अपने वक्त पर साथ देते नहीं
यह कहते हुए हम थकते कहाँ है
ये अपने होते हैं कौन?
यह हम समझ पाते कहाँ है!
दूसरों को समझाने चले हम
अपनों को कितना समझा पाते हैं
दूसरों को हम झांकते बहुत
पर अपने को कितना झांक पाते हैं?
है पता ख़ुशी से जी ले चार दिन
पर ख़ुशी से कितने जी पाते यहां हैं!
कौन कितना साथ होगा अपने
यह हम जान पाते कहाँ हैं!
सुख-दुःख, जीना-मरना, स्वर्ग-नरक सबकुछ यहाँ
जानकर भी हम जानते कहाँ हैं
गर जिंदगी कट जाय सुकूं से तो जिंदगी
वर्ना जिंदगी रहती कहाँ हैं!
.... कविता रावत
ये अपने होते हैं कौन?
यह हम समझ पाते कहाँ है!
दूसरों को समझाने चले हम
अपनों को कितना समझा पाते हैं
दूसरों को हम झांकते बहुत
पर अपने को कितना झांक पाते हैं?
है पता ख़ुशी से जी ले चार दिन
पर ख़ुशी से कितने जी पाते यहां हैं!
कौन कितना साथ होगा अपने
यह हम जान पाते कहाँ हैं!
सुख-दुःख, जीना-मरना, स्वर्ग-नरक सबकुछ यहाँ
जानकर भी हम जानते कहाँ हैं
गर जिंदगी कट जाय सुकूं से तो जिंदगी
वर्ना जिंदगी रहती कहाँ हैं!
.... कविता रावत