मैं और मेरा कंप्यूटर - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 15 अप्रैल 2012

मैं और मेरा कंप्यूटर

कभी कभी 
मेरे कंप्यूटर की
सांसें भी हो जाती हैं मद्धम
और वह भी बोझिल कदमों को
आगे बढ़ाने में असमर्थ  हो जाता है
मेरी तरह

और फिर
चिढ़ाता है मुझे
जैसे कोई छोटा बच्चा
उलझन में देख किसी बड़े को
मासूमियत से मुस्कुराता है
चुपचाप !

कभी यह मुझे 
डील डौल  से चुस्त -दुरुस्त
उस बैल के तरह
दिखने लगता है जो बार-बार
जोतते ही बैठ जाता है अकड़कर
फिर चाहे कितना ही कोंचो
पुचकारो
टस से मस नहीं होता!

कभी जब काफी मशक्कत के  बाद
चलने लगता है
तो  दिल  सोचता है
शायद  वह भी समझ गया है
हम दोनों की नियति
चलते रहने की है

कभी सोच में डूबती हूँ कि
इसकी किस्‍मत मेरे साथ जुड़ी है
या कि मेरी इसके साथ
तय नहीं कर पाती

फिर सोचती हूँ
चलो जैसा भी है  
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?

अब दोनों को एक आदत सी हो चली है
निरंतर साथ-साथ रहने की
सरपट दौड़ लगाकर नहीं तो
कम से कम एक दूजे का 
यूँ ही साथ निभाते चलने की 

  ... कविता रावत 

70 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

कभी जब काफी मशक्कत के बाद
चलने लगता है
तो दिल सोचता है
शायद वह भी समझ गया है
हम दोनों की नियति
चलते रहने की है
बहुत सुंदर रचना...
आपने सही कहा नियति तो एक है ....कविता जी,...
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...........

फिर सोचती हूँ
चलो जैसा भी है
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?

क्या अद्भुत कल्पना है कविता जी..
बहुत खूब.

अनु

धम्मू ने कहा…

कभी यह मुझे
डील डौल से चुस्त -दुरुस्त
उस बैल के तरह
दिखने लगता है जो बार-बार
जोतते ही बैठ जाता है अकड़कर
फिर चाहे कितना ही कोंचो
पुचकारो
टस से मस नहीं होता!

बार बार ख़राब होते कंप्यूटर की जोत से जूते हुए अड़ियल बैल से तुलना बड़ा ही रोमांचकारी है...
खूब! बहुत खूब! लिखा है .....

रचना दीक्षित ने कहा…

कम्पूटर भी अब जीवन का अभिन्न अंग बन गया है जिसके बिना सब कुछ अधूरा लगता है.

बहुत सुंदर.

मनोज कुमार ने कहा…

आज के इस व्यस्त जीवन में कम्प्यूटर सबसे वफ़ादार साथी की तरह है। हम उसे उसके मनोभावों को अगर समझें तो वह बढिया साथ निभाता है।

M VERMA ने कहा…

चलो ये भी अच्छा है ... रूठना और मनाना

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत सुन्दर. सही में कंप्यूटर के बगैर दो चार दिन भी गुजारना पड़े तो बहुत तकलीफ होती हैं

kshama ने कहा…

Computer pe aisee kavita likhi ja sakti hai socha na tha! Bahut khoob!

बेनामी ने कहा…

अब दोनों को एक आदत सी हो चली है
निरंतर साथ-साथ रहने की
सरपट दौड़ लगाकर नहीं तो
कम से कम एक दूजे का
यूँ ही साथ निभाते चलने की
.....
बेचारगी भरे दिनों में जो काम आवे वही सबसे अच्छा
बेचारा कंप्यूटर करे भी तो क्या करे कितना झेलता है बिना कुछ कहे!
बहुत सुंदर रचना!!

Shikha Kaushik ने कहा…

ye sabke sath hota hai .badhiya prastuti .aabhar

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Dolly ने कहा…

कभी जब काफी मशक्कत के बाद
चलने लगता है
तो दिल सोचता है
शायद वह भी समझ गया है
हम दोनों की नियति
चलते रहने की है
...........
किन परिस्थितियों में घर चलाना पड़ता है और यदि थोड़े से प्रयास से बिना कुछ लगे काम बनता है तो अच्छा तो लगता ही है
खुद को समझने समझाने से सुन्दर परिणति!

Bharat Bhushan ने कहा…

कंप्यूटर रूठ जाए तो मनाना मुश्किल हो जाता है. बहुत खूब :))

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एकदम जीवन की तरह व्यवहार करता है कम्प्यूटर..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

कम्प्युटर रूठे अगर, दुनिया जाए रूठ.... :))
बढ़िया रचना...
सादर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अब तो कंप्यूटर बिना सब अधूरा सा लगता है ...

Ramakant Singh ने कहा…

कम से कम एक दूजे का
यूँ ही साथ निभाते चलने की
IT HAPPENS SOMETIMES WE ARE IN FIX AND HELPLESS
BUT WE ARE MOOVING TOGETHER OR STAYING.
NICE POST VERY VERY NEAR TO HEART.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

समझ सकता हूँ इस पोस्ट की प्रेरणा श्रोत रहा है आपका कम्प्यूटर .....
एक रूठे हुए कम्प्यूटर के मान जाने पर ख़ुशी तो होती ही है.....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बढ़िया रचना...

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाकई आज के समय में कंप्यूटर बिना सब अधूरा सा लगता है
अब दोनों को एक आदत सी हो चली है
निरंतर साथ-साथ रहने की
सरपट दौड़ लगाकर नहीं तो
कम से कम एक दूजे का
यूँ ही साथ निभाते चलने की
...............सुंदर शब्दावली....रचना के लिए बधाई स्वीकारें...!!!

Shanti Garg ने कहा…

बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

रचना दीक्षित ने कहा…

कंप्यूटर भी अब जीवन का एक अंग ही है उसके रूठने पर मनाना बस जरा ज्यादा मुश्किल हो जाता है.

शूरवीर रावत ने कहा…

यह समस्या तो कमोबेश सबके साथ ही है और आपने इसे सुन्दर शब्दों की अभिव्यक्ति दी है. यही आपकी कला है जिसके कायल आपके सभी प्रशंसक है. आभार !

शूरवीर रावत ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
deepakkibaten ने कहा…

मानव और मशीन के दर्द को समझने की अच्‍छी कोशिश

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

फिर सोचती हूँ
चलो जैसा भी है
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?

bahut hi sundar rawat ji ....abhar.

Vaanbhatt ने कहा…

यक़ीनन आप चाहें तो प्रोसेस्सर की स्पीड या कोई अच्छा सा एंटी-वाइरस डाल सकतीं हैं...कंप्यूटर की स्पीड बढ़ाने को...पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है काम्पैटीबिलिटी...पुरानी चीजों से जुडाव का अपना अलग आनंद है...

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बहुत खूब... कंप्यूटर पर कविता......

poonam ने कहा…

bahut khub....aaj ki jarurat..computer

Ayodhya Prasad ने कहा…

बिना कंप्यूटर के अब बहुत सूना सा लगता है |
बहुत खूब

Learnings: भिखारी का धर्मसंकट

Saras ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...वास्तव में कंप्यूटर हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है ....हमारे शरीर से जुदा फिर भी जुड़ा...!!!!

Nidhi ने कहा…

बढ़िया लिखा है...हमारे दैनिक जीवन के एक महत्त्वपूर्ण अंग कंप्यूटर के बारे में.

vandana gupta ने कहा…

सच कहा ……सुन्दर प्रस्तुति।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कभी वाइरस कभी हैंग .... :)

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही बढि़याद्य

Pallavi saxena ने कहा…

लगता है आपकी और मेरी स्थिति लगभग एक सी है... :) समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

डील डौल से चुस्त -दुरुस्त
उस बैल के तरह
दिखने लगता है जो बार-बार
जोतते ही बैठ जाता है अकड़कर
फिर चाहे कितना ही कोंचो
पुचकारो
टस से मस नहीं होता!
कविता जी सुन्दर और नया अंदाज ...कहता होगा कम्प्यूटर ..चैन से रहने दो मुझे ..थोडा उसको और खुद को भी आराम दिया करें .... जय श्री राधे
भ्रमर ५

Surya ने कहा…

फिर सोचती हूँ
चलो जैसा भी है
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?
कविता जी बिलकुल सही कहती है आप
आदमी पर आज किसका कितना जोर चलता है यह हम सभी बखूबी जानकार भी अनजान रहते है... भला हो इस कंप्यूटर बनाने वाले का जो हमारा अपना कहलाता है..
बहुत सुन्दर मनभावन कविता .. ...

कुमार राधारमण ने कहा…

किसी से जुड़ पाना ही तभी संभव है जब सामंजस्य बिठाना आता हो।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सही कहा , अब तो साथ चलने की आदत सी पड़ गई है ।
सुन्दर प्रस्तुति ।

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut badhiya saarthak rachna...

RAJ ने कहा…

फिर सोचती हूँ
चलो जैसा भी है
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?

हाँ और किसी जीवित जीव पर इतना बस चल चलाना संभव है ही नहीं

PS ने कहा…

कंप्यूटर पर बहुत सुन्दर कविता

इसलिए कहते है-
जहाँ न पहुंचे रवि
वहां पहचे कवि

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आज कल ऐसी बेजान चीजें तो साथ दे देती हैं ... पर इंसान साथ नहीं देते ...
भाव जुड गएँ आज सभी के कम्पुटर के साथ ...

pratibha ने कहा…

कविता जी कंप्यूटर के साथ अपनी व्यथा कथा का सुन्दर मिश्रण किया है ..बहुत खूब

बेनामी ने कहा…

कभी सोच में डूबती हूँ कि
इसकी किस्‍मत मेरे साथ जुड़ी है
या कि मेरी इसके साथ
तय नहीं कर पाती.....सब किस्मत का खेल है जो जिसकी किस्मत में लिख दिया ऊपर वाले ने वह एक दुसरे का भाग्य बन जाता है.
बहुत बढ़िया जानदार शानदार कविता बिलकुल आपने नामानुकूल ..बधाई

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

computer ko ya to update kar lo ya naya badal do tabhi pareshani se chhutkara milega.

Mamta ने कहा…

कंप्यूटर के बिना आज जिंदगी अधूरी है..
आपने इसी बहाने अपने दिल का दर्द बड़ी खूबसूरती से बयां कर दिया..

अब दोनों को एक आदत सी हो चली है
निरंतर साथ-साथ रहने की
सरपट दौड़ लगाकर नहीं तो
कम से कम एक दूजे का
यूँ ही साथ निभाते चलने की

जो भाग्य में लिखा होता है वही मिलता है उसे उसके नसीब से......

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव
GAJAB KI RACHANA ANTAH KARAN KE MARM TK SAMVEDNAON SE BHRPOOR ...BADHAI RAWAT JI.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

फिर सोचती हूँ
चलो जैसा भी है
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?

Hun... Sach Kaha Apne

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

बहुत सुंदर साम्यता, वाह!!!!!!!!!!!!!!

Bhawna Kukreti ने कहा…

वाह...........:)

बेनामी ने कहा…

और फिर
चिढ़ाता है मुझे
जैसे कोई छोटा बच्चा
उलझन में देख किसी बड़े को
मासूमियत से मुस्कुराता है
चुपचाप !
...........
वाह! क्या सुन्दर कल्पना है! कविता जी लगता है इस पोस्ट को आपने दिल की बात कहने का माध्यम बनाया है ...
अति सुन्दर पोस्ट ...

vikram7 ने कहा…

और फिर
चिढ़ाता है मुझे
जैसे कोई छोटा बच्चा
उलझन में देख किसी बड़े को
मासूमियत से मुस्कुराता है
चुपचाप !
vaah kavita jii kyaa khuub likha hae,

Kewal Joshi ने कहा…

"चलो जैसा भी है
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?"

गहरे भाव.... वाह.

Kailash Sharma ने कहा…

अब दोनों को एक आदत सी हो चली है
निरंतर साथ-साथ रहने की
सरपट दौड़ लगाकर नहीं तो
कम से कम एक दूजे का
यूँ ही साथ निभाते चलने की

....ज़िंदगी इसी तरह गुज़र जाती है..बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

आनन्द विश्वास ने कहा…

कोई तो मजबूरी होगी, बेचारे कम्प्यूटर की।
उसकी निष्ठा में कमी नहीं हो सकती।
क्योंकि वह इन्सान नहीं है।
सुन्दर कविता।

आनन्द विश्वास।

deepak ने कहा…

'कभी सोच में डूबती हूँ कि
इसकी किस्‍मत मेरे साथ जुड़ी है
या कि मेरी इसके साथ
तय नहीं कर पाती'
सुन्दर अभिव्यक्ति है ...

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

यह हमारी और उसकी नियति ही है कविता जी कि हम 'गरियार-बैल' की तरह भी खिंचे चले जा रहे हैं !!

Manjushri Gupta ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति है

Raju Patel ने कहा…

आप की कविता पढ़ कर अच्छा लगा-

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

आपकी रचना पढकर लगता है कि आपका और आपके कंप्यूटर का तालमेल बहुत ही अच्छा है...

आपसी सामंजस्य को व्यक्त करती हुई बहुत सुन्दर रचना!!

Dr. Sanjay ने कहा…

Tremendous Poem

प्रेम सरोवर ने कहा…

कविता के भाव अच्छे लगे । समय इजाजत दे तो मेरे नए पोस्ट पर आकर मुझे प्रोत्साहित करने की कोशिश करें । धन्यवाद ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आह! से निकला होगा गान।
कवि जब चोट खाता है तो बड़ी बढ़िया कविता लिखता है!
बहुत सुंदर कविता है और भाव तो कमाल के हैं!.. बधाई।

PS ने कहा…

आंटी जी बहुत बढ़िया

Priynka ने कहा…

वाह वाह!
बहुत सुन्दर

Amrita Tanmay ने कहा…

वाह ..बहुत अच्छा..

सुनील अनुरागी ने कहा…

कंप्यूटर की अठखेलियों को काव्यांजलि में पिरोकर उसे अच्छी अभिव्यक्ति दी है.