कई बार गुजरना पड़ता है परीक्षा से - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

कई बार गुजरना पड़ता है परीक्षा से

परीक्षा कैसी भी हो और किसी की भी हो, परीक्षा परीक्षा होती है । यह परीक्षा के दिन अन्य दिन के मुकाबले किस तरह भारी पड़ते हैं, यह वही अच्छी तरह समझ सकता है, जो परीक्षा के दौर से गुजर रहा होता है । हर आदमी को जिंदगी में कई बार परीक्षा के कठिन दौरों से गुजरना ही पड़ता है। अब इन कठिन घड़ियों से कोई आदमी चाहे रो-धोकर पार पा ले या हँसी-ख़ुशी गले लगाकर, यह सब सबकी अपनी-अपनी प्रकृति और क्षमता पर निर्भर करता है।
        जिंदगी में आने वाली परीक्षाओं के दौर से गुजरते हुए जब बात छोटे बच्चों के परीक्षा के दिनों पर आकर अटकती हैं तो यह मेरे हिसाब से किसी भी माँ-बाप के लिए बच्चों की परीक्षा से ज्यादा उनकी परीक्षा के दिन होते हैं, जब बच्चों को पढ़ाने-रटाने की माथापच्ची में उलझे कच्चा-पक्का खाकर दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाने का समय आन पड़ता है। आजकल ऐसे ही परीक्षा के कठिन दिन शुरू हो चुके हैं। एक तो बच्चों की परीक्षा शुरू हुई नहीं कि सर्दी-जुकाम के साथ बुखार ने उन्हें आ घेरा, जिससे नई मुसीबत गले पड़ गई। अक्सर ऐसे कई मौकों पर यह सब देख-देखकर अब मन ने हैरान-परेशान होना प्राय: छोड़ सा दिया है, फिर भी माँ का दिल कहाँ मानता है। बच्चों की स्कूली गाडी बिना ब्रेक लगे फुल स्पीड से आगे बढ़े यही सोचकर ऑफिस से छुट्टी लेकर कमर कसकर लगी हुई हूँ। पढ़ाते-रटाते समझ में आ रहा है कि क्यों बचपन में कभी परीक्षा के दिनों में अच्छे खासे शांत घर में भूचाल आ जाता था।
        बच्चे जब बड़े होकर समझदार हो जाते हैं तो उनमें परीक्षा की समझ विकसित हो जाती है, तब माँ-बाप को उनके खाने-पीने और समय पर आराम करने का ध्यान खुद रखना पड़ता है, वर्ना वे रात भर चाय-कॉफ़ी-बिस्कुट बना-खाकर खटपिट-खटपिट कर सबकी नींद उडाये रखते हैं। इसके उलट छोटे-छोटे बच्चों को पढाना-रटाना बहुत टेढ़ी खीर है, जो किसी कठिन अबूझ पहेली से कमतर नहीं आंकी जा सकती है। अधिकांश शरारती बच्चों की तरह मेरे दोनों बच्चे भी कम शरारती नहीं, खेलने, टीवी पर कार्टून देखते समय तो थोडा बहुत लड़ेंगे-भिड़ेंगे लेकिन पढने के नाम पर एक साथ क्या बिठा लिया तो आंख हटी नहीं कि उनकी खुसुर-फुसुर के साथ लाता-लूती या बैठे-बैठे ऊँघने-सोने का उत्क्रम शुरू हो जाएगा और फिर चल पड़ेगा एक-दूसरे की शिकायत का सिलसिला - "मैं नहीं, वह तो यह .... मैं तो वह .." माजरा समझकर जरा चिल्ला-पों मचाई नहीं कि बात-बात पर उनके पित्त गरम हो जाने लगते हैं। ऐसे हालातों में फिर तो गर्दन पकड़कर पढवाना मजबूरी बन जाती है, पेच हाथ में रखकर पत्थर की नाव चलाने की कोशिश करनी ही पड़ती है।
       सिर से परीक्षा के इन दिनों का बोझ जल्दी से उतर जाय इसका बच्चों के साथ मुझे तो बेसब्री से इंतजार है ही साथ ही छोटे कार्तिकेय को भी कम इंतज़ार नहीं करना पड़ रहा है। यह इंतज़ार उसकी मासूम आँखों में साफ़ झलकता है। वह नानी की गोद में गुमसुम टुकुर-टुकुर अपनी पढ़ाई-लिखाई में व्यस्त दीदी-भैया की इस बेरुखी का सबब समझने की पूरी कोशिश में लगा रहता है। वह समझ नहीं पा रहा है कि आखिर आजकल स्कूल से आते ही टी-वी. पर कार्टून और खेलना-खिलाना छोड़-छोड़कर दोनों कौन से जंग जीतने की तैयारी में जुते हुए हैं। उस मासूम को अभी कुछ खबर नहीं लेकिन दीदी-भैया को इसकी जरुर खबर है कि जब स्कूल में पेपर के बण्डल से उनका पेपर बाहर निकलकर खुली हवा में साँस लेता है तो किस तरह उनकी जान सांसत में डालकर सिट्टी-पिट्टी गोल कर देता है! 

          ...कविता रावत

64 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

परीक्षाओं के समय होने वाली क्रिया - प्रतिक्रियाओं को बखूबी लिखा है ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत भारी समय ... गर्दन पकड़कर पढवाना मजबूरी बन जाती है, पेच हाथ में रखकर पत्थर की नाव चलाने की कोशिश करनी ही पड़ती है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

सभी परीक्षार्थियों को शुभकामनाएं.. बड़े बच्चों के साथ और भी मेहनत करनी पड़ती है कविता जी, उनको फेसबुक से दूर रखना, टीवी से बचाना और थोड़ी बहुत निगरानी!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सामयिक और उपयोगी आलेख!

सदा ने कहा…

बिल्‍कुल सही लिखा है आपने ... दुबारा से पढ़ाई में जुटना पड़ता है :)

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

परीक्षा ...ये ऐसी चीज़ है जिससे पीछा छूटना बहुत मुश्किल है :(
Exam सीजन मे आपके इस लेख ने मुझे मेरी हाईस्कूल ,इंटर और बी कॉम की याद दिला दी।

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।


सादर

डॉ टी एस दराल ने कहा…

परीक्षाओं में बच्चों से ज्यादा मात पिता की मेहनत हो जाती है .
लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं .

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सही लिखा है आपने.... सबकी बात...
सादर.

kshama ने कहा…

Bahut tazagee se paripoorn aalekh!

संध्या शर्मा ने कहा…

परीक्षा की घड़ी
बच्चों से ज्यादा
माता-पिता के लिए बड़ी...
अच्छा आलेख...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत सामयिक और उपयोगी आलेख!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

घर में सब परीक्षामय है, वातावरण भी और मेरी आने वाली पोस्ट भी..

Kewal Joshi ने कहा…

सच, बच्चों से अधिक परीक्षा , अविभावकों की ही होती है. बढिया प्रस्तुति.

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

परीक्षा के दिनों की याद कर सिहर जाते हैं फिर भी बच्चों पर जोर डालना ही पड़ता है.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

परीक्षा के समय बच्चो के लिए समय निकालना जरूरी है,तथा एक अच्छे माँ बाप दाइत्व भी बनता है
बहुत बढ़िया,बेहतरीन उपयोगी प्रस्तुति,.....

MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...

Atul Shrivastava ने कहा…

बच्‍चों के साथ मां बाप की भी परीक्षा होती है।

Vaanbhatt ने कहा…

बच्चों पर पढाई का बहुत बोझ है...परीक्षा में नंबरों का दबाव माँ-बाप को भी तनाव में डाल देता है...

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बच्चों की परीक्षा की घड़ी में निश्चिततौर पर अभिभावकों की भी परीक्षा होती है। उनके खाने-पीने तक का खयाल रखना होता है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बढ़िया आलेख, बात आज बच्चे के सिर्फ पढने की टेंशन का नहीं बल्कि जिस तरह आज शिक्षा इतनी महंगी हो गई है, माँ-बाप को बहुत सी एनी फिकरे भी खाए जाती है !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तभी तो कहते हैं परीक्षा उम्र भा चलती रहती है जब से समझ आती है ...
बच्चों की तो परीक्षा होती ही है ... बड़े होने पे माँ बाप की भी परीक्षा होती है बच्चों के साथ ...तनाव दोनों को झेलना पढता है ... सामयिक पोस्ट है ...

विभूति" ने कहा…

प्रभावशाली प्रस्तुति

रचना दीक्षित ने कहा…

सचमुच परीक्षा का समय परीक्षा देने वाले के साथ साथ ही घर परिवार वालों के लिये भी संकट की घड़ी है. ऐसा लगता है कि कहीं युद्ध की घोषणा हो गयी हो.

उम्दा प्रस्तुति.

बधाई.

Ragini ने कहा…

मेरा भी १०वी की exam है अपने बेटे के साथ-साथ, इतनी पढाई अपने exam के टाइम में भी नहीं की थी, जितनी अब करनी पड़ रही है....

rashmi ravija ने कहा…

हर घर की कहानी...हर माँ की परेशानी
पर परीक्षाएं हैं कि जिंदगी भर पीछा नहीं छोड़तीं

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

परीक्षा के समय बच्चो को बहूत मेहनत करनी पडती है...
तस्वीर भी बहूत cute लग रही है
बच्चो को good luck..

Bhawna Kukreti ने कहा…

JALD HI MAIN BHI ISI JANG ME UTARNE WALI HOON .AAPKA LEKH BAHUT BADHIYA LAGA.

pankaj ने कहा…

आजकल यही हाल सब घर का है ..
जीवन कभी परीक्षाओं के दौरों से खाली नहीं रहता ..चलते रहते हैं ये कठिन दिन..
शानदार आलेख..

vijay ने कहा…

जिंदगी में आने वाली परीक्षाओं के दौर से गुजरते हुए जब बात छोटे बच्चों के परीक्षा के दिनों पर आकर अटकती हैं तो यह मेरे हिसाब से किसी भी माँ-बाप के लिए बच्चों की परीक्षा से ज्यादा उनकी परीक्षा के दिन होते हैं, जब बच्चों को पढ़ाने-रटाने की माथापच्ची में उलझे कच्चा-पक्का खाकर दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाने का समय आन पड़ता है।...
एकदम दुरस्त लिखा है आपने...जितने छोटे बच्चे उतनी बड़ी परीक्षा... लगता है कब जल्दी से यह दौर गुजर जाय...,,बहुत बढ़िया पोस्ट

RAJ ने कहा…

गर्दन पकड़कर पढवाना मजबूरी बन जाती है, पेच हाथ में रखकर पत्थर की नाव चलाने की कोशिश करनी ही पड़ती है।.................
इस कवायद में हम भी लगे हुए है...

बेनामी ने कहा…

हम भी बचपन में ऐसे ही थे, बहुत परेशान करते थे घर वालों को अब सुधर गए हैं...........मजा आया पढने में ......धन्यवाद

nivi ने कहा…

किसी भी माँ-बाप के लिए बच्चों की परीक्षा से ज्यादा उनकी परीक्षा के दिन होते हैं, जब बच्चों को पढ़ाने-रटाने की माथापच्ची में उलझे कच्चा-पक्का खाकर दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाने का समय आन पड़ता है।

बच्‍चों के साथ मां बाप की भी परीक्षा होती है।

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

sahi me bachchon se adhik maa-baap ko padna hota hai kavita jee

deepak ने कहा…

कबिता जी परीक्षा के बारे आपका दृष्टिकोण बहुत व्यापक और सारगर्भित है । बहुत अच्छा लेख लगा..।

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

जिंदगी में आने वाली परीक्षाओं के दौर से गुजरते हुए जब बात छोटे बच्चों के परीक्षा के दिनों पर आकर अटकती हैं तो यह मेरे हिसाब से किसी भी माँ-बाप के लिए बच्चों की परीक्षा से ज्यादा उनकी परीक्षा के दिन होते हैं,......
परीक्षा में नंबरों का दबाव माँ-बाप को भी तनाव में डाल देता है...प्रभावशाली प्रस्तुति....
धन्यवाद.........

बेनामी ने कहा…

pariksha to jab tak jeevan hai chalti hi rahti hai..

मनोज कुमार ने कहा…

परीक्षा तो हर दिनी पड़ती है।

Unknown ने कहा…

यही बात है , जाने अनजाने हमने अपनी ज़िन्दगी में कितनी मुश्किले बना ली हैं ....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

अभिभावको की जिम्मेदारी का अहसास कराता लेख,...

NEW POST...फिर से आई होली...

Patali-The-Village ने कहा…

परीक्षा के बारे आपका दृष्टिकोण बहुत व्यापक और सारगर्भित है|धन्यवाद|

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत प्रभावशाली एवं प्रेरणादायक आलेख !
आभार !

बेनामी ने कहा…

nice blog
nice post!

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sahi nd satik lekh kavita jee.

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया प्रेरक पोस्ट है ...
रंगोत्सव पर शुभकामनायें

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

स:परिवार होली की हार्दिक शुभकानाएं.......

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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tips hindi me ने कहा…

होली की आपको हार्दिक शुभकामनयें!

टिप्स हिंदी में

Bharat Bhushan ने कहा…

परीक्षाओं के दिनों की हलचल ऐसी ही होती है. कार्तिकेय के मन पर परीक्षाओं का संस्कार स्वाभाविक ही पड़ रहा है. बहुत खूब लिखा है.

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

Chandar ने कहा…

बहुत सुन्दर मैडम जी!!
हैप्पी होली ...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

परीक्षाओं के वे कष्टप्रद दिन याद आ गए...

बहुत अच्छा लेख ...

अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

बेनामी ने कहा…

परीक्षाओं की मत पूछो....
हमको तो बड़ा डर लागे....
बड़ा अच्छा लिखें हैं ......
होली मुबारक!

virendra sharma ने कहा…

माँ ही देकर जाती है शिक्षा की दीक्षा .पूर्ण समर्पण उसका बच्चों के प्रति पूरे साल देखते ही बनता है .परीक्षा के दिन उसके लिए पूरे साल होतें हैं

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लेख ...

shashi purwar ने कहा…

sahi kaha aapne ............sunder abhivyakti yeh pariksha hamse kabhi nahi chuti .

happy rangpanchmi .

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय कविता जी
नमस्कार !
प्रेरक पोस्ट .... होली की शुभकामनाएं...
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

कुमार राधारमण ने कहा…

परीक्षा के दबाव में बचपन गुम हो रहा है। नतीज़ा हम देख ही रहे हैं। बच्चे अब बच्चे नहीं रहे।

बेनामी ने कहा…

अभिभावको की जिम्मेदारी का अहसास कराता प्रभावशाली एवं प्रेरणादायक आलेख !
होली की शुभकामनाएं...

Raju Patel ने कहा…

आप का लेख अच्छा है.विशेषत: भाषा पर आप की पकड़ अच्छी है.

sangita ने कहा…

रभावशाली एवं प्रेरणादायक आलेख !

Smart Indian ने कहा…

नन्हे कार्तिकेय को बहुत सा प्यार!

बेनामी ने कहा…

जिंदगी में कितनी ही परीक्षाओं के दौर से गुजरना पड़ता है
सुन्दर आलेख

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छा लेख ...

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

I comment when I especially enjoy a article on a site or I have something to valuable to
contribute to the conversation. It is a result of
the passion communicated in the article I read. And on this article "परीक्षा के दिन!".
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you if it's okay. Could it be only me or does it look like like some of these responses appear like they are written by brain dead individuals? :-P And, if you are writing at other social sites, I would like to keep up with anything new you have to post. Could you list every one of your communal sites like your twitter feed, Facebook page or linkedin profile?

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