भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू १० दिवसीय ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि के प्रथम पूज्य देव गणेश जी के जन्मोत्सव का बड़ों को ही नहीं वरन बच्चों को भी कुछ ज्यादा ही बेसब्री से इंतज़ार रहता है। बच्चों का गणेश जी से सहज लगाव शायद उनकी चंचल, लुभावनी मूर्तियों, नटखट से भरी प्यारी-प्यारी कहानियों और विविध रूप, आकार की आकृतियों को लेकर अधिक रहता है
। जहाँ मेरा बचपन से ही शिव-पूजन से बेहद जुड़ाव रहा है, वहीँ आज जब मैं अपने बेटे जो अभी-अभी इसी वर्ष से स्कूल जा रहा है, का गणेश प्रेम देखकर कभी-कभी बहुत हैरान-परेशान हो जाती हूँ
। हैरान-परेशान इसलिए क्योंकि अभी से आये दिन स्कूल से उसकी यह शिकायत आती है कि वह कक्षा में बैठकर आड़ी-टेढ़ी रेखाओं से गणेश के चित्र बनाता रहता है।
घर में भी बहुत डांटने-फटकारने के बावजूद भी वह दीवार से लेकर जो भी कोरा पन्ना मिला उसमें आड़ी-टेढ़ी रेखाओं से गणेश के चित्र उकेरना बैठ जाता है। उसे दूसरे बच्चों की तरह खिलोंनों के बजाय गणपति जी से सम्बंधित किसी भी वस्तु/चीज आदि से खेलना बेहद भाता है. दूसरे बच्चों के साथ भी वह गणपति का खेल शुरू कर देता है, जिसे देख लोग हँसकर रह जाते हैं. रास्ते में या कहीं भी बाजार में जहाँ कहीं भी उसके नज़र गणेशनुमा चीज पर पड़ी नहीं कि फिर तो हाथ धोकर उसे लेने के पीछे पड़ जाता है। यही नहीं संस्कृत के श्लोक "वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा" और 'गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्जम्बू फलचारूभक्षणं, उमासुतं शोकविनाशकारम नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम" जैसे कठिन वाक्य भी बड़ी सरलता से बिना अटके कहा देता है। गणेश जी की कोई किताब हाथ लगी नहीं कि एक ही रट लगा बैठता है कि सुनाओ/बताओ क्या लिखा है इसमें, मना करने पर मुहं लटकाकर एक कोने में बैठ 'कट्टी' कहकर मौन धारण कर लेता है, और भी बहुत सी बातें जो मैं बाद में कभी बताऊँगी फिलहाल इस अवसर पर मैं उसकी आड़ी-टेढ़ी रेखाओं से बनाई कुछ गणेश आकृति और गणपति प्रेम प्रस्तुत कर रही हूँ ।
अगले वर्ष फिर से गणपति जी विराजमान हों, इसलिए प्रेम व श्रद्धापूर्वक बोले : "गणपति बप्पा मोरया, पुरछिया वर्षी लौकरिया"।
सभी ब्लॉगर्स और सुधि पाठकों को गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!
....कविता रावत