडल का कुनबा और उच्च शासकीय अधिकारी इसी आरोग्य धाम में आकर सरकार चलाये करते थे। नगरों की बढ़ती पर्यावरण प्रदूषण समस्या से दूर यहाँ शुद्ध हवा के साथ शांत वायुमण्डल पाकर मन तरोताजगी से भर उठा।

पहले दिन के प्रशिक्षण से छूटते ही लगभग 3 बजे जिप्सी लेकर वी फाॅल और धूपगढ़ के आलौकिक सौन्दर्य देखने निकल पड़े। घने वृक्षों के बीच निकली सड़क के चारों ओर फैली हरियाली, पक्षियों का कलरव, वन्य जन्तुओं की क्रीड़ा देख अभी मन अतृप्त था कि पहाड़ों से फूटते स्वच्छ निर्मल जल स्रोत ने बरबस ही ध्यान आकर्षित किया तो मुंह से भारतेन्दु जी के पंक्ति फूट पड़ी-
"नव उज्ज्वल जलधार, हार हीरक-सी सोहती।" ऊँचाई से गिरते बी फाॅल की ठण्डी-ठण्डी फुहारों ने पल भर में शहर की उबासी भरी तपन को निकाल बाहर कर ताजगी भर दी। ताजगी का अहसास लिए हम सूरज ढ़लने से पहले हम सूर्यास्त की सुन्दरता का अद्भुत नजारा देखने धूपगढ़ पहुंचे। यहाँ सतपुड़ा की ऊँची चोटी से एकाग्रचित होकर छोटी-छोटी पहाडि़यों से दूर होते सूरज को बादलों की ओट में छिपते देखना खूबसूरत और यादगार नजारा बन पड़ा।

दूसरे दिन सुबह हमें पहले योग सिखलाया गया और फिर हमारे घूमने के प्रोग्राम केअनुरूप जल्दी प्रशिक्षण दिया गया। जैसे ही प्रशिक्षण समाप्त हुआ जल्दी से खा-पीकर सभी गुप्त महादेव, बड़ा महादेव, हांडी खोह, पांडव गुफा की सैर को निकल पड़े। सबसे पहले हम पवित्र गुप्त महादेव की गुफा में उनके दर्शनों के लिए संकरी राह से तिरछे-तिरछे होकर सरकते हुए पहुंचे। उसके बाद बन्दरों, लंगूरों की उछलकूद का देखते-दाखते ऊंची-ऊंची चट्टानों के बीच स्थित एक बड़ी गुफा के अंदर बड़े महादेव के दर्शन के लिए आगे बढ़े जहाँ गुफा के अंदर लगातार टपकते पानी को देख शंकर की जटाओं से निकली गंगा के उद्गम का अहसास होता रहा।
शिवदर्शन के बाद हांडीखोह पहुंचते ही यहां बनी रेलिंग प्लेटफार्म से एक ओर घाटी के विहंगम दृश्य देखने को मिला तो दूसरी ओर घने जंगलों से ढकी खाई के इर्द-गिर्द कलकल बहते झरनों की आवाज कानों में मधुर रस घोलने लगी। यहां हमारे सामने एक ओर ऊंचे-ऊंचे पेड़-पौधों से घिरी पहाडि़यों का रोमांच था तो दूसरी ओर हांडीखोह की 300 फीट गहरी खाई का भयानक स्वरूप, जो सुरसा की तरह मुंह फाड़कर निगलने को आतुर नजर आ रही थी।
यहाँ से आगे बढ़ते हुए हम पचमढ़ी नाम दिलाने वाले पांडव गुफा देखने निकले। यहां पांच गुफानुमा कुटियों को करीब से देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। मान्यता है कि कभी वनवास के दौरान लम्बी-चैड़ी कद काठी के महाबलशाली पांडव विशेषकर हजारों हाथियों के बल से अधिक बलशाली लम्बे-चौड़े भीम इनमें कैसे रहे होंगे! गुफाओं के बारे में सोचते-विचारते जैसे ही नीचे तलहटी स्थित खूबसूरत उद्यान पर नजर अटकी तो मोबाइल कैमरे से एक के बाद कई तस्वीर कैद कर डाली। इस पर भी जब मन नहीं भरा तो उद्यान की सैर करते हुए उसकी उपयोगिता और नैसर्गिक सौंदर्य संसार में खो गई। पेड़-पौधे जब पुष्पों-फलों से लदे होते हैं तो अपनी सुगंध से वातावरण को सुगंधित कर पर्यावरण को मोहित करते हैं। मादक महकती बासंती बयार में, मोहक रस पगे फूलों के पराग में, हरे-भरे पौधों की उड़ती बहार में पर्यावरण के दोषों को दूर करने की अद्भुत शक्ति है। इसीलिए वैदिक ऋषि ने इसे महाकाव्य की संज्ञा दी- 'पश्य देवस्य काव्यं न भमार न जीर्यति।' अर्थात् यह ईश्वर का एक महाकाव्य है, जो अमर है, अजर है।
अंतिम तीसरे दिन प्रशिक्षण समाप्ति के बाद हमने शेष दर्शनीय स्थलों की अधूरी सैर को अगली बार के लिए छोड़ सतपुड़ा की रानी से विदा लेते हुए घर की राह पकड़ी। रास्ते भर प्राकृतिक दृश्यों के अनन्त, असीम सौन्दर्य में मन डूबता-उतरता रहा।
...... कविता रावत
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http://epaper.aajsamaaj.com/indexaajsamaj.php?pagedate=2016-7-8&edcode=71&subcode=71&mod=1&pgnum=2
किरण नहीं, ये पावक के कण, जगती-तल पर गिरते हैं।"
जवाब देंहटाएंऐसे ही हाल बेहाल हैं गर्मी के मारे .......
हमारे मध्य प्रदेश के एकमात्र खूबसूरत हिल स्टेशन का उतनी ही खूबसूरती से सुन्दर यात्रा वृतांत पढ़कर मन को बड़ी ठंडक पहुंची ...........हमारा जाना हर साल लगा रहता हैं काश कि हम भी बता पाते देश दुनिया को ....
बढ़िया व सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंब्लॉग के लोगो को स्थान देने हेतु आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
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बहुत सुन्दर यात्रा विवरण अब तो देखना पडेगा आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा विवरण ....पढ़कर अपनी पूर्व में की गयी यात्रा की स्मृतियाँ ताज़ी हो गयी....
जवाब देंहटाएंसफ़र है सुहाना...
www.safarhainsuhana.blogspot.in
गर्मी में तो लगता है पचमढ़ी घूमने गए तो फिर गर्मी भर रहो सुकून से लेकिन ऐसा संभव नहीं होता घर गृहस्थी जो चलानी होती है...... हमारा हर साल दो-चार गर्मी में घूमने का प्लान बन ही जाता है ... दो दिन बाद ५ दिन हम भी घूम फिर लेंगे ......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर फोटो और वर्णन पढ़कर अभी से घूमने की मन हो रहा है .........
ऑफिस की ट्रेनिंग के बहाने घूमने का इससे अच्छा प्लान कुछ और हो ही नहीं सकता ...खुशकिस्मत हो ....
गर्मी में ठंडक का अहसास करा गयी ये पोस्ट :)
जवाब देंहटाएंप्रकृति के समीप पहुंच कर मुझे लगता है कि अपने नैसर्गिक आवास में पहुंच गया। जंगल मुझे हमेशा अपनी ओर खींचता है और जब भी मन करता है भाग कर उसके समीप पहुंच जाता हूँ और अपने को आल्हादित पाता हूँ। सुंदर चित्रों के साथ पचमढी यात्रा की रिपोर्ट के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंकिरण नहीं, ये पावक के कण, जगती-तल पर गिरते हैं।"
जवाब देंहटाएंभीषण गर्मी से सभी त्रस्त हैं ... ऐसे में पचमढ़ी के मोहक, शीतल मनोरम दृश्यों से कुछ को तपन का एहसास कम हो रहा है ... वैसे भी प्राकृति की निकटता शीतल होती है ... रोचक यात्रा वर्णन ने सोने पे सुहागे का काम किया है ...
पचमढ़ी एक बहुत सुन्दर हिल स्टेशन है जहाँ का मौसम खुशगवार और देखने को बहुत कुछ है...बहुत सुन्दर और रोचक यात्रा वृतांत....
जवाब देंहटाएंपचमढ़ी का बहुत सुन्दर चित्रण ..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चित्रों से सुसज्जित सुंदर यात्रा वृतांत...
जवाब देंहटाएंBeautiful description.
जवाब देंहटाएंमध्यप्रदेश को कुदरत ने यदि कोई बरकत बख्शी है तो वो पचमढ़ी ही है...उम्दा प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृतान्त...
जवाब देंहटाएंअत्यन्त मधुरित करता यात्रा वृतान्त।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चित्रों से सुसज्जित सुंदर रोचक यात्रा वर्णन
जवाब देंहटाएंघने वृक्षों के बीच निकली सड़क के चारों ओर फैली हरियाली, पक्षियों का कलरव, वन्य जन्तुओं की क्रीड़ा देख अभी मन अतृप्त था कि पहाड़ों से फूटते स्वच्छ निर्मल जल स्रोत ने बरबस ही ध्यान आकर्षित किया तो मुंह से भारतेन्दु जी के पंक्ति फूट पड़ी- "नव उज्ज्वल जलधार, हार हीरक-सी सोहती।" ऊँचाई से गिरते बी फाॅल की ठण्डी-ठण्डी फुहारों ने पल भर में शहर की उबासी भरी तपन को निकाल बाहर कर ताजगी भर दी।
जवाब देंहटाएं............................................... वाह! बहुत खूब.. बहुत खूब! इस भयंकर गर्मी में कम से कुछ राहत महसूस हुयी ...........प्रकृति चित्रण लाजवाब करती हैं आप ....मन आनंदित हो जाता है
घने वृक्षों के बीच निकली सड़क के चारों ओर फैली हरियाली, पक्षियों का कलरव, वन्य जन्तुओं की क्रीड़ा देख अभी मन अतृप्त था कि पहाड़ों से फूटते स्वच्छ निर्मल जल स्रोत ने बरबस ही ध्यान आकर्षित किया तो मुंह से भारतेन्दु जी के पंक्ति फूट पड़ी- "नव उज्ज्वल जलधार, हार हीरक-सी सोहती।" ऊँचाई से गिरते बी फाॅल की ठण्डी-ठण्डी फुहारों ने पल भर में शहर की उबासी भरी तपन को निकाल बाहर कर ताजगी भर दी।
जवाब देंहटाएं............................................... वाह! बहुत खूब.. बहुत खूब! इस भयंकर गर्मी में कम से कुछ राहत महसूस हुयी ...........प्रकृति चित्रण लाजवाब करती हैं आप ....मन आनंदित हो जाता है
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंपचमढ़ी को जीवंत कर दिया आपके शब्दों और चित्र ने
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर --
बहुत सुन्दर, मनमोहक चित्र
जवाब देंहटाएंएक बहुत ही ख़ूबसूरत स्थन का उत्ना ही ख़ूबसूरत चित्रण.. मुझे तो बस फ़िल्म इजाज़त याद आती है इस स्थान के नाम पर!!
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जवाब देंहटाएंप्रकृति का सुन्दर नज़ारा है हमारी पचपमी लेकिन इसके साथ ही यहाँ जीवनदायनी औषधीय पेड़-पौधों की भी भरमार है .....
पचमढ़ी की वादियों की उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति ...
कविता जी पच मढ़ी की बहुत प्यारी झलक और प्यारा आलेख बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
आपकी पचमढ़ी का "यात्रा वृतांत" पढ़कर मुझे भी अपनी क्लास ट्रिप की वो सारी फोटो याद आने लगी जो वी फाल, धूपगढ़, पांडव गुफा व सतपूणा के जंगल को घूमते हुए की थी। …बेहद सुन्दर वर्णन। … धन्यवाद पढ़वाने के लिए!
जवाब देंहटाएंWonderful!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर यात्रा वृतांत!
जवाब देंहटाएंसुदंर आलेख । पठनीय ।
जवाब देंहटाएंसुंदर यात्रा वृतांत!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट अपने ब्लॉग पर साभार पोस्ट कर रहा हूँ..
जवाब देंहटाएंआपने तो हमें भी घर बैठे बैठे 'पचमढ़ी ' की यात्रा का अनुभव करवा दिया ! पचमढ़ी को जानने की उस्तुकता और बढ़ा दी आपने ,चूँकि मै भी घुमने फिरने का काफी शौक़ीन रहा हु किन्तु कुछ जिम्मेदारियों के चलते बंध सा गया हु ,किन्तु आपके इस लेख ने सच में नयी जानकारी एवं सुंदर वर्णन से हमें अभिभुत किया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस आलेख एवं यात्रा संस्मरण के लिए
आपने पचमढ़ी का सुंदर चित्रण किया !
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