अपनेपन की भूल - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

रविवार, 26 सितंबर 2010

अपनेपन की भूल

जिन्हें हम अपना समझते हैं
गर आँखों में उनकी झाँककर देखते हैं
तो दिखता क्यों नहीं हरदम
आँखों में उनके पहला सा प्यार?
एक पल तो सब अपने से लगते हैं
पर दूजे पल ही क्यों बदलता संसार!
सोचकर आघात लगता दिल को कि
जो हमारे सबसे करीबी कहलाते हैं
वे वक्त पर क्यों मुहँ मोड़ लेते हैं
दो बोल क्या बोल लेते हैं वे मधुर कंठ से
हम उन्हें अपना समझने की
क्यों भूल कर बैठते हैं!
ढूँढो तो सबकुछ मिल सकता है
देखो अगर अपनेपन से तो
सबकुछ अपना सा लगता है
पर कविता समझी नहीं कि
अपनों से अपनेपन की प्यारभरी
जो कल्पना मन में बसी है
उसे ही पाने की क्यों मन में
बार-बार तमन्ना जगी है!

         ......कविता रावत