घर से १०-१५ दिन बाहर जाने के बाद जब वापस घर का ताला खुलता है तो अन्दर का नज़ारा बहुत कुछ बदला-बदला अजनबी सा जान पड़ता है. सपरिवार १५ दिन के दिल्ली अल्प प्रवास के बाद जब घर का ताला खोला तो कुछ ऐसा ही मुझे महसूस हुआ. दो-चार दिन घर की साफ़-सफाई और बच्चों के लत्ते-कपडे धोने सुखाने में कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. बच्चों के स्कूल के खुलने का समय भी सिर पर था, स्कूल में डांट-डपट की नौबत खड़ी न हो जाए इससे पहले ही होमवर्क दो दिन देर रात जाग-जागकर जैसे-तैसे करवाया. इस बीच ब्लॉग परिवार की भी याद सताती रही कि कई दिन से दूर रही तो वहाँ क्या हो रहा होगा. बहुत दिन बाद क्या लिखकर पोस्ट करूँ इसी उधेड़बुन में जब बीते रविवार को बगीचे की साफ़-सफाई में लगी थी तो मैंने देखा आम के पेड़ पर एक साथ चार गिलहरियाँ और बुलबुल का एक जोड़ा बड़े ही आकुल-व्याकुल होकर लगातार चीखते-चिल्लाते कुछ कहना चाह रहे हैं. बगीचे में चूहों का साम्राज्य एक कदर व्याप्त है कि जगह-जगह सुरंग ही सुरंग नज़र आती हैं. जिस गति से मैं एक को बंद करती हूँ उससे कई गुना तेजी से अगले दिन दूसरी खुली नज़र आने लगती है. मैं थोडा सतर्क हुई कि हो न हो पहली जोरदार बारिश के बाद कहीं कोई सांप तो बाहर नहीं आ गया. तभी पास खेलते बच्चों ने एक साथ 'सांप-सांप' कहकर चिल्लाते हुए उस ओर इशारा किया जहाँ एक बड़ा सा सांप हमारी खिड़की पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था. कहीं यह घर में न घुस जाए इस भय से मैं भी चिल्लाकर घबराते हुए उसको दूर भागने की कोशिश करने लगी. इस बीच आस-पास के लोग शोरगुल सुनकर एकत्रित हो गए. सांप ने अपने रास्ता बदल लिया और वह चूहे के बिल में घुस गया.
इसी दौरान किसी ने सांप पकड़ने वाले को फ़ोन कर बुला लिया. हम 2 घंटे तक वहां से तब तक नहीं हिले जब तक सांप पकड़ने वाला नहीं आ गया. जब सांप पकड़ लिया गया तो मेरे साथ-साथ बगीचे के पेड़-पौधों में अपना डेरा जमाये गिलहरियों और बुलबुल के जोड़े ने भी गहरी राहत भरी सांस ली.
इसी दौरान किसी ने सांप पकड़ने वाले को फ़ोन कर बुला लिया. हम 2 घंटे तक वहां से तब तक नहीं हिले जब तक सांप पकड़ने वाला नहीं आ गया. जब सांप पकड़ लिया गया तो मेरे साथ-साथ बगीचे के पेड़-पौधों में अपना डेरा जमाये गिलहरियों और बुलबुल के जोड़े ने भी गहरी राहत भरी सांस ली.
अब तो पेड़-पौधों को बारिश शुरू होने से पानी तो नहीं डालना पड़ता है लेकिन उनकी देख-रेख और कूड़ा-करकट उठाने तो जाना ही पड़ता है. पिछले १० साल से बिल्डिंग की चौथी और आखिरी मंजिल पर २ कमरे वाले फ्लैट में रह रहे थे. ४ माह हुए दूसरी जगह 3 कमरे वाले फ्लैट में ग्रांउड फ्लोर पर रह रहे हैं जहाँ एक बगीचा भी मिल गया है. इसमें थोड़ी बहुत बागवानी कर अपना शौक पूरा होते देख ख़ुशी तो होती है लेकिन थोडा दुःख भी है.
ऊपर की मंजिल में रहने वाले लोग जब-तब अपने घर की साफ़-सफाई कर कचरे को बगीचे में बड़े ही लापरवाही से ऐसे फेंकते हैं जैसे नीचे कोई इंसान ही नहीं रहते हों. पड़ोसियों से जान पहचान हो चली है उनका कहना है हमने तो इसी परेशानी के चलते बगीचे में पेड़-पौधे लगाना उनकी देख-रेख करना लगभग छोड़ दिया है.वे कहते हैं ये बड़े जिद्दी, नासमझ और अकडू टाइप के प्राणी हैं, किसी की सुनते नहीं. अभी तक तो बात नहीं हुई लेकिन मैं मानती हूँ हमेशा कोई भी समस्या बरक़रार नहीं रहती, कभी न कभी प्रयत्न करने से हर समस्या का समाधान निकल ही आता है. कभी-कभी सोचती हूँ जाने क्यों हम इंसान ही अपना काम खुद करने के बजाय दूसरों का मुहं ताकने से बाज नहीं आते, जबकि छोटे से दिखने वाले प्राणी भी अपनी समस्या इतनी चतुराई और आपसी ताल-मेल बिठाकर कर लेते हैं जिसे देख बड़ा ताजुब होता है कि हम ऐसा क्यों नहीं कर पाते.
अब देखिये हमारा स्टोर रूम १५-२० दिन से बंद पड़ा था पिछले रविवार को मैंने सोचा चलो एक बार इस कमरे की भी सुध ले ली जाय नहीं तो बेचारा सोचता होगा पुरानी हो चली खटारा गाडी की तरह कोई पूछ परख नहीं. यही सोच जब ताला खोला तो मैं एकदम चौंक उठी. अन्दर का नज़ारा बदला-बदला था. जिसे मैं खाली कमरा समझ रही थी उसमें किसी मेहमान ने बिना मेरी अनुमति के अपना घर संसार ऐसे बसाकर रखा था जैसे वे मेरे कोई चिर-परिचित अपने ही हों. उनकी कातर दृष्टि से मैं उनके मन की बात समझ गई और समझती क्यों नहीं आखिर ये कोई और नहीं मेरे पुराने घर के मनी प्लांट में ४ साल से लगातार अपना घर संसार बसाने वाली खुशदिल खुशमिजाज बुलबुल जो थी. लेकिन मेरे इस नए घर में चुपके से मेरे पीछे पीछे आकर इस तरह कमरे पर अपना घर संसार बसाएँगे इसका मुझे बिलकुल अंदाजा नहीं था. लेकिन इस बार सबसे चौंकाने वाली बात जिसे देख मैं हैरत में पड़ गई वह यह कि इस बार इनका घरोंदा मनी प्लांट या किसी पेड़ पर नहीं बल्कि पंखे के ऊपर जो कटोरी लगी रहती है उस पर था. खतरे से बेखबर ये मासूम जीव अपना घर-संसार बसाने की जहमत उठा लेंगे यह मैं कभी सोच ही नहीं सकती. बंद कमरे में रोशनदान से घुसकर आपस में बेजोड़ ताल-मेल बिठाकर ३ नन्हें मासूम जीवों के साथ अपनी घर-गृहस्थी बसाने का साहस केवल यही प्राणी कर सकते हैं. अब तो हर दिन जब तक हम सभी उन ३ नन्हें -नन्हे नए मेहमानों की एक झलक के साथ ही मंद-मंद चहचाहट नहीं सुन लेते तब तक मन को तसल्ली नहीं होती. जब कभी सांसारिक उहापोह भरी जिंदगी से थक-हार कर मन मायूस होता है तो मुझे प्रकृति के ऐसे ही अनमोल उपहारों से अपनी परिस्थितियों से जूझने की प्रेरणा तो मिलती ही है साथ ही हताश, निराश मन में भी नयी-उमंग-तरंग जाग उठती है.
77 टिप्पणियां:
बंद कमरे में रोशनदान से घुसकर आपस में बेजोड़ ताल-मेल बिठाकर ३ नन्हें मासूम जीवों के साथ अपनी घर-गृहस्थी बसाने का साहस केवल यही प्राणी कर सकते हैं. अब तो हर दिन जब तक हम सभी उन ३ नन्हें -नन्हे नए मेहमानों की एक झलक के साथ ही मंद-मंद चहचाहट नहीं सुन लेते तब तक मन को तसल्ली नहीं होती. जब कभी सांसारिक उहापोह भरी जिंदगी से थक-हार कर मन मायूस होता है तो मुझे प्रकृति के ऐसे ही अनमोल उपहारों से अपनी परिस्थितियों से जूझने की प्रेरणा तो मिलती ही है साथ ही हताश, निराश मन में भी नयी-उमंग-तरंग जाग उठती है.
मैडम जी! बहुत दिन बाद इतनी सुन्दर पोस्ट पढ़कर दिल को बहुत ख़ुशी हुई.....
बहुत ही अच्छी दिल छूने वाली हैं तस्वीरें ...बहुत बहुत बहुत बढ़िया
इतने साल से रहते रहते तो किरायेदारो का भी कब्जा हो जाता है तो वे तो आप पर अपना अधिकार मानकर रह रहे हैं अब उनके परिवार के बडे होने की खुशी भी महसूस कीजियेगा
आपके नन्हें मित्रों से मिलकर बहुत अच्छा लगा। कूड़ा फेंकने वाला परिवार अगर पहचान में आ ही गया है तो उन्हें एक खूबसूरत सा कूड़ेदान अच्छी तरह गिफ़्टरैप करके उपहार में दे दीजिये।
घर सूना न रहे इसका ख़याल रखा आपकी बुलबुल ने....
मनभावन पोस्ट .....
सादर
अनु
बेख़ौफ़ माहौल मिलेगा तो मेहमान आ ही जायेंगे. प्राकृतिक प्रेम झलक रहा है पूरे पोस्ट में.
बहुत सुन्दर
बहुत ही सुन्दर पोस्ट ... आभार
सांप जैसे परभक्षियों से सुरक्षा के उद्देश्य से ही पंखे की कटोरी में नीड़ सजाया।
जीवन के प्रति बेहद जीवंत आलेख!!
ओह .... घर से जाकर फिर आने पर बहुत कुछ नए सिरे से करना होता है . मैंने तो नए फ्लैट में शिफ्ट किया है- हालात खराब है
SACH ME HAME IN NISHABD JEEV-JANTUON SE BAHUT KUCHH SEEKHNE KO MILTA HAI. RUCHIKAR LEKH.
चलिए इतने दिनों बाद घर वापस आ कर राहत की सांस तो लीजिए पहले ... सफाई से मुक्त तो होइए ... इन नन्हे नन्हे जीवों कों पालने का भार उतारिये ,... अच्छा लगा आपको दुबारा पढ़ना ...
बहुत ही अच्छी पोस्ट!
सादर
एक जीवंत, सहज, सरल अभिव्यक्ति
ऐसा लगा सब सामने घट रहा
बढ़िया
बहुत सुन्दर पोस्ट...
:-)
प्रकृति तो बहुत कुछ सिखाती है ....पर मनुस्य सीखे तब न ... रोचक पोस्ट
प्रकृति में सहअस्तित्व की बात स्वाभाविक है. सुंदर आलेख.
पक्षी मनुष्यों से कहीं ज़्यादा समझदार और प्यार करने वाले होते हैं कविता जी. सुन्दर संस्मरण है, खूबसूरत चित्रों के साथ :)
kismat vali hai aap ki prakruti ke itane kareeb hai aur in nishchhal jeevon ka sath aapko mila hai...sundar vrutant.
ऊपर की मंजिल में रहने वाले लोग जब-तब अपने घर की साफ़-सफाई कर कचरे को बगीचे में बड़े ही लापरवाही से ऐसे फेंकते हैं जैसे नीचे कोई इंसान ही नहीं रहते हों. पड़ोसियों से जान पहचान हो चली है उनका कहना है हमने तो इसी परेशानी के चलते बगीचे में पेड़-पौधे लगाना उनकी देख-रेख करना लगभग छोड़ दिया है.वे कहते हैं ये बड़े जिद्दी, नासमझ और अकडू टाइप के प्राणी हैं, किसी की सुनते नहीं....
अरे मैडम हम भी ऐसी ही समस्या से ग्रस्त थे ऐसे लोगों से जैसे को तैसा वाला फार्मूला से काम लेना से बात बनती है. मेरी बात कैसे बनी सुनो एक दिन मैंने उनके फेंकें कुछ पेपर जिसमें उनका नाम वगैरह था उसे बटोर कर एक लिफाफे में भर कर बाकायदा टिकट लगाकर उनके एड्रेस पर पोस्ट कर दिया \..... फिर क्या था जब उनको लिफाफा मिला तो समझ गए आकर बोले ' यह क्या मजाक है... हमने भी बड़े प्यार से कहा और जो आप रोज मजाक करते हो उसका क्या? हमने तो एक ही दिन मजाक किया न.. बस थोडा नरमा गर्मी के बाद बात बन गयी ..अब बोलो हमारा फार्मूला कैसा रहा.
पोस्ट पढ़कर मजा आया.
बुलबुल की दो दो बुलबुलियाँ आपके स्वागत में घर पर बैठी है यह तो बढ़िया है. यात्रा और छुट्टी से जब घर वापस आते तो सब कुछ अस्तव्यस्त मिलता है और जो आनंद इतने दिनों में मिला वह साबुन के बुलबुले की तरह काफूर हो जाता है. अच्छी आपबीती.
बुलबुल का जोड़ा अपना समझकर ही आपके नए घर की राह आया हो. बुलबुल बहुत समझदार होती है .पंखें के ऊपर जोखिम भरा काम है घर बनाना फिर भी उन्हें पता है कि घर में प्रकृति प्रेमी हैं जो सुरक्षित रख सकेंगे ..हैं न ...
बहुत सुन्दर जीवंत संस्मरण..आपका आभार
अब तो आपकी बुलबुल..बच्चों के साथ मिल कर चहकेगी..
बड़ी प्यारी सी पोस्ट है...
नवजीवन सदा ही कुछ अच्छा करने को प्रेरित करता है..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05 -07-2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... अब राज़ छिपा कब तक रखे .
बहुत उम्दा जीवंत अभिव्यक्ति,,,प्रेरित करता आलेख,,,,,,
MY RECENT POST...:चाय....
अद्भुत और जीवन्त विवरण पढ़कर की छुए-अनछुए पहलू मन में उमड़-घुमड़ पड़े।
जीवंत अभिव्यक्ति
बधाई , नए परिवार के लिए ! उन्हें आप पर भरोसा है कि वे सुरक्षित रहेंगे !
खूबसूरत चित्रों के साथ प्राकृतिक प्रेम नजर आ रहा पूरी पोस्ट में ....कविता जी
प्रवासी हुए दूर
जब आया घर वासी :-)
जीवंत वर्णन
Mere gharpe bhee ek chidiya ne bathroom ke exhaust fan pe apna ghonsla banaya tha.....aur 3 baar ande deke bachhe nikale.....maine bhi ek sachitr post likhi thee..!
Bada achha lagta hai jab parinde bekhauf apne gharke kisi kone ko apnate hain!
बहुत ही सुन्दर पोस्ट ... आभार
bahut sundar kavita ji prkriti ke beech rahna sabko nasib nahi hota
ऊपर की मंजिल में रहने वाले लोग जब-तब अपने घर की साफ़-सफाई कर कचरे को बगीचे में बड़े ही लापरवाही से ऐसे फेंकते हैं जैसे नीचे कोई इंसान ही नहीं रहते हों. पड़ोसियों से जान पहचान हो चली है उनका कहना है हमने तो इसी परेशानी के चलते बगीचे में पेड़-पौधे लगाना उनकी देख-रेख करना लगभग छोड़ दिया है.वे कहते हैं ये बड़े जिद्दी, नासमझ और अकडू टाइप के प्राणी हैं, किसी की सुनते नहीं. अभी तक तो बात नहीं हुई लेकिन मैं मानती हूँ हमेशा कोई भी समस्या बरक़रार नहीं रहती, कभी न कभी प्रयत्न करने से हर समस्या का समाधान निकल ही आता है
uper ki manjil wale ki aur bhee kartute hai ham bhee bhugat rahe hai...
jai baba banaras...
बहुत सुन्दर पोस्ट, प्रकृति से कदमताल करती हुई.
साधुवाद.
एक घर में दो पलते परिवारों की सुनहरी छटा का वर्णन बहुत ही प्रभावकारी लगी..
आपके प्रकृति के माध्यम से लिखे लेख-आलेख मुझे बहुत भाते हैं......आपके संस्मरणात्मक लेख बेजोड़ होते हैं ....
सुन्दर लेख के लिए आभार!
प्रकृति के अनमोल खजाने के पास रहना हर किसी के नसीब में नहीं.
आपके पास यह खजाना है जिसका समय-समय पर हमें भी आपकी ब्लॉग पोस्ट से लाभ उठा लेते हैं वर्ना शहर में ऐसे संयोग दुर्लभ बनते हैं..
छोटे-छोटे मेहमानों को मेरा भी दुलार ....बड़े ही मासूम हैं ... ................,,,
बहुत सुन्दर जीवंत वर्णन ..
bahut sundar rachna........mujhe bhi prkriti se prem raha hai sada se ....
पोस्ट और फोटो दोनों बहुत ही सुन्दर
बहुत रोचक पोस्ट...
shayad pahli baar aaya hoon aapke blog pr bahut hi acchha laga aapko padhakar . bilkul sachi ghatna likhi hai aapne. mn parshan ho gaya.
mere blog pr aane ke liye bahut-bahut dhanyawad....
शुभ लक्षण.
प्राकृतिक प्रेम से भरपूर सुन्दर मनभावन पोस्ट ..
सादर
ममता
कविता जी बहुत ही सजींदगी है आप की बातों में. ऐसा लगता ही नहीं की कुछ पढ़ रहा हूँ---लगता है बातें सुन रहा हूँ...बहुत बहुत धन्यवाद इस शैली को साध्य करने के लिए.
कविता जी ,आजकल तो लोगो को ये भी नही मालूम कि बुलबुल कैसी होती है , सार्थक और सराहनीय प्रयास ! बुलबुल की तरह आपका घर - आंगन भी चहके ! सुन्दर पोस्ट
इसी तरह स्नेह बनाये रखे .
बातें भले ही छोटी लगें लेकिन संवेदनाएं गहरी हैं,बहुत खूब.
आज आपके पोस्ट पर उस समय की याद आ गयी जब मे गाव मे 10 मे पढता था उस समय मुझे याद है मेरे पिताजी ने हमारे खेत को मात्र इसलिये जुतवाया (निराई गुडार्ड टैकटर के द्वारा) क्यो की उस खेत मे टिटहरी के अण्डे थे और इस कारण हमारी फसल काफी दिन बाद बोई गयी पर उसमे हर साल की बार इस बार ज्यादा उपज हुयी ।
युनिक ब्लाग पर आने के लिये धन्यवाद । आपके ब्लाग को ज्वाईन कर लिया गया है आप भी युनिक को करे तो खुशी होगी ा
यूनिक तकनीकी ब्लाग
पोस्ट और फोटो दोनो अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं। धन्यवाद।
आपको आज पीपुल्स समाचार में पढ़ा ..बहुत अच्छा लिखती हैं आप.. ..ऐसे ही लिखते रहें ...
सार्थक पोस्ट , आभार .
कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .
chaliye 15 din ki outing ne bahut acchi rachna ka srijan karva diya ....shirdi avm shani signapur vale post bhi acche hain mai bhi gai hoon vhan ....
CHIDIYON KI CHACHAHAT AKSAR MUJHE BHI TARO TAJA KAR DETI HAI,CHITRA BAHUT SUNDAR HAIN .
आपका लेखन अभिभूत करता है...बहुत सुन्दर पोस्ट ..
very very nice blog & also post!!!!
Komal
बहुत बहुत बधाई कविता जी आपको ...
आपके घर नए मेहमानों का आना हुआ .....:))
Kavita ji Namaskar !
apka Blog padha .. kafi accha laga bachpan ki yaden taja ho gayi..
Meri bhi M.P. Me six months pahle (Khandwa Disst. ) me posting hui thi ..
apka m.p. bahut sunder hai vishesh kar indore..
घर में जब भी नये मेहमान आते हैं सचमुच इंतहा खुशी होती है।
जब कभी सांसारिक उहापोह भरी जिंदगी से थक-हार कर मन मायूस होता है तो मुझे प्रकृति के ऐसे ही अनमोल उपहारों से अपनी परिस्थितियों से जूझने की प्रेरणा तो मिलती ही है साथ ही हताश, निराश मन में भी नयी-उमंग-तरंग जाग उठती है.
आदरणीया कविता जी बहुत ही सुन्दर नज़ारे और आप की मन मोहक बातें ..ऐसा ही होता है जिसे हम केवल अपना घर समझते हैं उनमे न जाने कितनो का बसेरा होता है फिर हर दिन एक नया सवेरा होता है ...आइये इस उजाले को कायम रखें सब के प्रति सहिष्णु बनें और प्रेम बरसायें जहां तक संभव हो ..ऊंचाई पर रहने और जमीन से जुड़ने में बड़ा फर्क तो है ही कितने लाभ तो कितनी हानि ..फिर भी जमीन तो बड़ी प्यारी है सब के पास थोड़ी थोड़ी जरूर हो ...लेकिन अब आप पंखा कैसे चलाएंगी ?? .जय श्री राधे
भ्रमर ५
Nature has a way of teaching us a lot of lessons. Thank you for sharing this wonderful experience with us.
ाइसे महमान खुशी तो देते हैं लेकिन जब गन्द डालते हैं तो झल्लाहाट भी होती है। बधाई अnये महमानों की।
संवेदनाओं के भाव पूर्ण संसार के साक्षात्कार कराता अति कोमल सस्मरण ...नए मेहमान जीवन से जीवन का आलंबन बहुत ही शसक्त अभिव्यक्ति ....शुभ कामनाएं !!
सादर !!
बहुत बढ़िया लेख...पढ़कर अच्छा लगा ...|
मेरे ब्लॉग पर स्वागत हैं→ सफ़र हैं सुहाना ...
http://safarhainsuhana.blogspot.in/
bahut interesting likhti hain aap Kavita ji.
घर में फिर से नए मेहमान के आने पर बधाई ...शुक्र है इंसान नहीं है.............वर्ना वो भी ऊपर वालों के तरह कूड़ा करकट फेंककर मुश्किल पैदा कर देते..
बहुत अच्छा लगता होगा घर में सभी को ...
अब तक तो उड़ भी गए होगें .....
हर बार के तरह बहुत बढ़िया आलेख
जीवंत तस्वीर सी खींच दी आपने।
आभार।
............
International Bloggers Conference!
अतिथि देवो भवः ....
मेहमान देवता समान होते हैं
और ऐसे मेहमान तो सही में भगवान की उपस्थिति का अहसास है
सुंदर आलेख ..
पिछला कमेंट मैंने डिलीट किया, उसमे कॉपी-पेस्ट के चक्कर में कुछ और ही पेस्ट हो गया था :)
सादर !!
प्रकृति और इंसान में ये कसमकस सदा चलती रहेगी . कभी इंसान प्रकृति में घुसने की कोशिश करेगा तो कभी प्रकृति इंसान को दूर धकेलने की . हम जंगलों में बसने लगे तो जाहिर है वन्य जीव-जन्तुओं से मुठभेड़ तो होगी ही .
प्रकृति से प्रेम कीजिये सब अच्छा ही होगा
आपकी पोस्ट रोचक,भावमयी सुन्दर कविता सी है.
फोटोज के साथ आपके संस्मरण हृदयग्राही हैं.
प्रस्तुति के लिए आभार,कविता जी.
बहुत सुन्दर पोस्ट...और आपकी बुलबुल भी बहुत प्यारी मालूम पड़ती है :)
kya karein insaan ne kisi ke liye jagah hi nahi chodi hai .... kabhi hamare bagiche me me bahut chiddayein rahti thi .... car ke aane ke baad sab ujad gaya ... Hum Bhi- A hindi poem
प्रकृति के साथ रहें, वहां परभक्षी भी होंगे और प्रेम को अनुकम्पित करने वाले भी।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मैंने इस संस्मरण को पढ़ा नहीं, महसूस किया है।
वाह! बुलबुल के बच्चों की प्यारी हरकतों और चित्रों ने इस आलेख को बहुत जीवंत बना दिया है, मानव यदि प्रकृति के साथ इतना सामंजस्य बना कर रखे तो जीवन कितना अर्थवान हो जाता है
बहुत सुंदर रचना ! मेरा भी इनसे वास्ता पड़ चुका है !
https://kuchhalagsa.blogspot.com/2017/06/blog-post_20.html
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पाबला जी की टिप्पणी ने उनकी याद दिला मन भारी कर दिया ! जहां भी हो सुख-शांति के साथ हों !
गुजरे दिन की याद दिला दी। एक वक्त पर मेरे सरकारी आवास के बगीचे में अपराजिता के बेलों में बुलबुल ने अंडे दिए थे। अंडे से बच्चे और बड़े होकर उड़ने तक का सफर मेरे आंखों के सामने हुआ। ये खुशी का एक अलग ही एहसास है। कितनी खूबसूरती से आपने इस वृतांत को शब्दों में पिरो दिया।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!
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