परशुराम-लक्ष्मण संवाद प्रसंग - Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

रविवार, 12 मई 2013

परशुराम-लक्ष्मण संवाद प्रसंग


परशुराम जयंती को निकट आते देख मन मष्तिस्क के स्मृतिपटल से निकलकर रामलीला के कई दृश्य आँखों के सामने चलचित्र की तरह चलने लगते हैं, जिनमें से सीता स्वयंवर प्रसंग का "परशुराम-लक्ष्मण संवाद" मुख्य है।  जब रामचन्द्र जी ने घनुष भंग किया तो इससे कुपित होकर परशुराम जी क्रोध में आग बबूला होकर हाथ में अपना फरसा लहराते हुए मंच पर आकर स्वयंवर में आए सभी उपस्थित राजा-महाराजाओं को ललकारते हुए सचेत करते हैं कि जिसने भी उनके गुरुदेव का धनुष भंग किया है वह सहस्त्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है।  यह सुनकर श्रीराम उनसे विनयपूर्वक कहते हैं -
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
यह सुनते ही परसुराम जी क्रोधित हो कहते हैं-
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई॥
सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥

इतना सुनते ही जब उपस्थित राजा-महाराजा डर के मारे थर-थराकर कांपते हुए भाग खड़े होने लगते तो हम बच्चों का भी डर के मारे गला सूखने लगता, हाथ-पैर कांपने लगते और आंखे भी डर के मारे बन्द हो जाया करती।  इसके बाद जब लक्ष्मण का परशुराम जी से गर्मागर्म संवाद चलता तो बीच में रामचन्द्र जी उन्हें शांत करने की कोशिश करते तो वे बड़े आत्मीय होकर कहते-
‘हे राम तू तो बहुत शांत है लेकिन तेरा यह भाई बड़ा दुष्ट है।‘ यह सुन  शांतचित्त होकर श्रीराम कहते- 
नाथ करहु बालक पर छोहू। सूध दूधमुख करिअ न कोहू ।। 
जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना । तौ कि बराबरि करत अयाना ।। 
जौं लरिका कछु अचगरि करहीं। गुर पितु मातु मोद मन भरहीं।।  
करिअ कृपा सिसु सेवक जानी । तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी ।। 
यह सुनकर जैसे ही परशुराम जी अपना परसु लक्ष्मण को दिखाते हुए समझाना चाहते हैं, तो लक्ष्मण उन्हें चिढ़ाकर कहते हैं -
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥

 यह देख क्रोध  से परसुराम जी कहते हैं -
‘यह बच्चा नहीं जहर की बेल है, समझा है इसने मेरे लिए कोई खेल है।‘
इस पर लक्ष्मण भी बिगड़कर कहते-
 ‘तो लक्ष्मण भी कोई तमाशा नहीं, जो मुंह में डालो बताशा नहीं।‘‘  
इसी तरह बहुत देर तक लक्ष्मण-परशुराम संवाद जारी रहता। लक्ष्मण कभी क्रोध से तो कभी बड़े ही भोलेपन से विभिन्न भाव-भंगिमाओं के माध्यम से परशुराम जी से हास-परिहास करने लगते, जो देखते ही बनता था-   
एही धनु पर ममता केहि हेतु। सुनि रिसाइ कह भृगुकुल केतू।।
जौं अति प्रिय तौ करिअ उपाई। जोरिउ कोउ बड़ गुनी बोलाई।।
तब रामलीला हमारे लिए केवल शुद्ध मनोरंजन भर से अधिक कुछ न था। उसमें निहित कथा प्रसंग, संवाद आदि के बारे में जानना-समझना हमारे बूते की बात नहीं थी। आज इस कथा से जुड़े कई रहस्य और संवाद नए अर्थ देते हैं।
इसी प्रसंग में कहा जाता है कि  हैहय वंशी राजा सहस्त्रबाहु ने परशुराम जी के पिता महर्षि जमदग्नि का वध इसलिए कर दिया था क्योंकि महर्षि ने राजा को अपनी कामधेनु देने से मना कर दिया था। जब परशुराम जी ने अपनी मां रेणुका को 21 बार अपनी छाती पीटकर करुण क्रन्दन करते देखा तो वे ये देखकर इतने द्रवित हुए कि उन्होंने प्रण किया कि मैं पृथ्वी को क्षत्रिय रहित कर दूंगा। इसी कारण उन्होंने सहस्त्रबाहु के साथ ही 21 बार अपने फरसे से पृथ्वी को क्षत्रिय रहित कर दिया। माना जाता कि इन क्षत्रियों से प्राप्त अस्त्र-शस्त्र, धनुष-बाण, आयुध आदि का कोई दुरूपयोग न हो इसके लिए धरती ने मां का तथा शेषनाग ने पुत्र का रूप धारण किया और वे परशुराम जी के आश्रम में गए। जहां धरती मां ने अपने पुत्र को उनके पास कुछ दिन रख छोड़ने की विनती की  जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया  जिस पर धरती मां ने यह वचन लिया कि यदि मेरा बच्चा कोई अनुचित काम कर बैठे तो आप स्वभाववश कोई क्रोध नहीं करेंगे, जिसे परशुराम जी ने मान लिया। एक दिन उनकी अनुपस्थिति में धरती पुत्र बने शेषनाग ने सभी अस्त्र-शस्त्र, धनुष-बाण, आयुध आदि सब नष्ट कर दिए। जिसे देख परशुराम जी को पहले तो क्रोध आया लेकिन अपना वचन याद कर वे कुछ भी नहीं बोले। क्योंकि लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है इसलिए वे परशुराम जी को सीता स्वयंवर के समय याद दिलाते हुए कहते हैं- 
‘बहु धनुहीं तोरी लरिकाई। कबहुं न असि रिस कीन्हि गुसाईं।।
मान्यता है कि नौ गुणों शम, दम, तप, क्षमा, शौर्य, सरलता, ज्ञान, विज्ञान और आस्तिकता से सम्पन्न भगवान परशुराम अन्तिम बार पृथ्वी को क्षत्रिय रहित करने के बाद सम्पूर्ण पृथ्वी को ऋषि कश्यप को दान देकर उनकी आज्ञा से समुद्र स्थित महेन्द्र पर्वत पर रहने लगे। उन्हें भी हनुमान, अश्वथामा, बलि, कृपाचार्य, व्यास और विभीषण की तरह ही अमर माना जाता है।

सबको मातृ दिवस एवं परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ.....कविता रावत

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर दिल खुशी हो गया।

    जवाब देंहटाएं
  2. रामलीला की चर्चा कर आपने आपने बचपन में देखी रामलीला के साथ जुडी कई यादें ताज़ा कर दीं आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. मातृ दिवस की शुभकामनाएं
    बहुत सुन्दर प्रसंग आपको शुभकामना बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही अच्छा प्रसंग साझा किया है ... बचपन में देलखि राम लीला की यादें ताज़ा हो गयीं ... परसुराम संवाद विशेष हुआ करता था उनदिनों रामलीला में ...
    मातृ दिवस एवं परशुराम जयंती की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएँ...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर, सामयिक विषय
    सकारात्मक सोच

    जवाब देंहटाएं
  6. कभी हम भी बहुत शौक था रामलीला देखने का ....रामलीला में सीता स्वयम्बर के दिन लक्ष्मन और भगवान् परसुराम का संवाद बहुत ही रोचक होता था ....खेद है आज यह सब देखने को नहीं मिलता ......
    सुन्दर भूमिका के साथ ही परसुराम-लक्ष्मन संवाद की सुन्दर चिंत्रण करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ..मातृ दिवस एवं परशुराम जयंती की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएँ...

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही बढ़िया ज्ञानवर्धक प्रसंग कविता जी। परशुराम जयंती की आपको भी मंगलकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  8. रोचकता आ गयी इस प्रसंग से।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर और सामयिक आलेख। आपको भी मातृ दिवस एवं परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  10. यह संवाद प्रसंग हमारे भी प्रिय प्रसंगों में से एक है। दोनों का ही व्यक्तित्व ओज-पुंज का है।
    शुभदिवस की आपको भी शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर ज्ञान वर्धक आलेख.

    आपको भी मातृ दिवस एवं परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं


  12. ए अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
    मां ने आंखे खोल दी घर में उजाला हो गया।


    समय मिले तो एक नजर इस लेख पर भी डालिए.

    बस ! अब बक-बक ना कर मां...

    http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/05/blog-post.html?showComment=1368350589129

    जवाब देंहटाएं
  13. सबको ढेरों शुभकामनायें, परशुराम-लक्ष्मण संवाद की स्मृतियाँ अभी भी स्पष्ट हैं।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुंदर पौराणिक प्रसंग साझा किया ....आभार
    शुभकामनाएं आपको भी

    जवाब देंहटाएं
  15. पौराणिक प्रसंग साझा करने के लिए आभार्॥ बहुत सुन्दर आलेख्॥

    जवाब देंहटाएं
  16. बचपन में देखी रामलीलाएं याद आ गयी . मेरा सबसे पसंदीदा प्रसंग लक्ष्मण परशुराम संवाद ही होता था !
    आपको भी ढेरों शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  17. मेरा भी रामलीला का सबसे पसंदीदा संवाद परशुराम-लक्ष्मण संवाद है .......................................................
    अब तो ऑंखें तरस गयी हैं पहले जैसे रामलीला देखने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  18. आज के पीपुल्स समाचार में यह पोस्ट छपी है ..
    http://www.peoplessamachar.co.in/index.php?option=com_flippingbook&view=book&id=3961&page=1&Itemid=63

    जवाब देंहटाएं
  19. सर्वोत्त्कृष्ट, अत्युत्तम लेख आभार
    हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र कुछ नया और रोचक पढने और जानने की इच्‍छा है तो इसे एक बार अवश्‍य देखें,
    लेख पसंद आने पर टिप्‍प्‍णी द्वारा अपनी बहुमूल्‍य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
    MY BIG GUIDE

    जवाब देंहटाएं
  20. बचपन में गाँव में खूब रामलीला खेलते और देखते थे ...परशुराम लक्ष्मन संवाद सुने-देखे वर्षों बीत गए...... घर द्वार में जब इंसान उलझ जाता है तो फिर भूल जाते हैं सब कुछ ....बचपन की रामलीला की याद जेहन में उभर आई है ...शानदार और जानदार

    जवाब देंहटाएं
  21. आपने स्मृतियों को लौटा दिया,रामलीला अब कहाँ
    परशुराम और लक्ष्मण संवाद तो रामलीला की जान होती थी
    सार्थक आलेख
    बधाई

    आग्रह है पढ़ें "अम्मा"
    http://jyoti-khare.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  22. धनुषभंग की लीला जिस दिन होती थी उस दिन हम परशुराम को देखने नहीं बवंडर को देखने जाते थे। वह खूब मजा करता था।

    जवाब देंहटाएं
  23. M ramlila m luxman का अभिनय karta.. Aap mere पूरी. Ramlila के बीडियो is link. M dekh sakte h.. इस link m दिए channel m video h... https://youtu.be/j4vQHBGa20M

    जवाब देंहटाएं
  24. samir sardana18:52

    The Parashooran Paradox

    What is the "Paradox of Parshooram" ? The man copulated wuth his mother,on the instructions of his father - who was an impotentica sage.The Hindoo Model,is that the Gods sent the husband of Brahmin wives,to jungles for penance and austerities - while the Hindoo Gods, seduced the wives of the Brahmins,and mated with them.

    The father of Parshooram,did not want to mate iwth his wife,as he was on a celibacy trip.Hence his son banged mommy - but the Kshatriyas saw the kid.To hide the shame and guilt - the son and poppy,blamed the Kshatriyas - and theh killed all the Kshatriyas ! In Hindooism,incest is normal - even Gan-pati mated with his mother.

    This is all a "copy and paste",from Greek Theology and Creativity.dindooohindoo

    Net result - all the Kshatriya men were dead, and their women were on heat - and so,they copulated with the Brahmins,to breed a "new race" of Kshatriyas.These "mew" breed had the DNA of the Brahmins (cowards,weasels and impotenticas) and the DNA of their mothers (which is "whoring") - the "born agains" Kshatriyas.

    The Disaster

    When the Sakas,Scythians,Turks,Afghans,Mongols,Central Asians,Greeks,Persians, Abyssinians etc., attacked Hindoosthan - there was no martial race left,as the "real" so called Kshatriyas were killed.These Kshatriya cowards,joined hands with Babar and the Brits and the Portugese to kill and rape Hindoos.These "rat" Kshatriyas were called Rakpoots,Jats and Sikhs etc.

    The DNA of these "born again" Kshatriyas (as stated above),explains Y the Hindoos were raped again and again and again and again (The DNA of Poppy - The Brahmin - and so were,their women.This also explains Y the Rajpoots sold their women,like whores,to the Mughals and the Brits - to save their lives and money (The DNA of their 1st mommy).

    This also explains Y the Sakas,Scythians,Turks,Afghans,Mongols, Greeks,Persians, Abyssinians etc.,who stayed back in Hindoosthan,and married locals - also produced cowards,weasels,idiots and impotenticas.

    The Curse

    It is all the curse of Parshooram - the Curse of Incest and the Curse of Hindooism. Just like the curse of Ishvaku - whose own kids from the same mommy married each other - and then lineaged into Rama,the coward and impotentica.

    Rama - captures the disaster the doom of the Hindoo race,and the Hindoo DNA - which is Y the Hindoo Muslims and Nassara,are treated as trash,all over the world - with real Muslims and Jesuits.

    जवाब देंहटाएं
  25. आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी हैं।

    जवाब देंहटाएं
  26. Sarkariexam Says thank You Very Much For Best Content I Really Like Your Hard Work. Thanks
    amcallinone Says thank You Very Much For Best Content I Really Like Your Hard Work. Thanks
    9curry Says thank You Very Much For Best Content I Really Like Your Hard Work. Thanks

    जवाब देंहटाएं
  27. अपने बहुत ही अच्छी जानकारी साँझा की है आपके इस पोस्ट को पढ़कर बहुत अच्छा लगा और इस ब्लॉग की यह खास बात है कि जो भी लिखा जाता है वो बहुत ही understandable होता है. Keep It Up

    जवाब देंहटाएं