गणपति में रमें बच्चे - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

गणपति में रमें बच्चे


इन दिनों भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाले १० दिवसीय विद्या, बुद्धि, ऋद्धि-सिद्धि के दाता, मंगलकर्ता, विध्न विनाशक गणेश जी के जन्मोत्सव की धूम चारों ओर मची है। कभी महाराष्ट्र में सातवाहन, चालुक्य, राष्ट्रकूट और पेशवा आदि राजाओं द्वारा चलाई गई गणेशोत्सव की प्रथा आज महाराष्ट्र तक ही सीमित न होकर देश के कोने-कोने में ही नहीं अपितु कई दूसरे राष्ट्रों में भी मनाया जाने वाला पर्व बन बैठा है। गणेशोत्सव की धूम सार्वजनिक स्थलों में विद्युत साज-सज्जा के साथ छोटी-बड़ी सजी-धजी प्रतिमाओं के विराजमान होने से तो है ही साथ ही साथ घर-घर में विभिन्न सुन्दर आकार-प्रकार की प्रतिमाओं के विराजमान होने से और भी बढ़ गई है। 
एक और जहाँ मेरा बचपन से ही शिव पूजन में मन रमा है, वहीँ दूसरी ओर जब मैं अपने ७ वर्षीय बेटे का जब से उसने होश संभाला है, को गणपति धुन में रमा देखती हूँ तो कभी-कभी आश्चर्य से भर उठती हूँ। क्योंकि वह हरदम हर जगह हर किसी से गणेश की ही बातें करने बैठ जाता है, जिससे कई बार अजीबोगरीब स्थिति निर्मित हो जाती है। घर में जहाँ उसके जन्म से पहले कभी गणेशोत्सव के दौरान गणेश जी की स्थापना नहीं हो पायी वहीँ आज उसकी गणपति धुन का ही परिणाम है कि ४ साल से निरंतर उसके हाथों घर में गणेश स्थापना हो रही है। इस बार संयोग से गणेश चतुर्थी से दूसरे दिन उसका जन्मदिन आया तो उसने पहले से ही घोषणा कर दी कि अबकी बार गणेश जी के साथ ही जन्मदिन मनाऊँगा। इन दिनों दोनों बच्चों की परीक्षाएं चल रही हैं इसलिए जन्मदिन परीक्षा समाप्ति पर मनाने को कहा लेकिन जब वह बहुत कहने पर भी नहीं माना तो हमने केक लाकर जब उसे दिया तब वह अपने गणपति के साथ जन्मदिन मनाकर ऐसे खुश हुआ जैसे सचमच गणेश जी उसके साथ होंगें।
अभी मेरे शिव पहली कक्षा में है लेकिन नर्सरी से अब तक स्कूल से सिर्फ एक ही शिकायत सुनती आयी हूँ कि वह जब कभी कक्षा में पेन-पेंसिल लेकर कापी-किताब में गणेश के चित्र बनाने बैठ जाता है। वह तो गणेश जी की ही अनुकम्पा समझो कि वह पढने में अव्वल आता है जिसके कारण टीचर इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते। दीदी भी साथ ही चौथी कक्षा में है उसकी भी बराबर एक ही शिकायत होती है कि वह स्कूल वैन में बैठे सभी बच्चों को जब-तब गणपति के किस्से सुनाने बैठ जाता है जिससे सभी उसकी हँसी उड़ाने लगते हैं जो उसे कतई अच्छा नहीं लगता। दीदी को तो अपनी परीक्षा की चिंता है लेकिन वह बहुत डांट-फटकार के बाद ही पढने बैठ पाता है। 
जब कभी मेरा कंप्यूटर में कोई काम होता है तो थोड़ी देर बैठकर दूसरे काम के लिए उठी नहीं कि कब वह चुपके से अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने कमरे से खिसक कर कंप्यूटर पर गणेश के चित्र या इन्टरनेट से गणपति के गाने, फिल्म, गीत या गेम लोड कर देता है इसका पता उसकी बनाई फाइल या डाउनलोड फाइल देख कर कर पाती हूँ। पॉवर पॉइंट में तो वह इतनी अच्छी तरह गणपति के फोटो इन्सर्ट कर उन्हें सजाकर जे.पी.जी फाइल में बदलकर सेव कर मुझे दिखाने लगता है तो मुझे पहले तो गुस्सा आता है लेकिन बाद में देखकर हैरानी होती है कि ऐसा बनाना तो मुझे भी अच्छी तरह से नहीं आ पाता है, यह सोचकर मेरा गुस्सा शांत हो जाता है । बावजूद इसके माँ-बाप को लाड-प्यार के साथ बच्चों को कभी-कभार डांटना-फटकारना भी मेरे हिसाब से बहुत जरुरी हो जाता है इसलिए यह सब चलता रहता है।
मेरी डांट-फटकार के बावजूद भी उसके गणपति से लगाव में कोई बदलाव दूर-दूर तक आता दिखाई नहीं देता है वह आज भी घर की दीवार से लेकर जो भी उसे कोरा पन्ना या कापी मिलती है तो वह अपनी कल्पना शक्ति से आड़ी-टेढ़ी रेखाओं से गणेश के चित्र उकेरने से बाज नहीं आता है।  उसे दूसरे बच्चों की तरह खिलोंनों के बजाय गणपति जी से सम्बंधित किसी भी वस्तु/चीज आदि से खेलना बेहद भाता है। दूसरे बच्चों के साथ भी वह गणपति का खेल शुरू कर देता है, जिसे देख लोग हँसकर रह जाते हैं. रास्ते में या कहीं भी बाजार में जहाँ कहीं भी उसके नज़र गणेशनुमा चीज पर पड़ी नहीं कि फिर तो हाथ धोकर उसे लेने के पीछे पड़ जाता है।  कोई भी समाचार पत्र हो या गणेश जी की कोई किताब जिसमें गणेश जी के बारे में कुछ भी लिखा/छपा हो, उसके हाथ लगी नहीं कि उसे पढने-देखने बैठ जाता है। जहाँ समझ नहीं आता चट से उसे लेकर पास खड़े होकर सुनाओ/बताओ इसमें क्या लिखा/छपा है तब तक रट लगाये रखेगा जब तक वह बात बता या समझा न दिया जाय। जरा आनाकानी की या थोडा मना किया नहीं कि मुहं फुलाकर एक कोने में बैठ 'कट्टी' कहकर मौनव्रत धारण कर लेता है।
ईश्वर की लीला भी अपरम्पार है  विवाह के १० वर्ष बाद जाने क्या-क्या झेलने,सुनने, देखने की बाद  ईश्वर की अनुकम्पा से मुझे मातृत्व सुख अनुभव करने का अवसर मिल पाया  सोचती हूँ कभी-कभी हम जाने क्यों घोर कष्ट और विपदा के क्षणों में ईश्वर की योजना को बहुत थकावट और पीड़ा से परिपूर्ण कार्यक्रम समझ अज्ञानतावस उनसे दूर भागने की नाकाम कोशिश करने लगते हैं।  उस समय हम भूल जाते हैं कि यह कष्ट तो उस नन्हें बालक के चलने के प्रयत्न जैसा है जिसके सामने उसकी माँ प्रसन्न बदन, मुस्कराती उसे निहारती है जिसे देख बालक बिना किसी कष्ट और पीड़ा के आगे-आगे अपने नन्हे-नन्हे कदम बढ़ाकर माँ की गोद में आकर सबकुछ भूल जाता है। यदि एक दृष्टिकोण से विकास अत्यंत श्रमशील और कठिन जान पड़ता है तो दूसरी ओर उसमें क्रीडा का आनंद भी निहित है यह उस ईश्वर की ही लीला है जिसके नियम हम मानव की तरह नहीं बदलते, उसके नियम तो निश्चित हैं और मेरा मानना है  इसका ज्ञान हर मनुष्य को सिर्फ अपने अनुभव से ही देर-सबेर जरुर होता है। यही सब सोचकर जब भी मैं अपने शिवा के गणपति के रंग में रंगने की कोशिश करती हूँ तो सच में मुझे भी अपार ख़ुशी का अनुभव होने लगता है    
सभी को गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं सहित..
......कविता रावत